Saturday, July 25, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए फरीदाबाद से प्रस्तुत विपिन शर्मा की उम्मीदवारी ने विजय गुप्ता के संग-साथ की बदनामी झेल रहे दीपक गर्ग के लिए जो मुसीबत और चुनौती खड़ी की है, उसमें तजेंद्र भारद्वाज को अपनी दाल भी पकती हुई दिख रही है

फरीदाबाद । विजय गुप्ता के साथ गठजोड़ के बाबत दीपक गर्ग की कन्फ्यूज्ड स्थिति को रीजनल काउंसिल चुनाव के संदर्भ में तजेंद्र भारद्वाज ने अपने लिए संभावनाओं के दरवाजों को खुलता हुआ पाया/देखा है, और स्थिति का पूरा पूरा फायदा उठाने की तैयारी दिखाई है । दरअसल दीपक गर्ग के लिए यह तय कर पाना खासा मुश्किल हो रहा है कि विजय गुप्ता के साथ अपने गठजोड़ को वह बनाये रखें या उससे पीछा छुड़ा लें । उनका यह असमंजस इस बात से जाहिर है कि कभी तो वह विजय गुप्ता के साथ अपनी दूरी दिखाने/जताने लगते हैं, और शिकायत करते हैं कि लोग फिजूल में ही उनका नाम विजय गुप्ता के साथ जोड़े रखते हैं; किंतु फिर कुछ ही दिन बाद वह विजय गुप्ता के साथ सक्रिय नजर आने लगते हैं । पिछले कई महीनों से चल रहा दीपक गर्ग का 'कभी दूर कभी पास' का यह खेल लोग खासी दिलचस्पी के साथ देख रहे हैं; और इसे देखते हुए दीपक गर्ग की कन्फ्यूज्ड मनःस्थिति को पहचान व समझ रहे हैं । दीपक गर्ग के नजदीकियों का कहना है कि असल में होता यह है कि जब विजय गुप्ता की बदनामियों के कारण दीपक गर्ग को नुकसान होता हुआ नजर आता है, तब वह उनसे दूरी बनाने/दिखाने लगते हैं; लेकिन जब उन्हें विजय गुप्ता से फायदा उठाना होता है, तब वह उनके पास मंडराने लगते हैं । रीजनल काउंसिल में चेयरमैन बनने की कोशिश में पिछले दो अवसरों पर दीपक गर्ग ने यही नाटक किया था । पहली बार विजय गुप्ता की मदद से चेयरमैन बनने का प्रयास करते हुए उन्होंने रीजनल काउंसिल में अपने 'साथियों' से धोखाधड़ी करने में भी परहेज नहीं किया; किंतु अपने प्रयास में असफल होने पर जब उन्हें पता चला कि उनकी असफलता में विजय गुप्ता की बदनामी का बड़ा रोल है, तो उन्होंने विजय गुप्ता से दूर होने का ऐलान कर डाला । दूसरी बार, यानि इस वर्ष के लिए चेयरमैन बनने खातिर वह लेकिन फिर से विजय गुप्ता की छाया में खड़े दिखे । रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनने के प्रयास में दीपक गर्ग दोबारा असफल हुए, तो वह फिर से विजय गुप्ता को कोसते नजर आए । 
दीपक गर्ग के सामने अब जब रीजनल काउंसिल के लिए दोबारा चुने जाने की चुनौती है, तो विजय गुप्ता के साथ 'कभी दूर कभी पास' का उनका यह खेल और ज्यादा तेज हो गया है । लोगों के बीच जब वह विजय गुप्ता के प्रति विरोध के स्वर सुनते हैं तो वह विजय गुप्ता से दूर रहने की कसमें खाने लगते हैं; किंतु इसके साथ साथ वह विजय गुप्ता के आयोजनों में दिलचस्पीपूर्ण सक्रियता निभाते भी दिखाई पड़ते हैं - इस सक्रियता के जरिए चूँकि उन्हें लोगों तक पहुँचने का अवसर मिलता दिखता है, इसलिए इसका फायदा उठाने के लालच में वह यह भूल ही जाते हैं कि लोगों के बीच उन्होंने विजय गुप्ता से दूर रहने की बातें कहीं हैं । जम्मू में पिछले दिनों लोगों ने उनसे जब सवाल पूछे कि उन्होंने और विजय गुप्ता ने प्रोफेशन व प्रोफेशन से जुड़े लोगों के लिए क्या किया है, तो दीपक गर्ग ने पहले तो यह कह कर पीछा छुड़ाने की कोशिश की कि वह इस वर्ष निकासा चेयरमैन हैं, इसलिए उससे संबंधित सवाल ही पूछे जाएँ; इस पर उन्हें सुनने को मिला कि निकासा चेयरमैन तो वह पाँच महीने से हैं, सवाल तो उनसे 29 महीने के कामकाज के बारे में पूछे जा रहे हैं । इसके बाद उन्होंने विजय गुप्ता से पूछे जाने वाले सवाल उनसे पूछे जाने का विरोध किया - उनका तर्क रहा कि विजय गुप्ता ने प्रोफेशन के लिए क्या किया है, यह विजय गुप्ता से पूछिए । इस पर जब उन्हें यह सुनने को मिला कि चूँकि आप हर काम में विजय गुप्ता के साथ नजर आते हैं, तो उनके बारे में पूछे गए सवालों का जबाव भी आपको देना चाहिए - तब दीपक गर्ग ने ट्रेक बदला और दावा करने लगे कि कुछेक लोग झूठे ही विजय गुप्ता के साथ उनका नाम जोड़ते रहते हैं और कि उनका विजय गुप्ता के साथ कोई गठजोड़ नहीं है । जम्मू से लौटते ही किंतु वह विजय गुप्ता के आयोजनों में सक्रिय सहभागिता दिखाने में जुट गए । 
दीपक गर्ग का यह कन्फ्यूजन दरअसल इसलिए है क्योंकि रीजनल काउंसिल चुनाव के संदर्भ में एक तरफ तो वह विजय गुप्ता की बदनामी के छीटों से बचना चाहते हैं, और दूसरी तरफ वह विजय गुप्ता के 'इंतजामों' का फायदा भी उठाना चाहते हैं । दीपक गर्ग के नजदीकियों को हैरानी इस बात की है कि पिछली बार विजय गुप्ता के 'इंतजामों' पर निर्भर हुए बिना रीजनल काउंसिल का चुनाव जीत लेने वाले दीपक गर्ग इस बार विजय गुप्ता के इंतजामों पर इतने मजबूर क्यों हो गए हैं कि रोज रंग बदलते नजर आते हैं ? रीजनल काउंसिल के उम्मीदवार के रूप में दीपक गर्ग की पिछली बार की तथा इस बार की स्थिति की तुलना करने वाले लोगों का कहना है कि पिछली बार दीपक गर्ग ने अपने व्यवहार और अपनी बातों से लोगों के बीच विश्वास बनाया था और उम्मीद पैदा की थी, लेकिन पिछले करीब ढाई वर्षों में उन्होंने उस विश्वास को तो खत्म कर ही दिया है - अपने प्रति लोगों के बीच कोई उम्मीद भी बचा कर नहीं रखी है । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010-12 वाले कार्यकाल में फरीदाबाद ब्रांच में उन्हें एक्सऑफिसो सदस्य के रूप में प्रमोद माहेश्वरी ने बहुत परेशान किया था, जिस कारण से 2012 के रीजनल काउंसिल के चुनाव में उन्हें लोगों की अच्छी सहानुभूति मिली थी - और प्रथम वरीयता के वोटों में उनकी स्थिति प्रमोद माहेश्वरी से बहुत अच्छी और ऊपर थी । रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में लेकिन दीपक गर्ग का जो रवैया रहा, उसके कारण लोगों ने यही महसूस किया है कि दीपक गर्ग के साथ सहानुभूति दिखा कर उन्होंने बड़ी गलती की थी । दीपक गर्ग के रवैये से फरीदाबाद के लोगों ने अपने आप को ठगा हुआ महसूस किया है । विजय गुप्ता के साथ उन्होंने जिस तरह का गठजोड़ बनाया, उसने उनका और बंटाधार किया है । 
रही सही कसर विपिन शर्मा की उम्मीदवारी ने पूरी कर दी है । फरीदाबाद ब्रांच में विपिन शर्मा की जिस तरह की परफॉर्मेंस रही है, उससे उन्होंने युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच अपनी प्रभावी पहचान बनाई है और साथ में वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच भी अपने लिए विश्वास व उम्मीद पैदा की है । इससे उनकी लोकप्रियता में और इजाफा हुआ । ब्रांच के एक उत्साही व सक्रिय सदस्य के रूप में विपिन शर्मा की लोगों के बीच साख इसलिए भी बढ़ी, क्योंकि ब्रांच के चुनाव में उन्हें सबसे ज्यादा वोट मिले थे । इस बढ़ी साख के भरोसे ही दूसरे/तीसरे वर्ष में उन्हें ब्रांच के चेयरमैन पद के प्रबल दावेदार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था - किंतु विजय गुप्ता और दीपक गर्ग ने षड्यंत्र करके लोगों की भावनाओं को कामयाब नहीं होने दिया । दीपक गर्ग को खतरा था कि चेयरमैन बनने के बाद विपिन शर्मा फिर रीजनल काउंसिल का चुनाव लड़ेंगे और उनके लिए मुसीबत खड़ी करेंगे; इसलिए उन्होंने फार्मूला अपनाया कि वह विपिन शर्मा को चेयरमैन ही नहीं बनने देंगे - जिससे कि न रहेगा बाँस और न बजेगी बाँसुरी । दीपक गर्ग ने अपने इस फार्मूले को कामयाब बनाने के लिए विजय गुप्ता का सहयोग लिया । फरीदाबाद ब्रांच में राजनीति करते हुए विजय गुप्ता और दीपक गर्ग ने जिस तरह की हरकतें की हैं उससे लोगों के बीच इनके प्रति नाराजगी तथा विपिन शर्मा के प्रति हमदर्दी का भाव बना है । पिछली बार और इस बार की स्थिति की तुलना करते हुए लोगों का मानना और कहना है कि पिछली बार जो स्थिति दीपक गर्ग की थी इस बार वह स्थिति तो विपिन शर्मा की है; और पिछली बार जो दशा प्रमोद माहेश्वरी की थी, इस बार वह दशा दीपक गर्ग की है ।  
दीपक गर्ग के लिए विपिन शर्मा ने जो खतरा खड़ा किया है, उसमें तजेंद्र भारद्वाज को अपनी दाल पकती हुई दिख रही है । दरअसल कई लोगों का मानना और कहना है कि पिछली बार दीपक गर्ग ने प्रमोद माहेश्वरी को जो टक्कर दी थी, उसमें प्रमोद माहेश्वरी ने तो जैसे-तैसे करके अपनी सीट बचा ली थी - इस बार लेकिन विपिन शर्मा से दीपक गर्ग को जो टक्कर मिलती दिख रही है, उसमें दीपक गर्ग के लिए अपनी सीट बचा पाना मुश्किल लग रहा है । तजेंद्र भारद्वाज इसी स्थिति का लाभ उठाना चाहते हैं । मजे की बात है कि दीपक गर्ग और तजेंद्र भारद्वाज, दोनों ही विजय गुप्ता के साथी/सहयोगी रहे हैं - लेकिन विजय गुप्ता के संगसाथ की बदनामी दीपक गर्ग को ज्यादा मिली; और इस बदनामी के कारण ही दीपक गर्ग अक्सर ही विजय गुप्ता से दूर दिखने का प्रयास करते हैं । उनके इस प्रयास से विजय गुप्ता के कई समर्थक दीपक गर्ग से भड़के और चिढ़े हुए हैं । इस बिना पर तजेंद्र भारद्वाज को लगता है कि विजय गुप्ता के समर्थक लोगों के बीच उन्हें ज्यादा समर्थन मिल जायेगा । तजेंद्र भारद्वाज के इस बीच संजय वासुदेवा से भी तार जोड़ने की खबरें हैं, जिससे तजेंद्र भारद्वाज को अपने समर्थन-आधार को बढ़ाए जाने का भरोसा है । तजेंद्र भारद्वाज ने जो जाल फैलाया है, उसमें उनके द्वारा दीपक गर्ग का शिकार करने की तैयारी देखी जा रही है । तजेंद्र भारद्वाज की यह तैयारी यदि सचमुच कामयाब रही, तो दीपक गर्ग के लिए वास्तव में भारी मुसीबत हो जाएगी । दीपक गर्ग के समर्थक व शुभचिंतक समझे जाने वाले लोगों का कहना है कि दीपक गर्ग ने विजय गुप्ता के साथ अपने गठजोड़ को लेकर एक स्पष्ट व पारदर्शी रवैया यदि नहीं दिखाया, तो दीपक गर्ग के लिए भारी मुसीबत हो जानी है ।