Sunday, July 17, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए रवि दयाल की उम्मीदवारी के पुनः प्रस्तुत होने की सुगबुगाहट ने अतुल गुप्ता व सुरेश भसीन के सामने अपने अपने समर्थन आधार को बचाए रखने की गंभीर चुनौती पैदा की

नई दिल्ली । रवि दयाल की उम्मीदवारी की सुगबुगाहट ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई के लगभग सेट हो चुके समीकरणों को गड़बड़ा दिया है, और इस गड़बड़ाहट में सुरेश भसीन व अतुल गुप्ता के सामने नई तरह की समस्याएँ पैदा हो गई हैं । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष के चुनावी मुकाबले में पिछड़ जाने के बाद रवि दयाल राजनीति के कोपभवन में चले गए थे, और उनकी तरफ से लोगों को यही संदेश सुनने को मिला था कि चुनावी पचड़े में दोबारा से पड़ने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है । पिछले रोटरी वर्ष का चुनावी मुकाबला लेकिन जिस तरह से बदनामी के भँवर में फँसा, और रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड तक में जिसकी गूँज पहुँची; और चारों तरफ जिस तरह से यह बात फैली कि पिछले रोटरी वर्ष का चुनावी नतीजा पक्षपातपूर्ण बेईमानी से निकला था - उसे देख/पहचान कर रवि दयाल के कुछेक समर्थकों व शुभचिंतकों ने रवि दयाल को दोबारा से अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए राजी करने का प्रयास किया । उनका कहना रहा कि पिछले रोटरी वर्ष की चुनावी प्रक्रिया में हुई बेईमानी की जैसी जो पोल खुली है, उसके चलते रवि दयाल को सहानुभूति-लाभ मिल सकता है । रवि दयाल लेकिन फिर भी दोबारा से उम्मीदवार बनने को राजी नहीं हुए । अभी लेकिन अचानक से लोगों के बीच रवि दयाल की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने की चर्चा सुनाई दी है । रवि दयाल के हवाले से कुछेक वरिष्ठ रोटेरियंस ने उनकी उम्मीदवारी प्रस्तुत होने का दावा भी किया है; उन्होंने बताया है कि खुद रवि दयाल ने उनसे कहा है कि वह उम्मीदवार हो रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में हालाँकि अभी भी कुछेक लोगों को रवि दयाल की उम्मीदवारी की प्रस्तुति को लेकर संदेह है; उनका कहना है कि अपनी उम्मीदवारी को लेकर रवि दयाल चूँकि पहले भी हाँ-न के चक्कर में फँसे रहे हैं, इसलिए एक उम्मीदवार के रूप में सचमुच सक्रिय होने पर ही मानियेगा कि वह उम्मीदवार हैं !
रवि दयाल सचमुच उम्मीदवार बनेंगे या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन अचानक से शुरू हुई उनकी उम्मीदवारी की पुनः प्रस्तुति की चर्चाओं ने चुनावी राजनीति के संदर्भ में बन रहे मौजूदा रोटरी वर्ष के समीकरणों को गड़बड़ाने का काम जरूर किया है । समीकरणों के गड़बड़ाने में झटका सुरेश भसीन व अतुल गुप्ता को लगा दिख रहा है । उल्लेखनीय है कि अभी तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चार वरिष्ठ रोटेरियंस के नाम चर्चा में थे : रोटरी क्लब दिल्ली के सुरेश भसीन, रोटरी क्लब नई दिल्ली के संजीव राय मेहरा, रोटरी क्लब दिल्ली हैरिटेज के अतुल गुप्ता और रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ ईस्ट के अमरजीत सिंह । इनमें अमरजीत सिंह एक उम्मीदवार के रूप में अपनी ऐसी सक्रियता नहीं दिखा सके हैं, जिसके भरोसे वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर लोगों को आश्वस्त कर सकें; उनके क्लब के जो बड़े नेता हैं, चूँकि वही उनकी उम्मीदवारी को लेकर बहुत आश्वस्त भाव से बात करते हुए नहीं देखे/सुने गए - इसलिए उनकी उम्मीदवारी को लेकर कोई लोगों के बीच कोई मूव नहीं बन सका । संजीव राय मेहरा को शुरू में बहुत दमदार उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना गया था, किंतु सक्रियता के मामले में वह चूँकि लोगों के बीच कोई प्रभाव नहीं बना सके हैं - इसलिए उन्हें अपने ही क्लब के सतिंदर नारंग की दशा को प्राप्त होते देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पहले सतिंदर नारंग भी उन्हीं नेताओं के भरोसे उम्मीदवार बने थे, जिन नेताओं के भरोसे संजीव राय मेहरा इस वर्ष चुनावी रिंग में उतरे हैं । सतिंदर नारंग हो और चाहें संजीव राय मेहरा हों - ये लोग डिस्ट्रिक्ट के बड़े लोग हैं और डिस्ट्रिक्ट के एक तबके में इनकी बड़ी प्रतिष्ठा है; चुनावी मुकाबले में लेकिन यह बड़ा'पन' और प्रतिष्ठा काम नहीं आती है । चुनावी 'जरूरतें' कुछ और होती हैं - समस्या की बात यह है कि इनके जैसे लोग इस जरूरत को समझ/पहचान नहीं पाते, और इसलिए चुनावी मुकाबले में मिसफिट रहते हैं । संजीव राय मेहरा ने चूँकि अपने आप को चुनावी मुकाबले के लिहाज से फिट बनाने की कोई कोशिश ही नहीं की, इसलिए तमाम अनुकूलताओं के बावजूद एक उम्मीदवार के रूप में लोगों के बीच उन्हें स्वीकार्यता नहीं मिल सकी है । इस स्थिति का उम्मीदवार के रूप में अतुल गुप्ता और सुरेश भसीन को फायदा मिला ।
अतुल गुप्ता ने एक उम्मीदवार के रूप में सक्रियता दिखा/जता कर लोगों के बीच अपनी उम्मीदवारी के प्रति भरोसा तो पैदा किया ही है, साथ ही कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का भी समर्थन जुटाया है - और इस तरह चुनावी मुकाबले में अपनी उम्मीदवारी को मजबूती दी है । सुरेश भसीन उम्मीदवार के रूप में सक्रियता के मामले में अतुल गुप्ता से आगे हैं, लेकिन उनके साथ सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि वह अभी तक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के किसी समूह का समर्थन नहीं जुटा सके हैं - जिसका नतीजा यह है कि डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच उनकी उम्मीदवारी के प्रति स्वीकार्यता का भाव नहीं बन सका है । हालाँकि संभावना दिख रही है कि जो पूर्व गवर्नर्स अतुल गुप्ता का 'रास्ता' रोकना चाहेंगे, वह सुरेश भसीन की उम्मीदवारी का झंडा उठा सकते हैं । ऐसे पूर्व गवर्नर्स अभी हालाँकि संजीव राय मेहरा के साथ हैं; किंतु संजीव राय मेहरा की उम्मीदवारी चूँकि उनकी उम्मीदानुसार लोगों के बीच पकड़ बनाते हुए नहीं नजर आ रही है - इसलिए उनकी निगाह सुरेश भसीन की उम्मीदवारी की तरफ बढ़ी है । इस वर्ष की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई क्या शक्ल लेगी, इस बारे में अभी पक्के तौर पर कुछ भी कहना जल्दबाजी करना होगा; लेकिन अभी की स्थितियों के आकलन के अनुसार, इस वर्ष अतुल गुप्ता और सुरेश भसीन के बीच चुनावी मुकाबला होता हुआ नजर आ रहा था - जिसे लेकिन रवि दयाल की उम्मीदवारी की पुनः प्रस्तुति की चर्चा ने डिस्टर्ब कर दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट में प्रायः हर राजनीतिक खेमे के लोगों के अनुसार, रवि दयाल की उम्मीदवारी यदि सचमुच प्रस्तुत होती है तो वह अतुल गुप्ता और सुरेश भसीन के बीच चुनावी मुकाबले के बनते समीकरण पर सीधी चोट करेगी । दरअसल अतुल गुप्ता और सुरेश भसीन की उम्मीदवारी के जो समर्थक व शुभचिंतक हैं - या हो सकेंगे, उनमें से अधिकतर के रवि दयाल की उम्मीदवारी के साथ जाने की संभावना है । हालाँकि यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि रवि दयाल अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में किस तरह से कैम्पेन चलाते हैं । उम्मीदवारी को लेकर हाँ-न के चक्कर में उन्होंने अपना काफी समय बर्बाद कर लिया है; देखना होगा कि इसकी भरपाई वह कैसे करते हैं ? कुछेक लोगों का कहना है कि हालाँकि इससे पहले तो यह देखना होगा कि अपनी उम्मीदवारी की प्रस्तुति के लिए फिलहाल हामी भरने के बावजूद वह वास्तव में उम्मीदवार बने भी रहते हैं क्या ? रवि दयाल की उम्मीदवार सचमुच में प्रस्तुत होगी या नहीं, यह तो आगे आने वाले दिनों में पता चलेगा; अभी उनकी उम्मीदवारी की आहट ने लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरण को अवश्य ही गड़बड़ा दिया है । रवि दयाल की उम्मीदवारी के पुनः प्रस्तुत होने की सुगबुगाहट ने अतुल गुप्ता व सुरेश भसीन के सामने अपने अपने मौजूदा व संभावित समर्थन आधार को बनाए/बचाए रखने की गंभीर चुनौती पैदा कर दी है ।