Tuesday, July 15, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में योगेश मोहन गुप्ता की हालत देख कर डरे हुए दीपक बाबू ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीतने के लिए अपनाए गए हथकंडों से ही रोटरी इंटरनेशनल की न्याय व्यवस्था से बचने और अपनी जीत को बचाये रखने का प्रयास शुरू कर दिया है

मुरादाबाद । दीपक बाबू और उनके नजदीकियों ने योगेश मोहन गुप्ता जैसी दशा में पहुँचने से बचने के लिए हाथ-पैर मारना शुरू कर दिया है; और इसके लिए उन्होंने हर वह दरवाजा खटखटाना शुरू कर दिया है जिसके पीछे रहने वाले लोगों ने चुनाव जीतने के लिए उनके द्धारा अपनाए गए हथकंडों की शिकायत की हुई है । दरअसल सीओएल के चुनाव में योगेश मोहन गुप्ता द्धारा प्राप्त की गई तथाकथित जीत के फैसले को अमान्य करने की घोषणा के साथ रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने चुनावी जीत के लिए अपनाए जाने वाले हथकंडों को लेकर जो सख्ती दिखाई है, उससे दीपक बाबू और उनके समर्थक भी डर गए हैं । उल्लेखनीय है कि जिन हथकंडों से योगेश मोहन गुप्ता पर सीओएल के लिए जीत प्राप्त करने का आरोप था, लगभग उन्हीं हथकंडों से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए जीत जुगाड़ने का आरोप दीपक बाबू पर भी है - और उनकी कारस्तानियों को लेकर आरोप पत्र रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय में विचाराधीन है । दीपक बाबू और उनके शुभचिंतकों व समर्थकों को डर इस बात का है कि रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने जिस तरह ललित मोहन गुप्ता को न्याय दिया है, वैसा ही न्याय उसने यदि दिवाकर अग्रवाल को भी दे दिया तो अभी तक उन्होंने अपनी जीत के जश्न को लेकर जो खर्चा किया है, वह तो पानी की तरह बहा हुआ ही हो जायेगा ।
योगेश मोहन गुप्ता जैसा हाल न हो, इसके लिए दीपक बाबू और उनके सलाहकारों ने उन लोगों पर डोरे डालना शुरू किया है, जिन्होंने उनके खिलाफ हुई शिकायत में बतौर गवाह या सुबूत के संदर्भ में अपनी भूमिका निभाई है । उल्लेखनीय है कि दीपक बाबू की जीत के खिलाफ रोटरी इंटरनेशनल में जो शिकायत दर्ज हुई है, उसे मजबूत आधार देने का काम कुछेक क्लब के पदाधिकारियों ने किया है, जिन्होंने लिखित शिकायत करके दीपक बाबू द्धारा अपनाये गए हथकंडों का सुबूत दिया है । दीपक बाबू और उनके समर्थक शिकायत करने वाले उक्त पदाधिकारियों को शिकायत वापस लेने के लिए पटाने/फुसलाने में लग गए हैं । दीपक बाबू और उनके समर्थक कोशिश कर रहे हैं कि जिन्होंने उनके खिलाफ शिकायत की है, वह लिख कर दे दें कि उन्हें धोखे में रखकर या उनपर दबाव बना कर उनसे शिकायत करवाई गई है । उन्हें लगता है कि उनके द्धारा अपनाए गए हथकंडों की शिकायत करने वाले क्लब-पदाधिकारियों द्धारा की गई शिकायतों को यदि उन्होंने वापस करवा दिया, तो फिर उनके खिलाफ मामला कमजोर पड़ जायेगा और उनका योगेश मोहन गुप्ता जैसा हाल नहीं होगा ।
मजेदार नजारा यह सुनने/देखने को मिल रहा है कि दीपक बाबू पर जिस तरह के हथकंडों के जरिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए वोट जुटाने का आरोप है, उन्हीं हथकंडों का इस्तेमाल वह शिकायतों को वापस करवाने के लिए कर रहे हैं । दीपक बाबू और उनके समर्थकों को विश्वास है कि जिन हथकंडों ने उन्हें चुनावी जीत दिलवाई है, वही हथकंडे उन्हें रोटरी इंटरनेशनल की न्याय-व्यवस्था का शिकार होने से बचायेंगे । गंभीर बात यही है कि योगेश मोहन गुप्ता की तिकड़मी जीत को अमान्य घोषित करते हुए रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय ने बेईमानीपूर्ण तरीकों के प्रति जो सख्त रवैया दिखाया है, दीपक बाबू और उनके समर्थक उसकी कोई परवाह करते हुए नहीं दिख रहे हैं; और अपने खिलाफ दर्ज करवाई गई शिकायत को वापस करवाने के लिए पैसों को ऑफर करने का खेल खेलने में फिर से जुट गए हैं ।
यह खेल दीपक बाबू को आसान और अचूक लगता है । दीपक बाबू की 'बहादुरी' यह है कि अपने इस खेल को उन्होंने कभी भी छिपाकर रखने तक की भी जरूरत नहीं समझी, बल्कि ढिंढोरा पीट कर उन्होंने यह खेल खेला । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उन्होंने शुरू से ही ऐलान किया हुआ था कि जब चुनाव का समय आयेगा तब क्लब-अध्यक्षों को वह मोटी मोटी रकम ऑफर करेंगे और बदले में उनसे वोट पा लेंगे और इस तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बन जायेंगे । अपने इस खेल पर भरोसा करने के कारण ही उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में कोई संपर्क अभियान नहीं चलाया; अपनी तरफ से लोगों से संपर्क करना तो दूर की बात थी, लोगों ने उनसे संपर्क करने की कोशिश की तो लोगों की कोशिश तक को भी उन्होंने कोई तवज्जो नहीं दी । डिस्ट्रिक्ट के कई आयोजनों में तो उन्होंने उपस्थित रहने तक की जरूरत नहीं समझी - डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में दर्ज होने वाली उनकी लंबी अनुपस्थिति के कारण कई बार तो लोगों ने उनकी उम्मीदवारी को लेकर भी संदेह करना शुरू कर दिया था । डिस्ट्रिक्ट के जिन कुछेक आयोजनों में दीपक बाबू उपस्थित भी हुए, वहाँ भी उन्होंने लोगों से मिलने-जुलने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई । उनके व्यवहार को देख कर लोगों ने - कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तक ने मजाक में कहना शुरू कर दिया था कि दीपक बाबू ने तो अपने आप को गवर्नर मान लिया है और इसीलिए उम्मीदवार होने के बावजूद वह एक उम्मीदवार के रूप में नहीं, बल्कि चुने हुए गवर्नर की तरह व्यवहार कर रहे हैं । दीपक बाबू को दरअसल अपने खेल पर भरोसा था और चुनावी नतीजे ने उनके भरोसे को सही भी साबित किया ।
ऐसा ही भरोसा योगेश मोहन गुप्ता को भी अपने खेल पर था, और उनका भरोसा भी कामयाब साबित हुआ था । रोटरी इंटरनेशनल ने लेकिन उनकी कामयाबी को उनके खेल के कारण ही पलट दिया है । इस बात ने दीपक बाबू और उनके समर्थकों को डरा दिया है - उनका जो खेल उनकी जीत का वाहक बना, उनके उसी खेल के उनकी जीत के ग्रहण बनने का खतरा उन्हें मंडराता दिखने लगा है । रिश्वत लेने के आरोप में पकड़ा गया अपराधी जिस तरह रिश्वत दे कर छूटने की तिकड़म लगाता है, उसी तर्ज पर दीपक बाबू ने जिन हथकंडों से चुनाव जीता - उन्हीं हथकंडों से रोटरी इंटरनेशनल की न्याय व्यवस्था से बचने का प्रयास उन्होंने शुरू कर दिया है । दीपक बाबू के कुछेक नजदीकियों का तो दावा है कि दीपक बाबू का खेल जैसे चुनाव में सफल हुआ था, वैसे ही अब भी सफल होगा - और उनका योगेश मोहन गुप्ता जैसा हाल नहीं होगा ।