Thursday, November 29, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के हो रहे चुनाव अभियान में आचारसंहिता के उल्लंघन की शिकायतों की सुनवाई के लिए सरकारी प्रतिनिधियों की सदस्यता वाले पैनल के गठन में अतुल गुप्ता के खिलाफ हुई शिकायत की भूमिका की चर्चा ने चुनावी माहौल में गर्मी पैदा की

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट की काउंसिल्स के लिए होने वाले चुनाव में उम्मीदवारों द्वारा चुनावी आचारसंहिता के उल्लंघन की बढ़ती घटनाओं और शिकायतों की गूँज लगता है कि मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स के पदाधिकारियों के कानों तक जा पहुँची है, और उनके दबाव में चुनाव के अंतिम दौर में इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों को शिकायतों की सुनवाई के लिए दो सरकारी प्रतिनिधियों वाले एक तीन सदस्यीय पैनल का गठन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है । इंस्टीट्यूट के इतिहास में इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ । कई लोगों का कहना है कि इंस्टीट्यूट के इतिहास में इससे पहले कभी वी सागर जैसा सेक्रेटरी भी नहीं रहा है, जो तमाम शिकायतों को लगातार अनसुना करता रहे और कानों में तेल डाल कर बैठा रहे । कुछेक लोगों ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया है कि इंस्टीट्यूट के चुनावी इतिहास में अब से पहले यह नजारा भी कभी देखने को नहीं मिला कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट के पिताजी ही चुनावी आचारसंहिता के उल्लंघन की कोशिशों में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हों और उन्हें प्रोत्साहित कर रहे हों । यह भी पहली बार देखने में आ रहा है कि इंस्टीट्यूट के कुछेक पूर्व प्रेसीडेंट पूरी निर्लज्जता के साथ 'इस' या 'उस' उम्मीदवार के समर्थन में वोट जुटाने के अभियान में खुल्लमखुल्ला लगे हुए हैं । इस लिहाज से इंस्टीट्यूट की काउंसिल्स के लिए हो रहा इस बार का चुनाव कई मायनों में अनोखा है और 'अंधेर नगरी व चौपट राजा' का उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है । 
उल्लेखनीय है कि यूँ तो इंस्टीट्यूट की काउंसिल्स के प्रत्येक चुनाव में चुनावी आचारसंहिता का उल्लंघन होता रहा है और आरोप लगते रहे हैं; लेकिन हर बार देखने में आया है कि आचारसंहिता का उल्लंघन करने के आरोपी बनने वाले उम्मीदवार शर्म और लिहाज का झीना सा ही सही एक पर्दा रखते रहे हैं, और छापामार कार्रवाई की तरह हरकत करके बच निकलते रहे हैं, लेकिन इस बार तो खुल्लाखेल फरुख्खावादी जैसा मामला हो गया है । आचारसंहिता की ऐसीतैसी करने वाले उम्मीदवारों को जैसे किसी की परवाह ही नहीं है । प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता और सेक्रेटरी वी सागर के नाकारापन की हद का आलम यह है कि काउंसिल के मौजूदा सदस्य तक नियमों/कानूनों का मजाक बना दे रहे हैं । मुंबई में काउंसिल के ही एक सदस्य धीरज खंडेलवाल द्वारा किए गए आयोजनों पर काउंसिल के ही सदस्यों ने सवाल उठाये, लेकिन नवीन गुप्ता और वी सागर ने उनके ही सवालों का जबाव देना तक जरूरी नहीं समझा । चुनावी आचारसंहिता के उल्लंघन की अधिकतर शिकायतों को इलेक्शन ऑफिसर की भूमिका निभा रहे सेक्रेटरी वी सागर ने यह तर्क देते हुए खारिज कर दिया कि उनके साथ पर्याप्त सुबूत नहीं दिए गए । धीरज खंडेलवाल के मामले में सेंट्रल काउंसिल सदस्यों द्वारा पूछे गए सामान्य से सवाल पर उन्होंने चुप्पी साध ली । इससे ही जाहिर है कि चुनावी आचारसंहिता के आरोपों को उन्होंने पूरी तरह अनदेखा/अनसुना करने का मन बना लिया है । समझा जाता है कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट व सेक्रेटरी के नाकारापन की शिकायतें मिलने के बाद ही मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स के पदाधिकारियों ने मामले में हस्तक्षेप करने का फैसला लिया होगा और उसी के फलस्वरूप आचारसंहिता के आरोपों की सुनवाई के लिए दो सरकारी प्रतिनिधियों वाले तीन सदस्यीय पैनल का गठन करने की घोषणा की गई है ।
मजे की बात यह है कि इस पैनल के गठन के लिए नॉर्दर्न रीजन के सेंट्रल काउंसिल सदस्य अतुल गुप्ता को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है । दरअसल दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र में 24 नवंबर को 'प्रोफेशनल मीट' के नाम पर आयोजित हुई अतुल गुप्ता की चुनावी सभा की शिकायत 26 नवंबर को हुई, जिसकी एक प्रति मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स को भी भेजी गई । उक्त शिकायत में ऑडियो/वीडियो रिकॉर्डिंग के साथ खासे पर्याप्त सुबूत भी दिए गए हैं । 26 नवंबर को हुई इस शिकायत के अगले ही दिन, 27 नवंबर को सरकारी प्रतिनिधियों की सदस्यता के साथ पैनल के गठन की सूचना जारी हो गई । इससे लोगों को लगा है कि अतुल गुप्ता के खिलाफ हुई शिकायत तथा उसमें दिए गए तथ्यों व सुबूतों को मिनिस्ट्री के पदाधिकारियों ने गंभीर माना/पाया है, और तुरंत ही यह फैसला कर लिया कि चुनावी आचारसंहिता के आरोपों की सुनवाई इंस्टीट्यूट के पदाधिकरियों के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकती । उल्लेखनीय है कि अतुल गुप्ता के प्रचार अभियान का माध्यम बनने के चक्कर में नॉर्थ-एक्स सीपीई स्टडी सर्किल पीछे कई दिनों तक सस्पेंड रह चुका है; इसके बावजूद अतुल गुप्ता अपनी हरकतों से बाज नहीं आए हैं । सरकारी प्रतिनिधियों की सदस्यता के साथ पैनल के गठन की सूचना में अतुल गुप्ता की 'जिम्मेदारी' की चर्चाओं ने अतुल गुप्ता की मुसीबतों को और बढ़ा दिया है । यह देखना दिलचस्प होगा कि इस पैनल के गठन के बाद उम्मीदवारों द्वारा चुनावी आचारसंहिता के उल्लंघन की घटनाओं और शिकायतों में सचमुच कोई कमी आती है या मामला पहले जैसा ही बना रहता है ।