Saturday, November 17, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के सेंट्रल काउंसिल चुनाव में पंजाब के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच राजेश शर्मा और चरनजोत सिंह नंदा को मिलती दिख रही दुत्कार संजय वासुदेवा, विजय गुप्ता, अतुल गुप्ता और हंसराज चुग के लिए वरदान साबित होती नजर आ रही है

चंडीगढ़ । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में प्रवेश करने की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों ने इस बार पंजाब के छोटे/बड़े शहरों को चुनावी युद्ध का मैदान बना दिया है - जिसका फायदा संजय वासुदेवा, विजय गुप्ता, अतुल गुप्ता और हंसराज चुग को होता हुआ दिख रहा है । यूँ तो इंस्टीट्यूट के चुनावों में हर बार ही पंजाब के शहरों में गहमागहमी रहती रही है, लेकिन  इस बार एक एक वोट पाने/छीनने के प्रयासों का जो नजारा देखा/सुना जा रहा है, वैसा इससे पहले कभी देखा/सुना नहीं गया है । इस नजारे का श्रेय चरनजोत सिंह नंदा और राजेश शर्मा के बीच एक दूसरे को मात देने के लिए छिड़ी लड़ाई को दिया जा रहा है । चरनजोत सिंह नंदा का प्रयास है कि सेंट्रल काउंसिल की जो सीट पिछली बार उन्होंने राजेश शर्मा को 'गिफ्ट' की थी, वह उन्हें वापस मिल जाये; लेकिन राजेश शर्मा का जताना है कि गिफ्ट भी कोई वापस करता है क्या ? मजे की बात यह नजर आ रही है कि दोनों के बीच छिड़ी इस लड़ाई ने अधिकतर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स - खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को बुरी तरह से निराश किया है और वह इन दोनों को ही सबक सिखाना चाहते हैं । युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के इस मूड को भाँप कर उन्हें लुभाने के उद्देश्य से बाकी उम्मीदवारों ने पंजाब के शहरों पर जैसे धावा सा बोल दिया है । सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले उम्मीदवारों में शायद ही कोई होगा, जिसने पंजाब से वोट जुटाने के लिए आक्रामक रवैया न दिखाया हो । अधिकतर उम्मीदवारों ने अपनी अपनी पसंद और/या प्रभाव वाले कुछेक शहरों पर ही ध्यान केंद्रित किया है - लेकिन संजय वासुदेवा, विजय गुप्ता, अतुल गुप्ता और हंसराज चुग ने चूँकि पंजाब के कोने कोने तक दस्तक दी है, इसलिए पंजाब के अलग अलग शहरों में वोटों के लिए छिड़ी लड़ाई में इन्हीं चारों को सबसे ज्यादा फायदा होते हुए देखा/सुना जा रहा है ।
पंजाब के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वोट इस बार के चुनाव में कितने महत्त्वपूर्ण बन गए हैं, इसका सुबूत इस एक तथ्य में देखा/पहचाना जा सकता है कि बठिंडा जैसी छोटी ब्रांच तक में न सिर्फ नई बनी अधूरी बिल्डिंग के उद्घाटन को लेकर भारी खींचातानी हुई, बल्कि गिरीश आहुजा जैसे वरिष्ठ व सम्मानित व्यक्ति तक वहाँ चुनावी चक्कर में धक्के खाते देखे गए हैं । दरअसल चरनजोत सिंह नंदा और राजेश शर्मा को पंजाब के शहरों में जो झटके लगते देखे/सुने गए, उसने दूसरे उम्मीदवारों को उम्मीद से भर दिया है । उल्लेखनीय है कि पिछले कई चुनावों से पंजाब चरनजोत सिंह नंदा के लिए वोटों की दुधारू गाय बना रहा है, पिछली बार चरनजोत सिंह नंदा ने यह 'गाय' राजेश शर्मा को सौंप दी थी - इसके चलते दूसरे उम्मीदवारों ने अभी तक यहाँ ज्यादा प्रयास नहीं किए थे । राजेश शर्मा लेकिन अपनी हरकतों के चलते, खासकर पिछले वर्ष चार्टर्ड एकाउंटेंट्स डे के फंक्शन में की गई अपनी हरकत के कारण चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच बुरी तरह बदनाम हो गए हैं । राजेश शर्मा हालाँकि सोच रहे थे कि उनके उस कांड को लोग भूल चुके होंगे, लेकिन कई मौकों पर देखने को मिला कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स राजेश शर्मा के उस कांड को तो नहीं ही भूले हैं, साथ ही उनकी कई और कारस्तानियों को भी याद किए हुए हैं और बता/जता चुके हैं कि 7 और 8 दिसंबर को वह राजेश शर्मा को सबक सिखायेंगे । राजेश शर्मा की बदनामी का फायदा उठाने के लिए चरनजोत सिंह नंदा ने कमर कसी, लेकिन लोगों ने उन्हें कोई तवज्जो नहीं दी । वास्तव में किसी को यह बात हजम नहीं हो पा रही है कि तमाम तमाम वर्ष सेंट्रल काउंसिल में रह चुके चरनजोत सिंह नंदा ने प्रोफेशन के लिए आखिर किया क्या है, जिसके कारण उन्हें फिर से सेंट्रल काउंसिल में लाया जाना चाहिए ? 
राजेश शर्मा और चरनजोत सिंह नंदा को पंजाब के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच दुत्कार मिलती दिखी, तो दूसरे उम्मीदवारों को पंजाब में वोटों का भंडार नजर आया और वह पंजाब की तरफ दौड़ पड़े । उन्हें इस बात से भी उम्मीद बंधी कि विशाल गर्ग लुधियाना के होने के बावजूद पंजाब के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच कोई पैठ नहीं बना सके हैं । असल में, विशाल गर्ग उम्मीदवार तो बन गए हैं, लेकिन चूँकि वह चुनावी दौड़ में बहुत पीछे 'दिख' रहे हैं, इसलिए पंजाब के दूसरे शहरों के साथ-साथ लुधियाना तक के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को लग रहा है कि विशाल गर्ग को वोट देने का मतलब अपने वोट को व्यर्थ में नष्ट कर देने जैसा है । इस सोच व समझ के चलते वह ऐसे उम्मीदवारों के साथ जुड़ने की जरूरत महसूस कर रहे हैं, जो जीतते हुए नजर आ रहे हैं । पंजाब के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की इस सोच व समझ का फायदा संजय वासुदेवा, विजय गुप्ता, अतुल गुप्ता और हंसराज चुग को होता हुआ दिख रहा है । इनमें पहले तीन को सेंट्रल काउंसिल सदस्य होने का फायदा मिल रहा है । सेंट्रल काउंसिल में होने के कारण इनकी प्रत्येक ब्रांच तक प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष पहुँच है; और अलग अलग कारणों से किसी को कहीं तो किसी को कहीं अच्छा समर्थन मिल रहा है । इनके अलावा हंसराज चुग ही हैं, जिन्होंने पंजाब के शहरों में अपने समर्थकों व शुभचिंतकों की अच्छी व प्रभावी टीम खड़ी की है और जिसके सहारे/भरोसे पंजाब के कोने कोने तक अपनी पहुँच बनाई है । पंजाब के शहरों में दूसरे उम्मीदवारों ने भी अपने अपने तरीकों से 'धावा' बोला है और बहुत बहुत समय लगाया है, लेकिन चूँकि एक तो वह कुछ ही शहरों तक अपनी सक्रियता रख पाए हैं और अपनी पहुँच को व्यापक नहीं बना सके हैं, और दूसरे वह यहाँ अपनी कोई टीम नहीं बना सके हैं, इसलिए वह यहाँ अपने अपने लिए वैसा समर्थन बनाते हुए नहीं दिख रहे हैं, जैसा समर्थन संजय वासुदेवा, विजय गुप्ता, अतुल गुप्ता और हंसराज चुग बना सके हैं ।