गाजियाबाद । इस तथ्य को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन की रणनीतिक कुशलता और प्रशासनिक क्षमता के उदाहरण व सुबूत के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए तीन तीन उम्मीदवार चुनावी दौड़ में हैं, और उनके अपने अपने समर्थक नेता हैं - उसके बावजूद चुनावी माहौल 'ठंडा' पड़ा हुआ है और चुनावी प्रक्रिया विवादहीन व शांत रूप में पूरी होने की दिशा में बढ़ती नजर आ रही है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन ने ऐसी 'व्यवस्था' बना दी हुई है कि रोटरी में चुनावी राजनीति के भरोसे ही 'गुजर बसर' करने वाले नेता लोग तक ढीले पड़े हुए हैं, और सभी को हैरान करते हुए भले लोगों जैसी बातें कर रहे हैं । राजनीति से दूर रहने और किसी का भी पक्ष न लेने जैसी बातें खुर्राट नेताओं के मुँह से निकलती देख लोगों को सहसा विश्वास तो नहीं हो रहा है, लेकिन सच्चाई यही देखने में आ रही है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति में बढ़चढ़ कर भूमिका निभाते रहे नेता लोग इस वर्ष के चुनाव में 'बेचारे' बने बैठे हैं, और चुपचाप बैठ कर नजारा देखने के लिए मजबूर हुए हैं । प्रत्येक वर्ष चुनावी राजनीति के जोड़तोड़ भरे तमाशे को देखते रहे लोग इस स्थिति का श्रेय डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन को दे रहे हैं । उनका कहना है कि सुभाष जैन ने साबित कर दिया है कि कोई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर यदि चाहे और प्रयास करे तो चुनावी प्रक्रिया को निष्पक्ष तरीके से और बिना हुड़दंगबाजी के संपन्न करा सकता है ।
खास बात यह है कि चुनावी राजनीति में भूमिका निभाने को ही रोटरी 'समझने' वाले कुछेक नेताओं ने समय समय पर इस या उस उम्मीदवार का झंडा उठा कर अपनी सक्रियता बनाने/दिखाने का प्रयास हालाँकि किया था, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन ने जो जाल फैलाया हुआ था, उसमें फँस कर कोई भी नेता ज्यादा दूर तक चल नहीं पाया और फिर हर कोई सीधी/सच्ची बात करने के लिए मजबूर हो उठा । मजे की बात यह भी रही कि किन्हीं किन्हीं नेताओं ने चुनावी राजनीति के चक्कर में सुभाष जैन को ही फँसाने का प्रयास किया, लेकिन सुभाष जैन ने रणनीतिक कुशलता के साथ न सिर्फ अपने आपको बचा लिया, बल्कि षड्यंत्रकारियों को यह संदेश भी दे दिया कि उनके षड्यंत्र उलटे उन्हें ही मुश्किल में फँसा देंगे । यही कारण रहा कि चुनावी राजनीति के बदनाम खिलाड़ियों ने हालात को प्रतिकूल पा कर अपने कदम जल्दी ही पीछे खींच लिए - और डिस्ट्रिक्ट में बड़े ही सद्भाव व शांति के साथ चुनाव होने का माहौल बना । लोगों के बीच हालाँकि चर्चा तो हो जाती है कि फलाँ नेता फलाँ उम्मीदवार के समर्थन में है, लेकिन नेता बेचारा कुछ करता/कहता हुआ नहीं दिख रहा है । बदनाम नेता तक सज्जनता की ऐसी मूर्ति बने दिख रहे हैं, कि बेचारी सज्जनता भी लजा रही है । नौ सौ चूहे खा चुकी बिल्ली के हज पर जाने वाले मुहावरे को यदि कोई व्यावहारिक रूप में चरितार्थ होते देखना चाहता है, तो उसे डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं को देखना चाहिए ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी माहौल के ठंडा रहने का एक कारण हालाँकि अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी में भी देखा/पहचाना जा रहा है । दरअसल अशोक अग्रवाल की रोटरी में तमाम वर्षों की जो सक्रियता है, और प्रायः हर गवर्नर के साथ उनका सहयोग व समर्थन का जो संबंध रहा है. उसके कारण प्रत्येक पूर्व या भावी गवर्नर उनके खिलाफ सक्रिय होने और 'दिखने' से बचा है । राजनीतिक खेमेबाजी व राजनीतिक उठापटक की 'जरूरतों' के चलते जो पूर्व व भावी गवर्नर्स अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के खिलाफ होना भी चाहते थे, वह एक उम्मीदवार के रूप में अशोक अग्रवाल की लोकप्रियता व स्वीकार्यता को देख/पहचान कर पीछे हट गए । वास्तव में दूसरे उम्मीदवार कभी भी यह समझ ही नहीं सके कि अशोक अग्रवाल से वह कैसे 'लड़ें' - अशोक अग्रवाल से मुकाबला करने के लिए उनके पास चूँकि कोई रणनीति ही नहीं थी, इसलिए वह डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं को अपने साथ जोड़ ही नहीं सके । चुनावबाज नेताओं की तरफ से समय समय पर यह शिकायत भी सुनने को मिली कि अशोक अग्रवाल का मुकाबला करने की इच्छा रखने वाले उम्मीदवारों को उनकी मदद तो चाहिए थी, लेकिन वह उन पर भरोसा नहीं कर रहे थे - जिस कारण उम्मीदवारों और उनके संभावित समर्थक नेताओं के बीच विश्वास का संबंध नहीं बन सका । इसमें डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं की बदनामी ने भी निर्णायक भूमिका निभाई । डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं की बदनामी को देखते/समझते हुए उनके समर्थन की इच्छा रखने वाले उम्मीदवारों ने उनके साथ दूरी बनाए रखते हुए ही उनके समर्थन की उम्मीद की, जिससे बात लेकिन बनी नहीं । डिस्ट्रिक्ट के नेताओं ने कहना भी शुरू कर दिया है कि चुनाव में उन्हें जब अशोक अग्रवाल की स्पष्ट जीत 'दिखाई' दे रही है, तो वह 'इस' या 'उस' उम्मीदवार के समर्थन में जा कर अपनी राजनीतिक फजीहत क्यों करवाएँ ?