Thursday, July 28, 2016

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पर काबिज दीपक गर्ग के नेतृत्व वाली चौकड़ी के सदस्यों की करतूतों के कारण हो रही बदनामी से सत्ता खेमे के ही दूसरे सदस्यों के बीच बेचैनी

नई दिल्ली । चेयरमैन दीपक गर्ग, सेक्रेटरी सुमित गर्ग, ट्रेजरार नितिन कँवर और निकासा चेयरमैन राजेंद्र अरोड़ा की चौकड़ी को अपनी अकर्मण्यता, मूर्खता और टुच्ची नेतागिरी से रीजनल काउंसिल के कामकाज और उसकी पहचान व प्रतिष्ठा को धूल में मिला देने के जिस तरह के गंभीर आरोपों का सामना कर पड़ रहा है - उसके चलते रीजनल काउंसिल के सत्ता खेमे में फूट पड़ने के संकेत मिलने लगे हैं । सत्ता खेमे के बाकी चार सदस्य - विवेक खुराना, राकेश मक्कड़, पूजा बंसल और पंकज पेरिवाल अपने आपको न सिर्फ ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं, बल्कि चौकड़ी की कारस्तानियों के चलते मिलने वाली बदनामी को ढोने की बेचैनी भी महसूस कर रहे हैं । इन चारों की तरफ से अलग अलग मौकों पर सुनने को मिल रहा है कि चौकड़ी के लोगों ने इनका समर्थन लेकर कुर्सियाँ तो प्राप्त कर लीं, लेकिन कामकाज में और फैसलों में उन्हें किसी भी स्तर पर शामिल नहीं किया जाता है । सत्ता में होने का जो 'सुख' उन्हें भी मिलना चाहिए था, वह तो उन्हें नहीं ही मिल पा रहा है; यह देख कर उन्हें और चोट पहुँची है कि उनके हिस्से का सुख चौकड़ी के लोगों ने ही छीना हुआ है । राकेश मक्कड़ के साथ तो बहुत ही बुरी बीत रही है - सत्ता खेमे के लोगों को जोड़ने का काम उन्होंने ही किया था; यानि उनकी बदौलत ही चौकड़ी के लोग कुर्सियों पर बैठे होने का सुख भोग रहे हैं, किंतु उन्हें ही दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंका गया है । उनकी और उनके बाकी तीन साथियों की समस्या यह भी है कि चौकड़ी के लोगों की करतूतों से लोगों के बीच जो नाराजगी व बदनामी हो रही है, उसके लिए उन्हें भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है और बदनामी के कीचड़ से बच पाना उनके लिए मुश्किल हो रहा है । पूजा बंसल ने हाल ही के दिनों में कई बार इस बात का प्रयास किया कि रीजनल काउंसिल में जो गड़बड़ियाँ हो रही हैं, और जिनके कारण सत्ता खेमे के लोगों की बदनामी हो रही है - उन पर सत्ता खेमे के सभी आठों सदस्यों के बीच चर्चा हो और हालात को सँभालने को लेकर आपस में विचार विमर्श किया जाए । पूजा बंसल काउंसिल में वाइस चेयरपरसन के पद पर हैं, किंतु फिर भी चौकड़ी के सदस्य उनके प्रयासों को कोई तवज्जो नहीं दे रहे हैं । चौकड़ी के सदस्यों का यह रवैया सत्ता खेमे में कभी भी बड़ा बबाल पैदा कर/करवा सकता है ।
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पर कब्ज़ा जमाए चौकड़ी के काम करने के तरीके का हाल देखने का मौका इसी महीने आयोजित हुई सीए छात्रों की दो दिवसीय नेशनल कन्वेंशन में देखने को मिला । हर वर्ष होने वाली इस कन्वेंशन में 1500 के करीब छात्र शामिल होते हैं - लेकिन इस वर्ष की कन्वेंशन में पहले दिन मुश्किल से 500 छात्र और दूसरे दिन करीब 150 छात्र ही शामिल हुए । आयोजकों ने 1200 छात्रों के लिए खाने की व्यवस्था की थी । यह कन्वेंशन काउंसिल पर काबिज चौकड़ी के नाकारापन का जीता-जागता सुबूत बन गई है, जिसके चलते इंस्टीट्यूट को करीब बीस लाख रुपए का नुकसान हुआ है । इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों को भी हैरानी है कि पिछले दिनों लुधियाना में इसी तरह की कन्वेंशन हुई तो उसमें एक हजार से अधिक छात्र जुटे, और दिल्ली में कन्वेंशन के आयोजक इतने गए-गुजरे हैं कि उनके लिए दो सौ छात्रों को जुटाना मुश्किल हो गया । रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के इससे भी बड़े नाकारापन का उदाहरण यह है कि दिल्ली में लक्ष्मीनगर स्थित इंस्टीट्यूट की लाइब्रेरी का बिजली बिल पिछले तीन-चार महीनों से नहीं दिया जा रहा था, जिसके नतीजे के रूप में लाइब्रेरी की बिजली कट गई और जिसके चलते छात्रों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा । यह पढ़ते/जानते हुए कृपया यह बिलकुल मत सोचियेगा कि दीपक गर्ग, सुमित गर्ग, नितिन कँवर और राजेंद्र अरोड़ा की चौकड़ी कुछ करती ही नहीं है : 30 जून को 'सीए उत्सव' के नाम पर इन्होंने नाच-गाने का जैसा जो धूम-धड़ाका करवाया, उसमें इनकी आयोजन-प्रतिभा का सुबूत देखा/पाया जा सकता है । इस पर किसी ने चुटकी भी ली कि यह लोग नाच-गाना करवाने वाली भांड पार्टी के पदाधिकारी होने की काबिलियत रखते हैं, काउंसिल में बेचारे पता नहीं क्यों और कैसे आ गए ?
दीपक गर्ग, सुमित गर्ग, नितिन कँवर और राजेंद्र अरोड़ा की चौकड़ी पर आरोप सिर्फ यही नहीं है कि यह काउंसिल/इंस्टीट्यूट के कामकाज की जिम्मेदारी ठीक तरीके से निभा नहीं पा रहे हैं; इससे भी ज्यादा गंभीर आरोप इन पर यह है कि इंस्टीट्यूट के जो काम ठीक तरीके से हो रहे हैं - यह लोग उन्हें डिस्टर्ब व खराब करने की कोशिश करने तक की हरकत करते हैं । इस हरकत के लिए इन्हें इंस्टीट्यूट की इंटरनेशनल टैक्सेशन कमेटी के वाइस चेयरमैन संजीव चौधरी से लताड़ तक खाना पड़ी है । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट इंटरनेशनल टैक्सेशन पर क्लासेस चलाता है, जिसके लिए मोटी फीस ली जाती है । क्लासेस करने वाले लोगों ने इंटरनेशनल टैक्सेशन कमेटी के वाइस चेयरमैन संजीव चौधरी से इन चारों की शिकायत की कि यह लोग बीच क्लासेस में आकर भाषणबाजी करते हैं, और इस तरह क्लास डिस्टर्ब करते हैं । शिकायत करने वाले लोगों का कहना रहा कि वह क्लासेस के लिए अपना कीमती समय और मोटी फीस इनकी बकवासबाजी सुनने के लिए थोड़े ही देते हैं । संजीव चौधरी ने पहले तो इन्हें इशारे से समझाने की कोशिश की कि यह लोग इस तरह की हरकतें न किया करें; किंतु उन्होंने जब देखा कि इशारे से समझाने की उनकी कोशिशों को यह लोग गंभीरता से नहीं ले रहे हैं, तो संजीव चौधरी ने इन्हें कस कर लताड़ा । संजीव चौधरी की लताड़ से अपमान और दुख फील करते हुए दीपक गर्ग ने प्रेसीडेंट को मेल लिख कर पूछा कि रीजनल काउंसिल के पदाधिकारी के रूप में वह इंटरनेशनल टैक्सेशन की क्लासेस करने वाले लोगों से कैसे बात कर सकते हैं ? प्रेसीडेंट की तरफ से दीपक गर्ग को उनकी मेल का कोई औपचारिक जबाव मिला है या नहीं, इसका तो नहीं पता; किंतु कई वरिष्ठ लोगों की तरफ से उन्हें इस बारे में खरी-खोटी सुनने को जरूर मिली है कि तुम लोगों को इतनी सी अक्ल सचमुच नहीं है क्या कि क्लास को डिस्टर्ब किए बिना क्लास के लोगों से कब और कैसे बात कर सकते हो ?
चौकड़ी के सदस्यों, खासकर चेयरमैन दीपक गर्ग और ट्रेजरार नितिन कँवर पर गंभीर आरोप यह भी लगा है कि जीएमसीएस की फैकल्टी में इन्होंने मनमाने तरीके से अपने अपने नाकाबिल किस्म के लोगों को घुसा दिया है, और इस तरह से जीएमसीएस की पढ़ाई व्यवस्था को खासी चोट पहुँचाई है । इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ सदस्य अविनाश गुप्ता के खिलाफ की गई हरकत को लेकर दीपक गर्ग और नितिन कँवर पहले से ही आरोपों व विवादों के घेरे में हैं । चर्चा है कि उस मामले में माफी माँग कर यह लोग मामले को ख़त्म करवाने के प्रयासों में हैं । उनके प्रयास सफल होंगे या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन यह हो रहा है कि दीपक गर्ग के नेतृत्व में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पर कब्ज़ा जमाए बैठी चौकड़ी की कारस्तानियों को लेकर इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट एम देवराज रेड्डी को कई कई शिकायतें मिली हैं - उन्होंने जिनकी जाँच-पड़ताल करने/करवाने को लेकर दिलचस्पी दिखाई है । चौकड़ी के सदस्यों की करतूतों से हो रही बदनामी ने सबसे ज्यादा चौकड़ी के समर्थक सदस्यों को ही परेशान किया हुआ है । उनकी समस्या का कारण यह भी है कि रीजनल काउंसिल में जो कुछ भी मनमानियाँ और बेवकूफियाँ हो रही हैं, उनसे उनका कोई लेना-देना नहीं है - किंतु सत्ता खेमे का सदस्य होने के नाते उनकी जिम्मेदारी उनके सिर पर भी पड़ रही है । सबसे ज्यादा मुसीबत पूजा बंसल की है । वाइस चेयरपरसन होने के नाते वह यदि यह कहते हुए बचने की कोशिश करती हैं कि उनकी सुनी ही नहीं जा रही है, तो लोगों को पूछना होता है कि इतने बड़े पद पर होने के बावजूद वह यदि कोई हस्तक्षेप नहीं कर पा रही हैं - तो क्या यह उनकी प्रशासनिक अक्षमता नहीं है ? इस तरह की बातों/स्थितियों ने सत्ता खेमे के लोगों को प्रेरित किया है कि वह चौकड़ी की हरकतों पर लगाम लगाएँ । यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी लगाम लगाने की कोशिशों का चौकड़ी पर कोई असर होता भी है, या चौकड़ी की हरकतें बदस्तूर जारी रहती हैं ?