Tuesday, June 9, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में सुभाष जैन की चुनावी मीटिंग में उपस्थित हुए उनके अपने क्लब के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा लोगों के बीच की गईं बातों ने सुभाष जैन की उम्मीदवारी की संभावना को लेकर लोगों के बीच बने हुए संशय व अनिश्चय को वास्तव में और बढ़ा दिया है

गाजियाबाद । सुभाष जैन की गाजियाबाद में हुई चुनावी मीटिंग में उनके अपने क्लब के वरिष्ठ सदस्यों ने उनके चुनाव अभियान की हवा बिगाड़ दी - और इस तरह उनके अपने क्लब के वरिष्ठ सदस्य ही उनकी उम्मीदवारी के दुश्मन साबित हुए । सुभाष जैन के लिए मुसीबत की बात यह हुई कि अपनी चुनावी मीटिंग में अपने क्लब के वरिष्ठ सदस्यों की उपस्थिति को उन्होंने इस योजना के तहत संभव बनाया था ताकि वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों को बता/दिखा सकें कि उनकी उम्मीदवारी को लेकर उनके अपने क्लब में चल रहा झगड़ा सुलट गया है, और उनके अपने क्लब में उनकी उम्मीदवारी को लेकर एक राय बन गई है । लेकिन उनके क्लब के वरिष्ठ सदस्यों ने मीटिंग में मौजूद दूसरे लोगों को जो बताया, उससे सुभाष जैन की योजना तो सफल नहीं ही हुई - बल्कि बात बिगड़ और गई । मीटिंग में लोगों के बीच जो बातें हुईं, उससे न सिर्फ पुराने घाव हरे और हो गए - बल्कि क्लब में सुभाष जैन की उम्मीदवारी का झगड़ा नए सिरे से गर्म और हो गया । सुभाष जैन के क्लब के ही लोगों ने मीटिंग में मौजूद दूसरे लोगों को बताया कि सुभाष जैन ने तो योगेश गर्ग को भी इस मीटिंग में बुलाया था और उनकी मौजूदगी को संभव करने के लिए काफी प्रयास किए थे - किंतु उनके प्रयास कामयाब नहीं हुए; और इसी से जाहिर है कि योगेश गर्ग ने अपनी उम्मीदवारी का दावा अभी छोड़ा नहीं है, तथा क्लब में उम्मीदवारी का झगड़ा अभी बदस्तूर जारी है । मीटिंग में सुभाष जैन के विरोधी और योगेश गर्ग के समर्थक के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले सदस्यों की उपस्थिति ने हालाँकि मीटिंग के शुरू में दूसरे लोगों को आभास दिया कि सुभाष जैन ने क्लब को मैनेज कर लिया है तथा अपने विरोधियों को 'ठंडा' कर दिया है । लेकिन जल्दी ही उनके क्लब - रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल में उम्मीदवारी के जारी झगड़े की असलियत सामने आ गई । 
सुभाष जैन के क्लब के मीटिंग में मौजूद कुछेक सदस्यों ने तो लोगों के बीच यह तक स्वीकार किया और बताया कि इस मीटिंग में उनकी मौजूदगी की बात योगेश गर्ग को पता है, तथा वह योगेश गर्ग से बात करके ही इस मीटिंग में आए हैं । मजा यह हुआ कि उन्होंने तो लोगों को यह कहा/बताया कि इस मीटिंग में उपस्थित होने/न होने को लेकर उन्होंने योगेश गर्ग से बात की तो योगेश गर्ग ने उनसे यही कहा कि वह अपनी समझ और अपने विवेक से फैसला करें - दूसरे लोगों ने लेकिन यह समझा कि यह लोग मीटिंग में आये ही यह सोच कर थे कि वह दूसरे लोगों को क्लब की स्थिति की सच्चाई बतायेंगे । उनके सच्चाई बताने के चक्कर में लेकिन सुभाष जैन की मीटिंग के उद्देश्य का कबाड़ा हो गया ।
सुभाष जैन के लिए मुसीबत की बात यह हो रही है कि अपने ही क्लब में उन्हें अपनी उम्मीदवारी को लेकर जिस भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है, उसके कारण उनके लिए डिस्ट्रिक्ट में समर्थन जुटाना तो दूर की बात, अपनी उम्मीदवारी के प्रति लोगों को आश्वस्त तक कर पाना मुश्किल हो रहा है । सुभाष जैन ने पीछे एक बड़ा दाँव चला और दावा किया कि जैनी भाई होने के चलते पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रूपक जैन ने उन्हें समर्थन दे दिया है । उनकी चुनावी मीटिंग में शामिल हुए उनके ही क्लब के लोगों ने लेकिन उनके इस दावे को झूठा बताया । उनका कहना रहा कि रूपक जैन ने योगेश गर्ग को फोन करके बताया है कि सुभाष जैन उनके पास समर्थन माँगने आए थे, लेकिन उन्होंने सुभाष जैन को साफ बता दिया है कि उनका समर्थन तो योगेश गर्ग के लिए होगा - या उसके लिए होगा, जिसका समर्थन योगेश गर्ग करेंगे । रूपक जैन ने सुभाष जैन को इस बात के लिए उलाहना भी दिया कि तुमने तो हमारी इतनी इज्जत भी नहीं रखी कि उम्मीदवारी प्रस्तुत करने से पहले विचार-विमर्श कर लेते; समर्थन माँगने अब आए हो, जब तीन सौ लोगों से समर्थन माँग चुके हो; समर्थन माँगने वाले लोगों की सूची में तीन सौ एक नंबर तो उसका होता है, जिसे तुम कुछ समझ ही नहीं रहे हो - अब जब हमें कुछ समझ ही नहीं रहे हो, तो हमारे समर्थन की चिंता क्यों कर रहे हो ? आदि-इत्यादि । इस तरह की जली-कटी सुनाने के साथ-साथ रूपक जैन ने सुभाष जैन को कुछ अच्छे सुझाव भी दिए - जिनमें प्रमुख यही था कि अपनी उम्मीदवारी के लिए दूसरों से समर्थन माँगने से पहले उन्हें अपने क्लब में समर्थन हासिल करने का प्रयास करना चाहिए । इन सब बातों को बताने के साथ ही सुभाष जैन के क्लब के वरिष्ठ सदस्यों ने अनुमान व्यक्त किया कि शायद रूपक जैन के सुझाव पर ही सुभाष जैन अंततः योगेश गर्ग के घर जाने और उनसे बात करने के लिए मजबूर हुए । 
डिस्ट्रिक्ट में रूपक जैन और योगेश गर्ग की नजदीकियत को हर कोई जानता/पहचानता है । इसके बावजूद सुभाष जैन ने योगेश गर्ग को दरकिनार कर रूपक जैन से तार जोड़ने की कोशिश यह सोच कर की होगी कि जैन होने के कारण रूपक जैन बिना किसी ना-नुकुर के उनके समर्थन के लिए राजी हो जायेंगे । जैन होने के कारण हर जैन उनका सगा होगा, सुभाष जैन यदि अपने पिछले अनुभव को याद रखते तो ऐसा न सोचते । उल्लेखनीय है कि मुकेश अरनेजा के साथ हुए अपने पिछले चुनाव में मिली पराजय के बाद खुद उन्होंने ही लोगों के बीच रोना रोया था कि रिश्ते के एक साले ने ही उन्हें धोखा दिया । यानि जिससे धोखा खाने की शिकायत वह कर रहे थे वह रिश्ते में उनका साला भी था और जैन भी था । इस अनुभव के बावजूद जैन होने के कारण उन्होंने रूपक जैन से समर्थन मिलने की उम्मीद की, और बदले में रूपक जैन से जली-कटी सुनी । रूपक जैन से जली-कटी सुनने के बाद हो सकता है कि सुभाष जैन को समझ में आ गया हो कि योगेश गर्ग को वह जितने हलके में ले रहे हैं, उससे उनकी मुश्किलें बढ़ ही रही हैं और इसलिए ही वह योगेश गर्ग के घर जाने और उन्हें मनाने के लिए प्रयास करने के लिए मजबूर हुए । 
सुभाष जैन की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए जो लोग तैयार हैं, उनका भी मानना और कहना है कि योगेश गर्ग को मनाने तथा अपने क्लब का पूरा व एकतरफा समर्थन पाने का प्रयास उन्हें सबसे पहले करना चाहिए था । इस काम में देर करके और इसे तवज्जो न देने से सुभाष जैन ने अपना बड़ा नुकसान कर लिया है । इसका सबसे बड़ा नुकसान यही है कि अपनी उम्मीदवारी लिए समर्थन का माहौल बनाने का उनका हर प्रयास फेल हो जा रहा है । अपनी सक्रियता से वह दो कदम आगे बढ़ते हैं, लेकिन क्लब का विवाद उन्हें चार कदम पीछे कर देता है । उल्लेखनीय है कि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए जिन भी उम्मीदवारों का नाम चर्चा में है, उनमें अभी एक अकेले सुभाष जैन ही लोगों के बीच सक्रिय हैं - इस हिसाब से सुभाष जैन की उम्मीदवारी को दूसरे संभावित उम्मीदवारों से बहुत बहुत आगे दिखना चाहिए था; हकीकत और विडंबना की बात किंतु यह है कि डिस्ट्रिक्ट में लोग अभी उनकी उम्मीदवारी को लेकर ही आश्वस्त नहीं हो पा रहे हैं - और डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच अभी उनकी उम्मीदवारी को लेकर ही अनिश्चय व संशय बना हुआ है । गाजियाबाद में आयोजित की गई चुनावी मीटिंग में उनके ही क्लब के वरिष्ठ सदस्यों से दूसरे लोगों को जो जो बातें सुनने को मिलीं, उससे उनकी उम्मीदवारी की संभावना को लेकर बना हुआ उक्त अनिश्चय व संशय वास्तव में और बढ़ गया है ।