Monday, April 13, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी ब्लड बैंक के अकाउंट से जुड़े झमेले की आँच पर सुधीर मंगला सीओएल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी का पुलॉव पकने की जो उम्मीद कर रहे हैं, उससे लेकिन उनके नजदीकी ही उत्साहित नहीं हैं

नई दिल्ली । रोटरी ब्लड बैंक को लेकर डिस्ट्रिक्ट के नेताओं का जो तमाशा चल रहा है और अभी हाल ही में उसकी जमापूँजी में से बड़े हिस्से को दान करने के मामले में जो रिजल्ट निकला, सीओएल के चुनावी समीकरणों के संदर्भ में सुधीर मंगला उससे गदगद हैं और उसे अपनी उम्मीदवारी के हित में मान/देख रहे हैं । उनके नजदीकियों का कहना/बताना है कि ब्लड बैंक को लेकर पिछले छह/आठ महीनों से जो तमाशा चल रहा है, उसमें सीओएल के चुनावी समीकरणों के संदर्भ में पहले संजय खन्ना फायदे में लग रहे थे - लेकिन ब्लड बैंक की जमापूँजी हल्की करने के मामले में जो बबाल हुआ, उससे स्थितियाँ बदली हैं, और फायदे का संकेत देने वाली सुई संजय खन्ना से हट कर सुधीर मंगला पर आ टिकी है । दरअसल ब्लड बैंक को लेकर पिछले छह/आठ महीनों से जो नाटक चल रहा था, उसने संजय खन्ना को 'हीरो' बनाया हुआ था । लोगों के बीच चर्चा थी कि ब्लड बैंक के ट्रेजरर के रूप में संजय खन्ना ने ही ब्लड बैंक में गुपचुप रूप से होने वाले मनमाने खर्चों का मामला उठाया था, जिसके चलते बात खुली कि ब्लड बैंक की गवर्निंग बॉडी के सदस्य और पदाधिकारी कार्यकाल पूरा होने के बाद भी, बिना चुनाव करवाए अपने अपने पदों पर जमे हुए हैं और कामकाज में मनमानियाँ हो रही हैं । इसके बाद ही, ब्लड बैंक की गवर्निंग बॉडी के सदस्यों और पदाधिकारियों के चुनाव करने/करवाने की बात शुरू हुई और यह प्रमुख फैसला हुआ कि मौजूदा गवर्निंग बॉडी तथा पदाधिकारी बड़े खर्चों वाले किसी काम के बारे में फैसला नहीं करेंगे । ब्लड बैंक में हुए इस डेवलपमेंट को लोगों ने अच्छी भावना से लिया, और इसका श्रेय संजय खन्ना को दिया ।
डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव होने के बाद रोटेरियंस नेता लोग प्रायः 'खाली' हो जाते हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3011 में सीओएल के चुनाव के साथ-साथ ब्लड बैंक के झमेले ने उन्हें सक्रिय बनाये रखा । वैसे तो सीओएल के चुनावी समीकरणों और ब्लड बैंक के झमेले का कोई संबंध नहीं बनता है, लेकिन चूँकि ब्लड बैंक के झमेले के बढ़ने के साथ-साथ सीओएल के चुनाव के दिन नजदीक आते गए - और दोनों जगह संजय खन्ना 'मौजूद' दिखे, तो लोगों के बीच बनने वाली बातों में ब्लड बैंक के झमेले तथा सीओएल के चुनावी समीकरणों में संबंध स्वतः जुड़ गया । इस जुड़े संबंध ने संजय खन्ना की सीओएल की उम्मीदवारी के लिए माहौल अनुकूल बनाया । लेकिन ब्लड बैंक के अकाउंट को हल्का करने के फैसले में शामिल होकर संजय खन्ना ने अपने लिए मुसीबत थोड़ा बढ़ा ली है । उनके नजदीकियों का कहना है कि संजय खन्ना उक्त मामले में दरअसल हालात को भाँप नहीं पाए; उन्हें लगा कि अधिकतर लोग उक्त फैसले के पक्ष में हैं, और फैसला हो ही जायेगा । ब्लड बैंक की गवर्निंग बॉडी की मीटिंग में सुरेश जैन के स्टैंड के जाहिर होने के बाद हालाँकि संजय खन्ना भी अकाउंट को हल्का करने के फैसले के खिलाफ हो गए, लेकिन माना यही गया कि उन्होंने मजबूरी में पलटी मारी । ब्लड बैंक के अकाउंट को हल्का करने के मामले में मंजीत साहनी ने जिस तरह से काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की भूमिका को शामिल किया, उसमें सुधीर मंगला ने 'बहती गंगा में हाथ धोने' का काम कर लिया । इसी आधार पर सुधीर मंगला को लगता है कि सीओएल के उम्मीदवारों में एक अकेले वही हैं, जिन्होंने ब्लड बैंक के अकाउंट को हल्का करने के प्रयास का विरोध किया - और इसलिए उक्त प्रयास का जिन भी लोगों ने विरोध किया है, उनका समर्थन उन्हें ही मिलेगा ।
सुधीर मंगला यह देख/जान/सुन कर और गदगद हैं कि डिस्ट्रिक्ट में हर कोई ब्लड बैंक के अकाउंट को हल्का करने के प्रयास के विफल हो जाने से खुश हैं । डिस्ट्रिक्ट के लोगों की इस खुशी में उन्हें सीओएल के लिए अपनी उम्मीदवारी की नाव इस बार पार होती दिख रही है । उल्लेखनीय है कि पिछली बार सीओएल के चुनाव में वह हार गए थे । मजे की बात लेकिन यह है कि अपनी उम्मीदवारी को लेकर जैसा भरोसा सुधीर मंगला को है, वैसा भरोसा उनके नजदीकियों को नहीं है - और यही कारण है कि खुद सुधीर मंगला को ही यह शिकायत करते हुए सुना जा रहा है कि उन्हें जिन लोगों से मदद की उम्मीद है, वह उनकी मदद कर नहीं रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लग रहा है कि ब्लड बैंक के अकाउंट से जुड़े ताजा मामले में सही फैसला कर पाने में संजय खन्ना चूक भले ही गए हों, लेकिन उससे सीओएल के चुनाव पर उनकी पकड़ ढीली नहीं पड़ी है । ब्लड बैंक के अकाउंट से जुड़े मामले के कारण काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों में जो 'गर्मी' पैदा हुई है, वह यदि कोई नया समीकरण बनाती भी है तो उसका फायदा अमित जैन को मिल सकता है । अमित जैन सीओएल के लिए अपनी उम्मीदवारी का अभियान बड़े चुपचाप तरीके से चलाते 'सुने' जा रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में चलते रहने वाले तमाम झमेलों और विवादों से अमित जैन जिस तरह अपने आप को बचाये रखे हुए हैं, उसे उनकी 'कूल' और कुशल प्रबंधन नीति के नतीजे के रूप में देखा/पहचाना जाता है । चुनावी उठापटक में अमित जैन की इस नीति को कुछेक लोग उनकी कमजोरी के रूप में देखते हैं, तो अन्य कई लोग इसे उनकी ताकत के रूप में पहचानते हैं । सीओएल की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को लगता है कि ब्लड बैंक के अकाउंट से जुड़े जिस झमेले पर सुधीर मंगला उत्साहित हो रहे हैं, उस पर जल्दी ही धूल पड़ जाएगी और तब उम्मीदवारों की वास्तविक पहचान तथा लोगों के बीच उनकी छवि ही निर्णायक भूमिका निभायेगी ।