नोएडा
। डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल ने अपनी घटिया और पक्षपातपूर्ण राजनीति
के लिए रोटरी फाउंडेशन के नाम का जैसा जो इस्तेमाल किया, उसे लेकर
डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच तो उनकी थुक्का-फजीहत हुई ही है - उसकी गूँज
रोटरी के बड़े नेताओं तक भी पहुँची है, जिन्होंने बड़ी हैरानी से सवाल किया
है कि सतीश सिंघल आखिर और कितना नीचे गिरेंगे ? अपनी हरकतों और अपनी
कारस्तानियों से सतीश सिंघल ने रोटरी और डिस्ट्रिक्ट का तो नाम खराब किया
हुआ है ही, खुद अपनी भी फजीहत करवाई हुई है । रोटरी के बड़े नेताओं का भी
कहना है कि देश के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में हाल-फिलहाल के वर्षों में जो
लोग भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने हैं, उनमें सतीश सिंघल ही ऐसे हैं - जिनका
रोटरी से सबसे पुराना और ज्यादा परिचय है; इस नाते से उम्मीद की गई थी कि
सतीश सिंघल वर्षों के अपने रोटरी-अनुभव से ऐसा कुछ करेंगे जिसके चलते वह
दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के गवर्नर्स के लिए एक उदाहरण बनेंगे । लेकिन मात्र
दो महीनों में ही सतीश सिंघल ने अपने कार्य-व्यवहार और अपनी हरकतों से
उक्त उम्मीद को बुरी तरह धूल-धूसरित कर दिया है - और देश के सभी मौजूदा 39
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स में उनकी सबसे ज्यादा शिकायतें सुनी गईं हैं, जिसके
चलते उनकी रेटिंग सबसे नीचे देखी/पहचानी जा रही है, और उन्हें सबसे घटिया
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में चिन्हित किया जा रहा है ।
सतीश सिंघल का हर कारनामा उनके पिछले कारनामे से बड़ा होता है; उनके हर कारनामे पर लोग सोच लेते हैं कि सतीश सिंघल अब इससे ज्यादा घटियापन और क्या करेंगे - लेकिन सतीश सिंघल अगले ही कारनामे से सिद्ध कर देते हैं कि घटियापन दिखाने के मामले में उन्हें कम न समझा जाए । सतीश सिंघल ने नया कारनामा पिछले दिनों रोटरी फाउंडेशन के नाम पर किया । दरअसल सतीश सिंघल की तरफ से लोगों को जब 'रोटरी फाउंडेशन व वेल्थ मैनेजमेंट सेमीनार' का निमंत्रण मिला, तो सभी का सिर चकराया - क्योंकि रोटरी फाउंडेशन का सेमीनार अभी हाल ही में तो हो चुका था । किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल हुआ कि सतीश सिंघल जल्दी से रोटरी फाउंडेशन सेमीनार दोबारा क्यों कर रहे हैं ? लोग अभी इस बात पर माथापच्ची कर ही रहे थे कि सतीश सिंघल की तरफ से उक्त निमंत्रण संशोधन के साथ दोबारा मिला - जिसमें बताया गया था कि यह सेमीनार सिर्फ जोन 9 से लेकर जोन 16 तक के क्लब्स के लोगों के लिए है । इससे बात और उलझ गई; और लोगों के बीच सवाल उठा कि सिर्फ जोन 9 से जोन 16 के क्लब्स के लोगों के लिए दोबारा और जल्दी से रोटरी फाउंडेशन का सेमीनार करने की जरूरत क्यों आ पड़ी ? निमंत्रण पत्र में दी गई एक सूचना ने उक्त सवाल के जबाव तक पहुँचने में लोगों की लेकिन मदद की - जिसमें बताया गया था कि सेमीनार में ड्रिंक और डिनर की पूरी व्यवस्था है और यह पूरी तरह फ्री है । रोटरी के अधिकृत कार्यक्रमों के निमंत्रण पत्रों में 'फैलोशिप' शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, जिसका मतलब होता है कि कार्यक्रम में खाने-पीने की भी व्यवस्था होगी । सतीश सिंघल ने विवादित सेमीनार के निमंत्रण पत्र में जिस तरह खुल कर 'ड्रिंक' और 'डिनर' शब्द का इस्तेमाल किया - उससे लोगों को यह समझने में आसानी हुई कि यह निमंत्रण सेमीनार की आड़ में वास्तव में ड्रिंक और डिनर का निमंत्रण है ।
इसके बाद लोगों के लिए यह समझना भी मुश्किल नहीं रह गया कि ड्रिंक और डिनर के इस निमंत्रण को जोन 9 से जोन 16 तक के क्लब्स के लोगों के लिए सीमित क्यों कर दिया गया ? लोगों के बीच सुना गया कि 9 से 16 तक के जोन्स में आने वाले उत्तर प्रदेश के क्लब्स को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अपने उम्मीदवार आलोक गुप्ता के पक्ष में एकजुट करने के लिए ही सतीश सिंघल ने यह ड्रामा रचा है । ड्रामा कामयाब हो भी जाता, लेकिन उसके क्रियान्वन में जो जो बेवकूफी हुई उसके चलते पर्दा खुलने से पहले ही ड्रामे की 'कहानी' लीक हो गई - और फिर सतीश सिंघल को भारी फजीहत का सामना करना पड़ा । लोगों ने देखा और कहा भी कि सतीश सिंघल की चमड़ी तो थोड़ी मोटी है, इसलिए उन्होंने तो इस फजीहत को बेशर्मी के साथ झेल लिया - लेकिन उनकी फजीहत में अपने लिए मुसीबत देखते/पहचानते हुए आलोक गुप्ता ने अपने आप को उक्त सेमीनार से दूर कर लिया । आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों ने भी माना और कहा है कि ड्रिंक और डिनर के सहारे उत्तर प्रदेश के क्लब्स के वोट जुटाने की कार्रवाई को सतीश सिंघल ने जिस बेवकूफी के साथ अंजाम दिया है, उससे आलोक गुप्ता को फायदा होने की बजाए नुकसान और हो गया है ।
उत्तर प्रदेश के क्लब्स के पदाधिकारी तो इस बात पर नाराज हुए हैं कि आलोक गुप्ता और सतीश सिंघल ने उन्हें क्या ड्रिंक और डिनर पर 'बिकने' वाला समझ लिया है; दिल्ली, सोनीपत और नोएडा के क्लब्स के पदाधिकारियों की नाराजगी इस बात को लेकर है कि आलोक गुप्ता और सतीश सिंघल उन्हें दरकिनार कर क्या सिर्फ उत्तर प्रदेश के क्लब्स के भरोसे ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीत लेंगे ? उल्लेखनीय है कि रोटरी की चुनावी राजनीति में पार्टियों की निर्विवाद रूप से अहम् भूमिका है, और हर किसी ने इसे एक 'आवश्यक बुराई' के रूप में स्वीकार कर लिया है । लेकिन उम्मीद की जाती है कि उम्मीदवार और उनके समर्थक नेता इस 'काम' को लोगों की गरिमा व प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाएँ बिना अंजाम देंगे - इससे उम्मीदवार की लीडरशिप क्षमता का भी पता चलता है । आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए सतीश सिंघल ने 'ड्रिंक' और 'डिनर' का लेकिन जिस तरह से लालच दिया - वह पूरी तरह से फूहड़ता की तो मिसाल बना ही, जोन 9 से 16 तक के क्लब्स के पदाधिकारियों को अपमानित और जलील करने वाला भी नजर आया । इस बात ने उम्मीदवार के रूप में आलोक गुप्ता की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी का सारा दारोमदार दरअसल उत्तर प्रदेश के क्लब्स पर टिका हुआ है । आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के दूसरे समर्थकों के साथ-साथ सतीश सिंघल ने भी पाया और माना है कि दिल्ली, सोनीपत तथा नोएडा क्षेत्र में आलोक गुप्ता के मुकाबले ललित खन्ना का पलड़ा ज्यादा भारी है; इसलिए उत्तर प्रदेश के क्लब्स को एकजुट करके ही आलोक गुप्ता की चुनावी नैय्या को पार लगाया जा सकता है । उत्तर प्रदेश में आलोक गुप्ता के सामने लेकिन कई चुनौतियाँ हैं - यहाँ कुछ लोग पिछली बातों/घटनाओं के चलते उनके खिलाफ हैं, तो कुछ लोग सतीश सिंघल और मुकेश अरनेजा जैसे उनके समर्थक नेताओं के खिलाफ हैं; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सुभाष जैन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों के कारण भी और दो वर्ष पहले हुए अपने चुनाव में आलोक गुप्ता की विरोधी भूमिका को ध्यान में रखने के कारण भी - आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी खिलाफ हैं । सुभाष जैन का खिलाफ होना आलोक गुप्ता के लिए इसलिए मुसीबत बनता है, क्योंकि अधिकतर क्लब्स के प्रेसीडेंट्स अगले रोटरी वर्ष के गवर्नर की गुड-बुक में रहने की कोशिश करते हैं - और बिना कहे ही उसकी 'राजनीतिक-भावनाओं' का ध्यान रखते हैं । आलोक गुप्ता के लिए जेके गौड़ और दीपक गुप्ता भी मुसीबत बने हैं । उन्हें इन दोनों के सक्रिय समर्थन की उम्मीद थी - लेकिन लगता है कि जेके गौड़ इस बात को अभी तक भी भूले नहीं हैं कि उनके चुनाव में आलोक गुप्ता ने उनका प्रतिद्धंद्धी बनकर उन्हें खासा परेशान किया था; दीपक गुप्ता चुनावी पचड़े से दूर रहने में अपनी भलाई देख रहे हैं - दीपक गुप्ता को डर है कि चुनावी झमेले में शामिल होने के कारण कहीं उनकी 'ऊपर' शिकायत हो गई, तो उनकी अपनी गवर्नरी और खतरे में पड़ जाएगी । ऐसे में, उत्तर प्रदेश में अकेले बचे आलोक गुप्ता के समर्थक नेता सतीश सिंघल को लगा कि आलोक गुप्ता के लिए उन्हें अब ड्रिंक और डिनर का ही सहारा बचा है । लेकिन इस सहारे को सतीश सिंघल ने जिस फूहड़ता और बेवकूफी से इस्तेमाल किया है, उससे मामला सँभलने की बजाए बिगड़ और गया है ।
सतीश सिंघल का हर कारनामा उनके पिछले कारनामे से बड़ा होता है; उनके हर कारनामे पर लोग सोच लेते हैं कि सतीश सिंघल अब इससे ज्यादा घटियापन और क्या करेंगे - लेकिन सतीश सिंघल अगले ही कारनामे से सिद्ध कर देते हैं कि घटियापन दिखाने के मामले में उन्हें कम न समझा जाए । सतीश सिंघल ने नया कारनामा पिछले दिनों रोटरी फाउंडेशन के नाम पर किया । दरअसल सतीश सिंघल की तरफ से लोगों को जब 'रोटरी फाउंडेशन व वेल्थ मैनेजमेंट सेमीनार' का निमंत्रण मिला, तो सभी का सिर चकराया - क्योंकि रोटरी फाउंडेशन का सेमीनार अभी हाल ही में तो हो चुका था । किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल हुआ कि सतीश सिंघल जल्दी से रोटरी फाउंडेशन सेमीनार दोबारा क्यों कर रहे हैं ? लोग अभी इस बात पर माथापच्ची कर ही रहे थे कि सतीश सिंघल की तरफ से उक्त निमंत्रण संशोधन के साथ दोबारा मिला - जिसमें बताया गया था कि यह सेमीनार सिर्फ जोन 9 से लेकर जोन 16 तक के क्लब्स के लोगों के लिए है । इससे बात और उलझ गई; और लोगों के बीच सवाल उठा कि सिर्फ जोन 9 से जोन 16 के क्लब्स के लोगों के लिए दोबारा और जल्दी से रोटरी फाउंडेशन का सेमीनार करने की जरूरत क्यों आ पड़ी ? निमंत्रण पत्र में दी गई एक सूचना ने उक्त सवाल के जबाव तक पहुँचने में लोगों की लेकिन मदद की - जिसमें बताया गया था कि सेमीनार में ड्रिंक और डिनर की पूरी व्यवस्था है और यह पूरी तरह फ्री है । रोटरी के अधिकृत कार्यक्रमों के निमंत्रण पत्रों में 'फैलोशिप' शब्द का इस्तेमाल किया जाता है, जिसका मतलब होता है कि कार्यक्रम में खाने-पीने की भी व्यवस्था होगी । सतीश सिंघल ने विवादित सेमीनार के निमंत्रण पत्र में जिस तरह खुल कर 'ड्रिंक' और 'डिनर' शब्द का इस्तेमाल किया - उससे लोगों को यह समझने में आसानी हुई कि यह निमंत्रण सेमीनार की आड़ में वास्तव में ड्रिंक और डिनर का निमंत्रण है ।
इसके बाद लोगों के लिए यह समझना भी मुश्किल नहीं रह गया कि ड्रिंक और डिनर के इस निमंत्रण को जोन 9 से जोन 16 तक के क्लब्स के लोगों के लिए सीमित क्यों कर दिया गया ? लोगों के बीच सुना गया कि 9 से 16 तक के जोन्स में आने वाले उत्तर प्रदेश के क्लब्स को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अपने उम्मीदवार आलोक गुप्ता के पक्ष में एकजुट करने के लिए ही सतीश सिंघल ने यह ड्रामा रचा है । ड्रामा कामयाब हो भी जाता, लेकिन उसके क्रियान्वन में जो जो बेवकूफी हुई उसके चलते पर्दा खुलने से पहले ही ड्रामे की 'कहानी' लीक हो गई - और फिर सतीश सिंघल को भारी फजीहत का सामना करना पड़ा । लोगों ने देखा और कहा भी कि सतीश सिंघल की चमड़ी तो थोड़ी मोटी है, इसलिए उन्होंने तो इस फजीहत को बेशर्मी के साथ झेल लिया - लेकिन उनकी फजीहत में अपने लिए मुसीबत देखते/पहचानते हुए आलोक गुप्ता ने अपने आप को उक्त सेमीनार से दूर कर लिया । आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों ने भी माना और कहा है कि ड्रिंक और डिनर के सहारे उत्तर प्रदेश के क्लब्स के वोट जुटाने की कार्रवाई को सतीश सिंघल ने जिस बेवकूफी के साथ अंजाम दिया है, उससे आलोक गुप्ता को फायदा होने की बजाए नुकसान और हो गया है ।
उत्तर प्रदेश के क्लब्स के पदाधिकारी तो इस बात पर नाराज हुए हैं कि आलोक गुप्ता और सतीश सिंघल ने उन्हें क्या ड्रिंक और डिनर पर 'बिकने' वाला समझ लिया है; दिल्ली, सोनीपत और नोएडा के क्लब्स के पदाधिकारियों की नाराजगी इस बात को लेकर है कि आलोक गुप्ता और सतीश सिंघल उन्हें दरकिनार कर क्या सिर्फ उत्तर प्रदेश के क्लब्स के भरोसे ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीत लेंगे ? उल्लेखनीय है कि रोटरी की चुनावी राजनीति में पार्टियों की निर्विवाद रूप से अहम् भूमिका है, और हर किसी ने इसे एक 'आवश्यक बुराई' के रूप में स्वीकार कर लिया है । लेकिन उम्मीद की जाती है कि उम्मीदवार और उनके समर्थक नेता इस 'काम' को लोगों की गरिमा व प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाएँ बिना अंजाम देंगे - इससे उम्मीदवार की लीडरशिप क्षमता का भी पता चलता है । आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए सतीश सिंघल ने 'ड्रिंक' और 'डिनर' का लेकिन जिस तरह से लालच दिया - वह पूरी तरह से फूहड़ता की तो मिसाल बना ही, जोन 9 से 16 तक के क्लब्स के पदाधिकारियों को अपमानित और जलील करने वाला भी नजर आया । इस बात ने उम्मीदवार के रूप में आलोक गुप्ता की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी का सारा दारोमदार दरअसल उत्तर प्रदेश के क्लब्स पर टिका हुआ है । आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के दूसरे समर्थकों के साथ-साथ सतीश सिंघल ने भी पाया और माना है कि दिल्ली, सोनीपत तथा नोएडा क्षेत्र में आलोक गुप्ता के मुकाबले ललित खन्ना का पलड़ा ज्यादा भारी है; इसलिए उत्तर प्रदेश के क्लब्स को एकजुट करके ही आलोक गुप्ता की चुनावी नैय्या को पार लगाया जा सकता है । उत्तर प्रदेश में आलोक गुप्ता के सामने लेकिन कई चुनौतियाँ हैं - यहाँ कुछ लोग पिछली बातों/घटनाओं के चलते उनके खिलाफ हैं, तो कुछ लोग सतीश सिंघल और मुकेश अरनेजा जैसे उनके समर्थक नेताओं के खिलाफ हैं; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सुभाष जैन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों के कारण भी और दो वर्ष पहले हुए अपने चुनाव में आलोक गुप्ता की विरोधी भूमिका को ध्यान में रखने के कारण भी - आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी खिलाफ हैं । सुभाष जैन का खिलाफ होना आलोक गुप्ता के लिए इसलिए मुसीबत बनता है, क्योंकि अधिकतर क्लब्स के प्रेसीडेंट्स अगले रोटरी वर्ष के गवर्नर की गुड-बुक में रहने की कोशिश करते हैं - और बिना कहे ही उसकी 'राजनीतिक-भावनाओं' का ध्यान रखते हैं । आलोक गुप्ता के लिए जेके गौड़ और दीपक गुप्ता भी मुसीबत बने हैं । उन्हें इन दोनों के सक्रिय समर्थन की उम्मीद थी - लेकिन लगता है कि जेके गौड़ इस बात को अभी तक भी भूले नहीं हैं कि उनके चुनाव में आलोक गुप्ता ने उनका प्रतिद्धंद्धी बनकर उन्हें खासा परेशान किया था; दीपक गुप्ता चुनावी पचड़े से दूर रहने में अपनी भलाई देख रहे हैं - दीपक गुप्ता को डर है कि चुनावी झमेले में शामिल होने के कारण कहीं उनकी 'ऊपर' शिकायत हो गई, तो उनकी अपनी गवर्नरी और खतरे में पड़ जाएगी । ऐसे में, उत्तर प्रदेश में अकेले बचे आलोक गुप्ता के समर्थक नेता सतीश सिंघल को लगा कि आलोक गुप्ता के लिए उन्हें अब ड्रिंक और डिनर का ही सहारा बचा है । लेकिन इस सहारे को सतीश सिंघल ने जिस फूहड़ता और बेवकूफी से इस्तेमाल किया है, उससे मामला सँभलने की बजाए बिगड़ और गया है ।