Thursday, June 25, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत हुई दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी ने - राजीव सिंघल की उम्मीदवारी की आड़ में सुनील गुप्ता द्वारा अपने गवर्नर-काल की 'जरूरतों' को पूरा करने के बैठाए हिसाब को बिगाड़ा

मेरठ । दिवाकर अग्रवाल द्वारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत की गई उम्मीदवारी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद संभालने की तैयारी कर रहे सुनील गुप्ता को भारी मुसीबत में फँसा दिया है । दरअसल सुनील गुप्ता ने अभी पिछले दिनों ही रोटरी क्लब मेरठ साकेत के राजीव सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार 'बनवा' कर अपना गवर्नर-काल 'सुधारने' का जो पक्का इंतजाम किया था - दिवाकर अग्रवाल की प्रस्तुत हुई उम्मीदवारी ने लेकिन उनके उस 'इंतजाम' को तो धक्का पहुँचाया ही है, साथ ही उनके सामने अपने गवर्नर-काल को ठीक से चलाने की चुनौती भी पैदा कर दी है । राजीव सिंघल की उम्मीदवारी के जरिए सुनील गुप्ता ने जो कुछ भी 'पाने' के सपने देखे थे, दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने से उनके वह सारे सपने चकनाचूर हो गए हैं । सुनील गुप्ता के लिए समस्या सिर्फ यही नहीं है, उनके सामने असल समस्या यह आ खड़ी हुई है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्हें अपने आपको राजीव सिंघल व दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों के बीच पिसने से बचाना है ।  
सुनील गुप्ता के लिए यह स्थिति इसलिए बनी है क्योंकि एक तरफ तो वह राजीव सिंघल की उम्मीदवारी के बृजभूषण व योगेश मोहन गुप्ता जैसे घनघोर समर्थकों की 'गिरफ्त' में हैं, और दूसरी तरफ अपने गवर्नर-काल के तमाम कामकाजों को कराने के लिए वह दिवाकर अग्रवाल के नजदीकियों व समर्थकों पर निर्भर हैं । सुनील गुप्ता ने अपने गवर्नर-काल की प्रिंटिंग का सारा काम मुरादाबाद में करवाना तय किया हुआ है, जिसकी जिम्मेदारी उन लोगों के पास है - जिन्हें दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी के रणनीतिकारों से लेकर सक्रिय कार्यकर्ताओं के रूप में देखा/पहचाना जाता है । सुनील गुप्ता को दरअसल मेरठ में काम करने के लिए कोई मिला ही नहीं, और इसलिए उन्हें अपना काम करवाने के लिए मुरादाबाद के लोगों का सहारा लेना पड़ा है । अपने गवर्नर-काल के कई कामों के लिए वह मुरादाबाद के लोगों पर निर्भर हैं । सुनील गुप्ता के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि उनका गवर्नर-काल शुरू होते होते डिस्ट्रिक्ट में चुनावी बिसात बिछ गई है, और डिस्ट्रिक्ट एक रोमांचक चुनावी घमासान की तरफ बढ़ता दिख रहा है । जो लोग सुनील गुप्ता की क्षमताओं को जानते हैं, वह मानते और कहते हैं कि चुनावी राजनीति के चक्कर में डिस्ट्रिक्ट में जो खेमेबाजी बन रही है, उससे निपटना और उसमें अपनी गवर्नरी चलाना सुनील गुप्ता के लिए टेढ़ी खीर होगा । 
उल्लेखनीय है कि चुनावी राजनीति का चक्कर मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव रस्तोगी के लिए भी कोई कम चुनौतीपूर्ण नहीं था; उनके लिए बल्कि ज्यादा 'काम' था - क्योंकि उन्हें पिछले वर्ष के चुनावी नतीजों से भी निपटना था और अपने कार्यकाल की स्थितियों का भी सामना करना था । जो लोग संजीव रस्तोगी और सुनील गुप्ता, दोनों को जानते हैं - उनका कहना है कि संजीव रस्तोगी में निर्णय लेने की जो क्षमता है तथा अपनी जिम्मेदारियों को खुद उठाने/निभाने की जो सामर्थ्य है, उसके चलते उन्होंने धाकड़ तरीके से अपना गवर्नर-काल चलाया और चुनावी राजनीति की लगाम को अपने ही नियंत्रण में रखा । सुनील गुप्ता के लिए ऐसा कर पाना मुश्किल ही होगा - क्योंकि उनमें न तो निर्णय लेने की क्षमता है और अपनी जिम्मेदारियों को भी वह हमेशा दूसरों के कंधों पर डालने की फिराक में रहते हैं । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि सुनील गुप्ता ने बृजभूषण और योगेश मोहन गुप्ता के प्रति पहले तो विरोधी तेवर दिखाए, लेकिन इन्होंने जब घुड़की दी तो सुनील गुप्ता ने इनके सामने समर्पण करने में भी देर नहीं लगाई । राजीव सिंघल की उम्मीदवारी को सुनील गुप्ता ने प्रोत्साहित ही इसलिए किया, ताकि राजीव सिंघल उनके गवर्नर-काल की 'जरूरतों' को पूरा करते रहें । संजीव रस्तोगी का प्रयास था कि उनके गवर्नर-काल में चुनाव न हो; सुनील गुप्ता ने पहली चिंता ही यह की कि उनके गवर्नर-काल में चुनाव की स्थितियाँ कैसे बनें ? मंजु गुप्ता और दीपा खन्ना के बीच चुनाव की जो स्थितियाँ बन रही थीं, उसमें सुनील गुप्ता को अपना 'काम' बनता हुआ नहीं दिख रहा था, इसलिए वह लगातार एक ऐसे उम्मीदवार की तलाश में थे जो उनके 'काम' भी बनाए । उनकी यह तलाश राजीव सिंघल पर जाकर खत्म हुई । 
राजीव सिंघल की उम्मीदवारी की आड़ में बृजभूषण व योगेश मोहन गुप्ता जैसे लोगों को इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई तक 'रास्ता' बनाने का मौका दिखा, तो सुनील गुप्ता को लगा कि उनकी तो जैसे लाटरी लग गई । उन्हें विश्वास हो गया कि बृजभूषण, योगेश मोहन गुप्ता और राजीव सिंघल की जो अपनी अपनी 'जरूरतें' हैं - वह चूँकि एक दूसरे पर निर्भर हैं इसलिए वह एक साथ रहेंगे और उनके गवर्नर-काल की जरूरतों को पूरा कर देंगे । दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी ने लेकिन उनके इस विश्वास का सब गुड़ गोबर कर दिया है । दिवाकर अग्रवाल और उनके समर्थकों के लिए इस बार का चुनाव खासी प्रतिष्ठा का चुनाव है; एक तरह से कह सकते हैं कि जीने-मरने का चुनाव है - इसलिए उनके लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुनील गुप्ता की किसी भी पक्षपातपूर्ण राजनीतिक चालबाजी को इग्नोर करना संभव नहीं होगा । सुनील गुप्ता को उनकी सतर्क व कठोर घेरेबंदी का सामना करना ही होगा । दिवाकर अग्रवाल के समर्थकों पर अपने कामकाज के लिए निर्भर न होते, तो सुनील गुप्ता इस घेरेबंदी से बेपरवाह भी बने रह सकते थे; किंतु सुनील गुप्ता की मुसीबत यह है कि वह इस तरह का चांस नहीं ले सकते हैं क्योंकि तब उनके कामकाज का ही कबाड़ा जायेगा । उनकी मुसीबत इस कारण से और बड़ी हो जाती है कि यदि उन्होंने बृजभूषण, योगेश मोहन गुप्ता व राजीव सिंघल के 'काम' नहीं किए - तो यह लोग उनका जीना मुहाल कर देंगे ।   
मजे की बात यह है कि सुनील गुप्ता इस जिस मुसीबत में फँसे हैं, वह उन्होंने खुद ही पैदा की है । राजीव सिंघल को उम्मीदवारी के लिए प्रोत्साहित करते हुए दिखाई तो उन्होंने होशियारी थी, किंतु उनकी यही होशियारी उनके लिए आफत बनती नजर आ रही है । अपने ही फैसलों से सुनील गुप्ता जिस तरह लोगों के बीच मजाक का विषय बनते जा रहे हैं और खुद के लिए मुसीबतों को आमंत्रित कर रहे हैं, उससे लग रहा है कि आगे और दिलचस्प नजारे देखने को मिलेंगे ।