नई दिल्ली । अनिल अग्रवाल ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत राधेश्याम बंसल की उम्मीदवारी के लिए खासा बड़ा गंभीर संकट खड़ा कर दिया है । दरअसल यह दोनों रिश्ते में साढ़ू भाई हैं - दोनों के बीच की इस रिश्तेदारी के चलते रीजनल काउंसिल के दूसरे उम्मीदवारों ने राधेश्याम बंसल से बचना और दूर-दूर रहना शुरू कर दिया है, जिसके चलते राधेश्याम बंसल के लिए फीडबैक जुटाना तथा आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में हवा बनाना मुश्किल हो गया है । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति का तानाबाना कुछ ऐसा है कि उसमें सेंट्रल काउंसिल व रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों के बीच एक अनौपचारिक तथा अदृश्य किस्म का सहयोगात्मक संबंध स्वयं से बन जाता है, जिसमें रीजनल काउंसिल के उम्मीदवार को सेंट्रल काउंसिल के उम्मीदवार के अनुभवों तथा उसके इंफ्रास्ट्रक्चर का फायदा मिल जाता है; और सेंट्रल काउंसिल के उम्मीदवार को रीजनल काउंसिल के उम्मीदवार से यह पता चलता रहता है कि जमीनी स्तर पर क्या चल रहा है ? सेंट्रल काउंसिल के कुछेक उम्मीदवार रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों से सेंट्रल काउंसिल के दूसरे उम्मीदवारों की जासूसी भी करवाते हैं । जासूसी कराने का यह काम योजनाबद्ध तरीके से तो ज्यादा नहीं हो पाता है, किंतु अनौपचारिक रूप से यह काम खूब होता है । वास्तव में, यह सेंट्रल काउंसिल के उम्मीदवार की होशियारी पर निर्भर करता है, कि वह रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों को इस्तेमाल कर ले और उनसे अपना 'काम' बना ले; रीजनल काउंसिल के उम्मीदवार का हुनर इस बात में होता है कि वह कैसे सेंट्रल काउंसिल के कई उम्मीदवारों से तार जोड़े और अपना फायदा उठाये । जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि दोनों तरफ के उम्मीदवारों के बीच बनने वाला यह सहयोगात्मक संबंध बेहद अनौपचारिक व अदृश्य किस्म का होता है, और अलग अलग कारणों से निरंतर बदलता भी रहता है ।
अनिल अग्रवाल की उम्मीदवारी के चलते राधेश्याम बंसल के लिए समस्या लेकिन यह पैदा हो गई है कि रीजनल काउंसिल के दूसरे उम्मीदवारों के साथ उनके अनौपचारिक व अदृश्य से संबंध बनने की संभावना ही खत्म हो गई है । रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों को लगता है कि राधेश्याम बंसल जैसा जो फायदा पहुँचाने की स्थिति में होंगे भी, तो उक्त फायदा वह अनिल अग्रवाल को पहुँचवायेंगे; इसके अलावा रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों को यह डर भी है कि उनसे मिले फीडबैक को वह अनिल अग्रवाल के पक्ष में भी इस्तेमाल कर सकते हैं । रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों को सेंट्रल काउंसिल के दूसरे उम्मीदवारों से यह खतरा नहीं है; किंतु अनिल अग्रवाल के साढ़ू भाई राधेश्याम बंसल से यह खतरा अवश्य है । इस सब के चलते सेंट्रल काउंसिल के उम्मीदवार के रूप में राधेश्याम बंसल के लिए रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों के साथ अनौपचारिक व अदृश्य सा संबंध बनाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव ही हो गया है - और इस कारण से उन्हें न जमीनी स्तर पर होने वाली हलचलों की जानकारी मिल पा रही है, और न वह रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों के जरिये से लोगों के बीच बनने वाली हवा बनाने का ही काम कर पा रहे हैं । राधेश्याम बंसल पर दोहरी मार यह है कि अनिल अग्रवाल से उनका रिश्ता चूँकि जगजाहिर है, इसलिए रीजनल काउंसिल उम्मीदवार के रूप में अनिल अग्रवाल भी उनके किसी काम के नहीं हैं । दरअसल राधेश्याम बंसल से रिश्तेदारी के चलते सेंट्रल काउंसिल के दूसरे उम्मीदवार अनिल अग्रवाल को ज्यादा तवज्जो ही नहीं देते और इस कारण से अनिल अग्रवाल को किसी तरह का कोई फीडबैक ही नहीं मिल पाता ।
अनिल अग्रवाल की उम्मीदवारी और रिश्तेदारी के मिश्रण के कारण दोहरी मार झेल रहे राधेश्याम बंसल काफी नुकसान उठा चुकने के बाद अब जब सचेत हुए हैं, तब तक लेकिन काफी देर हो चुकी है । राधेश्याम बंसल अब जब लोगों को यह विश्वास दिलाने का प्रयास कर रहे हैं कि अनिल अग्रवाल उनके रिश्तेदार जरूर हैं, किंतु उनका रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अनिल अग्रवाल की उम्मीदवारी से उनका कुछ लेना-देना नहीं है - तो कोई भी उनके इस विश्वास दिलाने के प्रयास पर विश्वास करता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है । यह स्थिति भी राधेश्याम बंसल ने दरअसल खुद ही बनाई है । उल्लेखनीय है कि रीजनल काउंसिल के चेयरमैन के रूप में राधेश्याम बंसल ने अनिल अग्रवाल को खूब बढ़ावा दिया था; और कई आयोजनों में वह अनिल अग्रवाल को न सिर्फ अपने साथ लेते गए थे, बल्कि कई आयोजनों में उन्होंने अनिल अग्रवाल को प्रमुख भूमिकाएँ भी दीं/दिलवाईं थीं । राधेश्याम बंसल के चेयरमैन-काल में रीजनल काउंसिल के आयोजनों में अनिल अग्रवाल को जो तवज्जो मिली, उसे देख कर कई लोगों को लगा था कि राधेश्याम बंसल अपने पद का फायदा उठाते/दिलवाते हुए अनिल अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए ग्राउंड वर्क तैयार करवा रहे हैं । अनिल अग्रवाल उस समय मिलीजुली बात किया करते थे - किसी से तो वह कहते/बताते थे कि उन्हें इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है, कितु किसी किसी से उन्होंने यह भी कहा/बताया कि उचित समय आने पर ही वह अपनी उम्मीदवारी के बारे में फैसला और घोषणा करेंगे । उस समय तो यह बातें आई-गई सी हो गईं थीं, किंतु अब जब चुनाव लगभग सिर पर है और अनिल अग्रवाल की उम्मीदवारी घोषित हो चुकी है - तो लोग मान रहे हैं कि अपने चेयरमैन-काल में राधेश्याम बंसल ने बहुत ही सुनियोजित तरीके से अनिल अग्रवाल को प्रमोट किया था । लोगों को लगता है कि संभवतः राधेश्याम बंसल को उस समय लगा होगा कि दोनों साढ़ू भाई दोनों चुनाव लड़ेंगे और एक-दूसरे की मदद करते हुए सेंट्रल काउंसिल में वह खुद और रीजनल काउंसिल में अनिल अग्रवाल अपनी उपस्थिति को संभव बनायेंगे । लेकिन लगता है कि उनकी यह सुनियोजित योजना उन्हें उल्टी पड़ गई है, और इसीलिए अब वह अनिल अग्रवाल की उम्मीदवारी से पीछा छुड़ाने की कोशिश करने लगे हैं । उनकी यह कोशिश लेकिन अभी तो कामयाब होती हुई नहीं दिख रही है ।