Sunday, April 26, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच वेबिनार्स के नाम पर मची होड़ और तमाशेबाजी में ब्रांचेज के आम और खास सदस्य अपनी हालत, एक पंजाबी कहावत के 'चूम चूम कर मार दिए गए नवजात लड़के' जैसी पा रहे हैं

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों ने अपनी अपनी राजनीति जमाने और चमकाने के लिए वेबिनार्स का जैसा इस्तेमाल किया हुआ है, उसने आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को बुरी तरह परेशान किया हुआ है, और अधिकतर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स अब इसे 'इमोशनल अत्याचार' तक कहने लगे हैं । ब्रांचेज के वरिष्ठ और सक्रिय सदस्यों का कहना है कि रीजनल काउंसिल व सेंट्रल काउंसिल के मौजूदा सदस्य तथा अगला चुनाव लड़ने की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों की तरफ से पहले वेबिनार के निमंत्रण आते हैं, फिर वह फोन करके शामिल होने के लिए आग्रह करने के साथ-साथ दबाव बनाते हैं, शामिल न हो पाने के बाद शिकायतें आती हैं । अधिकतर वेबिनार्स में किसी न किसी तथाकथित नामचीन को स्पीकर के रूप में आमंत्रित कर लिया जाता है, और फिर उसके नाम का वास्ता देकर शामिल होने का दबाव बनाया जाता है । नॉर्दर्न रीजन में आयोजित हो रहे वेबिनार्स के 'स्टार नामचीन' इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा बने हुए हैं । विषय कोई भी हो, अमरजीत चोपड़ा को वेबिनार्स में शामिल कर लिया जाता है, और वह खुशी खुशी शामिल हो भी जाते हैं । आम और खास चार्टर्ड एकाउंटेंट्स  के लिए समस्या यह है कि वह आखिर कितने वेबिनार्स में शामिल हों । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के छोटे/बड़े खिलाड़ियों और संभावित उम्मीदवारों ने वेबिनार्स को लेकर जो हाल मचाया हुआ है, उसे देख कर कई लोग उस पंजाबी कहावत को याद करते हुए सुनाई पड़े, जिसमें कहा गया है कि किन्नरों के परिवार में लड़का पैदा हुआ, तो उन्होंने उसे चूम चूम कर ही मार दिया ।
वेबिनार्स को लेकर मची होड़ में ब्रांचेज के आम और खास चार्टर्ड एकाउंटेंट्स अपनी हालत उक्त कहावत में 'चूम चूम कर मार दिए गए' नवजात लड़के जैसी ही पा रहे हैं । मजे की बात यह है कि वेबिनार्स की शुरुआत ब्रांचेज के कुछेक छुटभैये किस्म के नेताओं ने की थी; इसका चलन बढ़ा, तो दिल्ली में खाली बैठे नेताओं को आईडिया मिला - और फिर तो वेबिनार्स की धूम मच गई । रीजनल काउंसिल के सदस्य हों, या सेंट्रल काउंसिल के सदस्य हों - उन्होंने रीजनल काउंसिल तथा अपनी अपनी कमेटियों के नाम पर कार्यक्रम करने के साथ-साथ अपने अपने 'चैनल' भी खोल लिए । रीजनल काउंसिल की तरफ से पहले जहाँ सप्ताह में कुल मिला कर तीन से चार सेमीनार होते थे, वेबिनार्स में इसकी संख्या दस से पंद्रह के बीच हो गई है । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने तो कई कई ब्रांचेज को 'शामिल' करके वेबिनार्स करने का अनोखा रिकॉर्ड बना लिया । तमाशेबाजी और झूठ की हद यह हो रही है कि चार-चार छह-छह ब्रांचेज द्वारा मिलजुल कर किए जाने वाले वेबिनार्स में मुश्किल से 50/60 लोग शामिल हो रहे हैं, लेकिन आयोजक नेताओं की तरफ से सैंकड़ों/हजारों के शामिल होने के दावे किए जा रहे हैं ।
इस तरह के झूठे दावों के कारण ही वेबिनार्स के लिए सीपीई ऑवर्स देने का विचार खटाई में पड़ गया । सेंट्रल काउंसिल के कुछेक सदस्यों ने कोशिश की थी कि वेबिनार्स में शामिल होने वाले सदस्यों को सीपीई ऑवर्स देने की व्यवस्था की जाए; लेकिन देखा/पाया गया कि वेबिनार्स में शामिल होने वाले सदस्यों की संख्या को लेकर सबसे ज्यादा घपलेबाजी सेंट्रल काउंसिल के सदस्य ही कर रहे हैं । इंस्टीट्यूट प्रशासन ने वेबिनार्स के लिए गाइडलाइंस बनाने की कोशिश भी की, लेकिन सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने उसमें भी अड़ंगा डाल दिया - दरअसल उन्हें डर हुआ कि गाइडलाइंस बनने पर वेबिनार्स के नाम पर तमाशेबाजी करने तथा झूठे दावे करने का उनका खेल खराब हो जायेगा । बताया/सुना जा रहा है कि वेबिनार्स के नाम पर हो रही तमाशेबाजी से इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता बहुत नाराज और निराश हैं, लेकिन तमाशेबाजी में लगे लोगों के सामने वह खुद को असहाय पा रहे हैं । अतुल गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, वेबिनार्स में शामिल होने वाले सदस्यों को सीपीई ऑवर्स देने/दिलवाने की कोशिशों को तो सफल न होने देने में अतुल गुप्ता ने कड़ाई दिखाई, लेकिन बाकी तमाशेबाजी के सामने वह मजबूर बने हुए हैं ।