नई दिल्ली | रवि भाटिया और डॉक्टर सुब्रमणियन में से किसी एक को अगले रोटरी वर्ष के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार चुनने को लेकर रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल में खासा घमासान मच गया है | खास बात यह है कि दिल्ली सेंट्रल में मचे इस घमासान में डिस्ट्रिक्ट के नेताओं ने भी अपने अपने पक्ष तय कर लिए हैं, जिस कारण दिल्ली सेंट्रल का यह घमासान डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति की दिशा और दशा को लेकर भी महत्वपूर्ण हो गया है | संजय खन्ना की चुनावी जीत से उत्साहित और संजय खन्ना की चुनावी जीत में डिस्ट्रिक्ट की बेहतरी को देख रहे लोगों की उम्मीदें अब रवि भाटिया पर आ टिकी हैं, लेकिन संजय खन्ना की जीत से बने माहौल को फिर से बदरंग करने और संजय खन्ना की जीत से पहले वाले माहौल को वापस लाने की इच्छा रखने वाले 'लोग' भी चूँकि चुप नहीं बैठे हैं, इसलिए उन्होंने रवि भाटिया की राह में रोड़ा अटकाने के लिए डॉक्टर सुब्रमणियन को मोहरा बना लिया है | गौर करने की बात यह है कि रवि भाटिया की बजाये डॉक्टर सुब्रमणियन को उम्मीदवार बनाये जाने की वकालत करने वालों के पास इसके अलावा और कोई तर्क नहीं है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को मुकेश अरनेजा और असित मित्तल ने समर्थन देने का भरोसा दे दिया है | इस तर्क के भरोसे डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी की वकालत करने वालों के पास लेकिन इस बात का कोई जबाव नहीं है कि इन दोनों नेताओं के समर्थन के बावजूद जब रवि चौधरी का कुछ नहीं हुआ, तो डॉक्टर सुब्रमणियन का ही क्या होगा ?
दिल्ली सेंट्रल के भी और डिस्ट्रिक्ट के भी कई लोगों का साफ मानना और कहना है कि किसी भी उम्मीदवार की सफलता का आधार यह नहीं होता है कि उसे 'इसका' या 'उसका' समर्थन प्राप्त है; सफलता का आधार होता है उसकी अपनी पहचान और उसकी अपनी सामर्थ्य | सभी मानते और कहते हैं कि पहचान और सामर्थ्य को लेकर रवि भाटिया का पलड़ा डॉक्टर सुब्रमणियन की तुलना में बहुत-बहुत भारी है | रवि भाटिया की डिस्ट्रिक्ट में अच्छी पहचान है, उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में कई गवर्नर्स के साथ महत्वपूर्ण भूमिकाओं में काम किया है, डिस्ट्रिक्ट में सक्रिय भूमिका निभाने वाले लोगों को वह अच्छी तरह जानते-पहचानते हैं, पीछे एक बार चुनावी प्रक्रियां का हिस्सा बन चुकने के कारण वह चुनावी राजनीति की सपरीली-पथरीली राहों को भी जानते-पहचानते हैं - और उनके बारे में सबसे बड़ी बात यह कि संजय खन्ना की चुनावी जीत में अहम् भूमिका निभाने वाले सभी बड़े-छोटे नेताओं का समर्थन उन्हें बिना किसी झंझट के मिल सकने के पूरे आसार हैं | डॉक्टर सुब्रमणियन के साथ समस्या यह है कि डिस्ट्रिक्ट में उनकी न तो कोई पहचान है, और न ही उनकी किसी भी तरह की कोई सक्रियता रही है | उन्होंने कभी कोई जिम्मेदारी भी नहीं निभाई - निभाई इसलिए नहीं, क्योंकि किसी ने उन्हें कोई जिम्मेदारी दी नहीं; किसी ने उन्हें जिम्मेदारी दी इसलिए नहीं क्योंकि कोई भी उनकी सामर्थ्य के प्रति आश्वस्त नहीं हो पाया | ले देकर उनके नाम अभी हाल ही में संपन्न हुई डिस्ट्रिक्ट कांफ्रेंस की चेयरमैनी है | लेकिन यह चेयरमैनी उन्हें रोटरी में की गई उनकी सेवाओं से प्रभावित होकर नहीं मिली, बल्कि असित मित्तल के भाई की 'सेवा' करने के कारण मिली |
असित मित्तल रोटरी को और डिस्ट्रिक्ट को चूँकि अपनी निजी जायदाद की तरह देखते/समझते हैं, इसलिए वह निजी रूप से उनके काम आने वालों को डिस्ट्रिक्ट 'दे देने' को तैयार हो जाते हैं | रवि चौधरी को 'लंगड़ा घोड़ा' बताते हुए वह उनके बारे में इधर जिस तरह की बातें करने लगे हैं उससे जाहिर हो रहा है कि वह रवि चौधरी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इसलिए नहीं बनवा रहे थे क्योंकि वह रवि चौधरी की रोटरी-सेवाओं से प्रभावित थे: वह तो चूँकि रवि चौधरी ने निजी तौर पर उनकी 'सेवा' की हुई है - असित मित्तल को उन्होंने खासी मोटी रकम उपलब्ध करवाई हुई है, जिसे असित मित्तल वापिस नहीं कर रहे हैं: सो असित मित्तल ने रवि चौधरी से कहा कि मैं तुम्हें तुम्हारे पैसे तो वापस नहीं कर पा रहा हूँ, चलो मैं तुम्हें डिस्ट्रिक्ट 3010 दे देता हूँ | असित मित्तल ने यही खेल डॉक्टर सुब्रमणियन के साथ खेला | डॉक्टर सुब्रमणियन ने असित मित्तल के भाई के उपचार में मदद की थी; उनके इस उपकार के बदले में असित मित्तल ने उन्हें भी डिस्ट्रिक्ट 3010 'दे देने' का वायदा कर लिया | इस वायदे को पूरा करते दिखने के उद्देश्य से ही असित मित्तल ने डॉक्टर सुब्रमणियन को कांफ्रेस चेयरमैन बनाया | असित मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट को बड़े-बड़े 'महान' लोग दिए हैं | डॉक्टर सुब्रमणियन के साथ असित मित्तल ने एक जिन प्रदीप चौधरी को डायरेक्टर कांफ्रेंस प्रोमोशन बनाया, उन प्रदीप चौधरी की रोटरी सेवाओं को असित मित्तल के अलावा और कोई नहीं जानता | प्रदीप चौधरी रोटेरियंस के बीच यदि जाने जाते हैं तो सिर्फ एक काम के लिए - 25 जनवरी को गाजियाबाद में रवि चौधरी की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उदेश्य से हुई मीटिंग में लड़कीबाजी को लेकर जो मारपिटाई हुई थी उसके मुख्य आयोजक प्रदीप चौधरी ही थे | यह तथ्य जानना इसलिए जरूरी है, ताकि यह स्पष्ट रूप से समझा जा सके कि असित मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट प्रोमोशन का काम प्रदीप चौधरी और डॉक्टर सुब्रमणियन को उनकी रोटरी सेवाओं को देखते हुए नहीं, बल्कि अपने निजी स्वार्थों को पूरा करते हुए सौंपा था |
डॉक्टर सुब्रमणियन के नजदीकियों और उनके शुभचिंतकों ने उनको समझाया है कि असित मित्तल की बातों में आकर वह अपनी किरकिरी न करवाएँ | उन्हें बताया गया है कि असित मित्तल ही दूसरों से कहते हैं कि डॉक्टर के बस की चुनाव लड़ना है ही नहीं, और यह भी कि डॉक्टर को अभी इस बात का अंदाज़ा ही नहीं है कि एक उम्मीदवार को क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं | नजदीकियों और शुभचिंतकों की इस समझाइश का कोई असर पड़ता इससे पहले रवि भाटिया की उम्मीदवारी से डरे मुकेश अरनेजा जैसे लोगों ने भी डॉक्टर सुब्रमणियन की उम्मीदवारी को हवा देने का काम शुरू कर दिया | मजे की बात यह है कि मुकेश अरनेजा ने कुछ ही दिन पहले रवि भाटिया को अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित किया था | रवि भाटिया लेकिन उन्हें जैसे ही प्रेरित होते दिखे, उन्होंने डॉक्टर सुब्रमणियन को उकसाने का काम हाथ में ले लिया | रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल में जो लोग रवि भाटिया को आगे बढ़ता हुआ नहीं देखना चाहते हैं, उन्होंने भी डॉक्टर सुब्रमणियन को हवा देना शुरू कर दिया है | डॉक्टर सुब्रमणियन के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि उन्हें मुकेश अरनेजा और असित मित्तल जैसे अपनी राजनीतिक दुकान के लिए 'सामान' खोज रहे लोगों तथा रवि भाटिया के विरोधी लोगों के बहकाने में नहीं आना चाहिए और तथ्यपूर्ण तरीके से डिस्ट्रिक्ट के चुनावी समीकरण व अपनी स्थिति का आकलन करना चाहिए और तब अपनी उम्मीदवारी के बारे में फैसला करना चाहिए | रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल के कई प्रमुख लोगों का तथा डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के प्रमुख खिलाड़ियों का मानना और कहना है कि डॉक्टर सुब्रमणियन की बजाये यदि रवि भाटिया उम्मीदवार बनते हैं तो वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के प्रबल दावेदार हो सकेंगे | रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल के पदाधिकारियों पर रवि भाटिया को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार चुनने का दबाव तो बहुत है, लेकिन डॉक्टर सुब्रमणियन को हवा दे रहे रवि भाटिया के विरोधियों ने भी अभी अपनी कोशिशें नहीं छोड़ी हैं - इसलिए रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल में उम्मीदवार चुनने को लेकर खासा घमासान मचा हुआ है |