Saturday, January 5, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट हरि गुप्ता के नजदीकियों की ही 'मदद' से होने वाली मनीष शारदा की जीत हरि गुप्ता के लिए फजीहत का कारण बनी

मेरठ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में मनीष शारदा की जीत की खबर मिलने के तुरंत बाद पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर योगेश मोहन गुप्ता द्वारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट हरि गुप्ता को लानत-सी देता वाट्स-ऐप संदेश भेजना इस बात की पुष्टि ही करता है कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक नेताओं के लिए मनीष शारदा को चुनाव जितवाना हरि गुप्ता को नीचा दिखाने के लिए जरूरी हो गया था - और उसके लिए उन नेताओं ने हर हथकंडा अपनाया । दरअसल इसीलिए मनीष शारदा की मामूली अंतर से हुई चुनावी जीत को हरि गुप्ता की पराजय के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष दीपक जैन और हरि गुप्ता के बीच हुए चुनाव में मनीष शारदा के क्लब - रोटरी क्लब मेरठ महान - ने दीपक जैन का समर्थन किया था; और तभी से हरि गुप्ता तथा मनीष शारदा के क्लब के बीच तनातनी की चर्चा थी । यह चर्चा पिछले दिनों उस समय पुख्ता हुई जब अगले वर्ष की डिस्ट्रिक्ट टीम में हरि गुप्ता द्वारा शामिल किए गए मनीष शारदा के क्लब के सदस्यों ने इकट्ठे इस्तीफा दे दिया । उनका आरोप रहा कि हरि गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में दीपा खन्ना का समर्थन कर रहे हैं और इस तरह मनीष शारदा की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का काम कर रहे हैं । हरि गुप्ता ने उनके इस्तीफे तुरंत स्वीकार भी कर लिए । इस प्रसंग से संदेश यह गया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव  जैसे मनीष शारदा और हरि गुप्ता के बीच हो रहा है । इससे अलग अलग कारणों से हरि गुप्ता के विरोधी बने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स जीएस धामा, योगेश मोहन गुप्ता और राकेश सिंघल ने खुलकर मनीष शारदा की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया, और तब मनीष शारदा की उम्मीदवारी के पक्ष में वोट जुटाने के लिए हर हथकंडा अपनाया गया ।
हरि गुप्ता के लिए बड़े झटके की बात यह रही कि अगले वर्ष की उनकी डिस्ट्रिक्ट टीम के प्रमुख सदस्यों तक के क्लब के वोट मनीष शारदा और उनके समर्थकों के हाथों 'बिक' गए । माना/समझा जा रहा था कि हरि गुप्ता ने जिन प्रमुख रोटेरियंस को अपनी टीम में महत्त्वपूर्ण पद दिए हैं, वह अपने अपने क्लब के वोट निश्चित रूप से दीपा खन्ना को दिलवा देंगे । रोटरी की चुनावी राजनीति का यह एक बड़ा आम फार्मूला है, जिसे प्रायः हर डिस्ट्रिक्ट में हमेशा ही आजमाया जाता है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पास अवॉर्ड का तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के पास पदों का 'खजाना' होता है, जिसके जरिये वह चुनाव को प्रभावित करने का काम करते हैं । लेकिन मनीष शारदा और उनके समर्थकों ने हरि गुप्ता की टीम में जगह पाने वाले प्रमुख रोटेरियंस के क्लब्स के प्रेसीडेंट के सामने ऐसी-ऐसी पेशकशें कीं कि प्रेसीडेंट्स ने अपने क्लब के नेताओं की बात मानने से इंकार कर दिया और हरि गुप्ता की टीम में जगह पाने वाले क्लब्स के नेताओं के लिए हरि गुप्ता से आँख मिला पाना मुश्किल हुआ । इस उलट-फेर के कारणों का आकलन करने वाले लोगों को यह भी लगता है कि हरि गुप्ता के अति-आत्मविश्वास में रहने के चलते भी यह हुआ । चुनाव से पहले हरि गुप्ता को कुछेक क्लब्स के प्रेसीडेंट के बदलते दिख रहे रवैये के प्रति आगाह किया गया था, लेकिन हरि गुप्ता ने उसकी परवाह नहीं की और आश्वस्त रहे कि उन्हें धोखा नहीं मिलेगा । हरि गुप्ता का यह अति-आत्मविश्वास ही दीपा खन्ना की हार का कारण बना । हरि गुप्ता के लिए समस्या की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में पराजय दीपा खन्ना की हुई है, लेकिन फजीहत हरि गुप्ता की हो रही है ।
डिस्ट्रिक्ट में कुछेक लोगों को लगता है कि हरि गुप्ता की फजीहत इसलिए भी हो रही है, क्योंकि वह हर किसी को साथ लेकर चलना चाहते हैं, और डिस्ट्रिक्ट में सौहार्द बनाने का प्रयास कर रहे हैं । इसी प्रयास के तहत उन्होंने मनीष शारदा के क्लब के कई सदस्यों को अपनी गवर्नर-टीम में जगह दी । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में वह दीपा खन्ना की उम्मीदवारी के समर्थन में थे - इसका प्रचार तो बहुत था, लेकिन दीपा खन्ना की उम्मीदवारी के पक्ष में कुछ करते हुए उन्हें देखा किसी ने नहीं । वास्तव में उनके रवैये को देखते हुए उनके ऊपर आरोप चस्पाँ हुआ कि वह दोनों नावों में पैर रखे रहना चाहते हैं । हरि गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि वह स्पष्ट फैसला करने से हिचकते/बचते हैं, और इसलिए उनके विरोधी उन्हें गंभीरता से नहीं लेते हैं । लोगों का कहना है कि हरि गुप्ता की सदाशयता और भलमनसाहत को उनके विरोधी उनकी कमजोरी समझते हैं, और उनके साथ मनमाना व्यवहार करते हैं - हरि गुप्ता लेकिन उससे कोई सबक नहीं लेते हैं । रोटरी क्लब मेरठ महान से धोखा खाने के बाद भी हरि गुप्ता उसके कई सदस्यों को अपनी टीम में प्रमुख पद देते हैं; वह सदस्य लेकिन हरि गुप्ता की इस भलमनसाहत का सम्मान नहीं करते हैं और उन्हें नीचा दिखाने के उद्देश्य से सामूहिक इस्तीफे दे देते हैं । हरि गुप्ता उन इस्तीफों के पीछे छिपी षड्यंत्रकारी राजनीति को समझने/पहचानने में भी चूक कर जाते हैं, और सावधान होने की बजाये अति-आत्मविश्वास का शिकार बने रहते हैं - जिसका नतीजा हरि गुप्ता के नजदीकियों की ही 'मदद' से होने वाली मनीष शारदा की जीत के रूप में सामने आता है ।