Friday, January 25, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पर कब्जे की राजेश शर्मा और चरनजोत सिंह नंदा की कोशिशों को अग्रवाल पिता-पुत्र की जोड़ी ने फिलहाल फेल तो कर दिया है, लेकिन आठ सदस्यीय सत्ता ग्रुप को एकजुट रखना इनके लिए बड़ी चुनौती भी है

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की 13 सदस्यीय नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सत्ता संभालने के लिए आठ सदस्यों का ग्रुप बन तो गया है, लेकिन बनने के साथ ही इसे तोड़ने की तथा इसके टूटने की शंकाएँ भी चूँकि पैदा हो गई हैं - इसलिए सारा नजारा अभी अधर में भी दिख रहा है । दरअसल सत्ता के लिए - शशांक अग्रवाल, अविनाश गुप्ता, अजय सिंघल, गौरव गर्ग, हरीश चौधरी, रतन सिंह यादव, रचित भंडारी, विजय गुप्ता के रूप में - आठ सदस्यों का जो ग्रुप बना है; उनमें से आधे से ज्यादा लोग चेयरमैन बनना चाहते हैं, और कुछ तो पहले ही वर्ष में चेयरमैन बनने की जुगाड़ में हैं । इतिहास गवाह है - जिसमें नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के हाल के वर्षों का इतिहास भी है - कि शीर्ष पद के लिए कैसी कैसी मारकाटें मची हैं, और देर रात तक पालें बदले गए हैं । यह वास्तव में इसलिए भी होता है क्योंकि रीजनल काउंसिल में जो समीकरण बनता दिख रहा होता है, वह तो सिर्फ कठपुतलियों के खेल जैसा होता है - असली खेल तो कहीं और चल रहा होता है, जिसके इशारे पर नॉर्दर्न रीजन की कठपुतलियाँ इधर-उधर हो रही होती हैं । इस बार इस खेल की डोर रीजनल काउंसिल के पूर्व चेयरमैन दुर्गादास अग्रवाल के हाथ में सुनी/बताई जा रही है, सत्ता ग्रुप के आठ सदस्यों में शामिल शशांक अग्रवाल जिनके पुत्र हैं । नॉर्दर्न रीजन से सेंट्रल काउंसिल के लिए पुनर्निर्वाचित हुए राजेश शर्मा और चरनजोत सिंह नंदा ने भी रीजनल काउंसिल पर कब्जा करने की कोशिश की थी, लेकिन दुर्गादास अग्रवाल ने जैसी/जो फील्डिंग सजाई - उसके सामने उन दोनों की चली नहीं ।
दुर्गादास अग्रवाल ने फिलहाल अपनी चला तो ली है, लेकिन उनकी कितने दिन चल पाएगी - इसे लेकर खुद उनके नजदीकियों के बीच संशय है । दरअसल उनका खेल इस बात पर निर्भर करेगा कि उनके पुत्र शशांक अग्रवाल का कैसा/क्या रवैया रहता है; चुनावी जीत हासिल करने के बाद से शशांक अग्रवाल ने रीजनल काउंसिल के सदस्य होने को लेकर जो उतावलापन दिखाया है - उसे देखते हुए उक्त सवाल और महत्त्वपूर्ण हो गया है; देखने की बात यह भी होगी कि शशांक अग्रवाल के रवैये पर दुर्गादास अग्रवाल कैसे रिएक्ट करते हैं ? कई लोगों को अभी से एक आशंका सता रही है कि यह पिता-पुत्र अपनी अपनी भूमिका को लेकर यदि जरूरत से ज्यादा सक्रिय हुए और 'दिखे', तो सत्ता ग्रुप को बनाए रखना मुश्किल हो जायेगा । मजे की बात यह है कि सत्ता ग्रुप का गठन इस आधार पर किया गया है कि बदनाम/बेईमान लोगों और उनके नजदीकियों को दूर रखा जायेगा; और इसी आधार पर नितिन कँवर, राजिंदर अरोड़ा, सुमित गर्ग को तो अलग रखा ही गया है - श्वेता पाठक को भी सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा के खेमे का होने के संदेह में अलग कर दिया गया है; लेकिन राजेश शर्मा के चेले पूर्व चेयरमैन राकेश मक्कड़ के नजदीकियों व चेलों के रूप में पहचाने जाने वाले अविनाश गुप्ता, अजय सिंघल और रतन सिंह यादव को ग्रुप में शामिल कर लिया गया है । इसी कारण से आठ सदस्यों वाले सत्ता ग्रुप को एक बेमेल खिचड़ी के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
समस्या हालाँकि बेमेल खिचड़ी होने से नहीं है । इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन तथा उसकी चुनावी राजनीति का जो स्वरूप है, उसमें काउंसिल में बेमेल खिचड़ी ही बनेगी - और यही सच्चाई है । समस्या लेकिन इस बात में है कि बेमेल खिचड़ी के अधिकतर 'इंग्रेडिएंट्स' को अपने महत्त्वपूर्ण होने का गुमान है और उन्हें लगता है कि उनके कारण ही यह खिचड़ी बन सकी है । आठ सदस्यीय सत्ता ग्रुप के कई सदस्य हालाँकि दूसरी बार में चुनाव जीते हैं, लेकिन यह लोग समझते यह हैं कि जैसे इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के सबसे बड़े तुर्रमखाँ यही हैं । इनमें से कुछेक की पिछले महीनों में जैसी/जो हरकतें रही हैं, उन्हें देखते/याद करते हुए लगता नहीं है कि अगले टर्म में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का सीन बेहूदगी व बदतमीजी भरा नहीं रहेगा । काउंसिल में लोग अपने आप को 'बड़ा' भी मानें/समझें और बेहूदगी/बदतमीजी भी करें, तो यह स्थिति 'करेला और नीम चढ़ा' वाली होगी । महत्वाकाँक्षाओं से भरे ऐसे लोगों को एकजुट रखना वास्तव में टेढ़ी खीर होगा, और इसीलिए आठ सदस्यीय सत्ता ग्रुप के एकजुट बने रहने को लेकर अभी से संदेह किए जा रहे हैं । पंकज गुप्ता को बड़े 'राजनीतिक परिवार' का सदस्य बता कर सत्ता ग्रुप से अलग रखने की कार्रवाई में भी खतरे की आहट सुनी जा रही है । दरअसल उक्त राजनीतिक परिवार चूँकि अगले टर्म में इंस्टीट्यूट की सभी काउंसिल्स से बाहर हो रहा है, इसलिए वह चुप तो नहीं ही बैठेगा और पंकज गुप्ता के जरिये वह नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में अपना हस्तक्षेप रखने का प्रयास जरूर ही करेगा । उसका कोई भी प्रयास नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के अभी बने ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर सकता है । हालाँकि कई लोगों को लगता है कि पहले वर्ष के शुरुआती महीने तो शांतिपूर्ण ढंग से निकल जायेंगे, और जो भी उठापटक होनी होगी वह पहले वर्ष के अंतिम महीनों में ही होगी; लेकिन अन्य कई लोगों को लगता है कि पहले वर्ष के लिए चेयरमैन के चुनाव में ही खटपट होने के बीज पड़ जायेंगे । देखना दिलचस्प होगा कि चौतरफा चुनौतियों से घिरा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का आठ सदस्यीय सत्ता ग्रुप सचमुच अपने आप को एक बनाए रख पाता है, या बिखरने की तरफ बढ़ता है ।