Friday, April 24, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में मुकेश अरनेजा और सुभाष जैन से एक साथ बदला लेने के उद्देश्य से, सीओएल के चुनाव में अशोक अग्रवाल द्वारा दिखाई जा रही अति-सक्रियता ने डिस्ट्रिक्ट में 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना' जैसा माहौल बना दिया है

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी अशोक अग्रवाल ने सीओएल के चुनाव में शरत जैन को जीत दिलवाने के लिए जिस तरह की सक्रियता दिखाई हुई है, उसने लोगों को 'मुद्दई सुस्त, गवाह चुस्त' वाला मुहावरा याद दिलवा दिया है । लोगों का कहना है कि अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने को लेकर खुद शरत जैन उतने सक्रिय नहीं हैं, जितने उनकी उम्मीदवारी को लेकर अशोक अग्रवाल जुटे हुए हैं । कहीं कहीं अशोक अग्रवाल ने कहा भी है कि सीओएल के चुनाव में मुकेश अरनेजा के खिलाफ शरत जैन नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि वह लड़ रहे हैं । अशोक अग्रवाल तरह तरह से यह जताने/दिखाने/बताने का प्रयास कर रहे हैं कि वह वास्तव में शरत जैन को जितवाने के लिए नहीं, बल्कि मुकेश अरनेजा को हराने के लिए सीओएल के चुनाव में कूदे हुए हैं । मुकेश अरनेजा ने पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी का विरोध किया था - अशोक अग्रवाल इस बात को लेकर मुकेश अरनेजा से बुरी तरह खफा हैं, और सीओएल के चुनाव में इसका बदला लेने की तैयारी में हैं । मजे की बात लेकिन यह है कि अशोक अग्रवाल सीओएल के चुनाव के जरिये सुभाष जैन को भी सबक सिखाना चाहते हैं, जबकि पिछले वर्ष अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी का सुभाष जैन ने खुल कर सहयोग और समर्थन किया था - और पिछले वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव का आकलन करने वाले लोगों ने माना था कि अशोक अग्रवाल की चुनावी जीत के लिए सुभाष जैन के समर्थन की ही निर्णायक भूमिका थी । मुकेश अरनेजा के प्रति अशोक अग्रवाल की नाराजगी तो लोगों को समझ में आती है, लेकिन लोगों के बीच हैरानी इस बात को लेकर है कि सुभाष जैन को सबक सिखाने की बातें वह क्यों करते रहते हैं - जबकि वह आज यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी हैं, तो सुभाष जैन के समर्थन के कारण ही हैं ।
अशोक अग्रवाल  के नजदीकियों के अनुसार, दरअसल इस 'कारण' के कारण ही वह सुभाष जैन को सबक सिखाना चाहते हैं । नजदीकियों के अनुसार, अशोक अग्रवाल को यह बात बिलकुल भी पसंद नहीं है कि उनके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनने का श्रेय किसी भी तरह से सुभाष जैन को दिया जाए - या मिले । वास्तव में, अशोक अग्रवाल किसी को भी श्रेय नहीं देना चाहते हैं; उनका मानना और कहना है कि वह अपने दम पर अपना चुनाव जीते हैं, और उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले लोगों ने तो उन्हें जीतता हुआ देख/समझ कर ही उनका समर्थन किया था । अशोक अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि वह तो चाहते हैं और तरह तरह से कोशिश करते रहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का 'एकछत्र नेता' उन्हें माना/समझा जाए - लेकिन हालात उन्हें अलग-थलग धकेल देते हैं । इस वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अशोक अग्रवाल ने बहुत कोशिश की कि ललित खन्ना की उम्मीदवारी का झंडा उनके हाथ में रहे, लेकिन ललित खन्ना ने उनका समर्थन तो ले लिया पर उन्हें ज्यादा भाव नहीं दिया । अशोक अग्रवाल के लिए झटके की बात यह रही कि वह तो बिना झंडे के रह गए, और सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी का झंडा सुभाष जैन को मिल गया । अनोखी बात यह रही कि सुनील मल्होत्रा यद्यपि चुनाव हार गए, लेकिन उन्हें मिले वोटों की संख्या के आधार पर डिस्ट्रिक्ट के नेता का खिताब सुभाष जैन को मिल गया । ललित खन्ना की जीत के लिए उनका चौथी/पाँचवीं बार उम्मीदवार बनना, सुनील मल्होत्रा की अनुभवहीनता तथा जल्दी चुनाव होने को कारण के रूप में देखा/पहचाना गया; इसके बावजूद, सुनील मल्होत्रा से ललित खन्ना को जो टक्कर मिली और वह उम्मीद के विपरीत कम अंतर से ही जीत पाए - उसके लिए सुभाष जैन के 'वोट बैंक' की ताकत को देखा/पहचाना गया । यह सुभाष जैन के लिए हार के बावजूद 'जीतने' वाला मामला रहा ।
यही कारण रहा कि अगले रोटरी वर्ष में होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी तैयारी में और सीओएल के चुनाव में सुभाष जैन की पक्षधरता तथा संलग्नता महत्त्वपूर्ण हो उठी; जबकि अशोक अग्रवाल को अगले रोटरी वर्ष में होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी तैयारी में एक बार फिर जोर का झटका लगा । शुरू में बड़े जोरशोर से चर्चा सुनी गई थी कि अशोक अग्रवाल अगले वर्ष  के चुनाव के लिए उम्मीदवार मैदान में उतार रहे हैं, लेकिन फिर वह चर्चा जल्दी ही बंद हो गई । अशोक अग्रवाल के नजदीकियों का कहना/बताना है कि अशोक अग्रवाल ने दो/एक लोगों को उम्मीदवार बनने के लिए राजी कर लिया था, लेकिन राजी हुए लोगों को जल्दी ही समझ में आ गया कि अशोक अग्रवाल अपनी राजनीति जमाने/दिखाने के लिए उन्हें इस्तेमाल कर रहे हैं, सो वह पीछे हट गए और अशोक अग्रवाल एक बार फिर अलग-थलग पड़ गए । ऐसे में, सीओएल का चुनाव अशोक अग्रवाल को संजीवनी बूटी की तरह मिल गया । सीओएल के चुनाव में सुभाष जैन चूँकि मुकेश अरनेजा की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं, इसलिए अशोक अग्रवाल को लगता है कि मुकेश अरनेजा को हरा/हरवा कर वह दोनों से एकसाथ बदला ले लेंगे और अपने आप को डिस्ट्रिक्ट की राजनीति का 'एकछत्र नेता' साबित कर देंगे । दिलचस्प नजारा यह है कि शरत जैन ने सीओएल के लिए होने वाले चुनाव के नतीजे को भाँप लिया है, और इसलिए वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर ज्यादा उत्साहित और सक्रिय नहीं हैं - लेकिन अशोक अग्रवाल ने उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने को लेकर कमर कसी हुई है । उन्हें लगता है कि समय समय पर की गई मुकेश अरनेजा की हरकतों को लेकर लोगों के बीच जो नाराजगी रही है, उसे वह इस समय भुना सकते हैं तथा मुकेश अरनेजा के खिलाफ माहौल बना कर सीओएल के चुनाव में उन्हें हरा/हरवा सकते हैं । अशोक अग्रवाल की सक्रियता का सचमुच क्या नतीजा निकलेगा, यह तो नतीजा आने पर ही पता चलेगा - लेकिन सीओएल के चुनाव में अशोक अग्रवाल की अति-सक्रियता ने डिस्ट्रिक्ट में 'बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना' जैसा माहौल जरूर बना दिया है ।