Tuesday, December 4, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में अनूप मित्तल के स्वागत समारोह के बहाने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति जो नई करवट लेती हुई दिखी है, उसमें अशोक कंतूर तथा अजीत जालान की उम्मीदवारी की तैयारी मुश्किलों में घिरती नजर आ रही है

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी द्वारा आयोजित अनूप मित्तल के सम्मान-समारोह में अशोक कंतूर तथा अजीत जालान की अनुपस्थिति को उन दोनों के लिए बड़े राजनीतिक झटके के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । अशोक कंतूर इस वर्ष अनूप मित्तल से चुनाव हारने के बाद अगले रोटरी वर्ष में फिर से अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की घोषणा कर चुके हैं, तो अजीत जालान बहुत पहले से ही अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवार होने/बनने का ऐलान करते आ रहे हैं । ऐसे में उन्हें डिस्ट्रिक्ट में होने वाले हर छोटे/बड़े आयोजन में 'दिखना' चाहिए - रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी के एक बड़े आयोजन में लेकिन दोनों ही नहीं दिखे - खुद उनकी तरफ से बताया गया है कि उन्हें 'उचित' तरीके से समारोह में निमंत्रित ही नहीं किया गया ।सामान्य स्थिति होती, तो उनकी अनुपस्थिति और या उचित तरीके से उन्हें निमंत्रित न किए जाने की बात का कोई विशेष मतलब नहीं होता; डिस्ट्रिक्ट लेकिन चूँकि इस समय राजनीतिक रूप से एक असामान्य स्थिति में है - इसलिए यह बात अशोक कंतूर और अजीत जालान के लिए खासी अहम् है और मुसीबत का संकेत है । उक्त समारोह हालाँकि था तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जाने के उपलक्ष्य में अनूप मित्तल के स्वागत-सम्मान में; लेकिन एक तरह से इसे अनूप मित्तल की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले खेमे के शक्ति-प्रदर्शन के रूप में देखा/पहचाना गया; उपस्थितों/अनुपस्थितों की पहचान करते हुए साफ पहचाना जा सकता है कि उक्त आयोजन को खास उद्देश्य के साथ डिजाईन किया गया था और यह विजेता उम्मीदवार द्वारा दी गई पार्टी ही नहीं थी - कई लोगों को लगता है कि उक्त आयोजन वास्तव में डिस्ट्रिक्ट की भविष्य की चुनावी राजनीति का संकेत देता है, और संकेत देने का काम जैसे जानबूझ कर किया गया है । अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए संभावित उम्मीदवारों के रूप में देखे/पहचाने जा रहे महेश त्रिखा तथा रवि गुगनानी की उपस्थिति ने मामले को और स्पष्ट कर दिया है ।
अनूप मित्तल के स्वागत-सम्मान समारोह में कुछेक विरोधियों को जिस तरह से दूर रखा गया तथा कुछेक को शामिल होने का मौका मिला, उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति एक नई करवट लेती हुई दिख रही है । इस नई करवट में ही अशोक कंतूर तथा अजीत जालान के लिए मुश्किलों के संकेत नजर आ रहे हैं । दरअसल डिस्ट्रिक्ट में चुनावी राजनीति का जो सीन बनता हुआ दिख रहा है, उसमें यह बात साफ जाहिर होती हुई नजर आ रही है कि अशोक कंतूर को अगली बार उन लोगों का समर्थन मिलना ही मुश्किल क्या, असंभव ही होगा जिन्होंने इस बार उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया था और जिनके समर्थन के बावजूद वह जीत नहीं पाए थे । उल्लेखनीय है कि रोटरी की चुनावी राजनीति में हर कहीं प्रायः देखा जाता है कि चुनाव हारने वाले के साथ उसके विरोधी रहे लोगों के बीच भी हमदर्दी पैदा हो जाती है, जिसका फायदा उसे अगली बार मिल जाता है; लेकिन अशोक कंतूर के मामले में ऐसा होता हुआ नजर नहीं आ रहा है । ऐसा दरअसल निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी के कारण हो रहा है । रवि चौधरी ने अपनी हरकतों और कारस्तानियों से तमाम लोगों को अपना विरोधी बनाया हुआ है; उधर अशोक कंतूर पर रवि चौधरी की ऐसी गहरी छाप लगी हुई है कि जिन लोगों को अशोक कंतूर से हमदर्दी है भी, वह भी रवि चौधरी की छाप देख कर उनसे दूर हट जाते हैं । अशोक कंतूर के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि इस बार के चुनाव में कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ देने वाले अजीत जालान अगले वर्ष उम्मीदवार बनने की तैयारी करने लगे हैं । अजीत जालान हालाँकि पहले से ही अगले वर्ष उम्मीदवार होने की बात कर रहे थे, लेकिन यह तब की बात है जब वह और उनके गॉडफादर्स अशोक कंतूर की जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थे । अशोक कंतूर का कहना है कि इस बार चूँकि उन्हें कामयाबी नहीं मिली है, इसलिए उनके समर्थक रहे लोगों को उन्हें और मौका देना चाहिए; अजीत जालान और उनके समर्थक नेता फिलहाल लेकिन अशोक कंतूर को एक और मौका देने के लिए राजी नहीं दिख रहे हैं ।
अशोक कंतूर और अजीत जालान के लिए मुसीबत की बात लेकिन यह भी है कि इनमें से जो भी पीछे हटा, उसके लिए आगे भी रास्ते बंद ही हो जायेंगे और फिर इन्हें गवर्नर बनने की अपनी इच्छा को दफ्न ही करना होगा । इन दोनों के साथ समस्या वास्तव में यह देखी/पहचानी जा रही है कि इनका अपना कोई 'जज़्बा' नहीं है; लोगों को लगता है कि अशोक कंतूर ने रवि चौधरी की ऊँगली पकड़ी हुई है, जिसका हश्र उन्होंने इस बार देख लिया है, जबकि अजीत जालान को विनोद बंसल से उम्मीद है - लेकिन लगता नहीं है कि विनोद बंसल अपने कंधे पर अजीत जालान को बैठा कर चुनावी वैतरणी पार करवाने में ज्यादा दिलचस्पी लेंगे । ऐसे में, इनमें से जो भी अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटेगा, वह लोगों के बीच चर्चित बात को ही सही साबित करेगा और फिर कभी दूसरी पहचान नहीं बना सकेगा । यानि इनके लिए आगे खाई है तो पीछे कुआँ । गौर करने की बात यह है कि संभावित उम्मीदवारों के रूप में जिन महेश त्रिखा व रवि गुगनानी के नाम अभी चर्चा में हैं, उनकी डिस्ट्रिक्ट में अभी कोई खास पहचान या सक्रियता नहीं है और इस नाते यह दोनों ही अशोक कंतूर और/या अजीत जालान के लिए कोई खास चुनौती नहीं हैं - लेकिन अशोक कंतूर और अजीत जालान जब पहले से ही हार माने बैठे हों, तो फिर दूसरा कोई क्या कर सकता है ? अशोक कंतूर और अजीत जालान डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जिस 'परसेप्शन' में फँसे हैं, उससे निकलने/उबरने का भी वह चूँकि कोई प्रयास करते हुए नहीं नजर आ रहे हैं इसलिए वह अपनी स्थिति को और कमजोर बना रहे हैं । इसी पृष्ठभूमि में, रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी के आयोजन में जिस तरह से उन्हें उपेक्षित किया गया और डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग करने का प्रयास किया गया - उसके कारण अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए की जा रही उनकी तैयारी मुसीबतों में घिर गई है ।