Friday, July 3, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया में विजय गुप्ता और अतुल गुप्ता के खिलाफ हो रही शिकायतों पर प्रेसीडेंट मनोज फडनिस जिस तरह से चुप की कुंडली मारे बैठे हैं, उससे लोगों को शक हो रहा है कि वह इनके हाथों कहीं किसी बात पर ब्लैकमेल तो नहीं हो रहे हैं ?

नई दिल्ली । विजय गुप्ता और अतुल गुप्ता ने अपने अपने चुनाव अभियान में इंस्टीट्यूट के पैसों की बर्बादी भरा जैसा जो मनमाना इस्तेमाल जारी रखा हुआ है, उसे लेकर चार्टर्ड एकाउंटेंट इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट मनोज फडनिस खासी मुसीबत में फँस गए हैं । दरअसल इन दोनों की कारस्तानियों को लेकर इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट की कुर्सी पर बैठे मनोज फडनिस को तमाम शिकायतें मिलीं हैं - मनोज फडनिस लेकिन उन तमाम शिकायतों पर कुंडली मार कर चुपचाप बैठे हुए हैं । मनोज फडनिस न तो यह कह रहे हैं कि विजय गुप्ता और अतुल गुप्ता जो कर रहे हैं वह बिलकुल ठीक है और उनके किए-धरे को लेकर की जा रही शिकायतें फिजूल हैं; और न ही वह शिकायतों पर किसी भी तरह की कोई कार्रवाई करते हुए ही नजर आ रहे हैं । मनोज फडनिस की इस चुप्पी ने प्रोफेशन के लोगों को हैरान किया हुआ है, और उनके बीच अब यह सवाल उठने लगे हैं कि प्रोफेशन के लोगों के बीच गंभीर चर्चा का विषय बन चुके इस मुद्दे पर पूरी तरह खामोशी बरतने के पीछे मनोज फडनिस की मजबूरी आखिर क्या है ? इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट होने के नाते मनोज फडनिस से उम्मीद की जाती है कि वह इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के साथ होने वाली किसी भी तरह की 'बेईमानी' के खिलाफ कार्रवाई करेंगे; और ऐसा कुछ नहीं होने देंगे, जिससे प्रोफेशन व इंस्टीट्यूट की प्रतिष्ठा पर दाग लगता हो और उसके 'खजाने पर डाका' पड़ता हो । प्रोफेशन व इंस्टीट्यूट की प्रतिष्ठा व खजाने के 'लुटने' संबंधी शिकायतों पर मनोज फडनिस की चुप्पी को प्रोफेशन व इंस्टीट्यूट के साथ उनकी बेवफाई के रूप में देखा जा रहा है, और एक बहुत मशहूर शेर को बार बार दोहराया जा रहा है : 'कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी, यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता ।'
विजय गुप्ता और अतुल गुप्ता पर आरोप है कि अपनी अपनी कमेटियों के लिए उन्हें जो रकम अलॉट हुई है, उसे वह सेंट्रल काउंसिल का चुनाव फिर से जीतने के उद्देश्य से चलाये जा रहे अपने चुनाव अभियान की रणनीति के हिसाब से खर्च कर रहे हैं - और बहुत मनमाने तरीके से खर्च कर रहे हैं । कार्यक्रमों के नाम पर यह कार्यक्रम में आने वाले लोगों को फाइव स्टार मौज-मजा करवा रहे हैं । इन्हें विश्वास है कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को फाइव स्टार मौज-मजा करवा कर यह अपने लिए वोट जुटा लेंगे । आरोप सिर्फ इंस्टीट्यूट के पैसों पर फाइव स्टार आयोजन करने और पैसों को अनाप-शनाप तरीके से खर्च करने का ही नहीं है; बल्कि उससे भी ज्यादा बड़ा और गंभीर आरोप यह है कि अपनी अपनी कमेटियों के कार्यक्रम वह उन जगहों पर ज्यादा कर रहे हैं, जहाँ उन्हें अपने लिए वोट मिलने की उम्मीद है । उनकी कमेटियों के कार्यक्रम पाँचों रीजन में होने चाहिए, किंतु वह अपनी अपनी कमेटियों के अधिकतर कार्यक्रम अपने रीजन में ही कर रहे हैं; और यहाँ भी अपने कार्यक्रमों में रीजनल काउंसिल के तथा ब्रांचेज के पदाधिकारियों को शामिल नहीं कर रहे हैं । विजय गुप्ता ने पिछले दिनों नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के नाम पर कार्यक्रम किए, किंतु रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों को उन कार्यक्रमों की जानकारी उनके होने के बाद मिली ।सवाल यही उठाया जा रहा है कि इंस्टीट्यूट की कमेटियों के पदाधिकारियों को यदि अपने ही तरीके से कार्यक्रम करने हैं, और उनमें रीजनल काउंसिल व ब्राँच के पदाधिकारियों को शामिल ही नहीं करना है - तो फिर रीजनल काउंसिल तथा ब्रांचेज हैं ही क्यों ? उन्हें बंद करो, और सारा काम इंस्टीट्यूट की कमेटियों के पदाधिकारियों को ही करने दो ।
विजय गुप्ता और अतुल गुप्ता की कारस्तानियों की जो शिकायतें हुई हैं, उनमें किसी ने तो इन्हें कमेटियों के चेयरमैन पद से हटाने की माँग की है; तो किन्हीं किन्हीं ने मनोज फडनिस से माँग की है कि वह कमेटियों के कार्यक्रमों के आयोजित होने की जो प्रक्रिया है, उसका पालन सुनिश्चित कराएँ । मनोज फडनिस को एक व्यावहारिक सुझाव यह दिया गया है कि प्रेसीडेंट के नाते वह यह सुनिश्चित करें कि सेंट्रल कमेटी जो भी कार्यक्रम करें, उसे संबंधित रीजनल काउंसिल व संबंधित ब्रांच के पदाधिकारियों के साथ विचार-विमर्श करके करें, और तीनों 'पार्टियों' की सहमति से करें - ताकि कमेटी के चेयरमैन को अपनी मनमानी करने का मौका न मिले । विजय गुप्ता और अतुल गुप्ता की कारस्तानियों को लेकर लोगों को जो शिकायतें हैं, उनमें इंस्टीट्यूट के पैसों की बर्बादी वाला जो पक्ष है, उसमें तो कार्रवाई होने की किसी को भी उम्मीद नहीं है - क्योंकि कॉन्फ्रेंस, सेमिनार, मीटिंग्स, टूर आदि के आयोजन करने तथा इनमें शामिल होने के लिए बसूले जाने वाले टीए-डीए के रूप में मोटी मोटी रकमें हड़पने के मामले में सेंट्रल काउंसिल के अधिकतर सदस्य 'रंगे-हाथ' पकड़े गए हैं; और इसलिए ऐसे मामलों में तो सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच 'मौसेरे भाईयों' वाला रिश्ता बन जाता है । खुद मनोज फडनिस ही वाइस प्रेसीडेंट के रूप में पिछले वर्ष की गई ऑस्ट्रेलिया की यात्रा के जरिए तीन लाख रुपये से ज्यादा की चपत इंस्टीट्यूट को लगा चुके है - ऐसे में खर्चों पर लगाम लगाने को लेकर उनसे भला क्या उम्मीद की जाए ? 
लोगों का कहना लेकिन यह है कि मनोज फडनिस खर्चों पर लगाम भले ही न लगाना चाहें, किंतु खर्चों को नियमानुसार खर्च करने की व्यवस्था तो करा सकते हैं - वह यह व्यवस्था तो कर/करा सकते हैं कि इंस्टीट्यूट का पैसा इक्के-दुक्के लोगों की मनमानी से खर्च न हो । मनोज फडनिस लेकिन इस बारे में भी कुछ करते हुए नहीं दिख रहे हैं । इसीलिए लोगों को लग रहा है कि मनोज फडनिस भले ही इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट हैं, लेकिन विजय गुप्ता और अतुल गुप्ता के हाथों पूरी तरह मजबूर बने हुए हैं और इसी मजबूरी में वह इनके खिलाफ मिल रही शिकायतों पर कोई कार्रवाई करते हुए नहीं दिख रहे हैं । लोगों का कहना है कि मनोज फडनिस को यदि लग रहा है कि विजय गुप्ता और अतुल गुप्ता के खिलाफ मिल रही शिकायतों में कोई दम नहीं है, और यह दोनों जो कुछ भी कर रहे हैं तथा जैसे भी कर रहे हैं ठीक कर रहे हैं - तो यहीं कहें, जिससे कि शिकायत करने वाले चुप हों । मनोज फडनिस लेकिन यह भी नहीं कर रहे हैं । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट मनोज फडनिस जिस तरह से विजय गुप्ता और अतुल गुप्ता के खिलाफ हो रही शिकायतों पर चुप की कुंडली मारे बैठे हैं, उससे लोगों को शक हो रहा है कि मनोज फडनिस इनके हाथों कहीं किसी बात पर ब्लैकमेल तो नहीं हो रहे हैं ?