नई दिल्ली । दीपक गुप्ता का अमेरिका से कुछेक लोगों को फोन करना मुसीबत बढ़ाने वाला साबित हो रहा है । दरअसल
जिन लोगों को उनके फोन नहीं आए हैं, उन्हें लग रहा है कि दीपक गुप्ता
उन्हें ज्यादा तवज्जो देने लायक नहीं मान/समझ रहे हैं, तथा उनकी तुलना में
उन्हें ज्यादा महत्त्व दे रहे हैं - जिन्हें उन्होंने अमेरिका से फोन किए
हैं । मजेदार संयोग है कि पिछले रोटरी वर्ष में भी चुनाव से कुछ समय पहले
दीपक गुप्ता पारिवारिक कारणों से अमेरिका गए थे, और तब भी वहाँ (से)
उन्होंने जो तमाशा किया था - उसके कारण वह मजाक का विषय बनते हुए विवाद में
फँसे थे । इस वर्ष भी लगभग पिछले वर्ष जैसी ही कहानी दोहराई जा रही है ।
कई लोगों का मानना और कहना है कि इस बात से ही जाहिर है कि दीपक गुप्ता ने
पिछले वर्ष के अपने ही अनुभवों से कोई सबक नहीं सीखा है; और लगातार दूसरे
वर्ष भी वही गलती दोहरा रहे हैं, जिस गलती के कारण पिछले वर्ष उन्हें अपना
चुनाव हारना पड़ा था । पिछले वर्ष और इस वर्ष के मामले में हालाँकि एक
अंतर जरूर है - और वह यह कि पिछले वर्ष अति उत्साह में उन्होंने अपने लिए
मुसीबतों को आमंत्रित किया था, जबकि इस वर्ष अतिरिक्त सावधानी के कारण
मुसीबतों ने उन्हें घेर लिया है ।
उल्लेखनीय है कि पिछले रोटरी वर्ष
में चुनाव से कुछ समय पहले दीपक गुप्ता अमेरिका गए थे, और वहाँ से फोन कर
कर के उन्होंने लोगों से पूछा था कि वह उनके लिए अमेरिका से गिफ्ट के रूप
में क्या लाएँ ? उनकी इस कार्रवाई का लोगों के बीच बहुत मजाक बना और इसे
लोगों के बीच अपना समर्थन बनाने की उनकी एक फूहड़ कोशिश के रूप में
देखा/पहचाना गया । दीपक गुप्ता के समर्थकों ने भी माना और कहा था कि दीपक
गुप्ता ने जो किया, उसके पीछे की उनकी 'रणनीति' तो ठीक थी किंतु उसका
क्रियान्वन करने में वह सावधानी नहीं रख सके - जिस कारण उनकी रणनीति मजाक
बन गई और वह मजाक के पात्र बन गए । पिछले वर्ष के इस अनुभव को याद
करते/रखते हुए दीपक गुप्ता ने अब की बार हालाँकि कोई फूहड़ प्रदर्शन तो नहीं
किया, किंतु उन्होंने जो किया उससे उनके लिए पिछले वर्ष से भी बुरी स्थिति
बन गई है । दरअसल अभी जब वह अमेरिका में हैं, तो वहाँ से उन्होंने कुछेक
लोगों से बात की है - जिनसे उनकी बात हुईं हैं, उन्होंने ही दूसरे लोगों से
यह बताया है । जिन 'दूसरे' लोगों को यह बताया गया, उन्हें स्वाभाविक
रूप से बुरा लगा और उन्होंने अपनी अपनी नाखुशी व्यक्त करते हुए टिप्पणियाँ
भी की हैं कि लगता है कि दीपक गुप्ता की निगाह में उनकी कोई अहमियत नहीं
है, जिस कारण से उन्होंने उनसे बात करना जरूरी नहीं समझा है । कुछेक लोगों ने तो कहा भी है कि वह दीपक गुप्ता को चुनाव में इसका मजा चखायेंगे ।
दीपक गुप्ता के लिए समस्या की बात यह रही कि पिछले वर्ष के बुरे अनुभव को दोहराने से बचते हुए उन्होंने इस वर्ष ज्यादा 'नाटक' न करने का तो निश्चय किया था, किंतु नाटक फिर भी 'हो गया' । लोग इस वर्ष के क्लब-अध्यक्षों से चटखारे ले ले कर पूछ रहे हैं कि दीपक गुप्ता ने फोन करके उनसे पूछा नहीं है क्या कि वह उनके लिए क्या गिफ्ट लाएँ ? इस तरह की बातें क्लब-अध्यक्षों के जले पर नमक छिड़कने जैसा काम कर रही हैं । कई क्लब-अध्यक्ष तो इसी बात से दुखी और निराश हैं कि दीपक गुप्ता ने अमेरिका से कुछेक लोगों को तो फोन किया है, किंतु उन्हें फोन नहीं किया; उस पर पिछले वर्ष की दीपक गुप्ता की हरकत का संदर्भ लेकर कई लोग गिफ्ट की बात करके उनके साथ मजाक और कर रहे हैं । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक भी रेखांकित कर रहे हैं कि अमेरिका से कुछेक लोगों को फोन करके दीपक गुप्ता ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है, तथा अपने और अपनी उम्मीदवारी के लिए पिछले वर्ष जैसे हालात बना लिए हैं । समर्थकों का कहना है कि पिछले वर्ष के अनुभव को याद और ध्यान करते हुए दीपक गुप्ता को अमेरिका से किसी को फोन करना ही नहीं चाहिए था; करते भी तो ऐसी 'व्यवस्था' से करते कि फोन पाने वाले को यह आभास ही नहीं होता कि दीपक गुप्ता उन्हें अमेरिका से फोन कर रहे हैं ।
दीपक गुप्ता के लिए समस्या की बात यह रही कि पिछले वर्ष के बुरे अनुभव को दोहराने से बचते हुए उन्होंने इस वर्ष ज्यादा 'नाटक' न करने का तो निश्चय किया था, किंतु नाटक फिर भी 'हो गया' । लोग इस वर्ष के क्लब-अध्यक्षों से चटखारे ले ले कर पूछ रहे हैं कि दीपक गुप्ता ने फोन करके उनसे पूछा नहीं है क्या कि वह उनके लिए क्या गिफ्ट लाएँ ? इस तरह की बातें क्लब-अध्यक्षों के जले पर नमक छिड़कने जैसा काम कर रही हैं । कई क्लब-अध्यक्ष तो इसी बात से दुखी और निराश हैं कि दीपक गुप्ता ने अमेरिका से कुछेक लोगों को तो फोन किया है, किंतु उन्हें फोन नहीं किया; उस पर पिछले वर्ष की दीपक गुप्ता की हरकत का संदर्भ लेकर कई लोग गिफ्ट की बात करके उनके साथ मजाक और कर रहे हैं । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक भी रेखांकित कर रहे हैं कि अमेरिका से कुछेक लोगों को फोन करके दीपक गुप्ता ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है, तथा अपने और अपनी उम्मीदवारी के लिए पिछले वर्ष जैसे हालात बना लिए हैं । समर्थकों का कहना है कि पिछले वर्ष के अनुभव को याद और ध्यान करते हुए दीपक गुप्ता को अमेरिका से किसी को फोन करना ही नहीं चाहिए था; करते भी तो ऐसी 'व्यवस्था' से करते कि फोन पाने वाले को यह आभास ही नहीं होता कि दीपक गुप्ता उन्हें अमेरिका से फोन कर रहे हैं ।
इस मामले
ने दीपक गुप्ता के लिए एक अलग तरह की मुसीबत और खड़ी कर दी है । बच्चों के
कारण दीपक गुप्ता को जिस तरह से जल्दी जल्दी अमेरिका जाने की जरूरत पड़ती
है, उससे लोगों के बीच सवाल उठ रहा है कि ऐसे में दीपक गुप्ता रोटरी की
जिम्मेदारियों को कैसे उठा/निभा पायेंगे ? कई लोग कहने भी लगे हैं कि
दीपक गुप्ता को पहले अपने बच्चों की जिम्मेदारियों को पूरा कर लेना चाहिए,
फिर उसके बाद रोटरी की जिम्मेदारियों के बारे में सोचना चाहिए । दीपक
गुप्ता के नजदीकियों का भी कहना है कि दीपक गुप्ता ने अपने आप को जिस
स्थिति में डाल लिया है, वहाँ वह किसी के साथ भी न्याय नहीं कर पायेंगे - न
अपने बच्चों के साथ, और न रोटरी के साथ । उनके नजदीकियों को तथा दूसरे
लोगों को भी आशंका है कि कभी वह रोटरी के कारण अपने बच्चों की
जिम्मेदारियों को निभाने से चूकेंगे, तो कभी अपने बच्चों की जिम्मेदारियों
के कारण रोटरी का काम करने से पिछड़ेंगे । दीपक गुप्ता के साथ हमदर्दी रखने
वाले लोगों की तरफ से कहा/सुना जा रहा है कि दीपक गुप्ता को अभी चार-छह
वर्ष रोटरी की राजनीति से तथा 'व्यवस्था' से दूर रहना चाहिए तथा अपना सारा
ध्यान अपने बच्चों की जिम्मेदारियों पर देना चाहिए । उनकी उम्मीदवारी के
समर्थकों का तो कहना यह भी है कि बच्चों की जिम्मेदारी निभाने के कारण
जल्दी जल्दी अमेरिका जाने से दीपक गुप्ता के चुनाव अभियान में बाधा भी पड़ती
रही है, तथा उनका अभियान मजाक व फजीहत का शिकार भी होता रहा है । ऐसे
में डिस्ट्रिक्ट के लोगों को भी लग रहा है कि पारिवारिक जिम्मेदारियों को
निभाने में व्यस्त दीपक गुप्ता को कुछेक वर्ष रोटरी से दूर ही रहना/रखना
चाहिए । इस तरह की बातों से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति लोगों के
बीच जो नकारात्मक भाव बनता दिख रहा है, उससे दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के
लिए संकट और गहराता नजर आ रहा है ।