Friday, October 11, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में अपने मेडीकल मिशन को हरी झंडी दिलवाने के लिए राजा साबू की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में बिना माँगे सत्ता खेमे के उम्मीदवार नवीन गुलाटी को वोट देने की तैयारी को उनकी चालबाजी के रूप में देखते/समझते हुए सत्ता पक्ष के नेता उनके वोटों को लेकर कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखा रहे हैं

चंडीगढ़ । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में टीके रूबी व जितेंद्र ढींगरा के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे के सामने समर्पण करते हुए उनके उम्मीदवार का समर्थन करना चाहते हैं, लेकिन सत्ता खेमे के नेता उनके समर्थन को लेकर उत्साह ही नहीं दिखा रहे हैं । समझा जाता है कि राजा साबू ने अपने स्वार्थों - खासकर अपने तथाकथित मेडीकल मिशनों को पूरा करने के लिए टीके रूबी व जितेंद्र ढींगरा के नेतृत्व वाले सत्ता खेमे के सामने समर्पण करने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी है । पिछले वर्षों में लगातार मिलती रही चुनावी पराजयों को देखते हुए राजा साबू ने समझ लिया है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति की कमान उनके हाथ से निकल चुकी है, इसलिए रोटरी के नाम पर पूरे किए जाने वाले अपने स्वार्थों के लिए उन्हें सत्ता खेमे की मदद की जरूरत पड़ेगी ही । राजा साबू तथा उनके साथी गवर्नर्स मान/समझ रहे हैं कि 13 अक्टूबर की सुबह से शुरू होने वाली वोटिंग में उनके समर्थन के बिना भी नवीन गुलाटी को काफी वोट मिल जायेंगे और वह भारी बहुमत से चुनाव जीत जायेंगे, इसलिए उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार को वोट देने का भला क्या फायदा । राजा साबू के लिए मुसीबत की बात लेकिन यह है कि वह तो समर्पण करने के लिए तैयार हैं, लेकिन सत्ता खेमे के नेताओं की तरफ से अभी यह स्पष्ट नहीं है कि वह राजा साबू का समर्पण 'स्वीकार' करेंगे या नहीं । उनकी तरफ से कहा जा रहा है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में जिसको वोट देना चाहें दें, वह उनसे नवीन गुलाटी के लिए वोट देने को नहीं कहेंगे । दरअसल सत्ता खेमे के कुछेक नेताओं का मानना और कहना है कि राजा साबू विश्वास करने योग्य व्यक्ति नहीं हैं; अभी अपना काम निकालने के लिए वह भले ही मीठे-मीठे बनने/दिखने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन काम निकलने के बाद और मौका मिलने पर वह फिर अपने असली रंग में आ जायेंगे ।
राजा साबू के प्रति यह अविश्वास दरअसल इसलिए भी है, क्योंकि देखा/पाया जा रहा है कि राजा साबू एक तरफ तो सत्ता खेमे के नेताओं के साथ मेल-मिलाप करने की कोशिशें कर रहे हैं, लेकिन साथ ही साथ दूसरी तरफ उन्होंने अपने नजदीकी गवर्नर्स को सत्ता खेमे के नेताओं को तरह तरह से परेशान करने व निशाने पर लेने की छूट दी हुई है । इससे लग रहा है कि राजा साबू ने सत्ता खेमे के नेताओं के प्रति 'पुचकारों' और 'धमकाओ' की दोहरी रणनीति अपना रखी है । असल में राजा साबू को पता है कि सत्ता खेमे के कुछेक नेता उनके प्रति नरम रवैया रखते हैं और उनकी 'जरूरतों' को पूरा करने/करवाने में बाधा खड़ी करने के पक्ष में नहीं हैं; लेकिन अन्य कुछेक नेता जानते/समझते हैं कि राजा साबू खेमे की 'जान' डिस्ट्रिक्ट के ट्रस्टों व मेडीकल मिशन जैसे तथाकथित प्रोजेक्ट्स में बसती है और इसलिए उन्हें निशाने पर रख कर वह राजा साबू खेमे के नेताओं को दबाव में रख सकते हैं । ऐसे में, अपनी दोहरी रणनीति के जरिये राजा साबू वास्तव में सत्ता खेमे में दरार डालना चाहते हैं, ताकि उसमें फूट पड़े और राजा साबू को डिस्ट्रिक्ट में मनमानी करने का फिर से मौका मिले । राजा साबू फिलहाल जिम्बाब्बे मेडीकल मिशन को डिस्ट्रिक्ट में हरी झंडी न मिलने से परेशान हैं; राजनीतिक समर्पण के जरिये वह असल में सत्ता खेमे के नरम पक्ष के नेताओं को उकसाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि वह सत्ता पक्ष के गरम पक्ष के लोगों से इस बात को लेकर झगड़ें कि राजा साबू जब हमारे उम्मीदवार के सामने समस्या खड़ी नहीं कर रहे हैं तो हमें उनके काम में बाधा क्यों डालना चाहिए । राजा साबू बड़ी होशियारी से यह 'दिखाने'/जताने का माहौल भी बना रहे हैं कि कोई पूर्व गवर्नर्स यदि किन्हीं अन्य पूर्व गवर्नर के खिलाफ कुछ कर रहे हैं तो यह उनकी व्यक्तिगत लड़ाई है, और इसमें उनका कोई हाथ नहीं है और इसका डिस्ट्रिक्ट व रोटरी पर प्रभाव नहीं पड़ने देना चाहिए ।
राजा साबू की इन चालाकियों को समझते हुए सत्ता खेमे के कुछेक नेता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उनकी मदद लेने को उत्साहित नहीं हैं । उनका कहना है कि राजा साबू तथा उनके खेमे के नेताओं का समर्थन नहीं भी मिलेगा, तब भी नवीन गुलाटी को 110 के करीब वोट आराम से मिल जायेंगे; और वह बड़े अंतर से चुनाव जीत जायेंगे - इसलिए राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स का समर्थन लेने की कोई जरूरत ही नहीं है । इनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में उन्होंने जो प्रभुत्व बनाया है, वह स्थितियों से 'लड़' कर और उनका मुकाबला करके बनाया है; इस स्थिति को बनाए रखने के लिए आगे भी उन्हें 'लड़ना' ही पड़ेगा - अन्यथा राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स फिर से सिर उठा लेंगे; इसलिए राजा साबू के झाँसे में आने की जरूरत नहीं है । इससे राजा साबू के सामने बड़ी फजीहत वाली स्थिति बन गई है - अपने मेडीकल मिशन को हरी झंडी दिलवाने के लिए वह बिना माँगे सत्ता खेमे के उम्मीदवार को वोट देने के लिए तैयार हैं, लेकिन उनकी चालबाजी समझते हुए सत्ता पक्ष के नेता उनके वोटों को लेकर कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखा रहे हैं । राजा साबू को हालाँकि उम्मीद है कि सत्ता खेमे के उम्मीदवार को बिना माँगे समर्थन देने का उन्होंने जो 'रास्ता' पकड़ा है, वह अभी भले ही उनकी फजीहत करवाने वाला लग रहा हो - किंतु भविष्य में यही 'रास्ता' सत्ता खेमे में फूट डालने का काम करेगा और उन्हें डिस्ट्रिक्ट में पहले जैसी हैसियत में पहुँचायेगा ।