Thursday, January 3, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए दिनेश जोशी और दिनेश बत्रा के बीच होते दिख रहे चुनावी मुकाबले में लायंस ब्लड बैंक के कामकाज के मुद्दा बनने से डिस्ट्रिक्ट में माहौल गर्म हुआ

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि मेहरा और लायंस ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट राजेंद्र अग्रवाल द्वारा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए दिनेश जोशी की उम्मीदवारी को शह देने की कार्रवाई उनके अपने ग्रुप के अन्य नेताओं को पसंद नहीं आ रही है, और इस स्थिति ने सत्ता खेमे के लोगों को असमंजस में फँसा दिया है । रवि मेहरा तथा राजेंद्र अग्रवाल लेकिन दिनेश जोशी तथा अन्य लोगों को आश्वस्त कर रहे हैं कि ग्रुप के जो नेता अभी उनके फैसले का समर्थन नहीं कर रहे हैं, देर/सवेर उनके फैसले का समर्थन करने लगेंगे । उनका तर्क है कि ग्रुप के उन नेताओं के लिए विरोधी ग्रुप के उम्मीदवार दिनेश बत्रा का समर्थन करना तो संभव नहीं ही होगा; और इसलिए उन्हें दिनेश जोशी की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए मजबूर होना ही पड़ेगा । मजे की बात यह है कि दिनेश बत्रा की भी जेपी सिंह के नेतृत्व वाले ग्रुप में पूरी स्वीकार्यता नहीं है - वहाँ भी ग्रुप के कई नेताओं को लगता है कि दिनेश बत्रा चुनाव को 'अफोर्ड' नहीं कर पायेंगे और मदन बत्रा की तरह ग्रुप की फजीहत ही करवायेंगे । इस वर्ष यदि सचमुच दिनेश जोशी और दिनेश बत्रा के बीच ही चुनावी जंग होती है, तो चुनावी वातावरण तो कुछ बदला बदला सा ही होगा - लेकिन चुनाव को प्रभावित करने वाला फैक्टर कमोवेश पिछले दो वर्षों जैसा ही होगा; पिछले दो वर्षों का अनुभव 'बताता' है कि चुनाव का नतीजा उस उम्मीदवार के हक में गया, जिसने दमदारी से चुनाव लड़ा - खेमे की मजबूती तथा नेताओं की भीड़ व उनका समर्थन निर्णायक भूमिका में नहीं रहा । पिछले से पिछले वर्ष यशपाल अरोड़ा का खेमा खासा मजबूत दिख रहा था, और उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार गुरचरन सिंह भोला को नया/नवेला तथा अनुभवहीन माना/देखा जा रहा था - लेकिन फिर भी नतीजा गुरचरन सिंह भोला के पक्ष में रहा, तो इसका कारण सिर्फ यही था कि गुरचरन सिंह भोला ने चुनाव पूरी दमदारी से लड़ा था । पिछले वर्ष भी यही कहानी दोहराई गई - लायनिज्म में संलग्नता की अवधि और अनुभव के आधार पर मदन बत्रा का पलड़ा भारी समझा/माना जा रहा था, लेकिन उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का अभियान चलाने के मामले में रमन गुप्ता ने उन्हें पछाड़ दिया और जीत प्राप्त की ।
दिनेश बत्रा के लिए मुसीबत की बात यही है कि उन्हें समर्थन देने वाले ग्रुप के ही कई लोग उन्हें यशपाल अरोड़ा व मदन बत्रा वाली 'स्थिति' में देख/रख रहे हैं, और अभी से मान कर चल रहे हैं कि दिनेश बत्रा चुनावी अभियान की जरूरतों और चुनौतियों का सामना नहीं कर पायेंगे । अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के लिए दिनेश बत्रा के पास ले दे कर एक यही तर्क है कि डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म में उनकी खासी सक्रियता रही है और वह एक पुराने लायन हैं - लेकिन इसी तर्क के भरोसे चुनाव जीतने की यशपाल अरोड़ा व मदन बत्रा की कोशिशों का क्या हश्र हुआ, यह सभी ने देखा ही है । दिनेश बत्रा और उनके समर्थकों के लिए राहत की बात यही है कि दिनेश जोशी की उम्मीदवारी को लेकर सत्ता खेमे में मतभेद हैं, और सत्ता खेमे के कुछेक नेता अपनी अपनी 'मुसीबतों' में फँसे/उलझे पड़े हैं - इस कारण दिनेश जोशी की उम्मीदवारी के अभियान में वैसी 'गर्मी' नहीं दिखाई दे रही है, जैसी पिछले वर्ष रमन गुप्ता के अभियान में थी । इसका कारण दोनों के व्यक्तित्व में भी देखा/पहचाना जा रहा है; खेमे के लोगों का ही कहना/बताना है कि रमन गुप्ता ने आगे बढ़ कर अलग-अलग मिजाज के नेताओं को एकजुट व सक्रिय करने का काम किया था, लेकिन दिनेश जोशी ऐसा करने में कोई दिलचस्पी ही नहीं ले रहे हैं - और पूरी तरह से रवि मेहरा व राजेंद्र अग्रवाल पर ही निर्भर हैं । दिनेश जोशी को अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के मामले में रवि मेहरा व राजेंद्र अग्रवाल पर ही निर्भर देख कर खेमे के दूसरे नेता और भड़के हुए हैं ।
दिनेश बत्रा और उनके समर्थक दिनेश जोशी को घेरने के लिए लायंस ब्लड बैंक के साथ उनके व्यापारिक संबंधों को मुद्दा बनाते और हवा देते हुए भी लग रहे हैं, जिससे आभास हो रहा है कि इस बार के चुनावों में आरोपों/प्रत्यारोपों का आक्रामक नजारा देखने/ को मिलेगा । दिनेश बत्रा और उनके समर्थकों की तरफ से कहा/बताया जा रहा है कि लायंस ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट राजेंद्र अग्रवाल ब्लड बैंक के कामकाज में दिनेश जोशी के साथ मिलकर कुछ गड़बड़ कर रहे हैं, जिसे और 'मजबूत' करने के लिए ही राजेंद्र अग्रवाल ने दिनेश जोशी को उम्मीदवार बना/बनवा दिया है । खेमे के लोगों का कहना/बताना रहा है कि राजेंद्र अग्रवाल खुद उम्मीदवार होना चाहते थे, लेकिन उन्हें स्पष्ट कर दिया गया कि वह यदि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार होते हैं, तो उन्हें ब्लड बैंक का प्रेसीडेंट पद छोड़ना होगा । राजेंद्र अग्रवाल ब्लड बैंक का प्रेसीडेंट पद छोड़ने को तैयार नहीं हुए, और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी से पीछे हटने के लिए मजबूर हो गए । डिस्ट्रिक्ट में चर्चा है कि तब राजेंद्र अग्रवाल को आईडिया सूझा कि वह क्यों न दिनेश जोशी को गवर्नर की लाईन में लगवा दें, ताकि ब्लड बैंक में उन्हें अपनी मनमानी करने का मौका मिलता रहे और दूसरे नेताओं के मुँह बंद रहें । गौर करने वाली बात यह है कि लायंस ब्लड बैंक के कामकाज को लेकर सत्ता खेमे के ही कुछेक बड़े नेताओं ने सवाल उठाए हुए हैं, जिन्हें लगातार अनसुना किया जा रहा है । दिनेश बत्रा और उनके समर्थकों को लग रहा है कि ब्लड बैंक के कामकाज और उसमें दिनेश जोशी की संलग्नता को मुद्दा बना कर वह दिनेश जोशी को घेर लेंगे और अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटा लेंगे । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में लायंस ब्लड बैंक के कामकाज के मुद्दा बनने से क्या नजारा बनेगा, यह देखना दिलचस्प होगा ।