Thursday, October 9, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में सतीश सिंघल ने गाजियाबाद की अपनी मीटिंग के जरिए प्रसून चौधरी के समर्थक नेताओं को उनके अपने अपने क्लब में ही घेरने की जो कोशिश की है उससे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है

गाजियाबाद । सतीश सिंघल ने गाजियाबाद में एक बड़ी सफल मीटिंग करके प्रसून चौधरी के गढ़ में सेंध मारने की जो कार्रवाई की है, उसने डिस्ट्रिक्ट 3010 के प्रस्तावित विभाजित डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य को खासा दिलचस्प बना दिया है । डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में गाजियाबाद क्षेत्र में प्रसून चौधरी ने जिस तेजी के साथ अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाया था; और उनकी तुलना में सतीश सिंघल जिस तरह उदासीन दिख रहे थे - उसे लेकर सतीश सिंघल के समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच असमंजस बना हुआ था और उनके लिए यह समझना लगातार मुश्किल बना हुआ था कि गाजियाबाद को लेकर सतीश सिंघल आखिर क्या सोच रहे हैं । सतीश सिंघल के नजदीकियों और शुभचिंतकों का ही मानना और कहना रहा कि गाजियाबाद के रोटेरियंस के साथ सतीश सिंघल के जैसे जो दोस्ताना संबंध रहे हैं, उन्हें यदि वह समय रहते निरंतरता के प्रवाह में बनाये रखते तो प्रसून चौधरी को यहाँ पैर जमाने का मौका ही नहीं मिलता । गाजियाबाद के रोटेरियंस को साथ लेने में सतीश सिंघल ने जो उदासीनता दिखाई, प्रसून चौधरी ने उसका पूरा पूरा फायदा उठाया और अपनी उम्मीदवारी के प्रचार अभियान में ऐसे ऐसे लोगों को अपने साथ लेने में सफलता पाई - जो वास्तव में सतीश सिंघल के नजदीक देखे/समझे जाते थे और जिन्होंने सतीश सिंघल के रोटरी ब्लड बैंक जैसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट के लिए, उनके साथ बढ़चढ़ कर काम किया था । प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के प्रचार अभियान में गाजियाबाद के कई एक प्रमुख लोग जिस तरह से खुल कर सक्रिय दिख रहे थे, उससे सतीश सिंघल के समर्थकों व शुभचिंतकों को निराशा होने लगी थी । इसी निराशा के चलते गाजियाबाद में सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से आयोजित हुई मीटिंग का खास महत्व बना ।
सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से गाजियाबाद में आयोजित हुई मीटिंग की रौनक देखने के बाद सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों की सारी निराशा लेकिन अब भारी उत्साह में बदल गई है । समर्थकों व शुभचिंतकों को लगने लगा है कि सतीश सिंघल यदि 'एक उम्मीदवार के रूप में' सक्रिय हो सकें, तो गाजियाबाद में अपनी खोई हुई 'जमीन' को वापस भी पा सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों ने माना और कहा/बताया भी कि सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से गाजियाबाद में आयोजित मीटिंग की सफलता का पैमाना सिर्फ यही नहीं है कि मीटिंग में खूब लोग जुटे - मीटिंग में लोग तो आ ही जाते हैं; मीटिंग की सफलता का पैमाना यह है कि इसे राजनीतिक चतुराई के साथ आयोजित किया गया । सतीश सिंघल ने लोगों को आमंत्रित करने में जिस खुलेपन का और जिस रणनीति का परिचय दिया, उसका उन्हें पूरा पूरा लाभ भी मिला । मीटिंग में मौजूद लोगों को देख कर लगा कि सतीश सिंघल ने आमंत्रितों की सूची तैयार करते समय उन क्लब्स के लोगों का खास ध्यान रखा, जिनके नेता प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के समर्थन में खुल कर सक्रिय नजर आ रहे हैं । इस तरकीब से सतीश सिंघल ने प्रसून चौधरी के समर्थक नेताओं को उनके अपने अपने क्लब में ही घेरने की कोशिश की है ।
सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से गाजियाबाद में आयोजित हुई मीटिंग में उपस्थित हुए वरिष्ठ रोटेरियंस ने जिस तरह याद करते हुए रोटरी में सतीश सिंघल की निरंतर सक्रियता और उनकी उपलब्धियों को रेखांकित किया, उससे उन नए रोटेरियंस के बीच सतीश सिंघल की एक कर्मठ और 'कुछ करने' वाले रोटेरियन की विश्वसनीय पहचान बनी जिनका सतीश सिंघल के साथ परिचय नहीं था । इस तरह सतीश सिंघल को दो फायदे एकसाथ हुए - एक तो उनके लिए नए रोटेरियंस के बीच विश्वसनीय पहचान बनाने का बोझ कुछ कम हुआ, वह खुद यदि अपने काम गिनाते तो विश्वसनीयता नहीं बना पाते; दूसरे वरिष्ठ रोटेरियंस से मिली तारीफ से उनकी उम्मीदवारी का एक आभामंडल बना, जिसे बना पाना अन्यथा उनके लिए मुश्किल ही होता । इससे पहले हापुड़ और दिल्ली में आयोजित मीटिंग्स में अपनाई गई रणनीति के विपरीत, सतीश सिंघल ने गाजियाबाद की मीटिंग को 'क्षेत्रीय' दर्जा देने की बजाये 'डिस्ट्रिक्ट मीटिंग' टाइप का दर्जा दिया और यह दिखाने का प्रयास किया कि डिस्ट्रिक्ट के हर क्षेत्र के लोग उनके साथ हैं ।
सतीश सिंघल की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से गाजियाबाद में आयोजित हुई मीटिंग की जोरदार सफलता में लेकिन सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के लिए एक खतरा भी 'पैदा' होता दिखा है । खतरा यह कि सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों ने इस सफल मीटिंग के भरोसे सतीश सिंघल को जीता हुआ ही मान लिया है । काश, मीटिंग्स में लोगों को इकठ्ठा करके चुनाव जीते जा सकते होते ! तब चुनाव जीतना कितना आसान हो गया होता ! सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव रखने वाले वरिष्ठ रोटेरियंस का ही कहना है कि गाजियाबाद में हुई चुनावी मीटिंग की सफलता से सतीश सिंघल की उम्मीदवारी के भाव निश्चित रूप से बढ़े तो हैं, लेकिन इस सफलता से आश्वस्त हो जाना आत्मघाती साबित हो सकता है । प्रसून चौधरी के समर्थन में दिखने वाले कुछेक लोगों के सतीश सिंघल की मीटिंग में सक्रिय होने को उपलब्धि मानने के प्रति सावधान रहने की हिदायत देते हुए इन्हीं वरिष्ठ रोटेरियंस का कहना है कि हो सकता है कि कल यही लोग फिर से प्रसून चौधरी के साथ नजर आयें । इनका सुझाव है कि सतीश सिंघल को इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि रोटरी की चुनावी राजनीति में पाला बदलने में लोग देर नहीं लगाते हैं ।
सतीश सिंघल के समर्थक वरिष्ठ रोटेरियंस का ही मानना और कहना है कि गाजियाबाद की मीटिंग की सफलता से यह तो साबित हुआ है कि सतीश सिंघल का रोटेरियंस के बीच एक ऑरा (आभामंडल) है तथा अपनी सक्रियता से वह अपने इस ऑरा को राजनीतिक समर्थन में भी बदल सकने की सामर्थ्य रखते हैं - समस्या सिर्फ इतनी सी ही है कि 'एक उम्मीदवार के रूप में' वह अपनी सक्रियता की निरंतरता को बनाये रख सकें । सतीश सिंघल से 'परिचित' वरिष्ठ रोटेरियंस का कहना है कि सतीश सिंघल के लिए चुनौती प्रसून चौधरी की तरफ से उतनी नहीं हैं, जितनी खुद उनकी अपनी तरफ से उन्हें है । कई लोगों का मानना और कहना है कि प्रसून चौधरी ने चुनावी मुकाबले में अपनी दमदार उपस्थिति यदि बनाई है, तो इसके लिए एक उम्मीदवार के रूप में सतीश सिंघल की उदासीनता ही ज्यादा जिम्मेदार है । खरगोश और कछुए की दौड़ वाले किस्से में कछुआ तेज दौड़ने के कारण नहीं जीता था, बल्कि इसलिए जीता था क्योंकि खरगोश दौड़ जीतने के लिए जरूरी रवैया अपनाये जाने को लेकर उदासीन हो गया था । हापुड़ और दिल्ली के बाद गाजियाबाद में एक सफल मीटिंग करके सतीश सिंघल ने 'एक उम्मीदवार के रूप में' सक्रिय होने के जो तेवर लेकिन अभी तक दिखाए हैं उससे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है ।