Tuesday, December 25, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने अमित गुप्ता के समर्थन के नाम पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन की जैसी जो खिलाफ़त की, उससे लोगों के बीच चर्चा है कि सुभाष जैन ने आखिर इन्हें कहाँ कहाँ च्युटियाँ काट ली हैं जो यह बुरी तरह बिलबिला रहे हैं ?

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में झटपट तरीके से जिस तरह अधिकतर क्लब्स के वोट पड़/डल गए हैं, उसके लिए मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल की बदतमीजियों को जिम्मेदार ठहराया/माना जा रहा है । कई क्लब्स के प्रेसिडेंट से सुनने को मिला कि इन दोनों पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने अमित गुप्ता के पक्ष में वोट डालने के लिए जिस तरह बार-बार फोन करके उन्हें परेशान किया हुआ था, उससे बचने के लिए उन्होंने वोटिंग लाइन खुलते ही वोट डाल दिया - ताकि वह इन दोनों की परेशान करने व दबाव बनाने वाली हरकतों से बच सकें । बताया जा रहा है कि 21 दिसंबर को वोटिंग लाइन खुलने के बाद दो-तीन दिन में ही करीब 90 प्रतिशत क्लब्स के वोट पड़/डल गए । गौरतलब बात यह है कि रोटरी की चुनावी व्यवस्था में ई-वोटिंग का चलन आने के बाद देखा/पाया गया है कि वोटिंग लाइन खुलने के बाद पहले सप्ताह में मुश्किल से 40 से 50 प्रतिशत क्लब्स के ही वोट पड़ते/डलते हैं । दरअसल वोट डालने के लिए क्लब्स/प्रेसीडेंट्स को चूँकि पंद्रह दिन का समय मिलता है, इसलिए अलग अलग कारणों से प्रेसीडेंट्स वोट डालने के लिए समय 'लेते' हैं, और वोट डालने में जल्दबाजी नहीं दिखाते हैं । शुरू के दिनों में ही जिन क्लब्स के वोट पड़/डल जाते हैं, उन्हें 'इस' या 'उस' उम्मीदवार के पक्के वाले समर्थक क्लब्स के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है । हर डिस्ट्रिक्ट में हर वर्ष के चुनाव में अमूमन 40 से 50 प्रतिशत क्लब्स 'इस' या 'उस' उम्मीदवार के पक्के वाले समर्थक होते ही हैं, इसलिए यह शुरू के दिनों में वोट डाल कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो लेते हैं, जबकि बाकी क्लब्स/प्रेसीडेंट्स तरह तरह से मूल्याँकन करते हुए निर्णय पर पहुँचने की प्रक्रिया में जुटते हैं । लेकिन मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल की हरकतों ने डिस्ट्रिक्ट 3012 में ऐसा आतंक मचाया कि वोटिंग लाइन खुलने के तीन-चार दिनों के भीतर ही करीब 90 प्रतिशत क्लब्स ने वोट डाल कर अपनी अपनी 'जान' बचाई ।
उल्लेखनीय यह है कि इस वर्ष हो रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की प्रक्रिया को बड़े ही शांत रूप में आगे बढ़ते देखा जा रहा था; और रोटरी व डिस्ट्रिक्ट में चुनावी राजनीति के भरोसे ही 'गुजर बसर' करने वाले नेता ढीले पड़े और 'बेचारे' बने बैठे देखे जा रहे थे । जो लोग यह मानते और कहते रहे हैं कि जैसे कुत्ते की पूँछ को किसी भी प्रयत्न से सीधा नहीं किया जा सकता है, वैसे ही मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल को हरकतें करने से नहीं रोका जा सकता है और यह दोनों किसी भी सूरत में अपनी हरकतों से बाज नहीं आ सकते हैं - उन्हें भी यह देख कर हैरानी हुई कि इस बार यह दोनों भी लाचार बने हुए हैं और सुधरे से दिख रहे हैं । लेकिन चुनाव का दिन नजदीक आते आते यह दोनों अपने असली रंग में आ गए और इन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया कि कुत्ते की पूँछ के साथ इनके व्यवहार की जो तुलना की जाती है, वह उचित ही है । कई प्रेसिडेंट्स का कहना रहा कि बार-बार फोन करके इन्होंने अमित गुप्ता को वोट देने के लिए पर दबाव बनाया; और मजे की बात यह रही कि इसके लिए इन्होंने रोटेरियन के रूप में अमित गुप्ता की कोई खूबी नहीं बताई - बस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन की बुराई की । प्रेसीडेंट्स के लिए यह समझना मुश्किल रहा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन का गवर्नर-वर्ष यदि खराब है, तो यह बात अमित गुप्ता को वोट देने कारण कैसे और क्यों बनती है ? प्रेसीडेंट्स इन दोनों से बार-बार सुभाष जैन की बुराई सुन सुन कर इतने उकता गए कि उन्होंने इनसे कहना/पूछना शुरू किया कि उन्होंने तो रोटरी के बड़े नेताओं और पदाधिकारियों को हमेशा ही सुभाष जैन की और उनके कामों के प्रशंसा करते हुए ही सुना है; प्रोजेक्ट्स हों, सदस्यता वृद्धि तथा रोटरी फाउंडेशन का काम हो - सभी जगह सुभाष जैन के गवर्नर-वर्ष की उपलब्धियों ने रिकॉर्ड बनाया है और लोगों के बीच खासी प्रशंसा पाई है - तब फिर वह किस आधार पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन की आलोचना कर रहे हैं ?
मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के लिए फजीहत की बात यह भी रही कि अमित गुप्ता को समर्थन देने के उनके अभियान को उनके साथ समझे/देखे जाने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी आलोक गुप्ता ने भी समर्थन नहीं दिया । मुकेश अरनेजा को तो दीपक गुप्ता ने अपने गवर्नर-वर्ष के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया हुआ है, लेकिन फिर भी उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वह मुकेश अरनेजा की राजनीतिक सक्रियता व पक्षधरता के साथ नहीं हैं । समझा जाता है कि दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता रोटरी जगत में मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल की बदनामी से परिचित होने के चलते इनके साथ जुड़े दिखने से बचना चाहते हैं; इसके अलावा यह दोनों इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अशोक अग्रवाल को बड़े अंतर से जीतते हुए देख रहे हैं - इसके चलते इन्होंने अपने आप को चुनावी सक्रियता से दूर रखने में ही अपनी भलाई देखी । दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता ने  जिस तरह से अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाने की मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल की कोशिशों से अपने आपको दूर रखा, उसके कारण मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल की कोशिशें निष्प्रभावी ही रहीं । अमित गुप्ता के नजदीकियों और समर्थकों का भी मानना/कहना है कि मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल ने अमित गुप्ता को समर्थन दिलवाने के नाम पर जिस तरह से सुभाष जैन को निशाना बनाने पर ही जोर दिया, उसने वास्तव में प्रेसीडेंट्स को भड़काने का ही काम किया - और उससे अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को फायदा होने की बजाये नुकसान और उठाना पड़ा है । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के बार बार फोन करके परेशान करने तथा दबाव बनाने की हरकत से बचने के लिए जिस तरह से प्रेसीडेंट्स ने झटपट तरीके से वोट डालने का काम किया, उसे अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए बड़े नुकसान के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । कई लोगों को यह सवाल भी परेशान कर रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन ने आखिर मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल को ऐसे कहाँ कहाँ च्युटियाँ काट ली हैं कि यह दोनों बिलबिलाते फिरे और अमित गुप्ता को समर्थन दिलवाने के नाम पर सुभाष जैन के खिलाफ नंग-नाच करते नजर आए ।