Wednesday, June 24, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया की सेंट्रल इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी को लेकर मनोज गुप्ता, नीलेश गुप्ता और अभय शर्मा के बीच लुकाछिपी का जो खेल चल रहा है, उसने इंदौर में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को खासा दिलचस्प बना दिया है

इंदौर । मनोज गुप्ता की उम्मीदवारी के 'आने' के भय ने इंदौर में रीजनल काउंसिल के संभावित उम्मीदवारों को अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करने से जिस तरह रोका हुआ है, वह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति में परस्पर अविश्वास तथा अनिश्चय के माहौल के होने का दिलचस्प नजारा प्रस्तुत करता है । मजे की बात यह है कि खुद मनोज गुप्ता कई मौकों पर यह घोषणा कर चुके हैं कि वह इस बार चुनावी झमेले से दूर ही रहेंगे, लेकिन फिर भी इंदौर में कई लोगों के लिए मनोज गुप्ता की इस घोषणा पर विश्वास करना मुश्किल बना हुआ है - उन्हें लगता है कि मनोज गुप्ता कभी भी अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर देंगे और सफाई दे देंगे कि वह तो उम्मीदवार नहीं होना चाहते थे, किंतु समर्थकों व शुभचिंतकों के दबाव के कारण उन्हें उम्मीदवार बनने के लिए मजबूर होना पड़ा है । लोगों को यदि ऐसा लगता है, तो इसका कारण खुद मनोज गुप्ता ही हैं; वह स्वयं लोगों को यह भी बताते/कहते हैं कि उम्मीदवार बनने से उनके स्पष्ट इंकार करने के बावजूद उनके कई समर्थक व शुभचिंतक उन्हें उम्मीदवार बनने के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं, और उन्हें समझाते हैं कि इस बार उनके लिए अच्छा मौका है, कि चुनावी राजनीति में उन्हें गैप नहीं छोड़ना चाहिए, कि बाद में फिर जरूरी नहीं है कि उनके लिए अभी जैसी ही अनुकूल स्थितियाँ बनी रहें, आदि-इत्यादि । मनोज गुप्ता चूँकि स्वयं ही इस तरह की बातें लोगों के बीच कहते हैं, इसलिए उम्मीदवार न होने की उनकी घोषणा शक के दायरे में आ जाती है । लोग दरअसल जानते हैं कि चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के 'लिए' न और हाँ के बीच बहुत ही पतली लाइन होती है, जिसे पार करना उनके लिए जरा भी मुश्किल नहीं होता है । चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के प्रति बनी इस धारणा के कारण ही मनोज गुप्ता की इस बार उम्मीदवार न बनने की घोषणा पर कई लोगों को भरोसा नहीं हो पा रहा है । 
मनोज गुप्ता की घोषणा पर भरोसा न हो पाने का एक कारण वास्तव में यह भी है कि पिछले से पिछले वर्ष, यानि त्रिवर्षीय सत्र के पहले वर्ष में इंदौर ब्रांच के चेयरमैन के रूप में उनका कामकाज बहुत ही सक्रियताभरा रहा था, जिसके लिए उनकी खासी प्रशंसा भी हुई और उन्हें अवार्ड भी मिले । उस समय उनकी सक्रियता और उनकी उपलब्धियों को देख कर लोगों को लग गया था कि ब्रांच में झंडे गाड़ने के बाद मनोज गुप्ता का अगला ठिकाना रीजनल काउंसिल होगा । मनोज गुप्ता ने इससे कभी इंकार भी नहीं किया । अभी भी वह सिर्फ यह कह रहे हैं कि वह इस बार उम्मीदवार नहीं होंगे - आगे कभी उम्मीदवार होने की संभावना से वह इंकार नहीं कर रहे हैं । उनका कहना है कि अभी वह अपने कामकाज पर ध्यान देना चाहते हैं और कामकाज सँभालने के बाद ही वह इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में आयेंगे । समस्या दरअसल इस कारण से है कि मनोज गुप्ता जो कह रहे हैं वह उनका व्यक्तिगत फैसला है, लेकिन चुनावी राजनीति में जो होता है वह प्रायः एक समूह से निर्देशित होता है और उसका 'व्यक्तिगत' आमतौर पर कमजोर साबित होता है; मनोज गुप्ता पर उनके 'समूह' की तरफ से तो उम्मीदवार होने का दबाव पड़ ही रहा है - उनका व्यक्तिगत अभी तक तो समूह के दबाव को नकार रहा है; शक यही है कि उनका यह नकार टिका रह पायेगा क्या ?
समझा जाता है कि इसी शक के कारण नीलेश गुप्ता अपनी उम्मीदवारी की घोषणा नहीं कर रहे हैं । नीलेश गुप्ता लोगों से तो हालाँकि यह कह रहे हैं कि चुनाव में अभी बहुत समय है, अभी से घोषणा करने की क्या जरूरत है, उचित समय पर ही घोषणा करना सही होगा, आदि-इत्यादि; लेकिन उनके नजदीकियों का कहना है कि वह मनोज गुप्ता की तरफ से पूरी तरह आश्वस्त हो लेना चाहते हैं, और मनोज गुप्ता का 'न आना' पक्का होने के बाद ही अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करेंगे । मनोज गुप्ता की उम्मीदवारी की उपस्थिति में नीलेश गुप्ता अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं करेंगे; और इसीलिए वह इंतजार कर रहे हैं कि मनोज गुप्ता की तरफ से स्थिति विश्वसनीय तरीके से साफ हो जाए ।
नीलेश गुप्ता को अभय शर्मा की तरफ से भी खतरा है । अभय शर्मा ने पिछले दो वर्षों में जिस तरह से ऊँची छलाँगें लगाई हैं, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि उनकी निगाह रीजनल काउंसिल में विकास जैन द्वारा खाली की गई जगह पर है और वह उसे भरने के लिए उत्सुक हैं । अभय शर्मा हालाँकि अभी तक तो अपनी उम्मीदवारी से इंकार कर रहे हैं, लेकिन कुछेक लोगों का कहना है कि वह जिस तरह से इंकार कर रहे हैं उसमें दरअसल मौका देखने का भाव है । अभय शर्मा के कुछेक नजदीकियों तथा शुभचिंतकों का उनके लिए सुझाव हालाँकि यह है कि पहले उन्हें  इंदौर ब्रांच का चुनाव जीत कर लोगों को दिखाना चाहिए, फिर उसके बाद उन्हें रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करना चाहिए । उल्लेखनीय है कि अभय शर्मा आज भले ही इंदौर ब्रांच के सचिव बने हुए हैं, लेकिन लोगों को यह बात अच्छी तरह याद है कि इंदौर ब्रांच का पिछला चुनाव वह जीत नहीं पाए थे - और इस कारण से लोगों के बीच उनके प्रति एक नकारात्मक भाव है । कुछेक लोगों का यद्यपि यह भी कहना है कि लोग कल की नाकामयाबी की बजाए आज की सफलता को याद रखते हैं; इसलिए इस बात को भूल कर कि पिछली बार का इंदौर ब्रांच का चुनाव वह नहीं जीत पाए थे, अभय शर्मा को रीजनल काउंसिल का चुनाव लड़ ही लेना चाहिए । अभय शर्मा के कुछेक समर्थकों का तर्क भी है कि नीलेश गुप्ता अपनी उम्मीदवारी को लेकर जिस तरह कन्फ्यूज से दिख रहे हैं, उससे अभय शर्मा की उम्मीदवारी के लिए अच्छा मौका बन रहा है । 
अभय शर्मा लेकिन नीलेश गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति पूरी तरह आश्वस्त हो लेना चाहते हैं । अभी ऐसा लग/दिख रहा है कि नीलेश गुप्ता की उम्मीदवारी के साथ अभय शर्मा अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने से बचना चाहते हैं । उनके नजदीकियों का कहना है कि लेकिन नीलेश गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणा करने में देर की तो फिर अभय शर्मा अपनी उम्मीदवारी की घोषणा कर देंगे । रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी को लेकर नीलेश गुप्ता और अभय शर्मा के बीच लुकाछिपी का जो खेल चल रहा है, उसने इंदौर में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को खासा दिलचस्प बना दिया है ।