Tuesday, November 15, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रोटरी क्लब गाजियाबाद के वरिष्ठ सदस्य विनय चंद्रा को क्लब से निकलवाने में दीपक गुप्ता की मिलीभगत के तथ्य सामने आने के बाद मचे बबाल से दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी पर खतरा मँडराया

गाजियाबाद । रोटरी क्लब गाजियाबाद में विनय चंद्रा के इस्तीफे की कहानी के जिस जिन्न को दीपक गुप्ता तथा उनके साथियों ने बहुत ही तरकीबभरी होशियारी से बोतल में बंद कर दिया था, बोतल का ढक्कन तोड़ कर वह कहानी एक बार फिर बोतल से बाहर आ गई है - और इसने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार दीपक गुप्ता की मुसीबतों को और बढ़ा दिया है । उक्त कहानी के बोतल से बाहर आने के पीछे दरअसल क्लब में दीपक गुप्ता के विरोधियों के सक्रिय होने के संकेत देखे/पहचाने जा रहे हैं, और इसी बात ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए मुसीबतों को और बढ़ा दिया है । उल्लेखनीय है कि क्लब में जब विनय चंद्रा का इस्तीफा हुआ था, तब हालात ऐसे थे - या ऐसे बना दिए गए थे, कि विनय चंद्रा को चुपचाप इस्तीफा दे देना पड़ा और क्लब में उनके संगी-साथियों को भी चुप रह जाना पड़ा था । जो लोग विनय चंद्रा को जानते/पहचानते हैं तथा क्लब में उनकी पहुँच/पकड़ से परिचित हैं, उन्हें आश्चर्य भी हुआ था कि क्लब से विनय चंद्रा का निकलना इतने चुपचाप तरीके से कैसे हो गया ? उस समय घटे घटनाचक्र की जानकारी जिन लोगों को थी, उन्होंने यही पाया/जाना था कि विनय चंद्रा की घेराबंदी ऐसी होशियारी के साथ की गई है कि विनय चंद्रा और उनके साथी उसमें फँस गए थे तथा चाहते हुए भी वह कुछ कर सकने में असमर्थ हो गए थे ।को  विनय चंद्रा की घेराबंदी करने में दीपक गुप्ता ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी - जिसे विनय चंद्रा और उनके संगी-साथी उस समय तो नहीं समझ/पहचान पाए थे, लेकिन जैसे-जैसे समय बीता उनके सामने दीपक गुप्ता की भूमिका की पोल खुलती गई ।
दीपक गुप्ता ने लेकिन पोल खुलने की परवाह भी नहीं की । वह विनय चंद्रा को ठिकाने लगाने की जीत ही मनाते रहे । पर अब जब विनय चंद्रा और उनके साथी बदला लेने के लिए सक्रिय होते नजर आए हैं - तो दीपक गुप्ता और उनके साथियों को मुसीबत दिखाई देने लगी है । क्लब के लोगों का कहना है कि यह मुसीबत दीपक गुप्ता ने खुद ही बुलाई है । दरअसल दीपक गुप्ता और उनके साथी लगातार बढ़चढ़ कर यह बताते/जताते रहे हैं कि उन्होंने कैसे क्लब के एक प्रमुख सदस्य को क्लब से निकाल दिया, और वह ज्यादा चूँ-चपड़ भी नहीं कर पाया । यह बताते/जताते हुए दीपक गुप्ता वास्तव में क्लब के उन सदस्यों को 'धमकाने' का काम कर रहे थे, जो उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ बात करते हुए सुने जा रहे थे । ऐसे सदस्यों को दीपक गुप्ता की तरफ से बताया गया कि विनय चंद्रा भी उनकी उम्मीदवारी की खिलाफत कर रहे थे, जिसकी सजा देते हुए उन्हें क्लब से ही निकलवा दिया गया । यह बताने/जताने के जरिए दरअसल क्लब के सदस्यों को 'धमकी' ही दी गई कि जो कोई भी दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का विरोध करेगा, उसका हाल भी विनय चंद्रा जैसा ही कर दिया जायेगा । इस तरह की बातों से भेद खुला कि विनय चंद्रा के लिए क्लब से बाहर का रास्ता खुलवाने का 'काम' वास्तव में दीपक गुप्ता ने किया था । दीपक गुप्ता दरअसल विनय चंद्रा से इस बात पर नाराज थे कि विनय चंद्रा क्लब में उनकी उम्मीदवारी को लगातार निशाना बना रहे थे ।
विनय चंद्रा ने क्लब के एक सदस्य के साथ सोशल मीडिया में हुई झड़प के चलते गुस्से में क्लब की सदस्यता छोड़ने की जो बात की/कही, दीपक गुप्ता ने उसमें मौका ताड़ा और फिर अपने कुछेक साथियों के साथ मिल कर साजिश का ऐसा जाल बुना कि विनय चंद्रा क्लब से बाहर ही दिखाई दिए । दीपक गुप्ता और उनके साथियों की ही बातों से लोगों को पता चला कि विनय चंद्रा को मनाने का प्रयास दीपक गुप्ता और उनके साथियों ने ही सफल नहीं होने दिया था; और प्रयास को फेल करने के लिए उन्होंने बहुत ही सुनियोजित तरीके से प्लान बनाया था । मामले को खत्म करवाने की जिम्मेदारी जिस तरह से जीपी अग्रवाल को दिलवाई गई थी, उससे कुछेक लोगों को शक तो हुआ था कि मामले को खत्म करवाने की कोशिश की आड़ में उद्देश्य कुछ और ही है । विनय चंद्रा और जीपी अग्रवाल के बीच तनातनी चूँकि पहले से ही थी, इसलिए क्लब के कुछेक सदस्यों ने कहा भी कि मामले को खत्म करवाने की जिम्मेदारी जीपी अग्रवाल की बजाए किसी और को सौंपी जानी चाहिए - पर उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया गया; लोगों को अब समझ में आ रहा है कि जानबूझ कर ही उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया गया था । मजे की बात यह है कि दीपक गुप्ता तथा क्लब के दूसरे कुछेक प्रमुख लोग उस समय तो जोरशोर से दावा कर रहे थे कि वह विनय चंद्रा को किसी भी हालत में क्लब से बाहर नहीं जाने देंगे, लेकिन जीपी अग्रवाल ने जैसे ही विनय चंद्रा को मनाने की कोशिशों में रायता फैलाया - सभी लोगों ने चुप्पी साध ली । विनय चंद्रा और उनके साथियों को बहुत देर बाद समझ में आया कि उनके साथ किस तरह से धोखा किया गया है । पहले तो वह जीपी अग्रवाल को ही जिम्मेदार मान रहे थे, लेकिन जैसे जैसे बातें बाहर आती/निकलती रहीं - वैसे वैसे साफ होता गया कि विनय चंद्रा को क्लब से बाहर करवाने में दीपक गुप्ता की ही मुख्य और षड्यंत्रकारी भूमिका थी ।
दीपक गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी को सुरक्षित बनाए रखने के लिए ही विनय चंद्रा को क्लब से बाहर करवाने की योजना को क्रियान्वित किया । दरअसल विनय चंद्रा जिन तर्कों के आधार पर दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे थे, उन तर्कों को क्लब के सदस्यों के बीच समर्थन मिलता देख दीपक गुप्ता तथा उनके साथ के लोगों के बीच डर पैदा हुआ कि उनकी उम्मीदवारी कहीं उनके अपने क्लब में ही अमान्य न हो जाए । इस डर को दूर करने के लिए ही दीपक गुप्ता को विनय चंद्रा को ठिकाने लगाना जरूरी लगा । सीधे तरीके से तो वह ऐसा नहीं कर सकते थे, लिहाजा उन्होंने विनय चंद्रा को धोखे में रख कर उन्हें ठिकाने लगाने की तैयारी की । दीपक गुप्ता की तैयारी तो सफल हुई, लेकिन इस तैयारी की बात को वह छिपा कर नहीं रख सके और खुद ही इसका बखान करते रहे । इसी का नतीजा हुआ कि क्लब में विनय चंद्रा के संगी-साथी सक्रिय हो उठे हैं । उनकी सक्रियता के चलते ही विनय चंद्रा के इस्तीफे की कहानी फिर से जी उठी है । दीपक गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह है कि उक्त कहानी के जी उठने से उनके सामने दोहरी समस्या खड़ी हो गई है : एक तरफ तो उन्हें विनय चंद्रा के साथियों की नाराजगी व उनके विरोध का सामना करना पड़ेगा, और दूसरी तरफ क्लब में उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ बातें और तेज होंगी ।
दीपक गुप्ता के क्लब में कई लोगों का मानना और कहना है कि दीपक गुप्ता अपनी उम्मीदवारी के चक्कर में क्लब की बदनामी करवा रहे हैं; लगातार चुनाव हारते रहने के चलते डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोग क्लब के पदाधिकारियों का मजाक उड़ाते हैं; दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के चलते गाजियाबाद के दूसरे क्लब्स के पदाधिकारियों व प्रमुख लोगों के साथ उनकी दूरियाँ और बन/बढ़ रही हैं - इन कारणों से क्लब का कोई भी सदस्य दीपक गुप्ता के साथ चुनाव अभियान में जरा भी सक्रिय नहीं है । पिछले वर्ष अनिल अग्रवाल ने उनके साथ काफी भाग-दौड़ की थी, लेकिन इस वर्ष उन्होंने तौबा कर ली है । जीपी अग्रवाल भी दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए कुछ करते हुए नहीं नजर आ रहे हैं । क्लब के लोगों का मानना और कहना है कि दीपक गुप्ता की इस बार भी दाल गलती हुई नहीं दिख रही है, इसलिए उनके चक्कर में अपनी फजीहत क्यों करवाई जाए ? ऐसे में, विनय चंद्रा के संगी-साथियों के सक्रिय हो उठने की आहट ने दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी की मुसीबतों को और बढ़ाने का ही काम किया है ।