Tuesday, July 14, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी का समर्थन करके अक्षय गुप्ता ने कानपुर की इंस्टीट्यूट की राजनीति का गॉडफादर बनने का जो दाँव चला है, वह लेकिन मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए मुसीबत बन गया है

कानपुर । मनु अग्रवाल की सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत उम्मीदवारी की कमान अक्षय गुप्ता द्वारा सँभाल लेने के चलते कानपुर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति का परिदृश्य खासा दिलचस्प हो गया है । कुछेक लोगों को लगता है कि अक्षय गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी की कमान सौंप कर मनु अग्रवाल ने बड़ी होशियारी का काम किया है और अपनी जीत को सुनिश्चित कर लिया है; लेकिन अन्य कई लोगों को लगता है कि ऐसा करके मनु अग्रवाल ने अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली है और अपनी चुनावी जीत की संभावना को खतरे में डाल लिया है । मजे की बात यह है कि मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी की कमान अक्षय गुप्ता के हाथ में आने को मनु अग्रवाल के लिए वरदान और अभिशाप मानने वाले परस्पर विरोधी लोग इस बात पर लेकिन एकमत हैं कि अक्षय गुप्ता ने मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी की कमान मनु अग्रवाल के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए सँभाली है । ऐसा मानने वाले लोगों का कहना है कि मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी की आड़ में दरअसल अक्षय गुप्ता कानपुर की इंस्टीट्यूट की राजनीति में गॉडफादर का पद पाने की 'लड़ाई' लड़ रहे हैं । उल्लेखनीय है कि यह पद अभी तक नृपेन्द्र गुप्ता के पास रहा है । नृपेन्द्र गुप्ता लेकिन चूँकि अब बहुत सक्रिय नहीं रह गए हैं और कानपुर में अधिकतर लोग अब उनके प्रति अपनी नापसंदगी खुल कर जाहिर भी करने लगे हैं, इसलिए अक्षय गुप्ता को लगता है कि उनके लिए यह सही मौका है कि वह कानपुर की इंस्टीट्यूट की राजनीति के गॉडफादर का पद नृपेन्द्र गुप्ता से ले लें । कानपुर में इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए चूँकि एक अकेले मनु अग्रवाल की ही उम्मीदवारी सामने हैं, जिस कारण से उनकी जीत की अच्छी संभावना दिख रही है - इसलिए भी अक्षय गुप्ता को उनकी उम्मीदवारी की कमान सँभाल लेने में फायदा दिखा । मनु अग्रवाल की चुनावी जीत के जरिए वह लोगों को बता/दिखा सकेंगे कि उन्होंने मनु अग्रवाल को चुनाव जितवा दिया - और इस तरह उनका कानपुर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति का गॉडफादर बनना पक्का हो जायेगा । 
अक्षय गुप्ता के मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी की कमान सँभाल लेने को जो लोग मनु अग्रवाल के लिए वरदान मान रहे हैं उनका कहना है कि मनु अग्रवाल के जीतने की उम्मीद तो पिछली बार भी थी, लेकिन पिछली बार जीतती हुई बाजी उनके हाथ से इसलिए फिसल गई थी क्योंकि उन्हें चुनावी राजनीति के फंडे क्लियर नहीं थे; अबकी बार चुनावी राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी अक्षय गुप्ता का सहयोग/समर्थन उन्हें मिल रहा है, तो विश्वास किया जाना चाहिए कि पिछली बार जैसी गलतियाँ नहीं होंगी और मनु अग्रवाल की जीत सचमुच संभव हो सकेगी । लेकिन जो लोग अक्षय गुप्ता के सहयोग/समर्थन को मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए अभिशाप मान रहे हैं - उनका कहना है कि अपनी उम्मीदवारी की कमान अक्षय गुप्ता को सौंप कर मनु अग्रवाल ने अपने लिए नए विरोधी पैदा कर लिए हैं, जिन्हें अभी पहचानना भी मुश्किल है और ऐसे में जिनसे निपटना और भी मुश्किल होगा । इनका तर्क है कि मनु अग्रवाल के कई समर्थक और संभावित वोटर ऐसे हैं जो अक्षय गुप्ता के विरोधी रहे हैं - सबसे पहले तो ऐसे लोग मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी की कमान अक्षय गुप्ता के हाथ में देख कर मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी के विरोधी होंगे; दूसरी बात यह कि बहुत से लोग अक्षय गुप्ता के बहुत विरोधी तो नहीं होंगे, किंतु वह यह भी नहीं चाहेंगे कि अक्षय गुप्ता कानपुर में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के गॉडफादर का पद सँभाले । ऐसे लोगों के लिए मनु अग्रवाल को चुनाव हरवाना इसलिए जरूरी लगेगा जिससे कि वह गॉडफादर बनने की अक्षय गुप्ता की कोशिशों में मट्ठा डाल सकें । अक्षय गुप्ता के खिलाफ होने वाली राजनीति मनु अग्रवाल को सीधी चोट पहुँचाएगी और उनकी जीत की संभावना को कमजोर करेगी । 
मनु अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि अक्षय गुप्ता के कमान सँभालने से पैदा हुए खतरे को मनु अग्रवाल पहचान/समझ तो रहे हैं, लेकिन उनकी उम्मीदवारी की कमान लेकर अक्षय गुप्ता इतना आगे बढ़ गए हैं कि मनु अग्रवाल के लिए अब उन्हें रोक पाना या पीछे करना मुश्किल लग रहा है । मनु अग्रवाल के नजदीकियों ने ही बताया कि अक्षय गुप्ता के कमान सँभाल लेने से एक समस्या और पैदा हो गई है; और वह यह कि मनु अग्रवाल की जो अपनी कोर टीम थी उसके अधिकतर सदस्य तो उनकी उम्मीदवारी के लिए काम करने से पीछे हट गए हैं, लेकिन अक्षय गुप्ता के जो नजदीकी रहे हैं वह अभी तक भी मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी के काम में नहीं जुड़ पाए हैं - यानि मनु अग्रवाल दोहरे नुकसान में हैं । इसके कारण समस्या यह पैदा हुई है कि अक्षय गुप्ता का सहयोग/समर्थन मिलने का मनु अग्रवाल को वास्तविक फायदा होता हुआ अभी नहीं नजर आ रहा है । अक्षय गुप्ता का सक्रिय सहयोग/समर्थन मिलने से मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी का 'वज़न' तो निश्चित रूप से बढ़ा है, किंतु इस वज़न को सँभालने के लिए जिस तरह का नेटवर्क चाहिए, वह नहीं बन सका है - मनु अग्रवाल का अपना जो नेटवर्क था वह छिन्न-भिन्न और हो गया है । इसलिए अक्षय गुप्ता के सहयोग/समर्थन के कारण मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी का जो 'वज़न' बढ़ा, उसमें मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी के ही दबने का खतरा पैदा हो गया है ।
मनु अग्रवाल ने अपने व्यवहार और अपने तौर-तरीकों को लेकर इस बार जो सुधार किया व 'दिखाया' है, अक्षय गुप्ता के सहयोग/समर्थन के कारण लेकिन उसका कोई लाभ उठाना उनके लिए अभी तक तो मुश्किल बना हुआ है । उल्लेखनीय है कि पिछली बार अपनी चुनावी जीत को लेकर मनु अग्रवाल इतने (अति)विश्वास में थे कि उन्होंने विरोधियों को तो छोड़िये, अपने समर्थकों के सुझावों तक की परवाह नहीं की थी । इस बार लोगों ने किंतु उनका बदला हुआ रूप पाया है । मनु अग्रवाल ने अपने विरोधियों को भी मनाने का प्रयास किया है, तथा साथ ही ऐसे लोगों को भी अपनी उम्मीदवारी के अभियान में जोड़ने का प्रयास किया है - जो चुनावी राजनीति में तटस्थ माने/पहचाने जाते हैं तथा इस नाते से लोगों के बीच उनकी विश्वसनीय पहचान है । मनु अग्रवाल के प्रयास किंतु अक्षय गुप्ता के कारण सिरे नहीं चढ़ पा रहे हैं - क्योंकि ऐसे लोगों से मनु अग्रवाल को प्रायः यही सुनने को मिल रहा है कि 'अरे, आप को मेरी मदद की क्या जरूरत है; अक्षय आपके साथ हैं, तब फिर आपको जीतने से कौन रोक सकेगा ?' मनु अग्रवाल भी समझते हैं कि इस बात के पीछे का भाव क्या है - और यही भाव मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए भारी मुसीबत बना हुआ है ।