नई दिल्ली । यशपाल अरोड़ा की जगह मुकेश गोयल के
सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार हो जाने से जेपी सिंह और
उनके समर्थकों को गुरचरण सिंह भोला के लिए उम्मीद नजर आने लगी है । गुरचरण
सिंह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जेपी सिंह के उम्मीदवार
हैं । जेपी सिंह की तरफ से पहले रमेश अग्रवाल की उम्मीदवारी थी, किंतु
अचानक से उनके पीछे हटने के बाद जेपी सिंह को अपने ही क्लब के सदस्य गुरचरण
सिंह को उम्मीदवार बनाना पड़ा । गुरचरण सिंह जब उम्मीदवार बने, तब
प्रतिद्धंद्धी खेमे की तरफ से यशपाल अरोड़ा उम्मीदवार थे - जो पिछले करीब
पाँच-छह महीने से अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के अभियान में लगे
हुए थे । यशपाल अरोड़ा के सामने गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी को किसी ने भी
उत्साह और/या उम्मीद के साथ नहीं लिया; और हर किसी का मानना व कहना रहा कि
गुरचरण सिंह को जेपी सिंह अपने राजनीतिक स्वार्थ में इस्तेमाल कर रहे हैं ।
जेपी सिंह के नजदीकियों की तरफ से ही सुना गया कि जेपी सिंह को अपनी
राजनीति के लिए बलि का एक बकरा चाहिए, जो उन्हें गुरचरण सिंह के रूप में
मिल गया है । चर्चा तो यह भी सुनी/सुनाई गई कि रमेश अग्रवाल ने अपनी
उम्मीदवारी वापस ही इसलिए ली, क्योंकि उन्होंने समझ लिया था कि जेपी
सिंह उनकी उम्मीदवारी को लेकर जरा भी गंभीर नहीं हैं, तथा उनकी उम्मीदवारी
की आड़ में वास्तव में अपना उल्लू सीधा करने के चक्कर में हैं ।
जेपी सिंह को दरअसल डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में वापसी करने के लिए इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए एक उम्मीदवार की जरूरत महसूस हुई । उनका आकलन है कि पिछले लायन वर्ष में उनकी जो ऐतिहासिक फजीहत हुई है, उसका कारण सिर्फ यह है कि उनके पास सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार नहीं था । इस कारण उनके समर्थक डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में नहीं पहुँचे, और विरोधी खेमे के लोगों ने इसी बात का फायदा उठा कर उनकी ऐसी गत बना दी, जैसी कि लायन-इतिहास में किसी की नहीं बनी होगी । पिछले वर्ष हुई दुर्गति के अनुभव से जेपी सिंह ने समझ लिया है कि उन्हें यदि सचमुच इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी बनना है, तो सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाले चुनाव में उन्हें अपना एक प्यादा खड़ा करना ही होगा । इससे वह दो फायदे एकसाथ उठा सकते हैं : एक तो यह कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई के चक्कर में वह अपने समर्थकों को एकजुट व सक्रिय रख सकेंगे, तथा दूसरा यह कि अपने चुनाव का खर्चा भी वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के मत्थे मढ़ सकेंगे । ब्लड बैंक की जिम्मेदारी छिन जाने से जेपी सिंह की कमाई पर जो प्रतिकूल असर पड़ा है, उसके बाद तो जेपी सिंह को इस बात की और ज्यादा जरूरत पड़ी है कि कोई दूसरा उनकी राजनीति का खर्चा वहन करे । इसी आधार पर, गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी को जेपी सिंह की इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी चुने जाने की रणनीतिक व 'आर्थिक' तैयारी के रूप में देखा गया ।
प्रतिद्धंद्धी खेमे में यशपाल अरोड़ा की जगह मुकेश गोयल के उम्मीदवार बनने से गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी को लोग लेकिन थोड़ी गंभीरता से देखने लगे हैं । यशपाल अरोड़ा के मुकाबले गुरचरण सिंह को जहाँ चुनावी मुकाबले से कतई बाहर देखा/पहचाना जा रहा था; वहाँ मुकेश गोयल के सामने उन्हें मुकाबले में देखा/पहचाना जाने लगा है । दरअसल लोगों के बीच एक्सपोजर के मामले में मुकेश गोयल और गुरचरण सिंह की स्थिति लगभग एक जैसी ही है; इसलिए इन दोनों के बीच उतना फर्क नहीं है, जितना फर्क यशपाल अरोड़ा और गुरचरण सिंह में था । यशपाल अरोड़ा ने लोगों के बीच जो काम किया हुआ था, उसका फायदा मुकेश गोयल को मिलेगा जरूर - और उसी फायदे के चलते वह गुरचरण सिंह से आगे भी नज़र आ रहे हैं । गुरचरण सिंह के समर्थकों को लेकिन लग रहा है कि मुकेश गोयल अभी आगे भले ही दिख रहे हों, किंतु वह इतना आगे भी नहीं हैं कि गुरचरण सिंह के लिए उन्हें 'पकड़ना' बिलकुल असंभव ही हो । मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को हालाँकि सत्ता खेमे के उम्मीदवार होने का एक बड़ा फायदा भी है । इसीलिए कई लोगों को लग रहा है कि चुनावी मुकाबले में आ जाने के बाद भी गुरचरण सिंह के लिए मुकेश गोयल से आगे निकल पाना मुश्किल ही होगा ।
सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए मुकेश गोयल और गुरचरण सिंह के बीच होते दिख रहे चुनाव में किसका पलड़ा भारी साबित होगा, यह तो इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों उम्मीदवार अपने अपने प्रचार-अभियान को किस प्रकार आगे बढ़ाते हैं और अपने अपने मौकों का किस प्रकार फायदा उठाते हैं; लेकिन यशपाल अरोड़ा की जगह मुकेश गोयल की उम्मीदवारी आने से जेपी सिंह को एक बड़ा फायदा यह जरूर होता हुआ देखा जा रहा है कि अब उन्हें गुरचरण सिंह को झाँसे में रखने के लिए ज्यादा माथापच्ची नहीं करना पड़ेगी । जेपी सिंह के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि गुरचरण सिंह को उम्मीदवारी के लिए राजी कर लेने के बाद भी जेपी सिंह को भरोसा नहीं था कि वह गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी को ज्यादा दिनों तक 'बनाए' रख सकेंगे; लेकिन यशपाल अरोड़ा के चुनावी मैदान से हटने के बाद जो स्थितियाँ बनी हैं, उसमें अब गुरचरण सिंह को भी अपने लिए उम्मीद दिखने लगी है - और इस बात ने जेपी सिंह को बड़ी राहत दी है । इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के लिए अपनी राजनीति चलाने और उसके लिए खर्चा जुटाने के लिए गुरचरण सिंह को राजी करना अब जेपी सिंह के लिए आसान हो गया है ।
जेपी सिंह को दरअसल डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में वापसी करने के लिए इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए एक उम्मीदवार की जरूरत महसूस हुई । उनका आकलन है कि पिछले लायन वर्ष में उनकी जो ऐतिहासिक फजीहत हुई है, उसका कारण सिर्फ यह है कि उनके पास सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार नहीं था । इस कारण उनके समर्थक डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में नहीं पहुँचे, और विरोधी खेमे के लोगों ने इसी बात का फायदा उठा कर उनकी ऐसी गत बना दी, जैसी कि लायन-इतिहास में किसी की नहीं बनी होगी । पिछले वर्ष हुई दुर्गति के अनुभव से जेपी सिंह ने समझ लिया है कि उन्हें यदि सचमुच इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी बनना है, तो सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाले चुनाव में उन्हें अपना एक प्यादा खड़ा करना ही होगा । इससे वह दो फायदे एकसाथ उठा सकते हैं : एक तो यह कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई के चक्कर में वह अपने समर्थकों को एकजुट व सक्रिय रख सकेंगे, तथा दूसरा यह कि अपने चुनाव का खर्चा भी वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के मत्थे मढ़ सकेंगे । ब्लड बैंक की जिम्मेदारी छिन जाने से जेपी सिंह की कमाई पर जो प्रतिकूल असर पड़ा है, उसके बाद तो जेपी सिंह को इस बात की और ज्यादा जरूरत पड़ी है कि कोई दूसरा उनकी राजनीति का खर्चा वहन करे । इसी आधार पर, गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी को जेपी सिंह की इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी चुने जाने की रणनीतिक व 'आर्थिक' तैयारी के रूप में देखा गया ।
प्रतिद्धंद्धी खेमे में यशपाल अरोड़ा की जगह मुकेश गोयल के उम्मीदवार बनने से गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी को लोग लेकिन थोड़ी गंभीरता से देखने लगे हैं । यशपाल अरोड़ा के मुकाबले गुरचरण सिंह को जहाँ चुनावी मुकाबले से कतई बाहर देखा/पहचाना जा रहा था; वहाँ मुकेश गोयल के सामने उन्हें मुकाबले में देखा/पहचाना जाने लगा है । दरअसल लोगों के बीच एक्सपोजर के मामले में मुकेश गोयल और गुरचरण सिंह की स्थिति लगभग एक जैसी ही है; इसलिए इन दोनों के बीच उतना फर्क नहीं है, जितना फर्क यशपाल अरोड़ा और गुरचरण सिंह में था । यशपाल अरोड़ा ने लोगों के बीच जो काम किया हुआ था, उसका फायदा मुकेश गोयल को मिलेगा जरूर - और उसी फायदे के चलते वह गुरचरण सिंह से आगे भी नज़र आ रहे हैं । गुरचरण सिंह के समर्थकों को लेकिन लग रहा है कि मुकेश गोयल अभी आगे भले ही दिख रहे हों, किंतु वह इतना आगे भी नहीं हैं कि गुरचरण सिंह के लिए उन्हें 'पकड़ना' बिलकुल असंभव ही हो । मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को हालाँकि सत्ता खेमे के उम्मीदवार होने का एक बड़ा फायदा भी है । इसीलिए कई लोगों को लग रहा है कि चुनावी मुकाबले में आ जाने के बाद भी गुरचरण सिंह के लिए मुकेश गोयल से आगे निकल पाना मुश्किल ही होगा ।
सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए मुकेश गोयल और गुरचरण सिंह के बीच होते दिख रहे चुनाव में किसका पलड़ा भारी साबित होगा, यह तो इस बात पर निर्भर करेगा कि दोनों उम्मीदवार अपने अपने प्रचार-अभियान को किस प्रकार आगे बढ़ाते हैं और अपने अपने मौकों का किस प्रकार फायदा उठाते हैं; लेकिन यशपाल अरोड़ा की जगह मुकेश गोयल की उम्मीदवारी आने से जेपी सिंह को एक बड़ा फायदा यह जरूर होता हुआ देखा जा रहा है कि अब उन्हें गुरचरण सिंह को झाँसे में रखने के लिए ज्यादा माथापच्ची नहीं करना पड़ेगी । जेपी सिंह के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि गुरचरण सिंह को उम्मीदवारी के लिए राजी कर लेने के बाद भी जेपी सिंह को भरोसा नहीं था कि वह गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी को ज्यादा दिनों तक 'बनाए' रख सकेंगे; लेकिन यशपाल अरोड़ा के चुनावी मैदान से हटने के बाद जो स्थितियाँ बनी हैं, उसमें अब गुरचरण सिंह को भी अपने लिए उम्मीद दिखने लगी है - और इस बात ने जेपी सिंह को बड़ी राहत दी है । इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के लिए अपनी राजनीति चलाने और उसके लिए खर्चा जुटाने के लिए गुरचरण सिंह को राजी करना अब जेपी सिंह के लिए आसान हो गया है ।