नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुरेश भसीन ने पिछले गवर्नर विनय भाटिया की तर्ज पर डीडीएफ अकाउंट के पैसे 'बेचकर' रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे इकट्ठे करने का रिकॉर्ड बनाने तथा कुछेक मास्टरमाइंड टाइप के रोटेरियंस को जेबें भरने का मौका देने की तैयारी शुरू कर दी है । लोगों के बीच आशंकापूर्ण चर्चा और गंभीर आरोप यह भी है कि इस 'खेल' में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को भी 'कट' मिलता होगा, इसलिए वह इस खेल में 'योजनाबद्ध' तरीके से दिलचस्पी लेते हैं । सुरेश भसीन के मामले में यह चर्चा इसलिए भी जोरों पर है, क्योंकि उन्होंने अपने डीडीएफ का जो आधा हिस्सा डिस्ट्रिक्ट ग्रांट्स में खर्च करना था, वह उन्होंने जानबूझ कर खर्च नहीं किया - और उक्त रकम भी ग्लोबल ग्रांट्स में मैच करवाने के लिए बचा ली है । विनय भाटिया की तरह ही, सुरेश भसीन की भी दिलचस्पी एपीएफ (एनुअल प्रोग्राम फंड) के लिए दान लेने में दिलचस्पी नहीं है, और उनका भी जोर टर्म गिफ्ट के रूप में आने वाले दान पर ही है । रोटरी न्यूज के नए अंक में प्रकाशित तथ्यों के अनुसार, डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी फाउंडेशन के लिए अभी तक दो लाख डॉलर से कम रकम जमा हुई है, जिसमें एपीएफ में जमा रकम करीब 81 हजार डॉलर ही है । पिछले रोटरी वर्ष में भी ऐसा ही दृश्य था, और वर्ष के आखिरी महीने में ताबड़तोड़ पैसे जमा हुए थे, जिसका करीब 80 प्रतिशत हिस्सा टर्म गिफ्ट के रूप में था । टर्म गिफ्ट रोटरी फाउंडेशन को पैसे देने का नहीं, बल्कि रोटरी फाउंडेशन से पैसे लेने का 'माध्यम' है, और इसे कुछेक धंधेबाज रोटेरियंस ने बड़ी होशियारी से डिस्ट्रिक्ट में फिट कर दिया है । डिस्ट्रिक्ट के कुछेक धंधेबाज रोटेरियंस की इस हरकत का रोटरी के बड़े नेताओं ने संज्ञान तो लिया है, और इस पर अपनी नाराजगी भी दिखाई है - लेकिन सुरेश भसीन की 'तैयारी' देख कर लगता नहीं है कि धंधेबाज रोटेरियंस को बड़े नेताओं की नाराजगी का डर है ।
रोटरी फाउंडेशन में एपीएफ अकाउंट को रोटरी का 'लाइफ-ब्लड' (जीवन-शक्ति) कहा/माना गया है, लेकिन रोटरी के धंधेबाज लोगों ने रोटरी को जीवन देने वाले इस खून को ही चूस लेने का इंतजाम कर लिया है । उल्लेखनीय है कि एपीएफ अकाउंट से डीडीएफ के रूप में मिली रकम में से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को आधी रकम डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट्स में खर्च करना होती है । इसके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रेसीडेंट्स को प्रोत्साहित करते हैं कि वह समाज में लोगों की जरूरतों के हिसाब से प्रोजेक्ट बनाएँ और उसे पूरा करने के लिए कुछ पैसा क्लब लगाएँ और बाकी पैसा उक्त अकाउंट से लें । सुरेश भसीन ने लेकिन डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट्स में कोई दिलचस्पी नहीं ली । बीच में उन्होंने कुछ योजना बनाई थी, और काम शुरू किया था - लेकिन उसे फिर उन्होंने रोक दिया था । इसके चलते, डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट्स में खर्च की जाने वाली रकम ग्लोबल ग्रांट्स में इस्तेमाल होने के लिए जुड़ गई है । आरोपपूर्ण चर्चा है कि इस रकम को ' एक का चार करने' के लिए इस्तेमाल किया जायेगा, और इसके लिए धंधेबाज लोगों ने पूरी तैयारी कर ली है - जिसके तहत अस्पतालों व अन्य संस्थाओं से उनकी जरूरत की मशीनें व दूसरे काम लागत के आधे और या दो-तिहाई कीमत में देने/निकलवाने के ऑफर के साथ सौदेबाजी कर ली गई है । उदाहरण के लिए किसी अस्पताल/संस्था का कोई प्रोजेक्ट एक करोड़ रुपए का है; उसे ऑफर है कि उसका वह प्रोजेक्ट 70 लाख में लगवा देंगे; उससे 70 लाख लिए, उसमें से 40/50 लाख रोटरी फाउंडेशन में जमा करवाए और बाकी अपनी जेब में रख लिए । रोटरी फाउंडेशन को एक करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट दे दिया - उससे मिले एक करोड़ रुपए से अस्पताल/संस्था का प्रोजेक्ट लग जायेगा । इस तरह कई फायदे एक साथ मिल जाते है - रोटरी फाउंडेशन में भी रिकॉर्ड पैसा जमा हो गया, अपनी जेब भी गर्म हो गई, और समाज सेवा का पुण्य भी मिल गया । ऐसे ही 'मौकों' के लिए कहावत बनी होगी - 'हींग लगे न फिटकरी, रंग और स्वाद चोखा ।'
ग्लोबल ग्रांट्स डिस्ट्रिक्ट 3011 में दरअसल एक बड़ा धंधा बन गई है । यह धंधा होता और भी डिस्ट्रिक्ट्स में है, तथा रोटरी फाउंडेशन की तरफ से कुछेक गवर्नर्स के खिलाफ कार्रवाई भी हुई है; लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3011 में कुछेक तेज दिमाग वाले लोगों ने इसे बड़ा व्यवस्थित रूप दिया हुआ है । पकड़-धकड़ हालाँकि यहाँ भी हुई है; पिछले रोटरी वर्ष में ही, बेईमानी की आशंका के चलते रोटरी क्लब दिल्ली मिडटाऊन द्वारा वापस की गई ग्रांट धोखाधड़ी से रोटरी क्लब दिल्ली सेंट्रल को दिलवाने का मामला पकड़ा ही गया था, लेकिन रोटरी फाउंडेशन की तरफ से चूँकि किसी के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं हुई है, इसलिए धंधेबाजों के हौंसले यहाँ अभी बुलंद हैं । डिस्ट्रिक्ट 3011 में कुछेक बड़े रोटेरियंस की 'होशियारी' से - 'रोटरी फाउंडेशन में पैसा दो, और उसका तीन से चार गुना वापस लो' - फार्मूला बड़ा हिट है । इस फार्मूले ने लालच, स्वार्थ व बेईमानी का रास्ता खोल दिया है, जो रोटरी के लिए ही खतरा बन जा रहा है । दरअसल इस फार्मूले के तहत रोटरी फाउंडेशन में कोई भी 'देता' इसीलिए है, क्योंकि उसे तीन गुना से चार गुना 'लेना' होता है; और जब लेने की भावना प्रबल होती है तो फिर वह किसी भी तरह की बेईमानी करने से नहीं हिचकता है । इस बेईमानी और लूट की कोशिश उन लोगों की भावनाओं को ठगती है, जो सचमुच की जरूरत के लिए रोटरी फाउंडेशन में पैसे देते हैं । उन्हें लगता है कि रोटरी फाउंडेशन को दिया गया उनका पैसा जरूरतमंदों तक पहुँचने की बजाए रोटेरियंस के भेष में बैठे ठगों व लुटेरों की जेबों में चला जाता है । पिछले वर्ष विनय भाटिया की हरकतों के चलते डिस्ट्रिक्ट की जो बदनामी हुई थी, उसे देख कर लगा था कि धंधेबाज रोटेरियंस की हरकतों पर रोक लगेगी - लेकिन सुरेश भसीन की तैयारी देख कर लग रहा है कि पिछले वर्ष जैसा खेल इस वर्ष भी चलेगा ।