लखनऊ ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विशाल सिन्हा ने एक ऐसे व्यक्ति को डिस्ट्रिक्ट
कैबिनेट का पदाधिकारी बनाने का 'ऐतिहासिक' काम किया है, जो लायन सदस्य ही
नहीं है । लायंस इंटरनेशनल के सौंवे वर्ष में विशाल सिन्हा की तरफ से
यह एक अनोखा रिकॉर्ड बनाया गया है । सौ वर्षों के होने जा रहे लायंस
इंटरनेशनल के इतिहास में इससे पहले कभी ऐसा नहीं हुआ है । विशाल सिन्हा ने
अपनी कैबिनेट में डॉक्टर गुरचरण सिंह को चेयरमैन परमानेंट प्रोजेक्ट्स
बनाया है । डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी में उनके नाम/पते और पद के साथ उन्हें
लायंस क्लब लखनऊ प्रीमियर का सदस्य बताया गया है । लखनऊ प्रीमियर पूर्व
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गुरनाम सिंह का क्लब है । 'रचनात्मक संकल्प' के पास
लायंस क्लब लखनऊ प्रीमियर के आज/अभी - इन पँक्तियों के लिखे जाने तक के 37
सदस्यों की जो सूची है, उसमें लेकिन डॉक्टर गुरचरण सिंह का नाम नहीं है ।
जाहिर है कि डॉक्टर गुरचरण सिंह को कैबिनेट में लेने के लिए विशाल सिन्हा
को झूठ बोलना पड़ा है, और लायंस इंटरनेशनल के साथ धोखा करना पड़ा है ।
अपने पाठकों को हम बता दें कि डॉक्टर गुरचरण सिंह करीब दो वर्ष पहले लखनऊ
प्रीमियर के सदस्य थे; दो वर्ष पहले क्लब में झगड़ों/विवादों से परेशान होकर
लेकिन उन्होंने लायंस क्लब लखनऊ में ट्रांसफर ले लिया था । ट्रांसफर तो
उन्होंने ले लिया था, किंतु लायनिज्म से उनका ऐसा मोहभंग हुआ कि तीन-चार
महीने में ही उन्होंने वह क्लब भी और लायनिज्म को भी छोड़ दिया । तकनीकी
रूप से वह पिछले करीब एक वर्ष से लायनिज्म में नहीं हैं, और किसी भी क्लब
के सदस्य नहीं हैं । इस नाते, लायंस इंटरनेशनल के नियमों/कानूनों तथा
व्यवस्था के अनुसार वह डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के पदाधिकारी या सदस्य नहीं बन
सकते हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विशाल सिन्हा ने लेकिन लायंस इंटरनेशनल के
नियमों/कानूनों को तथा उसकी व्यवस्था को ठेंगा दिखाते हुए डॉक्टर गुरचरण
सिंह को कैबिनेट में पदाधिकारी बना दिया है ।
विशाल सिन्हा ने लायंस इंटरनेशनल विरोधी यह काम आखिर क्यों किया ? उन्हें भी आभास तो होगा ही कि उनकी यह हरकत उनकी और डिस्ट्रिक्ट की ही बदनामी का सबब नहीं बनेगी, बल्कि इंटरनेशनल फर्स्ट वाइस प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल को भी बदनामी दिलवायेगी । डिस्ट्रिक्ट के लोगों का ही कहना है कि नरेश अग्रवाल को लोगों से सुनना पड़ सकता है कि उनके अपने मल्टीपल में कैसे कैसे गवर्नर हैं, जो लायंस इंटरनेशनल के नियम/कानून तो नहीं ही मानते हैं, उसके साथ साथ धोखाधड़ी और करते हैं ? इसीलिए लोगों के बीच सवाल चर्चा में है कि विशाल सिन्हा ने डॉक्टर गुरचरण सिंह को लायन सदस्य न होते हुए भी डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट में पदाधिकारी आखिर क्यों बनाया, और क्यों उनके क्लब की झूठी पहचान को दर्ज किया है ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में ही बैठने/उठने वाले लोगों का कहना है कि डॉक्टर गुरुचरण सिंह से साढ़े तीन हजार रुपए ऐंठने के चक्कर में विशाल सिन्हा ने लायन इंटरनेशनल से यह धोखाधड़ी की है । विशाल सिन्हा प्रत्येक कैबिनेट पदाधिकारी से साढ़े तीन हजार रुपए बसूल रहे हैं । वह ज्यादा से ज्यादा पैसा इकट्ठा कर सकें, इसके लिए उन्होंने बहुत भारी-भरकम कैबिनेट बना ली है, और ऐसे ऐसे लोगों को कैबिनेट में पदाधिकारी बना दिया है - जो पदाधिकारी होने की पात्रता भी नहीं रखते हैं । विशाल सिन्हा ने इस सिद्धांत पर काम किया कि उद्देश्य जब पैसा इकट्ठा करना हो, तो फिर पात्रता भला क्या और क्यों देखना ?
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी के चेयरमैन नीरज बोरा ने विशाल सिन्हा को आगाह भी किया था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जिस तरह से उन्होंने सिर्फ पैसे बटोरने को अपना उद्देश्य बना लिया है, और लायंस इंटरनेशनल के नियम/कानूनों व व्यवस्था का उल्लंघन करके कैबिनेट के पदाधिकारी बना रहे हो - उससे डिस्ट्रिक्ट की और खुद उनकी भी बदनामी होगी । विशाल सिन्हा ने लेकिन नीरज बोरा की बात पर ध्यान नहीं दिया । विशाल सिन्हा को मनमानी करता तथा लायंस इंटरनेशनल के नियमों/कानूनों व व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करता देख नीरज बोरा ने अंततः डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे देने में ही अपनी भलाई समझी । नीरज बोरा ने स्पष्ट कर दिया कि विशाल सिन्हा की कारस्तानियों के कारण होने वाली बदनामी का वह हिस्सा नहीं बनना चाहेंगे । नीरज बोरा के इस्तीफे से होने वाली फजीहत से भी विशाल सिन्हा ने लेकिन कोई सबक नहीं सीखा । किसी भी लायंस डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी का चेयरमैन पहले ही महीने में अपने पद से इस्तीफा दे दे, यह किसी भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए बहुत ही शर्म की बात है ।
उल्लेखनीय है कि पिछले लायन वर्ष तक डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट में करीब करीब तीन सौ पदाधिकारी रहते/होते रहे हैं; विशाल सिन्हा ने लेकिन डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के पदाधिकारियों की संख्या को करीब छह सौ तक पहुँचा दिया है । उनके नजदीकियों तक का कहना है कि ज्यादा से ज्यादा पैसा इकट्ठा करने के लिए विशाल सिन्हा को यही तरीका समझ में आया कि वह कैबिनेट पदाधिकारियों की संख्या अनाप-शनाप तरीके से बढ़ा दें । ऐसा करते हुए विशाल सिन्हा ने ऐसे ऐसे लोगों को भी डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट में पदाधिकारी बना दिया है, जो अभी हाल-फिलहाल में ही लायन सदस्य बने हैं, तथा अभी क्लब में भी पदाधिकारी नहीं बने हैं । समझा जा सकता है कि ऐसे लोग डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के पदाधिकारी के रूप में क्या करेंगे ? विशाल सिन्हा के लिए वास्तव में चिंता की बात यह है भी नहीं कि ऐसे लोग डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के पदाधिकारी के रूप में करेंगे क्या ? विशाल सिन्हा ने तो बस यह किया कि साढ़े तीन हजार के हिसाब से पैसे बसूलते हुए लोगों को कैबिनेट पदाधिकारी का पद 'बेच' दिया । कैबिनेट पद बेचने के काम में विशाल सिन्हा इतने रफ़्तार में रहे कि डॉक्टर गुरचरण सिंह जैसे गैर-लायन को भी पद बेच बैठे । लायंस इंटरनेशनल के सौंवे वर्ष में विशाल सिन्हा का यह कारनामा - डिस्ट्रिक्ट के लोगों के अनुसार ही, लायनिज्म को कलंकित करने वाला ही है ।
विशाल सिन्हा ने लायंस इंटरनेशनल विरोधी यह काम आखिर क्यों किया ? उन्हें भी आभास तो होगा ही कि उनकी यह हरकत उनकी और डिस्ट्रिक्ट की ही बदनामी का सबब नहीं बनेगी, बल्कि इंटरनेशनल फर्स्ट वाइस प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल को भी बदनामी दिलवायेगी । डिस्ट्रिक्ट के लोगों का ही कहना है कि नरेश अग्रवाल को लोगों से सुनना पड़ सकता है कि उनके अपने मल्टीपल में कैसे कैसे गवर्नर हैं, जो लायंस इंटरनेशनल के नियम/कानून तो नहीं ही मानते हैं, उसके साथ साथ धोखाधड़ी और करते हैं ? इसीलिए लोगों के बीच सवाल चर्चा में है कि विशाल सिन्हा ने डॉक्टर गुरचरण सिंह को लायन सदस्य न होते हुए भी डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट में पदाधिकारी आखिर क्यों बनाया, और क्यों उनके क्लब की झूठी पहचान को दर्ज किया है ? डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में ही बैठने/उठने वाले लोगों का कहना है कि डॉक्टर गुरुचरण सिंह से साढ़े तीन हजार रुपए ऐंठने के चक्कर में विशाल सिन्हा ने लायन इंटरनेशनल से यह धोखाधड़ी की है । विशाल सिन्हा प्रत्येक कैबिनेट पदाधिकारी से साढ़े तीन हजार रुपए बसूल रहे हैं । वह ज्यादा से ज्यादा पैसा इकट्ठा कर सकें, इसके लिए उन्होंने बहुत भारी-भरकम कैबिनेट बना ली है, और ऐसे ऐसे लोगों को कैबिनेट में पदाधिकारी बना दिया है - जो पदाधिकारी होने की पात्रता भी नहीं रखते हैं । विशाल सिन्हा ने इस सिद्धांत पर काम किया कि उद्देश्य जब पैसा इकट्ठा करना हो, तो फिर पात्रता भला क्या और क्यों देखना ?
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी के चेयरमैन नीरज बोरा ने विशाल सिन्हा को आगाह भी किया था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में जिस तरह से उन्होंने सिर्फ पैसे बटोरने को अपना उद्देश्य बना लिया है, और लायंस इंटरनेशनल के नियम/कानूनों व व्यवस्था का उल्लंघन करके कैबिनेट के पदाधिकारी बना रहे हो - उससे डिस्ट्रिक्ट की और खुद उनकी भी बदनामी होगी । विशाल सिन्हा ने लेकिन नीरज बोरा की बात पर ध्यान नहीं दिया । विशाल सिन्हा को मनमानी करता तथा लायंस इंटरनेशनल के नियमों/कानूनों व व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करता देख नीरज बोरा ने अंततः डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी के चेयरमैन पद से इस्तीफा दे देने में ही अपनी भलाई समझी । नीरज बोरा ने स्पष्ट कर दिया कि विशाल सिन्हा की कारस्तानियों के कारण होने वाली बदनामी का वह हिस्सा नहीं बनना चाहेंगे । नीरज बोरा के इस्तीफे से होने वाली फजीहत से भी विशाल सिन्हा ने लेकिन कोई सबक नहीं सीखा । किसी भी लायंस डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी का चेयरमैन पहले ही महीने में अपने पद से इस्तीफा दे दे, यह किसी भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए बहुत ही शर्म की बात है ।
उल्लेखनीय है कि पिछले लायन वर्ष तक डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट में करीब करीब तीन सौ पदाधिकारी रहते/होते रहे हैं; विशाल सिन्हा ने लेकिन डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के पदाधिकारियों की संख्या को करीब छह सौ तक पहुँचा दिया है । उनके नजदीकियों तक का कहना है कि ज्यादा से ज्यादा पैसा इकट्ठा करने के लिए विशाल सिन्हा को यही तरीका समझ में आया कि वह कैबिनेट पदाधिकारियों की संख्या अनाप-शनाप तरीके से बढ़ा दें । ऐसा करते हुए विशाल सिन्हा ने ऐसे ऐसे लोगों को भी डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट में पदाधिकारी बना दिया है, जो अभी हाल-फिलहाल में ही लायन सदस्य बने हैं, तथा अभी क्लब में भी पदाधिकारी नहीं बने हैं । समझा जा सकता है कि ऐसे लोग डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के पदाधिकारी के रूप में क्या करेंगे ? विशाल सिन्हा के लिए वास्तव में चिंता की बात यह है भी नहीं कि ऐसे लोग डिस्ट्रिक्ट कैबिनेट के पदाधिकारी के रूप में करेंगे क्या ? विशाल सिन्हा ने तो बस यह किया कि साढ़े तीन हजार के हिसाब से पैसे बसूलते हुए लोगों को कैबिनेट पदाधिकारी का पद 'बेच' दिया । कैबिनेट पद बेचने के काम में विशाल सिन्हा इतने रफ़्तार में रहे कि डॉक्टर गुरचरण सिंह जैसे गैर-लायन को भी पद बेच बैठे । लायंस इंटरनेशनल के सौंवे वर्ष में विशाल सिन्हा का यह कारनामा - डिस्ट्रिक्ट के लोगों के अनुसार ही, लायनिज्म को कलंकित करने वाला ही है ।