लखनऊ । मीरा सेठ की तरफ से गुरनाम सिंह के समर्थन का दावा करते हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए केएस लूथरा का समर्थन प्राप्त करने का जो प्रयास किया जा रहा है, उसे देख/जान कर कमल शेखर खुद को बुरी तरह ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं ।
उल्लेखनीय है कि कमल शेखर भी लोगों के बीच गुरनाम सिंह और उनके नजदीकियों
के समर्थन का दावा कर रहे हैं, और गुरनाम सिंह के प्रमुख सिपहसालार के रूप
में विशाल सिन्हा ने उनसे पैसे खर्च करवाना भी शुरू कर दिया है । इसीलिए
कमल शेखर को हैरानी हुई है कि गुरनाम सिंह खेमे के लोगों ने जब उनकी
उम्मीदवारी के साथ रहने का उनसे वायदा कर लिया है, तब मीरा सेठ उनके समर्थन
का दावा कैसे कर रही हैं ? कमल शेखर को डर हुआ है कि गुरनाम सिंह खेमे
के लोग उनके साथ कहीं कोई धोखा तो नहीं कर रहे हैं - पैसे उनसे खर्च करवा
रहे हैं, और पर्दे के पीछे से मीरा सेठ को प्रमोट कर रहे हैं । यह बात कमल
शेखर और उनके नजदीकी समझ भी रहे हैं कि मीरा सेठ ने अपनी उम्मीदवारी यदि
सचमुच प्रस्तुत की, तो गुरनाम सिंह खेमा उनका ही समर्थन करेगा । गुरनाम
सिंह के कुछेक नजदीकियों ने कमल शेखर को हालाँकि तर्क दिया है कि मीरा सेठ
चुनाव लड़ने का साहस नहीं करेंगी, और अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी को लेकर
केएस लूथरा खेमा अब इतना आगे बढ़ चुका है कि वह मीरा सेठ को समर्थन देने के
बारे में अब सोचना/विचारना भी नहीं चाहेगा - इसलिए गुरनाम सिंह खेमे के पास
तुम्हें समर्थन देने के अलावा कोई चारा भी नहीं होगा ।
इस तर्क से कमल शेखर को लेकिन इस बात का पक्का सुबूत मिल गया है कि गुरनाम सिंह खेमे का उन्हें मिल रहा समर्थन मजबूरी का सौदा है, जो सिर्फ इसलिए है ताकी खेमे के विशाल सिन्हा जैसे लोगों को उनके पैसे पर खाने और 'पीने' का मौका मिलता रहे । मजे की बात यह है कि कमल शेखर और उनके साथी कुछ समय पहले तक केएस लूथरा के नजदीकी हुआ करते थे, लेकिन सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति के चक्कर में वह गुरनाम सिंह खेमे के साथ चले गए हैं । उल्लेखनीय है कि अशोक अग्रवाल ने भी पिछला चुनाव गुरनाम सिंह खेमे के समर्थन से लड़ा था और हासिल हुए नतीजे के बाद उन्होंने यह समझ लिया था कि गुरनाम सिंह खेमे के भरोसे रहे तो वह जीवन में कभी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बन पायेंगे - लिहाजा तभी से वह केएस लूथरा के नजदीक आ गए । हालाँकि केएस लूथरा ने इस वर्ष के उम्मीदवार के चयन में मीरा सेठ और कमल शेखर की तुलना में यदि अशोक अग्रवाल को वरीयता दी तो इसका प्रमुख कारण यह रहा कि उन्होंने भी समझा/पहचाना कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उन दोनों की बजाए अशोक अग्रवाल के प्रति ही सहानुभूति और समर्थन का भाव है ।
मजे की बात यह है कि गुरनाम सिंह खेमे की तरफ से भी अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी का झंडा उठाने की तैयारी की जा रही थी, क्योंकि उन्हें भी लग रहा था कि इस वर्ष हालात चूँकि अशोक अग्रवाल के पक्ष में हैं इसलिए अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के सहारे/भरोसे वह अपनी राजनीति की लगातार डूबती जा रही नाव को बचा लेंगे । अशोक अग्रवाल ने लेकिन उनकी बजाए केएस लूथरा पर भरोसा किया और उनके उम्मीदवार के रूप में मैदान में आ गए । गुरनाम सिंह खेमे के लोगों को तब मजबूरी में कमल शेखर की उम्मीदवारी का झंडा उठाना पड़ा । गुरनाम सिंह खेमे के नेताओं को हालाँकि यह भी लगता है कि कमल शेखर के लिए अशोक अग्रवाल के सामने टिक पाना मुश्किल ही होगा, और इसीलिए वह मीरा सेठ को उम्मीदवार होने के लिए प्रेरित कर रहे हैं । मीरा सेठ लेकिन चुनाव लड़ने से बचना चाहती हैं - और वह भी केएस लूथरा खेमे के मुकाबले; इसलिए ही वह केएस लूथरा का समर्थन पाने की जुगत में हैं । मीरा सेठ को विश्वास है कि उन्हें यदि केएस लूथरा का समर्थन मिल जाता है, तो गुरनाम सिंह खेमा कमल शेखर को छोड़ने में सेकेंड नहीं लगायेगा - और तब उनका काम आसानी से बन जाएगा । केएस लूथरा लेकिन अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी का झंडा लेकर काफी आगे बढ़ चुके हैं ।
इस परिस्थिति में कमल शेखर के लिए परेशानी की बात यह हुई है कि उनकी उम्मीदवारी का झंडा उठा लेने के बावजूद गुरनाम सिंह खेमे के नेताओं को जब उन पर भरोसा नहीं हो पा रहा है - तब वह उनकी उम्मीदवारी की नैय्या को पार कैसे लगायेंगे ? गुरनाम सिंह खेमे में जब से विशाल सिन्हा का वर्चस्व बढ़ा है, तब से काम करने और लोगों के बीच साख रखने वाले लोगों की बजाए खाने और 'पीने' वाले लोगों का जमावड़ा बढ़ा है - और इसी कारण से खेमे की राजनीतिक साख लगातार घटती ही जा रही है । डिस्ट्रिक्ट में विशाल सिन्हा की बदनामी की स्थिति का आलम यह है कि अपने जिस चुनाव में उन्हें केएस लूथरा का समर्थन नहीं मिला था, उस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था; और पिछले लायन वर्ष के अपने गवर्नर-काल में उन्हें उम्मीदवार का टोटा पड़ गया था तथा उन्हें केएस लूथरा के उम्मीदवार मनोज रुहेला का समर्थन करने के लिए मजबूर होना पड़ा था । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जब से केएस लूथरा ने मोर्चा संभाला है, तब से जीत उसी को मिली है - जिसके साथ केएस लूथरा का समर्थन रहा है । ऐसे में, कमल शेखर के लिए रास्ता वैसे ही मुश्किलों भरा है - उस पर उनकी उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे नेता बेमन से और मजबूरी में उनके साथ हैं, और विशाल सिन्हा जैसे लोगों का पूरा ध्यान सिर्फ उनसे पैसा खर्च करवाने पर है । कमल शेखर के नजदीकियों को भी लग रहा है कि कमल शेखर गलत जगह फँस गए हैं - उनके अनुसार, सोचने की बात यह है कि अशोक अग्रवाल जिनके चंगुल से निकल भागे हैं, और मीरा सेठ जिन पर भरोसा नहीं कर पा रही हैं, वह कमल शेखर के ही क्या काम आयेंगे ?
इस तर्क से कमल शेखर को लेकिन इस बात का पक्का सुबूत मिल गया है कि गुरनाम सिंह खेमे का उन्हें मिल रहा समर्थन मजबूरी का सौदा है, जो सिर्फ इसलिए है ताकी खेमे के विशाल सिन्हा जैसे लोगों को उनके पैसे पर खाने और 'पीने' का मौका मिलता रहे । मजे की बात यह है कि कमल शेखर और उनके साथी कुछ समय पहले तक केएस लूथरा के नजदीकी हुआ करते थे, लेकिन सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति के चक्कर में वह गुरनाम सिंह खेमे के साथ चले गए हैं । उल्लेखनीय है कि अशोक अग्रवाल ने भी पिछला चुनाव गुरनाम सिंह खेमे के समर्थन से लड़ा था और हासिल हुए नतीजे के बाद उन्होंने यह समझ लिया था कि गुरनाम सिंह खेमे के भरोसे रहे तो वह जीवन में कभी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बन पायेंगे - लिहाजा तभी से वह केएस लूथरा के नजदीक आ गए । हालाँकि केएस लूथरा ने इस वर्ष के उम्मीदवार के चयन में मीरा सेठ और कमल शेखर की तुलना में यदि अशोक अग्रवाल को वरीयता दी तो इसका प्रमुख कारण यह रहा कि उन्होंने भी समझा/पहचाना कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उन दोनों की बजाए अशोक अग्रवाल के प्रति ही सहानुभूति और समर्थन का भाव है ।
मजे की बात यह है कि गुरनाम सिंह खेमे की तरफ से भी अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी का झंडा उठाने की तैयारी की जा रही थी, क्योंकि उन्हें भी लग रहा था कि इस वर्ष हालात चूँकि अशोक अग्रवाल के पक्ष में हैं इसलिए अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के सहारे/भरोसे वह अपनी राजनीति की लगातार डूबती जा रही नाव को बचा लेंगे । अशोक अग्रवाल ने लेकिन उनकी बजाए केएस लूथरा पर भरोसा किया और उनके उम्मीदवार के रूप में मैदान में आ गए । गुरनाम सिंह खेमे के लोगों को तब मजबूरी में कमल शेखर की उम्मीदवारी का झंडा उठाना पड़ा । गुरनाम सिंह खेमे के नेताओं को हालाँकि यह भी लगता है कि कमल शेखर के लिए अशोक अग्रवाल के सामने टिक पाना मुश्किल ही होगा, और इसीलिए वह मीरा सेठ को उम्मीदवार होने के लिए प्रेरित कर रहे हैं । मीरा सेठ लेकिन चुनाव लड़ने से बचना चाहती हैं - और वह भी केएस लूथरा खेमे के मुकाबले; इसलिए ही वह केएस लूथरा का समर्थन पाने की जुगत में हैं । मीरा सेठ को विश्वास है कि उन्हें यदि केएस लूथरा का समर्थन मिल जाता है, तो गुरनाम सिंह खेमा कमल शेखर को छोड़ने में सेकेंड नहीं लगायेगा - और तब उनका काम आसानी से बन जाएगा । केएस लूथरा लेकिन अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी का झंडा लेकर काफी आगे बढ़ चुके हैं ।
इस परिस्थिति में कमल शेखर के लिए परेशानी की बात यह हुई है कि उनकी उम्मीदवारी का झंडा उठा लेने के बावजूद गुरनाम सिंह खेमे के नेताओं को जब उन पर भरोसा नहीं हो पा रहा है - तब वह उनकी उम्मीदवारी की नैय्या को पार कैसे लगायेंगे ? गुरनाम सिंह खेमे में जब से विशाल सिन्हा का वर्चस्व बढ़ा है, तब से काम करने और लोगों के बीच साख रखने वाले लोगों की बजाए खाने और 'पीने' वाले लोगों का जमावड़ा बढ़ा है - और इसी कारण से खेमे की राजनीतिक साख लगातार घटती ही जा रही है । डिस्ट्रिक्ट में विशाल सिन्हा की बदनामी की स्थिति का आलम यह है कि अपने जिस चुनाव में उन्हें केएस लूथरा का समर्थन नहीं मिला था, उस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था; और पिछले लायन वर्ष के अपने गवर्नर-काल में उन्हें उम्मीदवार का टोटा पड़ गया था तथा उन्हें केएस लूथरा के उम्मीदवार मनोज रुहेला का समर्थन करने के लिए मजबूर होना पड़ा था । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जब से केएस लूथरा ने मोर्चा संभाला है, तब से जीत उसी को मिली है - जिसके साथ केएस लूथरा का समर्थन रहा है । ऐसे में, कमल शेखर के लिए रास्ता वैसे ही मुश्किलों भरा है - उस पर उनकी उम्मीदवारी का समर्थन कर रहे नेता बेमन से और मजबूरी में उनके साथ हैं, और विशाल सिन्हा जैसे लोगों का पूरा ध्यान सिर्फ उनसे पैसा खर्च करवाने पर है । कमल शेखर के नजदीकियों को भी लग रहा है कि कमल शेखर गलत जगह फँस गए हैं - उनके अनुसार, सोचने की बात यह है कि अशोक अग्रवाल जिनके चंगुल से निकल भागे हैं, और मीरा सेठ जिन पर भरोसा नहीं कर पा रही हैं, वह कमल शेखर के ही क्या काम आयेंगे ?