गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुनावी प्रक्रिया की शुरुआत करके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जो हलचल पैदा की, उसने उम्मीदवारों और उनके समर्थकों को असमंजस में तो डाला और परेशान तो किया - लेकिन अशोक अग्रवाल ने इस असमंजसता व परेशानी से निकलने में जो तत्परता दिखाई, उसका फिर दूसरे उम्मीदवारों ने भी अनुसरण किया है और राजनीतिक माहौल धीरे धीरे सामान्य होता नजर आ रहा है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नामांकन माँगे जाने से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में हलचल एकदम से तेज हो गई थी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय की इस कार्रवाई में हालाँकि अप्रत्याशित कुछ भी नहीं था - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों के नाम नवंबर तक आधिकारिक हो ही जाते रहे हैं; लेकिन पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में आलोक गुप्ता को चुनाव जितवाने के उद्देश्य से जो झाँसेबाजी हुई थी, उससे धोखा खाए डिस्ट्रिक्ट के लोगों को आशंका हुई कि कहीं इस वर्ष भी कहीं वैसा ही कोई 'खेल' तो नहीं खेला जा रहा है । नामांकन माँगे जाने की कार्रवाई शुरू होते ही उम्मीदवारों और उनके समर्थकों के बीच भारी हलचल मच गई और उनकी तरफ से 'अस्त्र-शस्त्र सँभालने' तथा 'युद्ध के निर्णायक क्षण' के लिए तैयार होने की कार्रवाई शुरू हो गई । हर किसी को लगा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दिसंबर में चुनाव हो जायेगा । इस अनुमान के चलते लोगों को पिछले वर्ष जैसी कहानी दोहराती हुई लगी/दिखी, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन फरवरी/मार्च में चुनाव करवाने की बात कहते सुने जाते रहे हैं । नवंबर में नामांकन करवाने की कार्रवाई से मची हलचल में लेकिन लोगों को आशंका हुई कि चुनाव कहीं जल्दी तो नहीं होने जा रहे हैं ।
इस संबंध में लोगों ने जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन से पूछताछ की, तो उन्होंने इस बात को आधिकारिक रूप से पूछने/बताने का तर्क देते हुए इस बारे में बात करने से ही इंकार कर दिया । जिन लोगों ने सुभाष जैन से चुनाव को लेकर बात करने का प्रयास किया, उनके अनुसार सुभाष जैन का कहना रहा कि आपसी और/या टेलीफोनिक बातचीत में बात को कुछ का कुछ समझ लिया जाता है और फिर उसकी मनमाफिक व्याख्या की जाती है जिससे बात का बतंगड़ बन जाता है, इसलिए चुनाव को लेकर जिसे जो कोई भी सवाल पूछना है, वह अपना सवाल उन्हें ईमेल करे, वह ईमेल पर ही उसका जबाव देंगे । सुभाष जैन ने स्पष्ट किया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर वह कोई विवाद नहीं चाहते हैं और ऐसा कोई काम नहीं करना चाहते हैं, जिससे उनकी भूमिका पक्षपातपूर्ण लगे/दिखे और चुनावी प्रक्रिया को लेकर सवाल खड़े हों और किसी भी तरह के आरोप लगें । मजे की बात यह रही कि चुनाव को लेकर कानाफूसी करने वाले लोगों की तरफ से चुनाव को लेकर कोई आधिकारिक पूछताछ हुई ही नहीं । दरअसल इस बात को हतोत्साहित करने का काम अशोक अग्रवाल ने किया । शुरुआती हलचल के बीच अशोक अग्रवाल ने अपने आपको संयत दिखाते/जताते हुए कहना/बताना शुरू किया कि चुनाव कभी भी हों, उम्मीदवार के रूप में उन पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है; लोगों के बीच उन्होंने दावा किया कि डिस्ट्रिक्ट में उनकी उम्मीदवारी को जो व्यापक समर्थन है, उसके चलते वह चुनाव के लिए हमेशा तैयार हैं - चुनाव चाहें अभी दिसंबर में हो जाएँ, और या फरवरी/मार्च में हों, लोगों के बीच उनकी उम्मीदवारी के लिए जो समर्थन है, वह पक्का है और उनके लिए समस्या की कोई बात नहीं है ।
अशोक अग्रवाल के इस रवैये को उनकी 'पॉस्चरिंग' के रूप में देखा/पहचाना गया, और माना/समझा गया कि चुनावी प्रक्रिया को लेकर मची अफरातफरी को भी अशोक अग्रवाल अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं । अशोक अग्रवाल का 'खेल' समझ में आते ही दूसरे उम्मीदवारों और उनके समर्थकों ने भी चुनाव को लेकर कयास लगाने बंद कर दिए और मानने/कहने लगे कि उनकी बला से चुनाव कभी भी हों । इससे चुनाव के समय को लेकर असमंजसता दूर हुई और अफरातफरी भी शांत पड़ गई । लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुनावी प्रक्रिया की शुरुआत होने के चलते डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में पैदा हुई हलचल अशोक अग्रवाल के लिए वरदान साबित हुई । अशोक अग्रवाल ने दरअसल पिछले दिनों डिस्ट्रिक्ट की कई एक छोटी-बड़ी घटनाओं और स्थितियों को अपने राजनीतिक फायदे के लिए कुशलता के साथ इस्तेमाल किया है और जिनकी मदद से चुनावी मुकाबले में वह अपनी बढ़त बनाने में सफल रहे हैं । चुनावी प्रक्रिया के पूरा होने के समय को लेकर डिस्ट्रिक्ट में मची अफरातफरी व असमंजसता के मौके को भी अशोक अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में कुशलता के साथ इस्तेमाल कर लिया । अशोक अग्रवाल ने चुनावी समय के पचड़े में सिर खपाने की बजाये अपने आपको निश्चिंत 'दिखाने' का जो काम किया, उसने अपनी उम्मीदवारी और अपनी जीत के प्रति उनके विश्वास को तो प्रकट किया ही - साथ ही लोगों के बीच भी उनकी उम्मीदवारी के प्रति हवा बनाने का काम किया ।