नई दिल्ली । लायंस क्लब्स इंटरनेशनल बोर्ड ने
डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री की वर्ष 2013-14 की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को
अमान्य घोषित कर दिया है और इसी के साथ सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद
के लिए हुए चुनाव में आरके शाह की जीत का फैसला भी स्वतः ही निरस्त हो गया
है । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को अमान्य करने की माँग दरअसल की ही इसलिए गई
थी ताकि आरके शाह की चुनावी जीत के फैसले को पलटा जा सके । चुनावी मुकाबले
में मात खाए नेताओं ने कॉन्फ्रेंस को निशाना बनाने के चोर दरवाजे का इस्तेमाल वास्तव में किया ही इसलिए था, ताकि वह चुनावी मुकाबले में मिली पराजय की धूल को साफ कर सकें ।
डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के आयोजन में - या डिस्ट्रिक्ट की किसी भी
गतिविधि में - नियमों का कितना/क्या पालन किया जाता है, इसे सब जानते ही
हैं । नियमों का पालन न होने की आड़ लेकर डिस्ट्रिक्ट के बहुमत सदस्यों
द्धारा किए गए फैसले को निरस्त कराने की चाल - का सफल होना - तिकड़मों वाली
राजनीति के लिए कामयाबी व उपलब्धि की बात तो जरूर ही है; लेकिन इस 'सफलता' की कीमत डिस्ट्रिक्ट को और आने वाले गवर्नरों को किस रूप में चुकानी पड़ेगी, यह देखना दिलचस्प होगा ।
समझा जाता है कि पिछले लायन वर्ष के विरोधी खेमे ने जिन तरीकों से तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा की नाक में दम किए रखा, उन्हीं तरीकों का इस्तेमाल करने की इस वर्ष के विरोधी खेमे ने तैयारी की हुई है और उनकी तैयारी की जितनी जो सूचनाएँ चर्चा में हैं उनसे लगता नहीं है कि नरेश गुप्ता का गवर्नर-काल चैन से बीतेगा । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के बाद के डिस्ट्रिक्ट के माहौल को देखें - जिसमें पर्दे के पीछे सिर्फ गाली-गलौच हुई और एक-दूसरे को बदनाम करने की कोशिशें हुईं; आरोप-प्रत्यारोप लगाये गए । क्यों ? सिर्फ
इस कारण से क्योंकि विरोधी खेमा अपनी चुनावी पराजय को हजम नहीं कर पाया और
अपनी पराजय का बदला लेने के लिए हर तरह का धतकर्म करने पर उतारू हो बैठा ।
लायंस इंटरनेशनल के फैसले से इस वर्ष के विरोधी खेमे को जो झटका लगा है,
उससे 'उबरने' के लिए उसने भी यदि उन्हीं 'तौर-तरीकों' को अपनाया तो कल्पना
कीजिए कि किस तरह का माहौल बनेगा ?
पिछले लायन वर्ष में हुई
डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को अमान्य कराने और उसके जरिये सेकेंड वाइस
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आए चुनावी नतीजे को निरस्त कराने में कामयाब
रही 'राजनीति' और उसके समर्थकों के लिए निश्चित ही बम-बम होने का समय है - लेकिन उनके लिए भी यह सोचने/विचार करने का अवसर है कि गंदी राजनीति और तिकड़म से प्राप्त की गई इस सफलता को वह कब तक और कैसे अपने साथ बनाये रख सकते हैं ?
यहाँ इस मौके पर दीपक टुटेजा और पुरुषोत्तम गोयल के बीच हुए चुनाव को याद
करना प्रासंगिक होगा - तिकड़म की 'राजनीति' ने तब पुरुषोत्तम गोयल के रूप
में सफलता तो प्राप्त कर ली थी, लेकिन उसके बाद तिकड़म की उस राजनीति को लगातार पराजय का ही शिकार होना पड़ा है । तिकड़म
की राजनीति से अभी जो लोग सफल हुए हैं, उनके लिए याद और ध्यान रखने की बात
यही है कि डिस्ट्रिक्ट में हुए चुनावी मुकाबले में उन्हें बार-बार पराजय
का ही सामना करना पड़ा है । जाहिर है कि उनके सामने असली चुनौती यही है कि वह कैसे डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अपनी साख और प्रतिष्ठा को बचाए/बढ़ाए - ताकि चुनावी मुकाबलों में भी जीतने का स्वाद वह चख सकें ।
डिस्ट्रिक्ट के लोग तो उनके साथ नहीं थे, इसीलिए वह बार-बार चुनाव हार रहे थे - लेकिन तिकड़मों को अंजाम देने का हुनर उनमें खूब था, और किस्मत उनके साथ थी; किंतु याद और ध्यान रखने की बात यही है कि तिकड़में और किस्मत हमेशा साथ नहीं देती हैं । तिकड़म और किस्मत से जो जीत उन्हें अभी मिल गई है, उसे यदि स्थाई रूप से वह अपने पास/साथ रखना चाहते हैं तो उन्हें अपना रवैया और तौर-तरीका बदलना पड़ेगा । अपना रवैया और तौर-तरीका वह यदि बदलेंगे तो उनका तो भला होगा ही होगा - डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म का भी भला होगा । लायंस इंटरनेशनल का फैसला वास्तव में उनके लिए भी सबक है - वह इस वर्ष चूँकि सत्ता में हैं, इसलिए उनके लिए सबक ज्यादा है । आगे क्या होगा, लायंस इंटरनेशनल के फैसले ने सत्ता में बैठे लोगों के लिए जो सबक दिया है - उससे किसने कितना सबक लिया है; यह जल्दी ही नजर आने लगेगा ।