शाहजहाँपुर । संजय चोपड़ा ने
प्रतुल गर्ग को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार
'बनवा' कर डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों को उलट-पलट दिया है ।
उल्लेखनीय है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जब तक संदीप
सहगल और अशोक अग्रवाल के नाम चर्चा में थे तब तक चुनावी राजनीति परंपरागत
रूप से दो खेमों में ही बंटी दिख रही थी और संजय चोपड़ा परिदृश्य से बाहर
दिख रहे थे । संदीप सहगल की उम्मीदवारी को हरजीत सिंह सच्चर, ब्रजेश
अग्रवाल और विनय भारद्धाज जैसे पूर्व गवर्नरों के समर्थन की चर्चा सुनी जा
रही थी, तो अशोक अग्रवाल के पीछे प्रमोद चंद्र सेठ को देखा/पहचाना जा रहा
था । माना जा रहा था कि संदीप सहगल को लखनऊ के उन नेताओं का समर्थन मिल
जायेगा जो पिछले से पिछले लायन वर्ष में शिव कुमार गुप्ता की उम्मीदवारी के
समर्थन में थे; और अशोक अग्रवाल के लिए प्रमोद चंद्र सेठ कुछ न कुछ करके
गुरनाम सिंह का समर्थन जुटा लेंगे । गुरनाम सिंह यद्यपि अभी उम्मीदवारों
की गहराई नाप रहे हैं और अपना फरमान सुनाने से बच रहे हैं । इस पूरे खेल
में बेचारे संजय चोपड़ा के लिए कहीं कोई जगह नहीं बनती हुई दिख रही थी -
हालाँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर
पद के चुनाव में उनकी भूमिका ही महत्वपूर्ण होनी है, लेकिन सेकेंड वाइस
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी राजनीति की बिछाई जा रही बिसात में
उन्हें ही कोई भूमिका नहीं मिल रही थी । इसी पृष्ठभूमि में प्रतुल गर्ग की
उम्मीदवारी के जरिए संजय चोपड़ा ने डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ियों को
'धोबीपाट' दे दिया ।
जैसे सभी गवर्नर दावा करते हैं, संजय चोपड़ा भी दावा तो वैसा ही
कर रहे हैं कि उनकी कोई राजनीति नहीं है और वह किसी उम्मीदवार को फायदा
पहुँचाने का काम नहीं करेंगे । अभी तक कोई ऐसा तथ्य भी सामने नहीं आया है
जिससे यह लगे कि वह अतिरिक्त दिलचस्पी लेकर प्रतुल गर्ग को प्रमोट कर रहे
हैं - लेकिन फिर भी, उनके क्लब के प्रतुल गर्ग की उम्मीदवारी जिस अचानक
तरीके से प्रकट हुई उसे देख/जान कर हर किसी को लगता है कि प्रतुल गर्ग की
उम्मीदवारी के पीछे संजय चोपड़ा की शह ही है । ऐसा लगने का एक कारण और
है । डिस्ट्रिक्ट के खिलाड़ियों ने दरअसल संजय चोपड़ा को कम करके आँका हुआ था
और समझा हुआ था कि वह संजय चोपड़ा को जैसे 'कच्चा ही चबा जायेंगे' । इस
गलतफहमी में उनके दोस्त लोग भी थे । इसी गलतफहमी में केएस लूथरा ने दुबई
में डिस्ट्रिक्ट के अधिष्ठापन कार्यक्रम के उनके प्रस्ताव पर भारी बबाल
किया, लेकिन संजय चोपड़ा ने बड़ी होशियारी से 'अपने पत्ते चलते हुए' केएस लूथरा के सारे अभियान की हवा निकाल दी ।
मजे की बात यह भी रही कि इस मामले में केएस लूथरा ने भले ही आक्रामकता
दिखाई हो किंतु संजय चोपड़ा ने विनम्रता के साथ चुपचाप 'अपना काम' किया । इस
प्रकरण से संजय चोपड़ा ने साबित किया कि उन्हें काम निकालना आता है और
प्रतिकूल स्थितियों को भी अनुकूल बनाने का हुनर उनमें है । यहाँ इस तथ्य
पर गौर करना प्रासंगिक होगा कि प्रतुल गर्ग की उम्मीदवारी से संजय चोपड़ा
के 'भावों' में एकदम से तेज उछाल आया है, जो उससे पहले बिलकुल नीचे गिरे
हुए थे । एक उम्मीदवार के रूप में प्रतुल गर्ग का क्या होगा, यह तो आगे
पता चलेगा; अभी लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में संजय चोपड़ा का
रुतबा जरूर बढ़ है ।
दरअसल अशोक अग्रवाल और संदीप सहगल उम्मीदवार के रूप में संजय चोपड़ा को कोई तवज्जो ही नहीं दे रहे थे । अशोक अग्रवाल को विश्वास था कि प्रमोद चंद्र सेठ उनकी उम्मीदवारी की नैय्या को गुरनाम सिंह का समर्थन दिलवा कर पार लगवा देंगे; तो संदीप सहगल को कई पूर्व गवर्नरों के समर्थन के चलते अपने लिए भरोसा था - संजय चोपड़ा की अहमियत कोई भी नहीं समझ रहा था । समझा जाता है कि तब संजय चोपड़ा ने अनुपम बंसल वाला फार्मूला अपनाया । उल्लेखनीय है कि पिछले लायन वर्ष में जब
विशाल सिन्हा के सामने किसी उम्मीदवार के आने की संभावना नहीं थी, तब तक
विशाल सिन्हा किसी को कुछ समझ ही नहीं रहे थे और 'सुपर गवर्नर' की तरह
व्यवहार कर रहे थे । अनुपम बंसल ने उनका 'ईलाज' करने के लिए ही चुपचाप
से एके सिंह को हवा दी । एके सिंह को हवा मिली तब विशाल सिन्हा की हवा
निकलना शुरू हुई और फिर वह उन लोगों की खुशामद में जुटे, जिन्हें वह पहले गालियाँ दे रहे थे । विशाल सिन्हा समझ रहे थे कि एके सिंह से यदि चुनाव की स्थिति बनी तो वह
फिर हारेंगे - इसलिए 'सुपर गवर्नर' का अपना व्यवहार छोड़ कर वह सचमुच में
'उम्मीदवार' बने और किसी तरह से सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बने ।
अनुपम बंसल जिस चतुराई से विशाल सिन्हा को जमीन पर लाए - समझा जाता है कि चुनावी राजनीति में अपनी अहमियत जताने/दिखाने के लिए संजय चोपड़ा ने भी उसी 'चतुराई' का सहारा लिया है ।
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ी तीनों उम्मीदवारों में प्रतुल गर्ग को सबसे कमजोर उम्मीदवार रूप में भले ही देख रहे हों, लेकिन उनमें से कइयों का यह भी मानना और कहना है कि तीनों में सबसे ज्यादा प्रतुल गर्ग ही ऊर्जावान हैं । यह देखने की बात होगी कि अपनी ऊर्जा को वह कैसे संयोजित करते हैं । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों को अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी से तो ज्यादा चिंता नहीं थी, लेकिन प्रतुल गर्ग की उम्मीदवारी के प्रकट होने के बाद उन्हें चुनावी मुकाबले के मुश्किल होने की आशंका हुई है । संदीप सहगल की उम्मीदवारी के समर्थकों ने संदीप सहगल के पक्ष में समर्थन जुटाने के प्रयास में एक बड़ा भावुक-सा तर्क दिया है कि बार-बार शाहजहाँपुर से ही गवर्नर क्यों बनना चाहिए, दूसरे छोटे शहरों के लोगों भी
मौका मिलना चाहिए । प्रतुल गर्ग की उम्मीदवारी के समर्थकों ने इसका जबाव
देते हुए रेखांकित किया है कि लखनऊ से अनुपम बंसल, शिव कुमार गुप्ता और विशाल सिन्हा जो अभी के गवर्नर हैं वह एक ही कॉलोनी - निराला नगर क्षेत्र के ही हैं; तब
क्यों नहीं कहा गया कि एक ही कॉलोनी के लोग ही गवर्नर बनेंगे क्या और
क्यों नहीं गोमती नगर या चौक के किसी लायन को गवर्नर बनाने की कवायद हुई ? हल्द्वानी के बृजेश अग्रवाल जब उम्मीदवार थे तब उन्होंने विनय भारद्धाज के लिए रास्ता क्यों नहीं छोड़ा था, क्योंकि हल्द्वानी से तो हरजीत सिंह सच्चर गवर्नर बन ही चुके थे और काशीपुर को नंबर मिलना चाहिए था । प्रतुल गर्ग की उम्मीदवारी के समर्थकों का कहना है कि चुनावी राजनीति में कोई किसी के लिए मौका छोड़ता नहीं है; यहाँ सभी को अपना मौका अपनी सक्रियता और अपने काम के भरोसे बनाना/पाना होता है । प्रतुल गर्ग की उम्मीदवारी के समर्थकों के
इन तेवरों को देखते हुए और प्रतुल गर्ग के संजय चोपड़ा के क्लब के होने के चलते
सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव गंभीर हो गया है ।