नई
दिल्ली । अशोक जैन की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी को दौड़
में बनाए रखने के लिए रमेश अग्रवाल और शरत जैन के सामने अपने क्लब के
अधिष्ठापन समारोह को प्रभावी तरीके से करने की जो चुनौती थी, उसे काफी हद
तक निभा लेने में उन्होंने सफलता प्राप्त की - और
अधिष्ठापन समारोह में क्लब-अध्यक्षों व दूसरे प्रमुख लोगों की उपस्थिति को
संभव बना लेने के अपने लक्ष्य को उन्होंने पा लिया । उनके विरोधियों ने भी
उनकी इस उपलब्धि को स्वीकार किया है - हालाँकि उनका यह भी कहना है कि
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में यदि कई क्लब-अध्यक्ष व
दूसरे प्रमुख लोग जुटे, तो इसे बड़ी राजनीतिक उपलब्धि के रूप में नहीं देखा
जाना चाहिए । तर्क अपनी जगह सही है, किंतु विचारणीय बात यह है कि
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर यदि कोई लक्ष्य तय करता है - और उसे पा लेने में सफल हो
जाता है, तो उसकी यह तात्कालिक सफलता भविष्य की राजनीति के निर्णय को भी
प्रभावित तो कर ही सकती है । अशोक जैन के क्लब के अधिष्ठापन समारोह की
सफलता उपस्थिति के लिहाज से बहुत मायने भले ही न रखती हो, पर इस सफलता को
पाने के लिए बनाई गई रणनीति के लिहाज से बहुत महत्त्वपूर्ण है ।
महत्त्वपूर्ण इस लिहाज से कि अशोक जैन की उम्मीदवारी की बागडोर लोगों को
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन के हाथ में आ गई नजर आई; और रमेश अग्रवाल की
भूमिका को सीमित कर दिया गया है ।
उल्लेखनीय है कि अशोक जैन की उम्मीदवारी की स्वीकार्यता बनने/बनाने में सबसे बड़ा रोड़ा रमेश अग्रवाल ही रहे हैं । अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थकों व नजदीकियों को लगता है कि साफ समझ में आ गया है कि रमेश अग्रवाल को पीछे रख कर ही अशोक जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाया जा सकता है - और इसीलिए अपने ही क्लब के अधिष्ठापन समारोह में रमेश अग्रवाल की भूमिका को काफी सीमित कर दिया गया । सभी जानते हैं कि क्लब के हर कार्यक्रम में रमेश अग्रवाल को आगे आगे रहने का भारी शौक रहता है, और उन्हें जबर्दस्ती ही लोगों पर हावी होने/रहने की कोशिश करते देखा जाता रहा है, किंतु इस बार उनका व्यवहार बड़ा संयमित नजर आया ।
उल्लेखनीय है कि अशोक जैन की उम्मीदवारी की स्वीकार्यता बनने/बनाने में सबसे बड़ा रोड़ा रमेश अग्रवाल ही रहे हैं । अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थकों व नजदीकियों को लगता है कि साफ समझ में आ गया है कि रमेश अग्रवाल को पीछे रख कर ही अशोक जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाया जा सकता है - और इसीलिए अपने ही क्लब के अधिष्ठापन समारोह में रमेश अग्रवाल की भूमिका को काफी सीमित कर दिया गया । सभी जानते हैं कि क्लब के हर कार्यक्रम में रमेश अग्रवाल को आगे आगे रहने का भारी शौक रहता है, और उन्हें जबर्दस्ती ही लोगों पर हावी होने/रहने की कोशिश करते देखा जाता रहा है, किंतु इस बार उनका व्यवहार बड़ा संयमित नजर आया ।
रमेश अग्रवाल ने एमओसी की
अपनी भूमिका को भी बड़ी 'शराफत' से निभाया - इतनी शराफत से कि लोगों को खासी
हैरानी भी हुई । किसी ने कहा भी कि क्लब के लोगों ने रमेश अग्रवाल को साफ
चेतावनी दे दी थी कि उसने किसी भी रूप में यदि अपना छिछोरपन दिखाया, तो बीच में ही एमओसी
बदल दिया जायेगा । लगता है कि इसी चेतावनी का असर हुआ, और एमओसी के रूप
में रमेश अग्रवाल ने ऐसी शराफत दिखाई - जिसकी की लोगों को उनसे कभी उम्मीद
नहीं थी, और लोग वास्तव में हैरान थे । लोगों को अधिष्ठापन समारोह पर शरत
जैन की पूरी पकड़ साफ दिखी । क्लब के पदाधिकारियों से ही सुनने को मिला
कि आमंत्रितों का चयन करने से लेकर आयोजन-स्थल की डिजायन तय करने तक का काम
शरत जैन की देखरेख में हुआ और उपस्थित लोगों के बीच शरत जैन की जिस तरह की
सक्रियता रही/दिखी, उससे भी लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी कि अशोक
जैन की उम्मीदवारी की बागडोर अब शरत जैन ने खुद संभाल ली है । अधिष्ठापन
समारोह में शरत जैन जिस तरह से क्लब-अध्यक्षों को विशेष तवज्जो देते हुए
नजर आए, उसे उनके अशोक जैन की उम्मीदवारी के लिए अवसर बनाने/जुटाने के
प्रयासों के रूप में ही देखा/पहचाना गया । अधिष्ठापन समारोह के ऐसे नज़ारे
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति के संदर्भ में
महत्त्वपूर्ण संकेत देते हैं ।
अधिष्ठापन
समारोह में आमतौर पर उत्तर प्रदेश व खासतौर पर गाजियाबाद के रोटेरियंस की
अच्छी उपस्थिति ने भी अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थकों को राहत पहुँचाई ।
इसके पीछे भी शरत जैन की रणनीति व संलग्नता
को देखा/पहचाना गया । लोगों के बीच जो आपसी बातचीत हुई, उसमें पता चला कि
चुनावी राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गाजियाबाद व उत्तर
प्रदेश के लोगों को शरत जैन ने अलग अलग मौकों पर तरह तरह से अधिष्ठापन समारोह में आने के लिए मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार किया । शरत
जैन को पता था कि गाजियाबाद व उत्तर प्रदेश में रमेश अग्रवाल का कुछ
ज्यादा ही विरोध है, जिसका प्रतिकूल असर अधिष्ठापन समारोह में उपस्थिति पर
पड़ सकता है - और जिसका कि अशोक जैन की उम्मीदवारी के संबंध में बहुत ही
घातक असर पड़ेगा । इसलिए ही शरत जैन ने उत्तर प्रदेश व गाजियाबाद के लोगों
पर खुद ध्यान देने की जिम्मेदारी ली - और इसका सुफल उन्हें देखने को भी
मिला । अशोक जैन की उम्मीदवारी की मदद करने के संदर्भ में शरत जैन के
रवैये में एक बड़ा फर्क और देखने को मिला और वह यह कि अबकी बार शरत जैन ने
सारा काम बहुत ही सावधानी और नफ़ासत से किया । पिछले कुछेक आयोजनों में
उन्होंने अशोक जैन की जिस तरह से मदद की थी, वह इतने फूहड़ तरीके से की थी
कि उससे अशोक जैन को फायदा होने की बजाए नुकसान और हुआ था - तथा खुद शरत
जैन की भी खासी फजीहत हुई थी । पिछले बुरे अनुभवों से सबक लेकर शरत जैन
इस बार होशियारी से 'काम' करते हुए दिखे, तो अशोक जैन के नजदीकियों ने भी
चैन की साँस ली । अशोक जैन की उम्मीदवारी के संदर्भ में रमेश अग्रवाल के
पीछे होने और शरत जैन के आगे आने से अशोक जैन की उम्मीदवारी के समर्थकों व
शुभचिंतकों को अशोक जैन की उम्मीदवारी के अभियान के पटरी पर आने की उम्मीद
बनी है ।