Saturday, December 1, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के नॉर्दर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल की तीन सीटों में से एक हंसराज चुग के पक्ष में तथा बाकी दो सीटों पर संजीव सिंघल, राजेश शर्मा, प्रमोद जैन व सुधीर अग्रवाल के बीच मुकाबला होता दिख रहा है

नई दिल्ली । नॉर्दर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के उम्मीदवारों की स्थिति में पिछले पंद्रह/बीस दिनों से जो 'स्थिरता' बनी हुई है, उसने चुनावी परिदृश्य को लगभग निश्चित बना दिया है और बाकी बचे पाँच-छह दिनों में किसी बड़े चमत्कार की उम्मीद नहीं की जा सकती है । दिल्ली और पंजाब व हरियाणा के छोटे/बड़े शहरों में लोगों के रुझान तथा उनके बीच होने वाली चर्चाओं का संज्ञान यदि लें, तो साफ नजर आता है कि अतुल गुप्ता, संजय वासुदेवा व विजय गुप्ता तो निश्चित रूप से सेंट्रल काउंसिल में आसानी से वापसी कर रहे हैं; तथा बाकी तीन सीटों के लिए हंसराज चुग, संजीव सिंघल, प्रमोद जैन, राजेश शर्मा, सुधीर अग्रवाल व चरनजोत सिंह नंदा के बीच नजदीकी मुकाबला है । सेंट्रल काउंसिल में वापसी के लिए राजेश शर्मा भी प्रयासरत हैं, लेकिन उनकी पुनर्वापसी को लेकर लोगों के बीच भारी मतभेद है । मजे की बात यह है कि जो लोग सेंट्रल काउंसिल में उनकी वापसी होते हुए देख भी रहे हैं, वह भी उनकी किसी खूबी या उनके किसी समर्थन-आधार के भरोसे नहीं बल्कि उनके तिकड़मी जुगाड़ में उनके सफल होने का अनुमान लगा रहे हैं । बहुत से लोगों का मानना/कहना है कि अपनी हरकतों से राजेश शर्मा ने बार बार यह साबित किया है कि सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में वह इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के लिए एक कलंक ही साबित हुए हैं, लेकिन सत्ता से लाभ दिलवाने का लालच देकर वह लोगों के वोट जुटा लेंगे और अपनी सीट बचा लेंगे । चुनावी राजनीति में बदनाम लोग लोगों की भावनाओं तथा उनके निजी स्वार्थों को पूरा करने का लालच देकर चुनाव जीतते रहे हैं । किसी ने उदाहरण भी दिया कि फूलन देवी भी सांसद का चुनाव जीती ही थी न, इसलिए राजेश शर्मा भी जीत जायेंगे - आप यह उम्मीद क्यों करते हैं कि सभी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स वोटर के रूप में समझदारी का परिचय देंगे ही और जिस राजेश शर्मा के लिए इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में 'राजेश शर्मा चोर है' जैसे नारे तक लगे/गूँजे, उसे वोट नहीं देंगे ?
संजीव सिंघल की उम्मीदवारी की सफलता को लेकर भी लोगों के बीच भारी मतभेद है । उनकी उम्मीदवारी के साथ मजे की बात यह हुई है कि जिस बिग फोर 'ब्रांड' को उनकी ताकत बनना चाहिए था, वही उनकी कमजोरी बन गया; इस कमजोरी से निपटने के लिए उन्होंने अमरजीत चोपड़ा व गिरीश आहुजा जैसे बड़े लोगों का सहारा लिया, तो उसके कारण उनकी उम्मीदवारी और भी फजीहत का शिकार हो गई । बिग फोर का उम्मीदवार होने के बावजूद संजीव सिंघल को आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वोट जुटाने के लिए जिस तरह से जुटना पड़ा है, उसमें उनकी उम्मीदवारी की कमजोरी के लक्षण ही देखने को मिले हैं । हालाँकि पिछले दिनों संजीव सिंघल ने बिग फोर के वोटों को पक्का करने की व्यवस्था की है । गिरीश आहुजा अपनी भारी फजीहत के बावजूद संजीव सिंघल की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के अभियान में जिस तरह से लगे रहे हैं, उससे भी संजीव सिंघल और उनके समर्थकों को सफलता मिलने का भरोसा है । हालाँकि बहुत से लोग उनकी सफलता को संदेह के घेरे में रखे हुए हैं । प्रमोद जैन को इस बार काफी मेहनत करते हुए देखा/पाया गया है, जिस कारण कुछेक लोग उन्हें 'दौड़' में देख रहे हैं; लेकिन उनकी उम्मीदवारी का कोई 'शोर' नहीं बन सका है - जिसे चुनावी राजनीति में सफलता पाने की एक बड़ी 'जरूरत' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी पूर्व प्रेसीडेंट एनडी गुप्ता के रवैये पर अटकी/टिकी है । एनडी गुप्ता उनके कुछेक आयोजनों में उपस्थित तो हुए हैं, लेकिन एनडी गुप्ता की 'चुनावी मशीनरी' अभी सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए जुटती नजर नहीं आई है । समझा जाता है कि चुनाव के अंतिम दौर में उक्त 'मशीनरी' यदि सचमुच सक्रिय हुई, तो सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी को ऊँची छलाँग मिल सकती है ।
सेंट्रल काउंसिल के दरवाजे पर दस्तक दे रहे नए उम्मीदवारों में यदि किसी की उम्मीदवारी को बेहतर स्थिति में देखा/पहचाना जा रहा है, तो वह है हंसराज चुग की उम्मीदवारी । रीजन के चुनावी परिदृश्य में दिलचस्पी रखने वाले अनुभवी लोगों का कहना है कि हंसराज चुग की उम्मीदवारी के साथ सबसे अच्छी बात यह रही कि उससे किसी और की उम्मीदवारी टकराती हुई नहीं दिखी; किसी और की उम्मीदवारी उनकी उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का काम करती हुई नहीं नजर आई है । और खुद हंसराज चुग ने अपनी उम्मीदवारी के अभियान को इस तरह से डिजाइन किया कि उनकी उम्मीदवारी को लेकर न तो कोई नकारात्मक बात पैदा हुई और न उनकी उम्मीदवारी का अभियान किसी भी मौके पर ढीला पड़ता नजर आया । पिछली बार मामूली अंतर से सफलता पाने से वंचित रहे हंसराज चुग की उम्मीदवारी के प्रति इस बार लोगों में सहानुभूति वाला रवैया भी है; लोगों को लगता है कि पिछली बार थोड़े से वोटों की कमी के कारण उनके साथ जो 'अन्याय' हुआ, वह इस बार नहीं होना चाहिए । हंसराज चुग ने अपनी सक्रियता के जरिये विभिन्न विषयों को गहराई से समझने वाले एक अच्छे वक्ता होने के साथ-साथ प्रोफेशन व प्रोफेशन से जुड़े लोगों की समस्याओं को व्यापकता के साथ पहचानने वाले एक लीडर की जो मिलीजुली पहचान बनाई तथा 'दिखाई' है, उसके कारण लोगों के बीच उनकी स्वीकार्यता का दायरा खासा बढ़ा है । दिल्ली ही नहीं, पंजाब व हरियाणा के छोटे/बड़े शहरों में लोगों का दो-टूक ढंग से कहना/बताना है कि अतुल गुप्ता, संजय वासुदेवा, विजय गुप्ता के साथ हंसराज चुग को भी अगली सेंट्रल काउंसिल में पक्का समझिये । चरनजोत सिंह नंदा को भी चुनावी दौड़ में तो माना/बताया जाता है, लेकिन उनके नजदीकियों और समर्थकों की आवाजें इतनी धीमी हो गईं हैं कि लगता है कि जैसे उनके नजदीकियों व समर्थकों ने ही उनकी जीतने की उम्मीद को खो दिया है । करीब एक महीने पहले तक उनके चुनाव अभियान में जो गर्मी देखी/सुनी जा रही थी, वह धीरे धीरे करके ठंडी पड़ती गई है और अब प्रायः हर किसी ने मान लिया है कि वह वास्तव में चुनावी दौड़ से बाहर हो गए हैं । उम्मीदवारों के सामने अब जो चुनौती है, वह यह है कि वह अपने अपने समर्थकों को पोलिंग बूथ तक लाने और उनके वोट डलवाने की 'व्यवस्था' को पुख्ता करें । चुनावी नतीजा उक्त 'व्यवस्था' से भी प्रभावित तो होगा ही