Thursday, October 31, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर नवीन गुलाटी की एकतरफा जीत को टीके रूबी के गवर्नर-वर्ष में चुनाव की चाबी प्रेसीडेंट्स को सौंप कर राजा साबू खेमे के नेताओं को अलग-थलग करके मजबूर बना देने वाले फैसले के नतीजे के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है 

पानीपत । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में नवीन गुलाटी की एकतरफा तथा बंपर चुनावी जीत ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में बदल रहे समीकरणों को पूरी तरह से ठोस रूप दे दिया है, और राजा साबू खेमे के नेताओं को पूरी तरह न सिर्फ किनारे लगा दिया है, बल्कि उन्हें असहाय और अलग-थलग कर दिया है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में पहली बार ऐसा हुआ है कि राजा साबू और उनके खेमे के नेताओं ने अपने आप को इतना असहाय और अलग-थलग पाया कि उनके लिए यह समझ पाना और तय कर पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव हुआ कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उनकी भूमिका क्या हो ? पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू ने वर्षों अपने इशारे पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) बनाये हैं; डिस्ट्रिक्ट में उनके आशीर्वाद के बिना कोई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) बनने के बारे में सोच भी नहीं सकता था । दरअसल इसी रुतबे से पैदा हुए घमंड के चक्कर में उनकी ऐसी दशा हो गई है कि अब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उनकी आवाज का रत्ती भर का महत्त्व भी नहीं बचा रह गया है । अभी तीन-चार वर्ष पहले तक जो लोग राजा साबू तथा उनके खेमे के नेताओं के भरोसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की लाइन में लगे हुए दिख रहे थे, वह न जाने कहाँ छिप गए हैं - और वह लोग गवर्नर बन रहे हैं, जिन्हें राजा साबू खेमे के इशारे पर डिस्ट्रिक्ट टीम से ही निकाल बाहर किया गया था । नवीन गुलाटी उन बारह रोटेरियंस में चौथे हैं, जिन्हें चार वर्ष पहले टीके रूबी के समर्थन में होने वाली मीटिंग में शामिल होने के 'अपराध' में डेविड हिल्टन के गवर्नर वर्ष में डिस्ट्रिक्ट टीम से निकाल दिया गया था ।
उसके बाद से ही सत्ता का पहिया इतनी तेजी से घूमा है कि जिन टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर न बनने देने के लिए राजा साबू और उनके खेमे के नेताओं ने हर तरह की हरकत की, उन्हीं टीके रूबी का समर्थन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) पद के उम्मीदवारों के लिए जरूरी हो गया है; और टीके रूबी के साथ खड़े होने/दिखने वाले जिन लोगों को चुन चुन कर डिस्ट्रिक्ट टीम से बाहर किया गया था, वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) बनते जा रहे हैं - और राजा साबू तथा उनके खेमे के नेता असहाय व अलग-थलग पड़ गए हैं । टीके रूबी को गवर्नर न बनने देने की राजा साबू और उनके खेमे के नेताओं की जिद अंततः उन्हें इतना भारी पड़ेगी, इसकी उन्होंने या अन्य किसी ने कल्पना भी नहीं की थी । पिछले रोटरी वर्ष तक राजा साबू खेमे के नेता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में भूमिका निभा रहे थे, और डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में घटते अपने प्रभाव को बचाने तथा उस पर पुनः काबिज होने की तिकड़मों में लगे थे - लेकिन इस वर्ष उन्होंने कोई हिम्मत नहीं की और पूरी तरह समर्पण करते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव से उन्होंने अपने आप को दूर ही रखा । शुरू में राजा साबू ने महिला गवर्नर की बात उठा कर अपनी चलाने की कोशिश जरूर की थी, लेकिन जब उन्होंने देखा कि कोई उनकी बात सुन ही नहीं रहा है तो फिर वह चुप लगा गए । अपने ही डिस्ट्रिक्ट में राजा साबू की ऐसी राजनीतिक दुर्गति होगी, यह उन्होंने तो क्या - उनके विरोधियों ने भी नहीं सोचा था ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति से राजा साबू और उनके खेमे के नेताओं को बाहर करने में टीके रूबी के गवर्नर-वर्ष में हुए/लिए गए उस फैसले का निर्णायक असर रहा है, जिसके तहत नोमीनेटिंग कमेटी की व्यवस्था को खत्म करके सीधे चुनाव के तरीके को अपनाया गया । दरअसल इस फैसले के जरिये टीके रूबी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति की चाबी क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को पकड़ा दी है और इस तरह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में रोटेरियंस की भूमिका को न सिर्फ महत्त्वपूर्ण बना दिया, बल्कि निर्णायक रूप दे दिया है । इससे पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति की चाबी राजा साबू और उनके पाँच/सात नजदीकी गवर्नर्स के पास ही रहती थी, और इनमें भी राजा साबू का फैसला ही अंतिम फैसला होता था । दरअसल नोमीनेटिंग कमेटी वाली व्यवस्था में राजा साबू खेमे की 'राजनीतिक जान' बसती थी; और इसी कारण से टीके रूबी के गवर्नर-वर्ष की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत हुए रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के प्रस्ताव को राजा साबू खेमे ने भारी विरोध किया था और उसे प्रस्तुत होने से रोकने की हर संभव कोशिश की थी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी को इसका अंदाजा था और इसीलिए उन्होंने पूरी 'फील्डिंग' लगाई हुई थी और राजा साबू के विरोध को सफल नहीं होने दिया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की चाबी क्लब्स के प्रेसीडेंट्स तथा आम रोटेरियंस के हाथ में आ जाने से राजा साबू और उनके खेमे के नेताओं की राजनीतिक कमर टूट गई है और वह मजबूर बन कर रह गए हैं ।