चंडीगढ़ । पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू कोरोना वायरस के प्रकोप से पैदा हुए हालात से निपटने में मदद की अपील करके एक बार फिर मुसीबत में घिर गए हैं । डिस्ट्रिक्ट में लोगों का कहना है कि उनकी अपील वास्तव में हर मौके का फायदा उठा लेने के उनके तौर-तरीके का नया उदाहरण है । राजा साबू के इस तौर-तरीके से परिचित डिस्ट्रिक्ट के लोगों का कहना है कि राजा साबू यदि कोरोना के खतरे को लेकर यदि सचमुच सावधान होते तो मेडीकल मिशन के तहत टीम लेकर जिम्बाब्वे नहीं जाते । राजा साबू बड़े जागरूक व्यक्ति हैं; दुनिया के विभिन्न देशों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं की वह जानकारी रखते हैं, और उस जानकारी के आधार पर ही वह विभिन्न देशों में मेडीकल मिशन के तहत टीम लेकर जाते हैं । ऐसे में, ऐसा नहीं हो सकता कि दुनिया के देशों में कोरोना का जो प्रकोप जनवरी से सामने आने लगा था - राजा साबू उससे परिचित नहीं होंगे; लेकिन फिर भी वह मार्च के पहले डेढ़ सप्ताह के दौरान जिम्बाब्वे मेडीकल मिशन की टीम लेकर गए । 11/12 मार्च को विदेश से वापस लौटने पर उन्होंने इस बात की भी जरूरत नहीं समझी कि वह अपनी और अपनी टीम के सदस्यों की मेडीकल जाँच करवाएँ । अब जब यह साबित हो चुका है कि भारत में कोरोना का प्रवेश मार्च में विदेश से लौटने वाले लोगों के सौजन्य से हुआ है, तब यह समझना मुश्किल नहीं है कि राजा साबू ने कोरोना को लेकर कितना बड़ा खिलवाड़ किया है । सिर्फ इतना ही नहीं, 11/12 मार्च को विदेश से लौटने के बाद भी राजा साबू और उनकी टीम के कई सदस्य भीड़भाड़ वाले आयोजनों में शामिल हुए, और उन्होंने जरा भी सावधानी नहीं अपनाई ।
यह सिर्फ किस्मत की बात ही रही कि मेडीकल मिशन के तहत विदेश गए और लौटे रोटेरियंस कोरोना के संक्रमण लिए जिम्मेदार नहीं बने, अन्यथा कनिका कपूर और तबलीगी जमात की तरह देश में रोटरी व रोटेरियंस की भी थू थू हो रही होती । कह सकते हैं कि रोटरी और रोटेरियंस बस किस्मत के भरोसे ही कनिका कपूर और तबलीगी जमात जैसी बदनामी पाने से बच गए, अन्यथा राजा साबू ने अपनी तरफ से उनके जैसी हरकत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी । इस तरह राजा साबू कोरोना प्रकोप के मामले में एक जिम्मेदार नागरिक व एक जिम्मेदार रोटेरियन की तरह व्यवहार करने में पूरी तरह विफल रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट के लोगों की नाराजगी इस बात को लेकर है कि वही राजा साबू अब कोरोना प्रकोप के मामले में राहत कार्यों की बात करके मसीहा बनने की कोशिश कर रहे हैं - और इस तरह अपनी स्वार्थी व गैरजिम्मेदाराना हरकतों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को यह देख कर भी हैरानी हो रही है कि राजा साबू की चालबाजियों को उनके समर्थक रहे लोगों का तो समर्थन मिल ही रहा है, पिछले तीन-चार वर्षों से उनकी चालबाजियों के शिकार रहे तथा उनसे लड़ते रहे लोगों का भी सहयोग/समर्थन मिल रहा है । पिछले तीन-चार वर्षों में मेडीकल मिशन पर लगातार सवाल उठाने वाले नेता लोगों ने; और यहाँ तक कि राजा साबू पर मेडीकल मिशन के बहाने बिजनेस डील करने के आरोप लगाने वाले नेता लोग भी अब राजा साबू के साथ खड़े नजर आ रहे हैं ।
ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट के लोगों को लग रहा है कि पिछले तीन-चार वर्षों में राजा साबू की चालबाजियों के शिकार रहे और उनसे लड़ते रहे नेताओं ने भी या तो किसी मजबूरी में और या किसी स्वार्थ में राजा साबू के सामने समर्पण कर दिया है । इसी समर्पण का नतीजा है कि राजा साबू के कब्जे में बने रोटरी ट्रस्टों की कमान डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारियों को सौंपने की माँग को छोड़ दिया गया है; राजा साबू के कब्जे वाले ट्रस्टों के पास करीब तीन/सवा तीन करोड़ रुपयों के होने का हिसाब बताया जाता रहा था, लेकिन अब उस हिसाब को भी भुला दिया गया है; राजा साबू के नजदीकी पूर्व गवर्नर मनप्रीत सिंह गंधोके को डिस्ट्रिक्ट एकाउंट से गैरकानूनी रूप से दिए गए रुपयों को वापस माँगने में पिछले वर्ष तक तो बड़ी गर्मी थी, लेकिन उस मामले में भी अब ठंड पड़ती दिख रही है । लोगों का कहना है कि कोरोना प्रकोप से लड़ने के लिए दान देने की अपील करने वाले राजा साबू अपने कब्जे वाले ट्रस्टों में रखे हुए करीब तीन/सवा तीन करोड़ रुपयों को क्यों नहीं खर्च करते हैं - उक्त रकम को आखिर वह क्यों दबा कर बैठे हुए हैं ? इस तरह की बातों/चर्चाओं के बीच राजा साबू के कुछेक शुभचिंतकों का यह कहना भी खासा मजेदार है कि राजा साबू मसीहा बनने/दिखने की कोशिश में यह भूल जाते हैं कि उनके तौर-तरीकों की पोल अब खुल चुकी है, इसलिए उनकी कोशिश लोगों को भड़का देती है और फिर लोग उनकी फजीहत में जुट जाते हैं । शुभचिंतकों की सलाह है कि राजा साबू ने अब जब अपने विरोधी रहे नेताओं को भी पटा लिया है, और उन्हें अपने साथ मिला लिया है - तो चुपचाप उनसे अपने काम निकालें और मौज करें; पब्लिकली मसीहा बनने की कोशिश न करें; क्योंकि तब लोग उनकी कारस्तानियों और बेईमानियों की चर्चा करने लगते हैं । उल्लेखनीय है कि कोरोना मामले में राजा साबू ने गैरजिम्मेदारी का जो व्यवहार किया, उस पर लोगों का ध्यान नहीं गया था; लेकिन राजा साबू ने जैसे ही रूप बदल कर जिम्मेदार 'दिखने' की कोशिश की है, लोगों ने तुरंत उनका अवसरवादी दोहरा रूप 'पकड़' लिया और उनके लिए मामला उल्टा पड़ गया ।
यह सिर्फ किस्मत की बात ही रही कि मेडीकल मिशन के तहत विदेश गए और लौटे रोटेरियंस कोरोना के संक्रमण लिए जिम्मेदार नहीं बने, अन्यथा कनिका कपूर और तबलीगी जमात की तरह देश में रोटरी व रोटेरियंस की भी थू थू हो रही होती । कह सकते हैं कि रोटरी और रोटेरियंस बस किस्मत के भरोसे ही कनिका कपूर और तबलीगी जमात जैसी बदनामी पाने से बच गए, अन्यथा राजा साबू ने अपनी तरफ से उनके जैसी हरकत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी । इस तरह राजा साबू कोरोना प्रकोप के मामले में एक जिम्मेदार नागरिक व एक जिम्मेदार रोटेरियन की तरह व्यवहार करने में पूरी तरह विफल रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट के लोगों की नाराजगी इस बात को लेकर है कि वही राजा साबू अब कोरोना प्रकोप के मामले में राहत कार्यों की बात करके मसीहा बनने की कोशिश कर रहे हैं - और इस तरह अपनी स्वार्थी व गैरजिम्मेदाराना हरकतों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को यह देख कर भी हैरानी हो रही है कि राजा साबू की चालबाजियों को उनके समर्थक रहे लोगों का तो समर्थन मिल ही रहा है, पिछले तीन-चार वर्षों से उनकी चालबाजियों के शिकार रहे तथा उनसे लड़ते रहे लोगों का भी सहयोग/समर्थन मिल रहा है । पिछले तीन-चार वर्षों में मेडीकल मिशन पर लगातार सवाल उठाने वाले नेता लोगों ने; और यहाँ तक कि राजा साबू पर मेडीकल मिशन के बहाने बिजनेस डील करने के आरोप लगाने वाले नेता लोग भी अब राजा साबू के साथ खड़े नजर आ रहे हैं ।
ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट के लोगों को लग रहा है कि पिछले तीन-चार वर्षों में राजा साबू की चालबाजियों के शिकार रहे और उनसे लड़ते रहे नेताओं ने भी या तो किसी मजबूरी में और या किसी स्वार्थ में राजा साबू के सामने समर्पण कर दिया है । इसी समर्पण का नतीजा है कि राजा साबू के कब्जे में बने रोटरी ट्रस्टों की कमान डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारियों को सौंपने की माँग को छोड़ दिया गया है; राजा साबू के कब्जे वाले ट्रस्टों के पास करीब तीन/सवा तीन करोड़ रुपयों के होने का हिसाब बताया जाता रहा था, लेकिन अब उस हिसाब को भी भुला दिया गया है; राजा साबू के नजदीकी पूर्व गवर्नर मनप्रीत सिंह गंधोके को डिस्ट्रिक्ट एकाउंट से गैरकानूनी रूप से दिए गए रुपयों को वापस माँगने में पिछले वर्ष तक तो बड़ी गर्मी थी, लेकिन उस मामले में भी अब ठंड पड़ती दिख रही है । लोगों का कहना है कि कोरोना प्रकोप से लड़ने के लिए दान देने की अपील करने वाले राजा साबू अपने कब्जे वाले ट्रस्टों में रखे हुए करीब तीन/सवा तीन करोड़ रुपयों को क्यों नहीं खर्च करते हैं - उक्त रकम को आखिर वह क्यों दबा कर बैठे हुए हैं ? इस तरह की बातों/चर्चाओं के बीच राजा साबू के कुछेक शुभचिंतकों का यह कहना भी खासा मजेदार है कि राजा साबू मसीहा बनने/दिखने की कोशिश में यह भूल जाते हैं कि उनके तौर-तरीकों की पोल अब खुल चुकी है, इसलिए उनकी कोशिश लोगों को भड़का देती है और फिर लोग उनकी फजीहत में जुट जाते हैं । शुभचिंतकों की सलाह है कि राजा साबू ने अब जब अपने विरोधी रहे नेताओं को भी पटा लिया है, और उन्हें अपने साथ मिला लिया है - तो चुपचाप उनसे अपने काम निकालें और मौज करें; पब्लिकली मसीहा बनने की कोशिश न करें; क्योंकि तब लोग उनकी कारस्तानियों और बेईमानियों की चर्चा करने लगते हैं । उल्लेखनीय है कि कोरोना मामले में राजा साबू ने गैरजिम्मेदारी का जो व्यवहार किया, उस पर लोगों का ध्यान नहीं गया था; लेकिन राजा साबू ने जैसे ही रूप बदल कर जिम्मेदार 'दिखने' की कोशिश की है, लोगों ने तुरंत उनका अवसरवादी दोहरा रूप 'पकड़' लिया और उनके लिए मामला उल्टा पड़ गया ।