Tuesday, January 8, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में अशोक अग्रवाल की चुनावी जीत के जरिये डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन ने मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल जैसे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस से मुँह छिपाकर भागने के लिए मजबूर किया

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी नतीजे को घोषित करने का समय क्या जानबूझ कर ऐसा रखा था, कि मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल जैसे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के शुरू होते ही बेआबरू होकर भागने के लिए मजबूर होना पड़ा ? रमेश अग्रवाल इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने की दौड़ में शामिल होना चाहते हैं, लेकिन अपने ही डिस्ट्रिक्ट में उनकी ऐसी गत हो गई है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में अपनी उपस्थिति बनाये रख पाना उनके लिए मुश्किल हुआ, और वहाँ से उन्हें मुँह छिपा कर भागना पड़ा । मजे की बात यह है कि अपनी इस दुर्दशा के लिए यह दोनों खुद ही जिम्मेदार हैं; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन ने तो बस तारीखों का सिर्फ तानाबाना ऐसा बुना कि अपने आप को तीसमारखाँ समझने वाले 'रंगा' 'बिल्ला' की यह जोड़ी उसमें उलझ कर न सिर्फ अपनी फजीहत करवा बैठी, बल्कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस जैसे डिस्ट्रिक्ट व रोटरी के महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम को भी बीच में छोड़ कर उन्हें लोगों से मुँह छिपाने के लिए मजबूर होना पड़ा । इससे भी बड़ी फजीहत की बात मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के लिए यह हुई कि जिन अमित गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव जितवाने का बीड़ा इन्होंने उठाया हुआ था, उनके नजदीकी और समर्थक ही अब आरोप लगा रहे हैं कि इन दोनों की हरकतों के चलते अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को फायदा होने की बजाये नुकसान उठाना पड़ा है । उनका कहना है कि मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल का समर्थन यदि नहीं मिलता, हो सकता है कि तब भी अमित गुप्ता चुनाव हारते ही - लेकिन इतनी बुरी तरह से न हारते । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों का मानना/कहना है कि इन दोनों पूर्व गवर्नर के समर्थन के चलते अमित गुप्ता को कई क्लब्स के वोटों से हाथ धोना पड़ा है, और जिस कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उनकी हार का अंतर काफी बढ़ गया ।
मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने अमित गुप्ता को समर्थन दिलवाने के नाम पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन से जो सीधी लड़ाई मोल ली, दरअसल वही अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को भारी पड़ी और वह एक तिहाई वोट भी नहीं पा सके । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई की आड़ में इन दोनों ने दरअसल सुभाष जैन के साथ अपनी अपनी खुन्नस निकालने की कोशिश की, और अमित गुप्ता को वोट दिलवाने के नाम पर सुभाष जैन को बदनाम करने के लिए नंगपने की हदों को पार किया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन के कामकाज और या उनके तौर-तरीकों से किसी को भी ऐतराज हो सकता है और वह अपने ऐतराज को प्रकट भी कर सकता है; लेकिन ऐतराज प्रकट करने की प्रक्रिया में संगठन के लोग - और वह भी बड़े लोग - यदि अपने और दूसरों के पद की मर्यादा खोते हैं, तो उसे लोगों का समर्थन नहीं ही मिलता है । रोटरी में तकनीकी तथा भावनात्मक रूप से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की एक विशिष्ट हैसियत होती ही है, जिसके आकर्षण में लोग, खासकर क्लब्स के प्रेसीडेंट उसके नजदीक रहना/दिखना चाहते हैं । गौर करने की बात है कि अमित गुप्ता और उनके नजदीकियों व समर्थकों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और प्रेसीडेंट्स के बीच के नाजुक रिश्ते को पहचान/समझ लिया था, और इसीलिए सुभाष जैन से सहयोग न मिलने की सूरत में भी उन्होंने सुभाष जैन के प्रति आक्रामक रुख नहीं अपनाया था । लेकिन मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने अमित गुप्ता की उम्मीदवारी का झंडा उठाते ही सुभाष जैन को निशाना बनाना शुरू कर दिया ।इन दोनों के रवैये से ऐसा लगा जैसे कि अमित गुप्ता का चुनाव सुभाष जैन के साथ हो रहा है । सुभाष जैन की बुराई करने में इन्होंने जो जोर लगाया, उसने प्रेसीडेंट्स को अमित गुप्ता से दूर करने का ही काम किया और इसके चलते अशोक अग्रवाल की ताकत और बढ़ी । 
इस सबके बीच असली खेल सुभाष जैन ने किया । मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के लिए फजीहत के हालात बनाने के लिए चुनाव की तारीखें उन्होंने ऐसे तय कीं कि नतीजा डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस शुरू होने के तुरंत बाद मिले । चूँकि वोटिंग पूरी होने पर नतीजा पहले भी घोषित हो जाता, इसलिए सुभाष जैन ने 'व्यवस्था' की कि वोटिंग निर्धारित समय पर ही पूरी हो । आँख-नाक-कान खुली रखने वाले हर रोटेरियन के साथ-साथ सुभाष जैन को भी 'पता' था कि चुनाव का नतीजा अशोक अग्रवाल के पक्ष में ही होगा, और अशोक अग्रवाल अच्छे अंतर से चुनाव जीतेंगे । सिर्फ मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल को ही अमित गुप्ता के जीतने की उम्मीद थी । इन्होंने पता नहीं कौन सा नशा किया हुआ था कि उसके असर में इन्हें कुल 164 वोटों में से अमित गुप्ता को कम से कम 85 वोट तो निश्चित ही मिलते दिख रहे थे । इस  तरह सारा खेल सुभाष जैन की योजना के अनुसार ही चल रहा था । सुभाष जैन की योजना थी कि चुनावी नतीजा डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस शुरू होने के तुरंत बाद मिले, जिससे मुकेश अरनेजा व रमेश अग्रवाल की डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच फजीहत हो - और ठीक ऐसा ही हुआ; अशोक अग्रवाल को मिले 111 वोटों के मुकाबले अमित गुप्ता को कुल 48 वोट मिलने का परिणाम सुनते ही मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को बीच में ही छोड़ कर ऐसे गायब हुए, कि लोगों को 'गधे के सिर से सींग' वाला मुहावरा याद आ गया ।
इस नतीजे ने मुकेश अरनेजा को सुभाष जैन से सीधी भिड़ंत में तीसरी बार मात खाने का अनोखा रिकॉर्ड भी बनाया । उल्लेखनीय है कि पहली बार सुभाष जैन और दीपक गुप्ता के बीच हुए चुनावी मुकाबले में सुभाष जैन को हराने के लिए मुकेश अरनेजा ने हर तरह का घटियापन दिखाया था, लेकिन उसके बावजूद वह सुभाष जैन को चुनाव में नहीं हरा पाए थे । दूसरी बार सुभाष जैन की रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत के जरिये मुकेश अरनेजा ने उन्हें फँसाने की कोशिश की थी, लेकिन मुकेश अरनेजा की वह कोशिश भी सफल नहीं हो सकी थी । अब की बार, मुकेश अरनेजा तीसरी दफा अमित गुप्ता को चुनाव जितवाने के जरिये सुभाष जैन से सीधे भिड़े - लेकिन इस बार भी वह 'पिटे' । मुकेश अरनेजा के लिए फजीहत की बात यह भी रही कि पहले उन्होंने अशोक अग्रवाल को समर्थन देने का आश्वासन दिया था; लेकिन उन्होंने अशोक अग्रवाल को जब सुभाष जैन के नजदीक जाता/होता देखा, तो उन्होंने अशोक अग्रवाल को धोखा देते हुए रवि सचदेवा की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया; फिर जब उन्हें लगा कि वह अमित गुप्ता के कंधे का सहारा लेकर सुभाष जैन से पुराना हिसाब चुकता कर सकते हैं, तो उन्होंने रवि सचदेवा को भी धोखा देने में देर नहीं लगाई । 'धोखेबाज' का खिताब पाए मुकेश अरनेजा पर प्रेसीडेंट्स ने भी भरोसा नहीं किया, और सुभाष जैन से हिसाब चुकता करने का उनका तीसरा प्रयास भी औंधे मुँह ढेर हो गया । सुभाष जैन की रणनीति के चलते मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल को जो तगड़ी चोट पड़ी है, वह डिस्ट्रिक्ट और रोटरी की एक दिलचस्प गाथा के रूप में याद रखी जाएगी ।