Thursday, July 16, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल की खाली हो रही तीन सीटों को देखते हुए दुर्गेश काबरा और अनिल भंडारी ने तैयारी तो अच्छे से की है, किंतु प्रफुल्ल छाजेड़ की सक्रियता ने उनके सामने चुनौती भी गंभीर बना दी है

मुंबई । संजीव माहेश्वरी, राजकुमार अदुकिया और पंकज जैन द्वारा खाली की गईं सेंट्रल काउंसिल की सीटों पर कब्जा करने के लिए इंस्टीट्यूट के वेस्टर्न रीजन में उम्मीदवारों के बीच जो घमासान मचा है, उसने वेस्टर्न रीजन में दिलचस्प चुनावी नजारा प्रस्तुत किया हुआ है । इस नजारे को खासा नजदीक से और गंभीरता से देख रहे चुनावी विश्लेषकों का मानना और कहना है कि सेंट्रल काउंसिल की खाली हो रही इन तीनों सीटों को भरने के लिए हाथ-पैर मारना तो कई लोगों ने शुरू किया है, किंतु अभी तक कोई ऐसा दमदार उम्मीदवार नहीं दिख रहा है - जिसे/जिन्हें इन खाली हो रही सीटों का वारिस मान लिया जाए । दरअसल इसीलिए वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के लिए होने वाला चुनाव खासा मजेदार हो गया है । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में वेस्टर्न रीजन से जो तीन लोग सीट खाली कर रहे हैं, उनमें दो बातें कॉमन हैं - एक तो यह कि तीनों मुंबई के हैं और दूसरा यह कि तीनों मोटे तौर पर मारवाड़ी वोटों का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं । अभी जो उम्मीदवार सक्रिय दिख रहे हैं और उनकी जो दशा/दिशा नजर आ रही है, उसमें यह बात तो निश्चित ही दिख रही है कि इनकी जगह अब जो भी लोग आयेंगे - वह मारवाड़ी वोटों का वैसा प्रतिनिधित्व तो नहीं ही कर रहे होंगे, जैसा प्रतिनिधित्व इन तीनों ने किया है । 'खतरा' यह भी है कि मुंबई भी अपनी तीनों सीटें बचाकर शायद न रख सके । माना जा रहा है कि खाली हो रही तीन सीटों में कम-से-कम एक सीट तो मुंबई के बाहर निश्चित ही जा रही है । अभी सक्रियता व चुनावी समीकरणों के आधार पर जो परसेप्शन बना है, उसमें एक सीट पर अहमदाबाद के पराग रावल 'आते' हुए नजर आ रहे हैं । 
मारवाड़ी वोटों के प्रतिनिधित्व के लिए दुर्गेश काबरा और अनिल भंडारी के बीच तगड़ी होड़ देखने को मिल रही है । दुर्गेश काबरा ने पिछली बार भी सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की थी, लेकिन तब वह कोई बहुत उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं कर सके थे और असफल रहे थे । अनिल भंडारी ने भी रीजनल काउंसिल का पिछला चुनाव कोई बहुत प्रभावी तरीके से नहीं जीता था । पिछली बार सेंट्रल काउंसिल के वेस्टर्न रीजन के 24 उम्मीदवारों की मतगणना में पहली वरीयता के 967 वोटों के साथ दुर्गेश काबरा 18वें नंबर पर रहे थे; फाइनली 1039 वोटों के साथ 18वें नंबर पर रहते हुए ही वह चुनावी होड़ से बाहर हो गए थे । अनिल भंडारी रीजनल काउंसिल के 49 उम्मीदवारों में पहली वरीयता के 772 वोटों के साथ 16वें स्थान पर थे; फाइनली अपने वोटों की संख्या को 1243 तक पहुँचाते हुए उन्होंने विजेता उम्मीदवारों में अपना स्थान एक ऊँचा करते हुए 15वाँ कर लिया था । सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के संदर्भ में इसे कोई बहुत प्रभावी नतीजा नहीं कहा जा सकता है । उल्लेखनीय है कि वेस्टर्न रीजन में इस बार 75 हजार से ज्यादा वोट मान्य होने का अनुमान है, जिसमें से 35 से 38 हजार के बीच वोट पड़ने की उम्मीद की जा रही है । चुनावी विश्लेषकों का आकलन है कि सेंट्रल काउंसिल में वापसी करने की तैयारी करने वाले मौजूद आठ सदस्य इनमें से 20/22 हजार वोट झटक लेंगे । कोटा तीन हजार वोटों तक जा सकता है । ऐसे में खाली हो रही तीन सीटों पर कब्जा करने की कोशिशों में लगे उम्मीदवारों के लिए मामला खासा कठिन हो जाता है ।
मामला भले ही खासा कठिन हो जाता हो, लेकिन फिर भी मारवाड़ी वोटों का प्रतिनिधित्व करने वाली तीन सीटों के खाली होने से मारवाड़ी वोटों के भरोसे रहने वाले उम्मीदवारों के लिए मौका तो अच्छा ही है । यह अच्छा मौका ही - पिछला प्रदर्शन प्रभावी न होने के बावजूद - दुर्गेश काबरा और अनिल भंडारी के लिए उम्मीद पैदा करता है । दुर्गेश काबरा के समर्थक कहते भी हैं कि कई मारवाड़ी उम्मीदवारों के रहते हुए दुर्गेश काबरा ने 24 उम्मीदवारों में 18वीं स्थिति भी जो पाई, वह कोई खराब नतीजा नहीं है; इसलिए अब की बार जब संजीव माहेश्वरी, राजकुमार अदुकिया, पंकज जैन चुनावी मैदान में नहीं होंगे - तब दुर्गेश काबरा के लिए ज्यादा चुनौती नहीं होगी और उनके लिए जीत कोई मुश्किल नहीं होगी । दुर्गेश काबरा के समर्थक एक और जोरदार तर्क देते हैं और वह यह कि सेंट्रल काउंसिल चुनाव की जो एक अलग और विस्तृत केमिस्ट्री होती है, दुर्गेश काबरा ने पिछली बार की अपनी उम्मीदवारी के चलते उसे समझ/पहचान लिया है; तथा पिछली बार की अपनी कमजोरियों व गलतियों से भी सबक लिया है - इसलिए इस बार उनके लिए ज्यादा समस्या नहीं ही होगी । यह तर्क एक तरह से अनिल भंडारी के लिए चुनौती खड़ी करता है - क्योंकि अनिल भंडारी अभी सेंट्रल काउंसिल चुनाव की केमिस्ट्री से ज्यादा परिचित नहीं हैं और रीजनल काउंसिल का पिछला चुनाव भी उन्होंने कोई बहुत आकर्षक तरीके से नहीं जीता था । अनिल भंडारी के समर्थकों का कहना लेकिन यह है कि पिछले वर्ष वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के रूप में अनिल भंडारी ने जिस तरह की सक्रियता दिखाई थी और उनकी जो उपलब्धियाँ रहीं थीं, उसके कारण चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच उनकी जो पोजीटिव पहचान बनी है - उसका उन्हें फायदा मिलेगा । अनिल भंडारी की उम्मीदवारी के समर्थकों का यह भी तर्क है कि पिछले दो-तीन वर्षों में जो नए चार्टर्ड एकाउंटेंट्स बने हैं, उनके बीच अनिल भंडारी की रीजनल काउंसिल के सदस्य व चेयरमैन के रूप में अच्छी पहचान बनी है - जिसके भरोसे युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच समर्थन जुटाना उनके लिए आसान होगा । 
दुर्गेश काबरा और अनिल भंडारी के समर्थकों के अपने अपने जो तर्क हैं, वह यूँ तो बहुत मौजूँ हैं - किंतु चुनाव सिर्फ तर्कों के सहारे तो जीता नहीं जाता है; संजीव माहेश्वरी, राजकुमार अदुकिया और पंकज जैन का ही उदाहरण देखें तो पाते हैं कि लंबी सक्रियता और भारी स्वीकार्यता के बावजूद वह कोई बहुत प्रभावी तरीके से अपनी अपनी जीत प्राप्त नहीं कर सकें हैं । दरअसल चुनावी नतीजे का ऊँठ किस करवट बैठता है, यह बहुत सारे फैक्टर्स पर निर्भर करता है । इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है, और वह उदाहरण यह कि मारवाड़ी वोटों के भरोसे जिन दुर्गेश काबरा और अनिल भंडारी के लिए मुकाबले को थोड़ा अनुकूल समझा जा रहा है, उन्हें लेकिन प्रफुल्ल छाजेड़ से तगड़ी चुनौती मिलती दिख रही है । चुनावी विश्लेषकों का मानना और कहना है कि संजीव माहेश्वरी, राजकुमार अदुकिया और पंकज जैन के बाहर होने से इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में मारवाड़ी वोटों का प्रतिनिधित्व प्रफुल्ल छाजेड़ के पास आने की संभावना है; और उनके वोटों में भारी उछाल मिलने की उम्मीद है । अनुमानपूर्ण दावे हैं कि पंकज जैन को मिलने वाले जैन वोट तो प्रफुल्ल छाजेड़ के खाते में जायेंगे ही, दूसरे मारवाड़ी वोटों का झुकाव भी उन्हीं ही तरफ होने का अनुमान है । प्रफुल्ल छाजेड़ के पक्ष में एक तथ्य और है : इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में इंस्टीट्यूट के पूर्व अध्यक्ष बंसीधर मेहता की बड़ी गहरी छाया रही है । उनकी फर्म में ऑर्टिकल या पार्टनर रहे लोगों की इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में बड़ी धूम रही है । गौतम दोषी, भावना दोषी, पंकज जैन आदि इसके उदाहरण हैं । बंसीधर मेहता की छाया से फायदा उठाने/मिलने का मौका अब प्रफुल्ल छाजेड़ के पास आ गया है । लोगों का मानना और कहना है कि प्रफुल्ल छाजेड़ ने यदि सुनियोजित तरीके से काम किया, तो इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में बड़ी पहचान और धाक बनायेंगे । प्रफुल्ल छाजेड़ की यह अनुमानित बड़ी पहचान और धाक लेकिन दुर्गेश काबरा और अनिल भंडारी के लिए मुसीबत खड़ी करेगी और उनकी चुनावी यात्रा को चुनौतीपूर्ण बनायेगी ।