नई दिल्ली । बैंकों की ब्रांचेज के ऑडिट को लेकर पैदा हुए कन्फ्यूजन को और हवा देते हुए इंस्टीट्यूट के छुटभैये नेताओं और बड़े नेताओं के विभिन्न शहरों में बैठे 'लोगों' ने जो शोर मचाया है, इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता ने उसे 'नाटकबाजी' और 'राजनीति' करार दिया है । उल्लेखनीय है कि आईबीए (इंडियन बैंक एसोसिएशन) द्वारा आरबीआई (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) को लिखे पत्र का हवाला देते हुए इंस्टीट्यूट की राजनीति से जुड़े कुछेक छुटभैये नेताओं, जिनमें से अधिकतर किसी न किसी सेंट्रल काउंसिल सदस्य के साथ जुड़े हैं और उनके 'आदमी' के रूप में देखे/पहचाने जाते हैं, ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को यह कहते/बताते हुए डराना शुरू कर दिया कि इस वर्ष आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को बैंकों की ब्रांचेज का ऑडिट करने का काम नहीं मिलेगा । आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को डराने के साथ-साथ इन्होंने इंस्टीट्यूट के बड़े पदाधिकारियों और सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों से गुहार लगाना भी शुरू किया कि उन्हें जरूरी कदम उठाना चाहिए, ताकि आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के 'अधिकार' को छीना न जा सके । इस मामले को लेकर छुटभैये नेता खूब सक्रियता दिखा रहे हैं - वह सोशल मीडिया में बड़े नेताओं को लिखे पत्र जारी कर रहे हैं, अपील कर रहे हैं, और यहाँ तक कि जूम मीटिंग्स कर रहे हैं । मामले में पत्र लिखने और अपील करने की बात तो फिर भी समझ में आती है, लेकिन आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के साथ जूम मीटिंग्स करने की जरूरत और उपयोगिता किसी को समझ में नहीं आ रही है - इसीलिए बबाल पैदा करने की कोशिशों को इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता ने 'नाटकबाजी' और 'राजनीति से प्रेरित' बताया है ।
अतुल गुप्ता का कहना है कि मामले को सही रूप में जानने/समझने की कोई कोशिश नहीं कर रहा है, और हर कोई सिर्फ राजनीति कर रहा है - ताकि वह आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को 'दिखा' सकें कि वह उनके लिए कितने परेशान हैं, और मामले के सही रूप में आने पर उसका श्रेय लूट सकें । अन्य कुछेक लोगों का यह भी कहना है कि मामले के सही रूप की जानकारी देने/बताने में प्रेसीडेंट के रूप में अतुल गुप्ता और इंस्टीट्यूट प्रशासन ने भी कोई पहल और कार्रवाई नहीं की, इसलिए चुनाव की तैयारी के तहत कुछेक नेताओं और उनके 'लोगों' ने आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच भय पैदा करने तथा अपनी राजनीति जमाने की कोशिशें शुरू कर दीं । जानकारों का कहना/बताना है कि लॉकडाउन के कारण बैंकों की ब्रांचेज के ऑडिट होने के काम को आगे बढ़ाने की व्यवस्था जिस तरह से बिगड़ी, उसे सुधारने के लिए जरूरी प्रबंध चूँकि नहीं किए गए, इसलिए असमंजस की स्थिति पैदा हुई । उल्लेखनीय है कि हमेशा की तरह कुछेक बैंकों ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को ऑडिट के लिए ब्रांचेज अलॉट कर दी थीं, लेकिन लॉकडाउन के कारण चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ब्रांचेज में पहुँच ही नहीं सके । लॉकडाउन के कारण ही अन्य कुछेक बैंकों को अलॉटमेंट का काम रोक देना पड़ा । इस बीच, मौजूदा हालात का वास्ता देते हुए आईबीए ने बैंकों की ब्रांचेज के ऑडिट के काम को सीमित करने का सुझाव आरबीआई को दे डाला । आईबीए के इस सुझाव ने लॉकडाउन में खाली बैठे हुए इंस्टीट्यूट के छुटभैये नेताओं को 'काम' दे दिया - उनके बड़े नेताओं ने भी अपनी अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने के लिए उन्हें काम पर लगा दिया ।
उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण दुनिया और देश में अभूतपूर्व स्थिति पैदा हुई है, और लोगों के लिए तरह तरह के संकट पैदा हुए हैं । शक्तिशाली सरकारें, नेता, योजनाकार हक्के-बक्के हैं और किसी की समझ में नहीं आ रहा है कि मौजूदा हालात से कैसे निपटें ? मौजूदा समय में, सोशल मीडिया में ज्ञान झाड़ने वाले 'मूर्खों' के पास तो हर समस्या को हल करने का फार्मूला है; लेकिन जिन्हें सचमुच समस्याओं को हल करना है, उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा है और वह तीर-तुक्के से काम चला रहे हैं । बैंकों की ब्रांचेज के ऑडिट के मामले में भी यही हाल है; ब्रांच अलॉट होने के बाद भी ऑडिट का काम शुरू नहीं हो सका - इससे ही जाहिर है कि बातें कोई चाहें जो और जितनी कर ले, समस्या को हल करने को लेकर ठोस तरीके का सुझाव किसी के पास नहीं है । इस मामले में विडंबना और मजे की बात यह है कि बैंकों के सीएसए (सेंट्रल स्टेटुटरी ऑडीटर्स) - जो इंस्टीट्यूट के ही सदस्य हैं, और कुछेक तो आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वोटों से सेंट्रल काउंसिल के सदस्य भी बने हैं - इस कोशिश में बताये जा रहे हैं कि आरबीआई, आईबीए के सुझाव को मान ले; ताकि बैंकों की सीमित ब्रांचेज के ऑडिट का काम भी उन्हें ही मिल जाए । ऐसे में, आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए यह समझना ही मुश्किल हो रहा है कि उनका 'अधिकार' छीनने में ज्यादा दिलचस्पी किस की है - आईबीए की, केंद्र सरकार की, और या उनके ही बीच में बैठे सीएसए की; उनके लिए समझना भी मुश्किल है कि इंस्टीट्यूट प्रशासन सरकार के सामने लाचार पड़ेगा, या सीएसए के दबाव में रहेगा । आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स भले ही असमंजस में हों और अपना काम/अधिकार छिनने की आशंका से डरे हुए हों, लेकिन उनके नाम पर इस्टीट्यूट में राजनीति करने वाले नेता और उनके 'आदमी' के रूप में पहचाने जाने वाले छुटभैये नेता अपनी अपनी राजनीति चमकाने के लिए पूरी तरह से सक्रिय हैं ।
अतुल गुप्ता का कहना है कि मामले को सही रूप में जानने/समझने की कोई कोशिश नहीं कर रहा है, और हर कोई सिर्फ राजनीति कर रहा है - ताकि वह आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को 'दिखा' सकें कि वह उनके लिए कितने परेशान हैं, और मामले के सही रूप में आने पर उसका श्रेय लूट सकें । अन्य कुछेक लोगों का यह भी कहना है कि मामले के सही रूप की जानकारी देने/बताने में प्रेसीडेंट के रूप में अतुल गुप्ता और इंस्टीट्यूट प्रशासन ने भी कोई पहल और कार्रवाई नहीं की, इसलिए चुनाव की तैयारी के तहत कुछेक नेताओं और उनके 'लोगों' ने आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच भय पैदा करने तथा अपनी राजनीति जमाने की कोशिशें शुरू कर दीं । जानकारों का कहना/बताना है कि लॉकडाउन के कारण बैंकों की ब्रांचेज के ऑडिट होने के काम को आगे बढ़ाने की व्यवस्था जिस तरह से बिगड़ी, उसे सुधारने के लिए जरूरी प्रबंध चूँकि नहीं किए गए, इसलिए असमंजस की स्थिति पैदा हुई । उल्लेखनीय है कि हमेशा की तरह कुछेक बैंकों ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को ऑडिट के लिए ब्रांचेज अलॉट कर दी थीं, लेकिन लॉकडाउन के कारण चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ब्रांचेज में पहुँच ही नहीं सके । लॉकडाउन के कारण ही अन्य कुछेक बैंकों को अलॉटमेंट का काम रोक देना पड़ा । इस बीच, मौजूदा हालात का वास्ता देते हुए आईबीए ने बैंकों की ब्रांचेज के ऑडिट के काम को सीमित करने का सुझाव आरबीआई को दे डाला । आईबीए के इस सुझाव ने लॉकडाउन में खाली बैठे हुए इंस्टीट्यूट के छुटभैये नेताओं को 'काम' दे दिया - उनके बड़े नेताओं ने भी अपनी अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने के लिए उन्हें काम पर लगा दिया ।
उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण दुनिया और देश में अभूतपूर्व स्थिति पैदा हुई है, और लोगों के लिए तरह तरह के संकट पैदा हुए हैं । शक्तिशाली सरकारें, नेता, योजनाकार हक्के-बक्के हैं और किसी की समझ में नहीं आ रहा है कि मौजूदा हालात से कैसे निपटें ? मौजूदा समय में, सोशल मीडिया में ज्ञान झाड़ने वाले 'मूर्खों' के पास तो हर समस्या को हल करने का फार्मूला है; लेकिन जिन्हें सचमुच समस्याओं को हल करना है, उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा है और वह तीर-तुक्के से काम चला रहे हैं । बैंकों की ब्रांचेज के ऑडिट के मामले में भी यही हाल है; ब्रांच अलॉट होने के बाद भी ऑडिट का काम शुरू नहीं हो सका - इससे ही जाहिर है कि बातें कोई चाहें जो और जितनी कर ले, समस्या को हल करने को लेकर ठोस तरीके का सुझाव किसी के पास नहीं है । इस मामले में विडंबना और मजे की बात यह है कि बैंकों के सीएसए (सेंट्रल स्टेटुटरी ऑडीटर्स) - जो इंस्टीट्यूट के ही सदस्य हैं, और कुछेक तो आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वोटों से सेंट्रल काउंसिल के सदस्य भी बने हैं - इस कोशिश में बताये जा रहे हैं कि आरबीआई, आईबीए के सुझाव को मान ले; ताकि बैंकों की सीमित ब्रांचेज के ऑडिट का काम भी उन्हें ही मिल जाए । ऐसे में, आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए यह समझना ही मुश्किल हो रहा है कि उनका 'अधिकार' छीनने में ज्यादा दिलचस्पी किस की है - आईबीए की, केंद्र सरकार की, और या उनके ही बीच में बैठे सीएसए की; उनके लिए समझना भी मुश्किल है कि इंस्टीट्यूट प्रशासन सरकार के सामने लाचार पड़ेगा, या सीएसए के दबाव में रहेगा । आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स भले ही असमंजस में हों और अपना काम/अधिकार छिनने की आशंका से डरे हुए हों, लेकिन उनके नाम पर इस्टीट्यूट में राजनीति करने वाले नेता और उनके 'आदमी' के रूप में पहचाने जाने वाले छुटभैये नेता अपनी अपनी राजनीति चमकाने के लिए पूरी तरह से सक्रिय हैं ।