Monday, July 20, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सुभाष जैन की उम्मीदवारी को मिल रहे व्यापक समर्थन को देख कर निराश/परेशान मुकेश अरनेजा ने गाजियाबाद/नोएडा में उम्मीदवार खोजने की जो कोशिश शुरू की है, उससे अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के अभियान का बंटाधार होता नजर आ रहा है

नई दिल्ली । मुकेश अरनेजा के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए गाजियाबाद/नोएडा में उम्मीदवार खोजने की खबरों ने अशोक गर्ग की उम्मीदवारी को तगड़ा झटका दिया है । झटका इसलिए क्योंकि अभी तक अशोक गर्ग को मुकेश अरनेजा के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है; लेकिन मुकेश अरनेजा अब यदि कोई और उम्मीदवार खोज रहे हैं - तो इसका मतलब है कि अशोक गर्ग में उन्होंने अपना विश्वास खो दिया है । अशोक गर्ग की उम्मीदवारी को मुकेश अरनेजा का बड़ा सहारा था - लेकिन अब इस सहारे के छिन जाने से अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के लिए बड़ा संकट खड़ा हो गया है । मुकेश अरनेजा के नजदीकियों का कहना है कि मुकेश अरनेजा ने पाया/समझा है कि सुभाष जैन की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट में जिस तरह का समर्थन मिलता दिख रहा है, उसका मुकाबला करना अशोक गर्ग के बस की बात नहीं है; सुभाष जैन की उम्मीदवारी ने जिस तरह से उत्तर प्रदेश में अपने लिए समर्थन जुटाया है और इस समर्थन के भरोसे सुभाष जैन की उम्मीदवारी ने अशोक गर्ग की उम्मीदवारी पर बढ़त बना ली है - उससे मुकेश अरनेजा को यह भी लगा है कि सुभाष जैन की उम्मीदवारी का मुकाबला गाजियाबाद/नोएडा का कोई उम्मीदवार ही कर सकता है । इसीलिए वह गाजियाबाद/नोएडा में एक उपर्युक्त और समर्थ उम्मीदवार की तलाश में जुट गए हैं । मुकेश अरनेजा की तलाश का क्या नतीजा निकलता है और उनकी तलाश कहाँ/किस पर खत्म होती है, यह तो आगे पता चलेगा - उनकी इस तलाश ने लेकिन अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के लिए बड़ा संकट तो खड़ा कर ही दिया है । 
मुकेश अरनेजा की यह तलाश लेकिन कुछेक लोगों को मुकेश अरनेजा की चाल नजर आ रही है । उन्हें लग रहा है कि सुभाष जैन को खासतौर पर गाजियाबाद और आमतौर पर उत्तर प्रदेश में जो समर्थन मिल रहा है, उसे कमजोर करने के लिए उन्हें गाजियाबाद/नोएडा में एक उम्मीदवार 'पैदा' करना होगा - और इस फार्मूले से वह अशोक गर्ग की राह को आसान बना सकेंगे । मुकेश अरनेजा की इस 'चाल' को पहचानने का दावा करने वाले लोगों का कहना है कि तीन वर्ष पहले जेके गौड़ का रास्ता रोकने के लिए मुकेश अरनेजा ने रमेश अग्रवाल के साथ मिल कर जिस तरह से आलोक गुप्ता का इस्तेमाल किया था, उसी तरह से अब वह सुभाष जैन का रास्ता रोकने के लिए गाजियाबाद/नोएडा में किसी को खोज रहे हैं । रंग बदलने की कला में गिरगिट को पीछे छोड़ते हुए मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल बाद में जेके गौड़ की जीत का श्रेय लेने में भले ही कामयाब हो गए हों, लेकिन जेके गौड़ की उम्मीदवारी के साथ शुरू से जुड़े रहे लोगों को तो सच्चाई का पता है ही, दूसरे लोगों को भी जानकारी है कि इन दोनों ने कैसे कैसे जेके गौड़ को छकाया था । आलोक गुप्ता ने रमेश अग्रवाल से मिले धोखे के कारण आज तक उन्हें माफ नहीं किया है । मुकेश अरनेजा ने आलोक गुप्ता के साथ हुई धोखाधड़ी का सारा दोष रमेश अग्रवाल पर मढ़ कर आलोक गुप्ता से हालाँकि पुनः संबंध जोड़ लिए है - मुकेश अरनेजा में आलोक गुप्ता का भरोसा भी पुनः लौट आया है, यह यद्यपि अभी 'देखना' बाकी है । इस किस्से को जिन लोगों ने नजदीक से देखा है, वह उस अनुभव को याद करते बहुत ही विश्वास के साथ कहते हैं कि मुकेश अरनेजा गाजियाबाद/नोएडा में कोई उम्मीदवार नहीं, बल्कि 'बलि का बकरा' खोज रहे हैं - जिसका सहारा लेकर वह सुभाष जैन का शिकार कर सकें, और उन्हें कमजोर कर सकें । 
अब सच चाहें जो हो - मुकेश अरनेजा चाहें अशोक गर्ग की उम्मीदवारी की परफॉर्मेंस से निराश होकर वास्तव में एक ऐसा उम्मीदवार खोज रहे हों, जो सुभाष जैन को टक्कर दे सके; और या रणनीतिक चाल के रूप में 'बलि का बकरा' तलाश कर रहे हों - मुकेश अरनेजा की इस कार्रवाई से अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के लिए तो संकट खड़ा हो ही गया है । वह तो एक तर्क दिया जाता है न कि चाहे चाकू खरबूजे पर गिरे चाहे खरबूजा चाकू पर गिरे, कटना खरबूजे को ही है - उसी तर्ज पर मुकेश अरनेजा के किसी भी 'कारण' से किसी दूसरे उम्मीदवार की तलाश में जुटने का सीधा नुकसान अशोक गर्ग को ही होना है । यही हुआ भी है । अशोक गर्ग ने पिछले दिनों अपनी उम्मीदवारी के अभियान को जिस तरह से संयोजित किया था, उससे चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले कई खिलाड़ी रोटेरियंस प्रभावित हुए थे और वह यह मानने/कहने लगे थे कि सुभाष जैन की उम्मीदवारी का अभियान भले ही काफी बढ़त बनाए हुए दिख रहा हो, किंतु अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के अभियान से उसे कड़ी टक्कर मिलेगी । इस तरह की बातों से अशोक गर्ग की उम्मीदवारी का मोमेंटम बढ़ रहा था - जिसे लेकिन मुकेश अरनेजा की नई हरकत ने धूल में मिला दिया है । पिछले दिनों मुकेश अरनेजा का नाम लेकर कुछेक नए उम्मीदवारों के नाम जिस तरह से चर्चा में आए, उससे एक उम्मीदवार के रूप में अभी तक हासिल की गई अशोक गर्ग की उपलब्धियों पर पानी फिर गया है । मुकेश अरनेजा की यह कार्रवाई यदि सचमुच अशोक गर्ग की स्थिति से निराश होने के कारण प्रेरित है, तब तो यह अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के लिए बड़ा झटका है ही; यह कार्रवाई मुकेश अरनेजा की यदि एक चाल है तो भी मुकेश अरनेजा की इस चाल ने अशोक गर्ग की उम्मीदवारी का कबाड़ा करने का ही काम किया है । 
उल्लेखनीय है कि मुकेश अरनेजा को एक बड़े चालबाज नेता/व्यक्ति के रूप में देखा/पहचाना जाता है - कुछेक लोग उनकी चालबाजियों के बड़े मुरीद भी हैं; किंतु यह तथ्य बहुत निराश करने वाला है कि अपनी तमाम चालबाजियों के बावजूद उन्हें अभी तक हासिल कुछ नहीं हुआ है - अपनी चालबाजियों के बावजूद वह अपने क्लब से, अपने परिवार से और अपने बिजनेस से खदेड़े ही गए हैं । क्लब में, परिवार में, बिजनेस पार्टनर्स में मनमुटाव होते ही हैं; मनमुटाव के कारण बँटवारे भी होते हैं - यह बड़ी स्वाभाविक सी स्थितियाँ हैं । मुकेश अरनेजा के अपने क्लब में, परिवार में और बिजनेस में झमेले रहे तो यह कोई बहुत बुरी बात नहीं है - यह स्वाभाविक सी बात है; पर जो बात स्वाभाविक नहीं है और बहुत बुरी है वह यह कि मुकेश अरनेजा हर जगह से खदेड़े गए हैं, भगाए गए हैं, निकाले गए हैं; और कहीं भी उनकी चालबाजी काम नहीं आई । इसी आधार पर माना जा रहा है कि मुकेश अरनेजा यदि सचमुच अशोक गर्ग की परफॉर्मेंस से निराश होकर किसी और उम्मीदवार की तलाश में जुटे हैं - तो सवाल यह है कि मुकेश अरनेजा जब अशोक गर्ग की उम्मीदवारी में दम नहीं भर सके तो किसी और उम्मीदवार को ही भला कैसे 'खड़ा' कर सकेंगे ? और यदि यह उनकी चाल है तो जैसे अभी तक मुकेश अरनेजा की हर चाल खुद उन्हें ही उल्टी पड़ी है, तो इस चाल के सीधी पड़ने की ही क्या गारंटी है - मुकेश अरनेजा अपनी चालबाजियों से जब अपने आप को न अपने क्लब में, न अपने परिवार में और न बिजनेस में बचा सके, तो दूसरे किसी को वह भला कैसे बचायेंगे ? जाहिर तौर पर मुकेश अरनेजा के गाजियाबाद/नोएडा में उम्मीदवार खोजने की खबरों ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में सुगबुगाहट तो पैदा की है, लेकिन अशोक गर्ग की उम्मीदवारी के अभियान का बंटाधार कर दिया है ।