नई दिल्ली । विनोद बंसल ने रोटरी ब्लड बैंक के अकाउंट से मोटी रकम दान में देने के अपने मनमाने फैसले को तथाकथित गवर्निंग बॉडी की मीटिंग में मंजूर करवाने के लिए फील्डिंग तो बेहद कसी हुई सजाई थी, लेकिन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मंजीत साहनी की एक 'आउट स्विंग' ने उनकी फील्डिंग को ऐसा ऐसा तहसनहस किया कि फिर उनका फैसला तो मंजूर नहीं ही हुआ - उन्हें फजीहत का सामना और करना पड़ा । इस मामले में और भी बुरी बात यह हुई कि विनोद बंसल के चक्कर में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता के लिए भी दुविधा के हालात बने । मामले से परिचित हर व्यक्ति को हैरानी हुई कि शेखर मेहता आखिर विनोद बंसल के चक्कर में फँस कैसे गए ? हालाँकि मीटिंग से पहले तक जो 'स्थिति' थी, उसमें कोई भी विनोद बंसल के चक्कर में फँस सकता था । अपने फैसले को मंजूर करवाने के लिए विनोद बंसल ने बड़ी चाक-चौबंद व्यवस्था की थी; उनकी 'व्यवस्था' में कोई सेंध न लगा सके, इसके लिए उन्होंने शेखर मेहता का और उनके नाम का भरपूर इस्तेमाल किया । मीटिंग में उन्हें, जिन सदस्यों की तरफ से विरोध की आशंका थी, उनके मुँह बंद रखवाने के लिए उन्होंने शेखर मेहता रूपी टेप का पक्का इस्तेमाल किया हुआ था । विनोद बंसल ने ब्लड बैंक के सेक्रेटरी रमेश अग्रवाल और ट्रेजरर संजय खन्ना को अपने फैसले के पक्ष में करके हालात को पूरी तरह साध लिया था; यह दोनों सिर्फ विनोद बंसल के फैसले के साथ ही नहीं थे, बल्कि फैसले के विरोध में दिख रहे गवर्निंग बॉडी के सदस्यों को भी मनाने के काम में लगे हुए थे । ऐसे में, यही माना/समझा जा रहा था कि रोटरी ब्लड बैंक की गवर्निंग बॉडी की जूम मीटिंग में 'अपने' फैसले को मंजूर करवाने में विनोद बंसल को कोई दिक्कत नहीं होगी ।
लेकिन मंजीत साहनी ने विनोद बंसल की सारी तैयारी पर पानी फेर दिया ।
मीटिंग शुरू होने से कुछेक घंटे पहले, मंजीत साहनी ने सोशल मीडिया में एक संदेश दिया, जिसमें उन्होंने बताया कि रोटरी में बने ट्रस्ट के असली 'मालिक' डिस्ट्रिक्ट के सदस्य होते हैं, और काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की सहमति के बाद ही वह बनते हैं - इसलिए उसकी संपत्ति व जमापूँजी के बारे में फैसला करने का अधिकार ट्रस्ट की गवर्निंग बॉडी को नहीं है । मंजीत साहनी के इस संदेश ने दरअसल 'बिल्ली के गले में घंटी बाँधने' का काम किया । असल में, मंजीत साहनी के मामले में कूदने से पहले हर कोई शेखर मेहता की संलग्नता के कारण चुप बना हुआ था । विनोद बंसल इसी चुप्पी में अपना काम निकालने की तैयारी में थे । मंजीत साहनी के संदेश ने लेकिन उक्त चुप्पी को भंग कर दिया । सोशल मीडिया में फिर कई पूर्व गवर्नर्स ने विनोद बंसल की ब्लड बैंक का अकाउंट खाली करने की मनमानी कार्रवाई के प्रति अपनी नाराजगी दिखाई । यह इस बात का स्पष्ट संकेत था कि विनोद बंसल का 'रायता' फैलने लगा है । यह फैलता 'रायता' गवर्निंग बॉडी की मीटिंग में लेथन/गंदगी न करे, इसके लिए विनोद बंसल ने अभूतपूर्व तरीका अपनाया - और वह यह कि गवर्निंग बॉडी की मीटिंग की शुरुआत उन्होंने शेखर मेहता से करवाई । दिल्ली स्थित रोटरी ब्लड बैंक से शेखर मेहता का कोई मतलब नहीं है; एक बड़े पदाधिकारी होने के नाते ब्लड बैंक के किसी समारोह में शेखर मेहता उपस्थित हों - तो बात समझ में आती है; लेकिन ब्लड बैंक की गवर्निंग बॉडी की मीटिंग में उनकी मौजूदगी एक अभूतपूर्व बात बनी । समझा जाता है कि विनोद बंसल ने शेखर मेहता से मीटिंग की शुरुआत मीटिंग में मौजूद सदस्यों पर दबाव बनाने के लिए करवाई । लेकिन उनकी तरकीब बुरी तरह फेल हो गई ।
मंजीत साहनी ने जो काम 'बाहर' किया था, गवर्निंग बॉडी की मीटिंग में वही काम वरिष्ठ पूर्व गवर्नर सुरेश जैन ने किया । मीटिंग में, शेखर मेहता के तुरंत बाद सुरेश जैन ने बोला और उन्होंने पूरी स्पष्टता व दृढ़ता के साथ ब्लड बैंक के अकाउंट को खाली करने की विनोद बंसल की कोशिश का दो-टूक विरोध किया । सुरेश जैन की बातों ने शेखर मेहता की मौजूदगी तथा उनकी अपील से बने प्रभाव को पूरी तरह धो-पोंछ दिया । सुरेश जैन की बातों ने एक तरह से मीटिंग की दशा-दिशा तय कर दी । रही-सही कसर रूपक जैन ने पूरी कर दी । इसके बाद तो हर कोई जैसे विनोद बंसल से बदला लेने पर उतारू दिखा । माहौल देख कर रमेश अग्रवाल और संजय खन्ना ने भी पाला बदल लिया, और वह भी विनोद बंसल के फैसले की खिलाफत करते नजर आए । रमेश अग्रवाल ने तो जोश जोश में यह पोल भी खोल दी कि विनोद बंसल तो यह मीटिंग ही नहीं करना चाहते थे, वह तो इस कोशिश में थे कि तीन-चार पदाधिकारी मिल कर ही ब्लड बैंक के अकाउंट को खाली करने का फैसला कर लें । यह पोल खुलने के बाद माहौल और गर्मा गया, तथा अनूप मित्तल बुरी तरह भड़के । इसके बाद तो मीटिंग में विनोद बंसल पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए और किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया । ऐसे में, विनोद बंसल ब्लड बैंक के अकाउंट को खाली करने का अपना फैसला मंजूर भला कैसे करवाते ? मीटिंग में जो हुआ, उसमें विनोद बंसल को सिर्फ अपना फैसला मंजूर करवाने में ही हार का मुँह नहीं देखना पड़ा, बल्कि यह सच्चाई भी लोगों के सामने आई कि अपने ही डिस्ट्रिक्ट में वह पूरी तरह अलग-थलग हैं । इस बात ने राजनीतिक रूप से विनोद बंसल को तगड़ा झटका दिया है ।