सिरसा । इंस्टीट्यूट के सेंट्रल काउंसिल चुनाव में सिरसा को - और सिरसा के बहाने हरियाणा के छोटे छोटे शहरों तक को इस बार जो राजनीतिक महत्ता मिल रही है, वह इंस्टीट्यूट के चुनावी परिदृश्य के संगीन हो उठने के तथ्य का नजारा प्रस्तुत करता है, जिसमें एक एक वोट और दूसरी/तीसरी वरीयता के वोट भी 'कीमती' हो गए हैं । इंस्टीट्यूट के चुनाव में नॉर्दर्न रीजन में शायद पहली बार ऐसा हुआ है कि कई उम्मीदवारों को 'क्लोज-फाइट' में देखा/पहचाना जा रहा है । नॉर्दर्न रीजन में छह लोगों को सेंट्रल काउंसिल के लिए चुना जाना है, जिनमें संजय वासुदेवा, अतुल गुप्ता व विजय गुप्ता के चुने जाने को लेकर तो सभी आश्वस्त हैं; लेकिन बाकी तीन सीटों के लिए सात/आठ उम्मीदवारों का बड़ा समूह और चार/पाँच उम्मीदवारों का छोटा समूह मुकाबले में नजर आ रहा है । इनके बीच जो आपसी होड़ है, वह तो है ही - इनकी मुश्किलें बढ़ाने का काम लेकिन तीन/चार ऐसे उम्मीदवार भी कर रहे हैं, जिनकी सफलता को लेकर तो शक है लेकिन जिन्होंने वोट जुटाने के लिए जी-जान लगा रखा है । इस कारण से जो उम्मीदवार अपने आप को क्लोज-फाइट में पा रहे हैं, उन्होंने अपने अपने तरीके से एक एक वोट के लिए तथा दूसरी/तीसरी वरीयता के वोटों के लिए भी अपने आप को झोंका हुआ है । यही कारण है कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में अभी तक उपेक्षित रहे शहर भी इस बार महत्त्वपूर्ण हो उठे हैं, जिसके चलते हरियाणा के हिसार और पानीपत व सोनीपत व करनाल जैसे शहर भी उम्मीदवारों की भागदौड़ में शामिल हो गए हैं । आज दोपहर करनाल में हंसराज चुग की उम्मीदवारी के समर्थन के लिए हुई मीटिंग में स्थानीय चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का जो उत्साह सुनने को मिला, उससे लग रहा है कि इंस्टीट्यूट के चुनाव में इस बार हरियाणा के छोटे छोटे शहर भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहे हैं ।
सिरसा की दूरी दिल्ली से करीब तीन सौ किलोमीटर पड़ती है, और यहाँ कुल सौ वोट पड़ने की संभावना है । यानि मेहनत/खर्चा ज्यादा, और प्राप्ति कम । इस कारण सिरसा उम्मीदवारों को कभी आकर्षित नहीं कर पाया । इस बार लेकिन नजारा बदला हुआ है । नजारे को बदलने की शुरुआत चरनजोत सिंह नंदा की तरफ से हुई । सेंट्रल काउंसिल में वापसी करने की मुश्किल चुनावी लड़ाई में एक एक वोट जुटाने की कोशिशों में फँसे चरनजोत सिंह नंदा ने सिरसा में इस उम्मीद में दस्तक दी, कि यहाँ से उन्हें जो थोड़े बहुत वोट मिल जायेंगे शायद वही उनके लिए लाभदायक साबित हों । चरनजोत सिंह नंदा की बदकिस्मती लेकिन यह रही कि उनके द्वारा सिरसा में हुई मीटिंग के बाद तो सिरसा में जैसे उम्मीदवारों की दौड़ शुरू हो गई, और खुद को सेंट्रल काउंसिल में जाने योग्य समझने वाला शायद ही कोई उम्मीदवार होगा जिसने सिरसा में अपने कदम न डाले हों । राजेश शर्मा को मीटिंग करवाने के लिए यहाँ सहयोगी नहीं मिले, तो उन्होंने एक चार्टर्ड एकाउंटेंट के ऑफिस में ही कुछेक लोगों को जुटा कर उनकी पार्टी कर दी । सिरसा में उम्मीदवारों की भागदौड़ का शोर मचा तो अतुल गुप्ता व विजय गुप्ता ने भी सिरसा को अपने अपने तरीके से खटखटाया । हंसराज चुग को सिरसा में अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन दिखाने/जुटाने के अभियान में जो कामयाबी मिली, उससे उत्साहित होकर उन्होंने हरियाणा के दूसरे शहरों से अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के लिए नए सिरे से रणनीति बनाई और उस पर अमल किया ।
सिरसा में कई उम्मीदवारों ने अपने अपने तरीकों से सक्रियता तो दिखाई, लेकिन अधिकतर उम्मीदवारों की सक्रियता रस्मअदायगी की तरह ही नजर आई । इसका नतीजा यह रहा कि किसी भी उम्मीदवार को अपनी उम्मीदवारी के लिए सिरसा में कोई फायदा होता हुआ नजर नहीं आया, और फिर उन्हें सिरसा व हरियाणा में समय लगाना समय बर्बाद करने जैसा लगा । फरीदाबाद व गुड़गाँव को छोड़ कर दिल्ली व पंजाब के बीच पड़ने वाले हरियाणा के शहर भौगोलिक कारणों से बिखरे हुए से हैं, और यहाँ कोई ज्यादा वोट भी नहीं हैं - इस क्षेत्र में कुल करीब पाँच हजार वोट हैं, जिनमें से करीब तीन हजार के पड़ने की उम्मीद की जा रही है । इसलिए अधिकतर उम्मीदवारों की हरियाणा के शहरों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं बनी । संजीव सिंघल ने दो एक शहरों में पार्टी की भी, लेकिन उनके यहाँ लोगों की उपस्थिति इतनी कम रही कि फिर उनका - और उनका हश्र देख कर दूसरों का हरियाणा में कुछ करने के लिए हौंसला ही नहीं बचा । हरियाणा में अधिकतर उम्मीदवारों की 'आए, और चले गए' जैसी सक्रियता रहने के कारण राजनीतिक शून्य जैसी स्थिति बनी, जिसमें हंसराज चुग ने अपने लिए मौका देखा/पाया । यह बात तो हंसराज चुग और उनके साथी/समर्थक जानते होंगे कि 'टाइमिंग' के लिहाज से हरियाणा में उनकी सक्रियता उचित समय पर संयोगवश हुई दिखी है या उनकी सोची/विचारी योजना के अनुरूप हुई है; दरअसल संजीव सिंघल व दूसरे उम्मीदवारों ने हरियाणा में जब अपनी सक्रियता दिखाई और मीटिंग्स कीं, तब चुनावी माहौल में गर्मी नहीं आई थी और चार्टर्ड एकाउंटेंट्स कामकाज में व्यस्त थे, जिसके चलते उन्हें अच्छे से रिस्पॉन्स नहीं मिला - जबकि हंसराज चुग ने अभी हाल ही के दिनों में सिरसा, सोनीपत, पानीपत व करनाल में जब अपने आयोजन किए हैं, तब तक माहौल में चुनावी गर्मी भी आ चुकी है और आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स भी चुनावी रंग में रंगना शुरू हो गए हैं । इस कारण उनके आयोजनों को यहाँ अच्छा रिस्पॉन्स मिला है । हंसराज चुग के लिए होने वाले आयोजनों को मिले अच्छे रिस्पॉन्स ने दूसरे उम्मीदवारों के बीच हलचल तो पैदा की है, लेकिन वह अभी असमंजस में हैं कि हरियाणा के शहरों में एक बार अपना समय बर्बाद कर चुकने के बाद दोबारा यहाँ समय लगाएँ - या छोड़ें ?