गाजियाबाद । दीपक गुप्ता ने अपने क्लब के नए पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी दौड़ में ललित खन्ना से आगे निकलने के उद्देश्य से आयोजित करने की तैयारी तो पूरी की है, लेकिन तैयारी के बीच बीच में मिलने वाले संकेत उनके लिए मुसीबतें भी पैदा कर रहे हैं । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की 'यात्रा' को ध्यान से नोट करने वाले एक वरिष्ठ रोटेरियन का कहना है कि दीपक गुप्ता के क्लब का अधिष्ठापन समारोह दरअसल शुरू से ही कन्फ्यूज्ड सोच का शिकार रहा है, समस्या यह है कि वह कन्फ्यूज्ड सोच अभी भी हावी है - जिसके चलते अधिष्ठापन समारोह की तैयारी से जो माहौल बनना चाहिए था, वह नहीं बन पा रहा है । उल्लेखनीय है कि दीपक गुप्ता के क्लब का अधिष्ठापन समारोह पहले किसी और तारीख को होना निश्चित हुआ था । समारोह का 'साइज' भी छोटा होना था - और हैरत की बात यह थी कि मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किए गए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन ने उक्त तारीख को अपनी अनुपलब्धता बता दी थी, और दीपक गुप्ता उनकी अनुपस्थिति में ही अधिष्ठापन समारोह करने को तैयार हो गए थे । उनके जिन शुभचिंतकों को इसका पता चला तो उन्होंने दीपक गुप्ता को चेताया कि शरत जैन की अनुपस्थिति में अधिष्ठापन करना चुनावी दृष्टि से आत्मघाती होगा, इसलिए किसी ऐसी तारीख को अधिष्ठापन समारोह करो जिस दिन डिस्ट्रिक्ट के सभी 'कुर्सीधारी' पदाधिकारी उपलब्ध हों । तब दीपक गुप्ता को यह बात समझ में आई और उन्होंने अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह की तारीख को बदला । 6 जुलाई को हुए ललित खन्ना के क्लब के अधिष्ठापन समारोह की कामयाबी को देख कर दीपक गुप्ता अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह का 'साइज' बढ़ाने के लिए मजबूर हुए । इस प्रसंग से जाहिर/साबित हुआ कि दीपक गुप्ता 'सब कुछ' करने का ज़ज़्बा तो रखते हैं, करते भी हैं - लेकिन करने की टाइमिंग को लेकर तथा करने की प्रक्रिया में तालमेल बनाने में कन्फ्यूज रहते हैं; शायद इसी का नतीजा है कि उन्हें रोटरी में अपने किए-धरे का उचित हक़ नहीं मिला है ।
दीपक गुप्ता के क्लब के अधिष्ठापन समारोह की तैयारी यूँ तो जोरशोर से हो रही है, और दीपक गुप्ता के साथ-साथ उनके क्लब के कुछेक प्रमुख लोग डिस्ट्रिक्ट के लोगों को आमंत्रित करने के काम में दिलचस्पी के साथ लगे हुए हैं - लेकिन इस मामले में भी आपसी तालमेल का नितांत अभाव नजर आ रहा है, जिस कारण लोगों के बीच उल्टा ही असर पड़ रहा है । असल में हो यह रहा है कि किसी किसी को तो निमंत्रण के आठ-आठ दस-दस फोन मिले हैं, तो किसी को दो ही फोन मिले हैं; यानि निमंत्रण की कहीं 'बाढ़' है तो कहीं 'सूखा' है - लोगों के बीच आपस में बात होती ही है; जिसमें जब यह पता चलता है तो लोग अलग-अलग कारणों से नाराज होते हैं । यह समस्या सिर्फ इस कारण हो रही है, क्योंकि अधिष्ठापन समारोह का निमंत्रण देने वाले लोगों के बीच कोई तालमेल ही नहीं है । बात बहुत छोटी सी है - लेकिन उससे जो नुकसान हो रहा है, वह बहुत बड़ा है; विडंबना की बात यह है कि दीपक गुप्ता और उनके संगी-साथियों को इसका आभास भी नहीं है । दीपक गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह है कि उनकी उम्मीदवारी के विरोधी उनकी हर गलती या हर चूक का फायदा उठाने की ताक में रहते हैं । यूँ तो हर उम्मीदवार के समर्थक और विरोधी होते ही हैं; लेकिन दीपक गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह है कि उनके कुछेक विरोधी तो बिलकुल कट्टर वाले विरोधी हैं, जो उनकी जरा सी भी बिगड़ी चाल पर उन्हें गिरा देने की फिराक में रहते हैं । ऐसे में दीपक गुप्ता को जितना सावधान रहने की जरूरत है, वह उतने सावधान हो नहीं पा रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट में इस वर्ष की चुनावी राजनीति का जो समीकरण बनता हुआ दिख रहा है, उसे पहचानने/समझने का दावा करने वाले लोगों का कहना है कि दीपक गुप्ता अपने धुर विरोधी सत्ता खेमे में पड़ती दिख रही दरारों का फायदा उठाने में चूकते जा रहे हैं । सत्ता खेमे के नेताओं के बीच दीपक गुप्ता का भारी विरोध एक हकीकत है; इस हकीकत में दीपक गुप्ता के लिए राहत की बात यह है कि सत्ता खेमे के नेताओं के बीच अब पहले जैसी एकता नहीं बची है और उनके बीच आपसी अविश्वास व दूरियाँ बनती दिख रही हैं । अशोक जैन की उम्मीदवारी ने सत्ता खेमे को बाँटने की प्रक्रिया को और तेज ही किया है । सत्ता खेमे के कुछेक नेताओं को अशोक जैन की उम्मीदवारी बोझ लगने लगी है, जिस कारण अशोक जैन को सत्ता खेमे के नेताओं का पर्याप्त समर्थन नहीं मिल पा रहा है । कुछ नेताओं का समर्थन न मिलने के कारण तो कुछ अपनी ढीलमढाल के चलते अशोक जैन उम्मीदवारी की दौड़ में पिछड़ते जा रहे हैं; इसे शायद खुद अशोक जैन ने भी समझ लिया है और इसीलिए पिछले दिनों जिन क्लब्स के अधिष्ठापन समारोह आयोजित हुए, उनमें से कुछेक में उपस्थित होना अशोक जैन ने जरूरी तक नहीं समझा । इस स्थिति का फायदा दीपक गुप्ता को मिल सकता था, लेकिन उन्होंने फायदा उठाने की कोई कोशिश ही नहीं की - जिसका फायदा ललित खन्ना ने उठाया है । दीपक गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, हालाँकि यह कहना सही नहीं होगा कि दीपक गुप्ता ने फायदा उठाने की कोशिश नहीं की - समस्या यह है कि उनकी कोशिशों में कोई तारतम्य व निरंतरता नहीं बन सकी तथा कई बार उनकी कोशिशें अतिरेक का शिकार भी हुईं, और इसलिए दीपक गुप्ता को अपनी कोशिशों का कोई लाभ नहीं मिल सका ।
दीपक गुप्ता ने पिछले दिनों जेके गौड़ पर अपना बहुत समय और अपनी बहुत एनर्जी खर्च की; रमेश अग्रवाल के साथ जेके गौड़ की बढ़ती दूरी की खबरों से प्रेरित होकर दीपक गुप्ता को लगा कि जेके गौड़ को वह पटा लेंगे और अपने साथ कर लेंगे । थ्योरिटीकली दीपक गुप्ता ने जो सोचा, उसमें कुछ भी गलत नहीं था; लेकिन अपनी सोच को प्रैक्टिकली क्रियान्वित करने को लेकर उन्होंने बिना बिचारे अपना समय और अपनी एनर्जी लगाई - जिसका उन्हें कोई लाभ नहीं मिला । दीपक गुप्ता ने जहाँ कहीं जेके गौड़ के बराबर में बैठ कर लोगों को उन्हें अपने साथ 'दिखाने' का प्रयास किया भी, वहाँ लोगों को 'दिखा' लेकिन यह कि साथ साथ बैठे होने के बावजूद दोनों ही एक दूसरे के साथ सहज नहीं हैं । दीपक गुप्ता की गतिविधियों तथा उनके नतीजों को देखने/परखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि समस्या की जड़ दीपक गुप्ता की कोशिशों में निरंतरता की कमी ही है - कभी वह बहुत रफ्तार से सक्रिय दिखेंगे, तो कभी ऐसा लगेगा जैसे कि वह सो गए हैं । तीसरी बार की अपनी उम्मीदवारी में भी दीपक गुप्ता का यह हाल बताता है कि अपने पिछले अनुभवों से उन्होंने शायद कुछ सीखा नहीं है, और या वह किसी बड़ी गलतफहमी का शिकार हैं । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के शुभचिंतकों व समर्थकों का ही कहना है कि पिछले अनुभवों से न सीखने की बात क्लब के अधिष्ठापन समारोह की तैयारी में साफ साफ और मुखर रूप में नजर आ रही है ।