नई दिल्ली । अतुल गुप्ता की इंस्टीट्यूट का वाइस प्रेसीडेंट बनने के लिए वोट माँगने की कार्रवाई का लोग भले ही मजाक बना रहे हों, लेकिन अपनी इस कोशिश में वह खुद बहुत गंभीर नजर आ रहे हैं । हर किसी को हैरानी है कि सेंट्रल काउंसिल के सदस्य चुने जाने के प्रचार अभियान में अतुल गुप्ता वाइस प्रेसीडेंट के नाम पर वोट क्यों माँग रहे हैं, और ऐसा करके वह वोटरों को धोखा देने की कोशिश कर रहे हैं, या खुद अपने आप को धोखा दे रहे हैं ? उनके शुभचिंतकों को भी डर हो चुका है कि कहीं अतुल गुप्ता सचमुच में तो यह नहीं मान बैठे हैं कि रीजन में यदि उन्हें सबसे ज्यादा वोट मिले तो वह वाइस प्रेसीडेंट बन जायेंगे ? उल्लेखनीय है कि अतुल गुप्ता को उनके समर्थक ही नहीं, उनके विरोधी भी एक होशियार व्यक्ति के रूप में देखते/पहचानते हैं; दरअसल इसीलिए हर कोई हैरान है कि होशियार होने के बावजूद अतुल गुप्ता बेबकूफी की बात कैसे और क्यों कर रहे हैं ? हालाँकि यह सच है कि पिछले चुनाव में नॉर्दर्न रीजन में नवीन गुप्ता को सबसे ज्यादा वोट मिले थे, और वह (वाइस) प्रेसीडेंट बने; लेकिन इसके साथ यह भी ध्यान रखने की बात है कि वेस्टर्न रीजन में एसबी जावरे को सबसे ज्यादा वोट मिले थे, लेकिन (वाइस) प्रेसीडेंट बने नीलेश विकमसे; और मौजूदा वाइस प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ तो पहली प्राथमिकता के वोटों की गिनती में 12हवें नंबर पर रहे थे । जाहिर है कि वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में एक अलग केमिस्ट्री काम करती है और उसका अपना एक अलग गणित होता है, जिसमें काउंसिल सदस्य बनने के लिए मिले वोटों की कोई भूमिका नहीं होती है । अतुल गुप्ता इतनी सामान्य सी बात तो समझते ही होंगे, लेकिन फिर भी वह सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में वाइस प्रेसीडेंट बनने के नाम पर वोट माँग रहे हैं ।
समझा जाता है कि वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अतुल गुप्ता का मुकाबला विजय गुप्ता से होगा, जिन्हें वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव की केमिस्ट्री जोड़ने में अतुल गुप्ता के मुकाबले ज्यादा होशियार माना/समझा जाता रहा है । अतुल गुप्ता और विजय गुप्ता हालाँकि वाइस प्रेसीडेंट के चुनावों में अभी तक सफलता से तो दूर ही रहे हैं, लेकिन सफल होने वाले 'गणित' में अतुल गुप्ता के मुकाबले विजय गुप्ता ज्यादा नजदीक रहे हैं, इसलिए अतुल गुप्ता को डर है कि वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में विजय गुप्ता कहीं बाजी न मार ले जाएँ । काउंसिल सदस्य के रूप में ज्यादा वोट जुटाने के उनके प्रयास में काउंसिल में आने वाले नए सदस्यों को मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित करने की उनकी योजना को देखा/पहचाना जा रहा है । लोगों को लगता है कि हो सकता है कि अतुल गुप्ता सोच रहे हों कि वह सबसे ज्यादा वोट पायेंगे तो काउंसिल के कुछेक सदस्य तो अवश्य ही उनसे प्रभावित हो जायेंगे और वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में उनका समर्थन कर देंगे । वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में लेकिन एसबी जावरे की असफलता और प्रफुल्ल छाजेड़ की सफलता का उदाहरण लेकिन बताता है कि अतुल गुप्ता का सोचना सिर्फ उनकी खामख्याली ही है । सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में चुनाव लड़ते हुए अतुल गुप्ता ने जिस तरह से वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव को अपने फोकस में रखा हुआ है, उसने हंसराज चुग के लिए चुनावी हालात को खासा दिलचस्प तथा अनुकूल बना है ।
अतुल गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, अतुल गुप्ता को सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन से जो नए लोग प्रवेश करते हुए लग रहे हैं, उनमें वह हंसराज चुग को 'देख' रहे हैं, और इसलिए हंसराज चुग का वोट पक्का करने के लिए वह 'माहौल' बना रहे हैं । अतुल गुप्ता के नजदीकियों ने ही कहा/बताया है कि अतुल गुप्ता ने कई एक मौकों पर हंसराज चुग के कुछेक नजदीकियों/समर्थकों के सामने जानबूझ कर बोला/कहा है कि उन्होंने अपने पक्के वोटरों को दूसरी वरीयता का वोट देने के लिए कहा है । कुछेक मौकों पर अतुल गुप्ता ने यह भी कहा/बोला है कि वह जानते हैं कि दिल्ली के त्रिनगर क्षेत्र में हंसराज चुग की उम्मीदवारी के लिए अच्छा समर्थन है, और इसीलिए वह वहाँ दूसरी वरीयता के वोटों के लिए भी नहीं गए हैं ताकि कहीं कोई गलतफहमी न पैदा हो और हंसराज चुग का समर्थन-आधार डिस्टर्ब न हो । इस तरह की बातों से अतुल गुप्ता को उम्मीद है कि चुनावी नतीजा घोषित होने पर हंसराज चुग जब अधिकृत रूप से विजेता घोषित होंगे, तो उनकी जीत में वह अपने सहयोग का वास्ता देकर वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में हंसराज चुग के समर्थन के लिए प्रयास कर सकेंगे । अतुल गुप्ता ने वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए इससे पहले जब भी चुनाव लड़े हैं, चुनाव को लेकर उन्होंने इतनी गंभीरता कभी नहीं दिखाई है - जितनी कि वह इस बार दिखा रहे हैं । इससे लग रहा है कि आठ दिसंबर को काउंसिल्स के लिए चुनाव हो जाने के बाद भी अतुल गुप्ता चुनावी-मूड से बाहर नहीं निकल पायेंगे और अब की बार का वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव नॉर्दर्न रीजन में ही घमासान मचायेगा ।