गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने और 'दिखाने' के लिए अजय सिन्हा और दीपक गुप्ता द्वारा की जा रही पार्टियों को लगातार जो झटके पर झटके लग रहे हैं, उससे प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी को समर्थन की और मजबूती मिलती लग रही है । अजय सिन्हा ने पिछले दिनों अपने घर और अपने ऑफिस में छोटे-छोटे समूहों में गाजियाबाद के रोटेरियंस के लिए पार्टियाँ आयोजित कीं, लेकिन उनमें भी इक्का-दुक्का लोग ही पहुँचे । दीपक गुप्ता ने गाजियाबाद में आयोजित की गई पिछली पार्टी की असफलता से सबक लेकर, और ज्यादा तैयारी के साथ एक और पार्टी आयोजित की - लेकिन उसका हाल पिछली वाली पार्टी से भी बुरा हुआ । अजय सिन्हा की तरफ से आयोजित हुई पार्टियों का तो लोगों के बीच खासा मजाक भी बना । अजय सिन्हा ने अपने घर और ऑफिस में छोटे-छोटे समूहों में जो पार्टियाँ आयोजित कीं, उन्हें लेकर लोगों का कहना रहा कि उन्हें तो यही समझ में नहीं आया कि अजय सिन्हा अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के लिए पार्टी कर रहे हैं, या अपनी उम्मीदवारी के श्राद्ध का भोज दे रहे हैं ।
लोगों ने इसे अजय सिन्हा की लीडरशिप की असफलता के रूप में देखा/पहचाना है, और माना/कहा है कि अजय सिन्हा को पहले अपने क्लब में अपनी लीडरशिप बनानी चाहिए, और उसके बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के बारे में सोचना चाहिए । गाजियाबाद में समर्थन जुटाने की अजय सिन्हा की कोशिशों को विफल होता देख दीपक गुप्ता को अपना 'गणित' बिगड़ता नजर आ रहा है । उन्हें लगता था कि अजय सिन्हा की उम्मीदवारी गाजियाबाद में प्रियतोष गुप्ता के समर्थन-आधार को कमजोर करने का काम करेगी, और इससे उन्हें प्रियतोष गुप्ता के साथ अपनी दूरी को कम करने का मौका मिलेगा । दीपक गुप्ता को लेकिन यह देख कर झटका लगा है कि गाजियाबाद में न उन्हें समर्थन मिल पा रहा है, और न अजय सिन्हा को । ऐसे में, इन दोनों के नजदीकियों को ही लगने लगा है कि प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी को उनकी खुद की सक्रियता से जितना जो फायदा हो रहा है, उससे कहीं ज्यादा फायदा उन्हें अजय सिन्हा तथा दीपक गुप्ता की गतिविधियों को लगातार मिल रही असफलताओं से हो रहा है । दरअसल जब तक अजय सिन्हा और दीपक गुप्ता की सक्रियता नहीं थी, तब तक उनकी मुट्ठी बंद थी और कुछेक लोगों को लगता था कि उनकी मुट्ठी में बंद समर्थन प्रियतोष गुप्ता के लिए चुनौती सकता है - लेकिन अब जब अजय सिन्हा और दीपक गुप्ता की मुट्ठी खुलती जा रही है, तो पता चल रहा है कि जिसे 'लाख की समझा जा रहा था, वह तो खाक की है ।'