धनबाद/कोलकाता । कमल सांघवी हैदराबाद में आयोजित हो रही 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' के जरिये क्या रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद तक पहुँचने की तिकड़म बना/लगा रहे हैं ? अभी तक यह सवाल उनके डिस्ट्रिक्ट के लोगों की जुबान पर था, लेकिन अब यह दूसरे डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच भी चर्चा का विषय है ।
कमल सांघवी खुशकिस्मत हैं कि जो लोग उन्हें नहीं भी जानते हैं और/या उनके
इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने में जिनकी कहीं कोई भूमिका नहीं होनी है, वह भी
इस सवाल के जबाव में उनके समर्थक बन जाते हैं और प्रश्न का जबाव देने की
बजाये प्रतिप्रश्न करते हैं कि कमल सांघवी यदि ऐसा कर भी रहे हैं तो क्या
गलत कर रहे हैं ? लेकिन इन नादान किस्म के लोगों की इस तरह की पैरवी कमल
सांघवी की इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने की तिकड़म की बात को और पुष्ट करने का
ही काम कर रही है । ऐसे में, कमल सांघवी के लिए इस 'आरोप' के घेरे से खुद को बाहर निकालना और मुश्किल हो गया है ।
हैदराबाद में आयोजित हो रही 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' को कमल सांघवी की इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने की तिकड़म से जोड़ने की बात को दरअसल इसलिए हवा मिली क्योंकि रोटरी के तमाम बड़े नेता इस आयोजन की प्रासंगिकता और जरूरत को समझने/पहचानने में असफल रहे हैं । चूँकि इस तरह के किसी आयोजन की बात रोटरी इंटरनेशनल की व्यवस्था में नहीं है इसलिए तमाम बड़े नेताओं के लिए यह समझना बड़ा मुश्किल हुआ कि यह समिट आखिर हो किसलिए रही है । रोटरी के कई एक बड़े नेताओं ने इन पंक्तियों के लेखक का ध्यान इस तथ्य की तरफ दिलाया कि रोटरी इंटरनेशनल के प्रत्येक कार्यक्रम का एक खास डिजाइन है, उसका एक उद्देश्य है और इस कारण उसका एक टारगेट ऑडिएंस होता है । तथाकथित 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' एक ऐसा आयोजन है, जिसका कोई डिजाइन नहीं है और इसलिए उसका कोई निश्चित उद्देश्य नहीं है और यही कारण है कि उसका कोई टारगेट ऑडिएंस नहीं है । समिट में कौन रोटेरियन शामिल होने का अधिकारी है, इसका कोई मापदण्ड तय नहीं किया गया है । यह इसीलिये नहीं किया गया क्योंकि इसका एकमात्र उद्देश्य यह 'दिखाना' है कि आयोजक लोग कितनी भीड़ इकट्ठी कर सकते हैं । इसी वजह से हैदराबाद में आयोजित हो रही समिट में ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है, जिनके लिए रोटरी तफरीह का दूसरा नाम है । यहाँ तमाम लोग ऐसे हैं जो अपने क्लब की मीटिंग्स में ही कभी-कभार जाते हैं और डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में तो शायद ही कभी गए होंगे - यानि उन्हें न तो रोटरी में कोई दिलचस्पी है और न ही कभी उन्हें प्रेरित करने की जरूरत ही समझी गई ।
समझा जा सकता है कि जो रोटेरियन बेचारा कभी डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में नहीं गया वह यहाँ - तथाकथित रोटरी साऊथ एशिया समिट में क्या करने आया होगा ? जाहिर है कि वह आया नहीं है, उसे 'लाया गया' है । समिट के आयोजकों की तरफ से डिस्ट्रिक्ट के नेताओं से पूछा गया कि कितने लोग हैदराबाद लाओगे - डिस्ट्रिक्ट के नेताओं ने अपनी हैसियत और आयोजकों के निगाह में चढ़ने की जरूरत के हिसाब से लोगों की संख्या बता दी; कुछेक डिस्ट्रिक्ट के नेताओं ने अपनी बताई संख्या के हिसाब से रजिस्ट्रेशन का पैसा भी अपनी ही जेब से भर दिया । डिस्ट्रिक्ट 3120 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी सतपाल गुलाटी बेचारे को यह अहसान उतारने के एवज में करना पड़ा । उल्लेखनीय है कि सतपाल गुलाटी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के लिए पिछले रोटरी वर्ष में हुए चुनाव में हार गए थे । उन्हें चुनाव लड़ाने वाले डिस्ट्रिक्ट के उनके आका जब उन्हें सीधे मुकाबले में चुनाव नहीं जितवा सके तो उन्होंने चोर दरवाजे से सतपाल गुलाटी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनवाने का बीड़ा उठाया । उनके आकाओं के तार चूँकि इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता से जुड़े हैं, इसलिए शेखर मेहता की मदद से एक 'शिकायती खेल' हुआ और सतपाल गुलाटी को हारी हुई बाजी जितवा दी गई । शेखर मेहता का उन पर यह अहसान था, इसलिए 'रोटरी साउथ एशिया समिट' के प्रमुख कर्ता-धर्ता के रूप में शेखर मेहता ने जब उनसे पूछा कि कितने लोग हैदराबाद लाओगे तो उन्होंने झट से कई लोगों के रजिस्ट्रेशन का पैसा उन्हें भेज दिया । बाद में वह उतने लोगों का जुगाड़ करने में जुटे । यह पता हालाँकि अभी नहीं लग पाया है कि उन्होंने जितने लोगों का रजिस्ट्रेशन करवाया था, उतने लोगों का जुगाड़ वह कर पाए या नहीं ? इस 'तरकीब' से जो आयोजन हो रहा हो उसके बारे में लोगों का यह सोचना स्वाभाविक ही है कि इसके पीछे असल उद्देश्य क्या है ?
हैदराबाद में आयोजित हो रही 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' में जिस तरह से और जिस तरह के लोगों को जुटाया गया है उससे 'दिखा' यही है कि इस तथाकथित समिट के आयोजकों का मुख्य उद्देश्य भीड़ इकट्ठी करके अपना उल्लू सीधा करना है । यह समिट शेखर मेहता के दिमाग की उपज है और इसे संभव करने के लिए उन्होंने कमल सांघवी पर भरोसा किया । शेखर मेहता ने वर्ष 2011 में कोलकाता में आयोजित किये रोटरी इंस्टीट्यूट के आयोजन में भी कमल सांघवी पर भरोसा किया था । उस समय भी कुछेक लोगों के जहन में यह बात आई थी कि शेखर मेहता इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का लालच दिखा कर कमल सांघवी को इस्तेमाल कर रहे हैं । इस समिट में शेखर मेहता ने जब एक बार फिर कमल सांघवी को 'आगे' रखा - तो वही बात साबित होती हुई दिखी । हालाँकि कमल सांघवी के नजदीकियों का कहना है कि शेखर मेहता उन्हें इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, बल्कि वह शेखर मेहता को इस्तेमाल कर रहे हैं । उनका कहना है कि कमल सांघवी ने रोटरी के बड़े नेताओं के बीच इतनी जड़ें जमाई हुई हैं कि वह इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने के लिए शेखर मेहता की मदद के मोहताज नहीं हैं । कई लोगों को लगता है कि दोनों को एक दूसरे की जरूरत है - शेखर मेहता को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनना है और कमल सांघवी को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनना है, इसलिए दोनों एक दूसरे की मदद से आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं । हैदराबाद में आयोजित हो रही 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' के आयोजन को उन दोनों के इसी संयुक्त प्रयास के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
हैदराबाद में आयोजित हो रही 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' को कमल सांघवी की इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने की तिकड़म से जोड़ने की बात को दरअसल इसलिए हवा मिली क्योंकि रोटरी के तमाम बड़े नेता इस आयोजन की प्रासंगिकता और जरूरत को समझने/पहचानने में असफल रहे हैं । चूँकि इस तरह के किसी आयोजन की बात रोटरी इंटरनेशनल की व्यवस्था में नहीं है इसलिए तमाम बड़े नेताओं के लिए यह समझना बड़ा मुश्किल हुआ कि यह समिट आखिर हो किसलिए रही है । रोटरी के कई एक बड़े नेताओं ने इन पंक्तियों के लेखक का ध्यान इस तथ्य की तरफ दिलाया कि रोटरी इंटरनेशनल के प्रत्येक कार्यक्रम का एक खास डिजाइन है, उसका एक उद्देश्य है और इस कारण उसका एक टारगेट ऑडिएंस होता है । तथाकथित 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' एक ऐसा आयोजन है, जिसका कोई डिजाइन नहीं है और इसलिए उसका कोई निश्चित उद्देश्य नहीं है और यही कारण है कि उसका कोई टारगेट ऑडिएंस नहीं है । समिट में कौन रोटेरियन शामिल होने का अधिकारी है, इसका कोई मापदण्ड तय नहीं किया गया है । यह इसीलिये नहीं किया गया क्योंकि इसका एकमात्र उद्देश्य यह 'दिखाना' है कि आयोजक लोग कितनी भीड़ इकट्ठी कर सकते हैं । इसी वजह से हैदराबाद में आयोजित हो रही समिट में ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है, जिनके लिए रोटरी तफरीह का दूसरा नाम है । यहाँ तमाम लोग ऐसे हैं जो अपने क्लब की मीटिंग्स में ही कभी-कभार जाते हैं और डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में तो शायद ही कभी गए होंगे - यानि उन्हें न तो रोटरी में कोई दिलचस्पी है और न ही कभी उन्हें प्रेरित करने की जरूरत ही समझी गई ।
समझा जा सकता है कि जो रोटेरियन बेचारा कभी डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में नहीं गया वह यहाँ - तथाकथित रोटरी साऊथ एशिया समिट में क्या करने आया होगा ? जाहिर है कि वह आया नहीं है, उसे 'लाया गया' है । समिट के आयोजकों की तरफ से डिस्ट्रिक्ट के नेताओं से पूछा गया कि कितने लोग हैदराबाद लाओगे - डिस्ट्रिक्ट के नेताओं ने अपनी हैसियत और आयोजकों के निगाह में चढ़ने की जरूरत के हिसाब से लोगों की संख्या बता दी; कुछेक डिस्ट्रिक्ट के नेताओं ने अपनी बताई संख्या के हिसाब से रजिस्ट्रेशन का पैसा भी अपनी ही जेब से भर दिया । डिस्ट्रिक्ट 3120 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी सतपाल गुलाटी बेचारे को यह अहसान उतारने के एवज में करना पड़ा । उल्लेखनीय है कि सतपाल गुलाटी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के लिए पिछले रोटरी वर्ष में हुए चुनाव में हार गए थे । उन्हें चुनाव लड़ाने वाले डिस्ट्रिक्ट के उनके आका जब उन्हें सीधे मुकाबले में चुनाव नहीं जितवा सके तो उन्होंने चोर दरवाजे से सतपाल गुलाटी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनवाने का बीड़ा उठाया । उनके आकाओं के तार चूँकि इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता से जुड़े हैं, इसलिए शेखर मेहता की मदद से एक 'शिकायती खेल' हुआ और सतपाल गुलाटी को हारी हुई बाजी जितवा दी गई । शेखर मेहता का उन पर यह अहसान था, इसलिए 'रोटरी साउथ एशिया समिट' के प्रमुख कर्ता-धर्ता के रूप में शेखर मेहता ने जब उनसे पूछा कि कितने लोग हैदराबाद लाओगे तो उन्होंने झट से कई लोगों के रजिस्ट्रेशन का पैसा उन्हें भेज दिया । बाद में वह उतने लोगों का जुगाड़ करने में जुटे । यह पता हालाँकि अभी नहीं लग पाया है कि उन्होंने जितने लोगों का रजिस्ट्रेशन करवाया था, उतने लोगों का जुगाड़ वह कर पाए या नहीं ? इस 'तरकीब' से जो आयोजन हो रहा हो उसके बारे में लोगों का यह सोचना स्वाभाविक ही है कि इसके पीछे असल उद्देश्य क्या है ?
हैदराबाद में आयोजित हो रही 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' में जिस तरह से और जिस तरह के लोगों को जुटाया गया है उससे 'दिखा' यही है कि इस तथाकथित समिट के आयोजकों का मुख्य उद्देश्य भीड़ इकट्ठी करके अपना उल्लू सीधा करना है । यह समिट शेखर मेहता के दिमाग की उपज है और इसे संभव करने के लिए उन्होंने कमल सांघवी पर भरोसा किया । शेखर मेहता ने वर्ष 2011 में कोलकाता में आयोजित किये रोटरी इंस्टीट्यूट के आयोजन में भी कमल सांघवी पर भरोसा किया था । उस समय भी कुछेक लोगों के जहन में यह बात आई थी कि शेखर मेहता इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का लालच दिखा कर कमल सांघवी को इस्तेमाल कर रहे हैं । इस समिट में शेखर मेहता ने जब एक बार फिर कमल सांघवी को 'आगे' रखा - तो वही बात साबित होती हुई दिखी । हालाँकि कमल सांघवी के नजदीकियों का कहना है कि शेखर मेहता उन्हें इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, बल्कि वह शेखर मेहता को इस्तेमाल कर रहे हैं । उनका कहना है कि कमल सांघवी ने रोटरी के बड़े नेताओं के बीच इतनी जड़ें जमाई हुई हैं कि वह इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने के लिए शेखर मेहता की मदद के मोहताज नहीं हैं । कई लोगों को लगता है कि दोनों को एक दूसरे की जरूरत है - शेखर मेहता को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनना है और कमल सांघवी को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनना है, इसलिए दोनों एक दूसरे की मदद से आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं । हैदराबाद में आयोजित हो रही 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' के आयोजन को उन दोनों के इसी संयुक्त प्रयास के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।