Tuesday, July 1, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के विभाजित डिस्ट्रिक्ट में होने वाले दो चुनावों में पहले वाले चुनाव के लिए दीपक गुप्ता और दूसरे वाले चुनाव के लिए प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की 'व्यवस्था' ने चुनावी समीकरणों को उलट-पलट दिया है

गाजियाबाद । रोटरी क्लब वैशाली के सदस्यों ने अपने चार्टर प्रेसीडेंट प्रसून चौधरी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत करके न सिर्फ डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में खासी हलचल पैदा कर दी है, बल्कि चुनावी राजनीति के सत्ता-समीकरणों को भी उलट-पलट दिया है । क्लब के लोगों ने स्पष्ट कर दिया है कि विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लिए होने वाले दो चुनावों में दूसरे वाले चुनाव में प्रसून चौधरी उम्मीदवार होंगे । रोटरी क्लब वैशाली के सदस्यों द्धारा की गई इस घोषणा के साथ ही रोटरी क्लब गाजियाबाद के दीपक गुप्ता की तरफ से भी इस बात के संकेत मिले हैं कि दीपक गुप्ता विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लिए होने वाले दो चुनावों में पहले वाले चुनाव में उम्मीदवार होंगे । दीपक गुप्ता की तरफ से मिले इस संकेत ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उनकी उम्मीदवारी को लेकर चल रहे असमंजस को ख़त्म करने का काम तो किया ही है, साथ ही अरनेजा गिरोह द्धारा फैलाई जा रही अफवाह पर धूल डालने का काम भी किया है । उल्लेखनीय है कि अरनेजा गिरोह के नेता लोग पिछले कुछ समय से इस बात को हवा दे रहे थे कि उन्होंने दीपक गुप्ता को अपनी तरफ मिला लिया है और पहले वह शरत जैन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवायेंगे और फिर दीपक गुप्ता को । इस बात के चलते दीपक गुप्ता को अरनेजा गिरोह के उम्मीदवार के रूप में देखा जाने लगा । ऐसे में, विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लोगों का जो एक तबका अरनेजा गिरोह के खिलाफ संगठित होने की कोशिश कर रहा है, उस के लिए दीपक गुप्ता के खिलाफ उम्मीदवार लाने की कवायद शुरू करना जरूरी हो गया था । इससे दीपक गुप्ता के ऊपर भी दबाव बना कि वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर पैदा हो रहे असमंजस को जल्दी से जल्दी दूर करें ।
प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की प्रस्तुति ने दीपक गुप्ता को भी असमंजस में फँसी अपनी उम्मीदवारी के बाबत तुरंत से फैसला करने के लिए प्रेरित किया - और समझा जाता है कि उन्होंने पहले वाले मौके को पकड़ लिया है । विभाजित डिस्ट्रिक्ट के लिए होने वाले दो चुनावों में पहले वाले चुनाव के लिए दीपक गुप्ता और दूसरे वाले चुनाव के लिए प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की 'व्यवस्था' ने चुनावी समीकरणों को उलट-पलट दिया है । दीपक गुप्ता और प्रसून चौधरी के बीच कोई चुनावी तालमेल बना है या नहीं, यह तो वे जानें - लेकिन जो हुआ है उससे विभाजित डिस्ट्रिक्ट में अरनेजा गिरोह की चौधराहट न जमने देने के लिए प्रयास कर रहे लोगों को बड़ा बल मिला है । उन्हें उम्मीद बनी है कि अब वह अरनेजा गिरोह की राजनीति को खूँटे से बाँध सकेंगे । दीपक गुप्ता और प्रसून चौधरी का अपना अपना जो समर्थन आधार है, उसका एक बड़ा हिस्सा कॉमन है । दरअसल यही बात दोनों की उम्मीदवारी के बीच एक दूसरे के साथ सहयोग वाला संबंध बनाने की जमीन तैयार करती है और एक दूसरे की स्थिति को मजबूत बनाने का काम करती है ।
प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की अचानक से हुई प्रस्तुति अरनेजा गिरोह में दरार डालने की जमीन भी तैयार करती है । उल्लेखनीय है कि प्रसून चौधरी के क्लब - रोटरी क्लब वैशाली को मुकेश अरनेजा के क्लब के रूप में पहचाना जाता है । पीछे हालाँकि कई मौकों पर रोटरी क्लब वैशाली को मुकेश अरनेजा की 'राजनीति' के खिलाफ खड़े देखा/पाया गया है लेकिन उसके बावजूद क्लब के और मुकेश अरनेजा के तार फिर फिर जुड़ते रहे हैं । 'फिर फिर जुड़ते रहे' तार को देखते/पहचानते हुए ही रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ लगातार दावा करते रहे कि प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी अभी नहीं आयेगी । उल्लेखनीय है कि प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की चर्चा पिछले काफी समय से सुनी जा रही है लेकिन चूँकि उसकी कोई स्पष्ट घोषणा नहीं हो रही थी इसलिए अरनेजा गिरोह के नेताओं को यह दावा करने का मौका मिल रहा था कि प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी उनकी हरी झंडी मिलने पर ही घोषित होगी । जेके गौड़ ने तो क्लब में फूट पड़वा कर प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी की संभावना को ख़त्म ही कर देने का प्रयास किया था; लेकिन न तो उनका वह प्रयास सफल हो पाया और न ही प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी को ही वह रोक सके । कई लोगों को शक है कि प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी कहीं मुकेश अरनेजा का ही तो 'खेल' नहीं है । चार-छह दिन पहले ही, जेके गौड़ के क्लब के कार्यक्रम में आकर मुकेश अरनेजा जिस तरह की डींगें सुना चुके थे - उससे भी इस आशंका को बल मिला है ।
मुकेश अरनेजा दरअसल इस बात से बहुत खिन्न देखे गए हैं कि रमेश अग्रवाल उन्हें पीछे धकेलते जा रहे हैं और इस काम में जेके गौड़ भी रमेश अग्रवाल के साथ मिले हुए हैं । मुकेश अरनेजा ने ही नहीं, दूसरे लोगों ने भी पाया/महसूस किया है कि जेके गौड़ - मुकेश अरनेजा की बजाये रमेश अग्रवाल के साथ ज्यादा जुड़े हुए हैं । मुकेश अरनेजा ने शरत जैन को भी रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ के साथ ज्यादा नजदीक देखा/पाया है । ऐसे में मुकेश अरनेजा को डर हुआ है कि शरत जैन यदि गवर्नर बन गए तो यह तीनों तो मिलकर उन्हें घर ही बैठा देंगे । इसी पृष्ठभूमि में, मुकेश अरनेजा की राजनीति को जानने/समझने वाले लोगों को शक है कि विभाजित डिस्ट्रिक्ट में जो राजनीति हो रही है उसे किसी न किसी रूप में मुकेश अरनेजा की शह है । विभाजित डिस्ट्रिक्ट में जिस तरह से रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ के खिलाफ लामबंदी हो रही है, उसे रोकने और या कमजोर करने में मुकेश अरनेजा कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं । रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ की जैसी जो फजीहत हो रही है, उसे मुकेश अरनेजा जिस तरह चुपचाप बैठकर तमाशे की तरह देख रहे हैं उसमें लोगों को मुकेश अरनेजा की कोई अलग खिचड़ी पकती महसूस हो रही है । गौर करने वाला तथ्य यह है कि अभी कुछ दिन पहले तक, सीओएल का चुनाव होने तक मुकेश अरनेजा का रवैया ऐसा न था । सीओएल के चुनाव में मुकेश अरनेजा ने रमेश अग्रवाल को जितवाने के लिए अथक प्रयास किए थे । किंतु सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल को मिली पराजय के बाद से मुकेश अरनेजा बदले-बदले से नजर आ रहे हैं ।
समझा जाता है कि सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल की पराजय ने मुकेश अरनेजा को यह अहसास करवा दिया कि डिस्ट्रिक्ट में रमेश अग्रवाल के खिलाफ ऐसा माहौल है, जिसमें वह यदि उनके और जेके गौड़ के साथ रहे तो उनके साथ-साथ खुद भी डूबेंगे । यह अहसास होने के साथ ही मुकेश अरनेजा ने रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ के पचड़ों से दूर होना और 'दिखना' शुरू कर दिया है । कुछ लोगों को हालाँकि यह भी लगता है कि 'यह' मुकेश अरनेजा की सिर्फ एक चाल भर है और वह उन दोनों के साथ ही हैं । लेकिन कई लोगों का तर्क है कि रमेश अग्रवाल ने जिस तरह उनकी ऊँगली पकड़ कर सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ी और सीढ़ियाँ चढ़ते-चढ़ते उन्हें नीचे धकेलते गए हैं और जिस तरह उन्होंने जेके गौड़ को भी अपने साथ मिला लिया है, उससे मुकेश अरनेजा ने सबक लिया है और अब वह उन्हें और कामयाब नहीं होने देंगे । रमेश अग्रवाल कामयाब न हों, इसके लिए जरूरी है कि शरत जैन की राह में रोड़े पड़े । यह रोड़े यदि अपने आप पड़ रहे हैं, तो मुकेश अरनेजा को चुपचाप बैठे तमाशा देखने में भी 'बहुत कुछ करने' का मजा आ रहा होगा ।
राजनीति का - किसी भी चुनावी राजनीति का एक फंडा बड़ा क्लियर होता है और वह यह कि 'आप यदि साथ नहीं हैं', तो इसका बहुत स्पष्ट मतलब है कि 'आप खिलाफ हैं' ।
विभाजित डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति जो शक्ल लेती दिख रही है - उसमें रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ की जैसी जो फजीहत हो रही है - उसके प्रति मुकेश अरनेजा का जो रवैया है, उससे साफ दिख रहा है कि वह रमेश अग्रवाल और जेके गौड़ के साथ नहीं हैं । मुकेश अरनेजा उनके खिलाफ हो गए हैं या नहीं, यह जानने के लिए अभी थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा । दरअसल मुकेश अरनेजा कोई कदम उठाने से पहले आश्वस्त हो लेना चाहेंगे कि विभाजित डिस्ट्रिक्ट में रमेश अग्रवाल के खिलाफ लामबंदी होने की जो सुगबुगाहट है, वह कोई निर्णायक रूप ले पाती है या नहीं । मुकेश अरनेजा वास्तव में 'चलती हुई ट्रेन' में चढ़ने वाले खिलाड़ी हैं । इस नाते वह इंतजार करना चाहेंगे और देखना चाहेंगे कि कौन उम्मीदवार अपना पलड़ा भारी कर पाता है । जिसका पलड़ा भारी दिखेगा, मुकेश अरनेजा उसकी उम्मीदवारी का झंडा उठा लेंगे । आगे क्या होगा, यह तो आगे पता चलेगा - अभी लेकिन प्रसून चौधरी की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने से विभाजित डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का नजारा दिलचस्प तथा उथल-पुथल भरा हो गया है ।