Thursday, October 10, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3110 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए पवन अग्रवाल को अधिकृत उम्मीदवार चुनवा कर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि प्रकाश अग्रवाल ने पहले राउंड में अपने गुरु रहे आईएस तोमर को मात दी

बरेली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नोमीनेटिंग कमेटी के जरिये पवन अग्रवाल के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने से डिस्ट्रिक्ट में छिड़ी चुनावी लड़ाई का पहला राउंड गवर्नर खेमे ने जीत लिया है । तोमर खेमे ने इस जीत को बेईमानी से पाई गई जीत घोषित किया है, और इसके खिलाफ रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत करने की घोषणा की है । लेकिन जैसा कि माना/कहा जाता है कि 'जो जीता, वह सिकंदर' - इस आधार पर गवर्नर खेमे में उत्साह व खुशी का माहौल है, जिसने तोमर खेमे के लोगों की निराशा को और बढ़ाया हुआ है । इस जीत का हालाँकि आंशिक महत्त्व ही है, क्योंकि असली लड़ाई तो अभी बाकी है; लेकिन प्रतीकात्मक रूप से इस जीत/हार का बड़ा 'मतलब' है । दरअसल नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में जो घटनाक्रम हुआ, उससे साबित होता है कि गवर्नर खेमे के पास एक कुशल रणनीति थी, जबकि तोमर खेमा गलतफहमी में था और वह समझ रहा था कि वह धौंस-डपट से इस लड़ाई को जीत लेगा । तोमर खेमे के पास समर्थन आधार ज्यादा था, लेकिन वह यह समझने की चूक कर बैठा कि चुनावी लड़ाई सिर्फ संख्या-बल से नहीं जीती जाती - उसमें रणनीति नाम की चीज की भी जरूरत होती है । तोमर खेमे के नेताओं ने इस तथ्य की भी अनदेखी की कि गवर्नर खेमे की बागडोर जिन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि प्रकाश अग्रवाल के पास है, वह आईएस तोमर के ही पक्के वाले मुख्य चेले रहे हैं, और इसलिए उनके सारे राजनीतिक हथकंडों को जानते/समझते हैं - और इस कारण से वह उनके हथकंडों को फेल करने की तरकीबें लगायेंगे । गवर्नर खेमे ने तरकीबें लगाईं और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की पहली बाजी जीत ली ।
गवर्नर खेमे ने तोमर खेमे से निपटने के लिए दो बड़े काम किए - एक तो उन्होंने 'घटना' स्थल पर बाउंसर्स लगा लिए, और दूसरा काम उन्होंने यह किया कि रोटरी इंटरनेशनल से ऑब्जर्वर माँग/बुला लिया । रोटरी में चुनावी प्रक्रिया को ईमानदारी से पूरी करवाने के लिए ऑब्जर्वर माँगने/बुलाने की घटनाएँ तो होती हैं, लेकिन ऑब्जर्वर की माँग विरोधी खेमे की तरफ से होती है । डिस्ट्रिक्ट 3110 में यह उल्टी गंगा बही कि खुद गवर्नर ने ही ऑब्जर्वर की माँग की । और बाउंसर्स की तैनाती तो डिस्ट्रिक्ट क्या, रोटरी के इतिहास की अनोखी घटना बनी । दरअसल गवर्नर खेमे को डर था कि तोमर खेमे के लोग दादागिरी व धौंस-डपट के जरिये नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव में और फिर उसके फैसले में मनमानी करेंगे और इससे भी उन्हें अपनी दाल गलती हुई नहीं दिखेगी, तो वह पूरी प्रक्रिया को रद्द करवा देने का काम करेंगे । पाँच सदस्यीय इलेक्शन कमेटी में तीन सदस्य तोमर खेमे के थे, और इलेक्शन को रद्द या अमान्य कर देना उनके लिए बहुत आसान होता । रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के अनुसार, 9 अक्टूबर को यदि प्रक्रिया पूरी नहीं होती, तब पिछले पाँच गवर्नर्स की नोमीनेटिंग कमेटी बनती और वह अधिकृत उम्मीदवार का चयन/चुनाव करती । तोमर खेमे के नेताओं ने सोचा यह था कि वह 9 अक्टूबर को प्रक्रिया पूरी नहीं होने देंगे - और फिर स्थितियाँ पूरी तरह उनके हाथ में आ जायेंगी । गवर्नर खेमे ने इसीलिए रोटरी इंटरनेशनल से नोमीनेटिंग कमेटी की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए ऑब्जर्वर की माँग की ।
ऑब्जर्वर के रूप में आए डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर संजय खन्ना के सामने चुनौती यह थी कि वह प्रक्रिया को पूरा करवाएँ - तभी उनके 'आने' का कोई मतलब है; संजय खन्ना ऑब्जर्वर के रूप में तमाशबीन की भूमिका निभाने के लिए तैयार नहीं थे । उन्होंने आईएस तोमर तथा उनके खेमे के अन्य नेताओं से अलग अलग बात की और यह कहते हुए उन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया कि रोटरी इंटरनेशनल द्वारा तय की गई प्रक्रिया यदि पूरी नहीं होगी, तो डिस्ट्रिक्ट की बदनामी होगी । आईएस तोमर तथा उनके संगी-साथी इस मनोवैज्ञानिक दबाव से निपटने के लिए तैयार नहीं थे; वह तो वास्तव में इसके लिए भी तैयार नहीं थे कि कोई ऑब्जर्वर आ जायेगा । गवर्नर खेमे ने ऑब्जर्वर आने की बात उनसे छिपा कर ही रखी, और तोमर खेमे को यह बात 8 अक्टूबर को तब पता चली, जब संजय खन्ना ने बरेली पहुँच कर उनसे संपर्क किया । ऑब्जर्वर की नियुक्ति करवा कर गवर्नर खेमे ने जो मास्टरस्ट्रोक चला, उसने फिर तोमर खेमे के नेताओं के हाथ-पैर बाँध दिए । 'घटना'स्थल पर बाउंसर्स की तैनाती को देख कर तोमर खेमे के लोगों के हौंसले पूरी तरह पस्त हो गए । प्रक्रिया के दौरान इलेक्शन कमेटी में तोमर खेमे के लोगों ने कई-कई मामलों में आपत्तियाँ करते हुए प्रक्रिया में बाधा पहुँचाने तथा प्रक्रिया को रद्द करवाने के लिए कोशिशें तो खूब कीं, लेकिन संजय खन्ना ने उनकी कोशिशों को कामयाब नहीं होने दिया - संजय खन्ना ने कुछ आपत्तियों को सुना और उन्हें ठीक करवाया, कुछ आपत्तियों पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर किशोर कातरू को झिड़का भी, और कुछेक आपत्तियों को अनसुना भी किया; और यह सब करते हुए उन्होंने सुनिश्चित किया कि प्रक्रिया पूरी तरह से संपन्न हो । इससे तोमर खेमे के लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया; कुछ कुछ शिकायतों के सहारे उन्होंने अपनी उम्मीदों को बनाये रखने का प्रयास तो खूब किया - लेकिन संजय खन्ना की व्यूह रचना के सामने उनकी एक नहीं चली और अंततः उनके हाथ पराजय व निराशा ही लगी ।
तोमर खेमे के नेता बेईमानी होने के आरोपों के साथ-साथ इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी की भी आलोचना करते हैं । उनका कहना है कि कमल सांघवी ने संजय खन्ना को सिखा-पढ़ा कर भेजा था कि उन्हें क्या करना है, और संजय खन्ना ने ठीक वही किया । आरोप गवर्नर खेमे के भी कम नहीं हैं । दोनों खेमों के आरोप-प्रत्यारोप अपनी जगह पर हैं और औपचारिक शिकायत होने पर उनके बारे में फैसला रोटरी इंटरनेशनल करेगा; अभी लेकिन यही माना/कहा जा सकता है कि अधिकृत उम्मीदवार चुनने की 'लड़ाई' में गवर्नर खेमे का पलड़ा भारी साबित हुआ है - और यह इसलिए क्योंकि उनके पास एक बेहतर रणनीति थी । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लगने लगा है कि तोमर खेमे के लोगों ने यदि राजनीतिक होशियारी से काम नहीं लिया और यही मानते/समझते रहे कि वह धौंस-डपट से चुनावी नतीजे को प्रभावित कर लेंगे, तो वह झटका खायेंगे ।